Is Bhanwar Ke Paar

Is Bhanwar Ke Paar

Language:

Hindi

Pages:

92

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

184 mins

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Book Description

अगर काव्य को जीवन के सामासिक एवं वैयक्तिक सरोकारों की पहचान का एक बिम्बात्मक माध्यम माना जाए तो शशि शेखर के इस संग्रह की कविताएँ उन सरोकारों को अनुभूति के कई स्तरों पर टटोलती हैं। एक स्तर पर मनुष्य के निजी अनुभवों का विराट एवं अत्यन्त ही दुरूह संसार है तो दूसरे स्तर पर समाज के सामूहिक जीवन का उल्लास एवं उसकी विवशताएँ हैं।</p> <p>ये कविताएँ इन स्तरों के अन्तर्सम्बन्धों की पहचान तो करती ही हैं, उनकी पुनर्व्याख्या के माध्यम से वर्तमान के अपसंस्कारों की ओर हमारा ध्यान भी खींचती हैं। समसामयिक जीवन का सामाजिक, सैद्धान्तिक एवं वैचारिक अनुभव ख़ूब मुखर होकर इन कविताओं में ध्वनित हुआ है। जहाँ वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में जोड़कर देखा गया है, वहीं उस परिदृश्य के तात्कालिक महत्त्व एवं उसकी कुरूप विडम्बनाओं को भी रेखांकित किया गया है, और ऐसा करते समय ये कविताएँ ‘अच्छा’ समझे जाने की चिन्ता से पूरी तरह मुक्त हैं।</p> <p>अपनी बात बिना लाग–लपेट कहने का आग्रह इन कविताओं की महत्त्वपूर्ण पहचान है। इस आग्रह के कारण ही ये कविताएँ सहसा हमें आईने के सामने खड़ा कर देती हैं। शशि शेखर ने समान सामर्थ्य के साथ काव्य की अनेक विधाओं का प्रयोग किया है। चाहे गीत हों या दोहे, मुक्त छन्द हों या ग़ज़ल, हर पैमाने में उनके अनुभवों का रस ख़ूब पककर छलका है। इस हिसाब से ये कविताएँ पूरे तौर पर हिन्दुस्तानी मिज़ाज की हैं। भाषा और बिम्ब के सन्दर्भ में भी हमारी वैविध्यपूर्ण जीवन–शैली—शहरी और ग्रामीण, खड़ी बोली और उर्दू—के परस्पर रिश्तों की विरासत इन कविताओं में स्पष्ट रूप से मुखरित होती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये कविताएँ पाठक से सीधे संवाद की अपेक्षा से अनुप्राणित हैं।

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