Avalamban
Author:
Manish ShrivastavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
किसी नए कवि की रचना से गुज़रते हुए अक्सर उम्मीद की जाती है कि उसमें कुछ नया होगा लेकिन मनीष श्रीवास्तव की कविताओं के साथ केवल नए होने का भाव नहीं है, यहाँ विविधता है। अपने होने में पूरी विनम्रता के साथ लेकिन रचनात्मक रूप से लगभग अतार्किक। ये कविताएँ कोई नई ज़मीन तोड़ने का दावा नहीं करतीं, कोई नारेबाज़ी नहीं करतीं, चौंकाती भी नहीं—बस, अपने कविता होने को आश्वस्त करती हैं और यह भी कि इन रचनाओं में पुरखे शामिल हैं।</p>
<p>सांस्कृतिक तत्सम शब्दावली और मीर, ग़ालिब, पंत की भाषा परम्परा के रास्ते से ये रचनाएँ ग्लोबल कविता की अवधारणा में प्रवेश पाती हैं। यहाँ हर रचना के साथ कोई एक छाया चलती है—भाषा, काल और कहन के एक ऐसे पृष्ठ-तनाव को फिर-फिर उजागर करती हुई, अपने पूरे संस्कार और संवेदना के साथ, जो किसी एक रचनाकार के लिए इन दिनों असम्भव है।</p>
<p>मनीष पूरे विस्तार के साथ शब्दों को बरतते हैं, एक चौकन्नेपन के साथ, कहीं-कहीं अतिरिक्त सावधानी के साथ भी, लेकिन बाज़ार की माँग के अनुसार तो कुछ भी नहीं। रचना का होना बचा रहे, इसका निर्वाह तो हरेक रचनाकार स्वाभाविक रूप से करता है, लेकिन यह</p>
<p>होना यहाँ किसी अनुशासन की तरह नहीं है।</p>
<p>इन रचनाओं में शब्दों का पड़ोस है जीवन और अन्ततः प्रेम जहाँ ये कविताएँ सहज रूप से खुलती चली जाती हैं।
ISBN: 9788126717170
Pages: 174
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Aur Is Bar Jab Tum Nadi Bani
- Author Name:
Shishir Upadhyay
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Khudgarziyan Poems
- Author Name:
Vaishali
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- Description: "वैशाली, इनकी अलमारी में अंग्रेज़ी साहित्य और मास कम्यूनिकेशन की दो—दो स्नातकोत्तर उपाध्यि इठला रही थीं, तभी ढेर सारे आलेखनों और कविताओं के पन्नों ने इन्हें झुके रहना सिखाया… पिछले एक दशक से कॉपी राइटिंग क्षेत्र में सक्रिय हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लिए कई सारे चुनावी और अन्य प्रचार अभियान भी लिख चुकी हैं… विषय कोई भी हो, उसमें जान डालने की कला को इन्होंने वक्त के साथ निखारा… प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा रखती हैं ये, और राष्ट्रवाद पर कई गाने और टीवी व सोशल मीडिया की फिलमे भी लिख चुकी हैं… और हर सृजन ने इन्हें देशभक्ति का एक नया मतलब समझाया… मघ्यमवर्गीय गुजराती परिवार में इनका जन्म हुआ… कर्म ही र्घम इनके जीवन का मूल—मंत्र है… इसी मंत्र ने उनको एक छोटे से शहर से राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया… कविता लिखने की इनकी शैली मे सरलता है। हल्के—फल्के शब्दों के प्रयोग से ये अपनी बात ईमानदारी स कह जाती हैं। यही सरलता और सहजता से आगे भी लिखते रहना है, और भी बहुत कुछ सीखते रहना है… जय हिंद…
Thoda-Thoda Punna Thoda-Thoda Paap
- Author Name:
Kedar
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Description:
परिपक्व जीवन-अनुभवों और भाषा की गहरी समझ के साथ लिखी गई ये कविताएँ लोकजीवन की आत्मीय छवियों और सामाजिक सरोकारों से उपजी ज़िम्मेदार दृष्टि की परिचायक हैं।
केदार जानते हैं कि ‘एक पूरी ज़िन्दगी लिखना नहीं ठट्ठा-हँसी है / खीर है टेढ़ी’—ये कविताएँ ज़िन्दगी को लिखने के इसी कठिन उद्यम से निर्मित हुई हैं। इन कविताओं का कवि किसी धारा से बाँधा हुआ नहीं है। अनुभूति की प्रामाणिकता और परिवेश की पुनर्रचना केदार के काव्यात्म को एक सघन आयाम देते हैं। बचपन से लेकर जीवन के विभिन्न चरणों के विशिष्ट अनुभव इन कविताओं में उतरे हैं तो बतौर मनुष्य स्वयं से साक्षात्कार से लेकर समाज की स्थूल परिधियों और वहाँ मौजूद विसंगतियों तक उनकी दृष्टि जाती है।
‘सर्कस’, ‘होमवर्क’ और ‘कक्षा’ जैसी पारदर्शी कविताएँ जो बचपन का उत्सव मनाती हुईं हमें अपने सहज छन्द-प्रवाह से निर्भार करती हैं तो ‘नसीहत’ और ‘चिट्ठीरसैन’ जैसी कविताएँ हमें सोच के एक भिन्न और गम्भीर स्तर पर ले जाती हैं।
‘एक-एक शब्द की / चुकानी पड़ती क़ीमत / बहुत जलता लहू / हाथ, उस दिन ख़ाली हो जाता / शब्दों में जिस दिन कुछ / उतरता’—कहने वाले केदार अभिव्यक्ति का दायित्व भी जानते हैं और मूल्य भी।
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