Kuchh Rafoo Kuchh Thigare
Author:
Ashok VajpeyiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
<strong>“</strong>यह तो अच्छा हुआ कि कविता मेरे साथ है/जो यह भरोसा दिलाती है कि/कोई भी पथ कभी समाप्त नहीं होता/और सब कुछ गँवा देने के बाद भी/कुछ बचा रहता है।”</p>
<p>अशोक वाजपेयी की अथक और अदम्य जिजीविषा इन कविताओं में उदास विवेक और आत्मस्वीकार के बीच गहरे संयम के साथ नाजुक ढंग से सन्तुलित है। कुल एक वर्ष की अवधि में लिखी गई ये कविताएँ कई बार उदासी से घिरी होने के बावजूद अपनी पारदर्शिता में उजली और निर्मल हैं। सारे ध्वंस और नाश के विरुद्ध कविता को अपने लिए एकमात्र बचाव माननेवाले इस कवि की भाषा, सयानापन और शिल्प पर सहज अधिकार एक बार फिर सत्यापित करते हैं कि हमारे समय में कविता मनुष्य की हालत, उसकी उलझनों और जीवट का सूक्ष्म बखान करती है और ऐसा करते हुए हमें सचाई में ऐन्द्रिय शिरकत का अवसर देती है।</p>
<p>अशोक वाजपेयी की आवाज़, हमेशा की तरह, निजी और समाजधर्मी एक साथ है और वे लगातार अपने को वेध्य और बेबाक बनाए हुए हैं। उनकी कविता के केन्द्र में साधारण जीवन की आभा और छवियाँ हैं जिन्हें उनकी भाषा अनूठे शब्दालोक और समयातीत आशयों से उद्दीप्त करती है।
ISBN: 9788126708468
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इन्क़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही है कि इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है। और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया के अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
Prem Paglya
- Author Name:
Narhari Patel
- Book Type:

- Description: Book
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