Pratinidhi Shairy : Mirza Rafi 'Sauda'
Author:
Mirza Rafi 'Sauda'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Unavailable
मीर तक़ी <strong>‘</strong>मीर<strong>’ </strong>के समकालीन मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी <strong>‘</strong>सौदा<strong>’ </strong>18वीं सदी के चार प्रमुख उर्दू शायरों में गिने जाते हैं। आम तौर पर सौदा को क़सीदे का शायर समझा जाता है<strong>, </strong>और इसमें कोई शक नहीं कि<strong>, </strong>सौदा के कुछेक क़सीदे ग़ज़ब के हैं। लेकिन सच बात यह है कि सौदा को इस रूप में पेश करना उनके साथ नाइंसाफ़ी से कुछ कम नहीं है। अपनी हज्वियाती नज़्मों (निन्दा-काव्यों) में और अपने शह्र-आशोवों में सौदा का हमें एक और ही रूप दिखाई देता है जो न तो उनके क़सीदों में नज़र आता है और न उनकी ग़ज़लों में। इन हज्वियाती नज़्मों और शह्र-आशोवों में सौदा अपने वक़्त की कड़वी सामाजिक सच्चाइयों के बारे में<strong>, </strong>18वीं सदी की पतनशील सामन्ती सभ्यता के बारे में जिस स्पष्ट दृष्टि का परिचय देते हैं<strong>, </strong>वैसी दृष्टि उनके किसी भी अग्रज या समकालीन शायर के यहाँ नहीं दिखाई देती। मीर और दर्द के यहाँ भी नहीं। इसमें शक नहीं कि सौदा ख़ुद इस सामन्ती संस्कृति से जुड़े हुए रहे और इसीलिए इसके पतन से उनका प्रभावित होना स्वाभाविक था<strong>, </strong>उनका अफ़सोस करना भी उतना ही स्वाभाविक था। लेकिन सौदा इस पतनशील संस्कृति का मातम ही नहीं करते<strong>, </strong>बढ़-चढ़कर उन लोगों पर चोटें करते हैं<strong>, </strong>उनकी क़लई खोलते हैं जो इस पतन के लिए ज़िम्मेदार थे। इस सिलसिले में सौदा ने जादू-बयानी का जो परिचय दिया है<strong>, </strong>वह अपनी मिसाल आप है।</p>
<p>अकसर आलोचकों ने मीर और सौदा के तुलनात्मक अध्ययन के प्रयास किए हैं<strong>, </strong>और यह नतीजा निकाला है कि मीर सौदा से कोसों आगे हैं। आलोचकों की इस राय में बहुत कुछ सच्चाई है। ख़ासकर ग़ज़लों में जहाँ मीर का अन्दाज़े-बयाँ दिल को छू लेने की हैसियत रखता है<strong>, </strong>वहीं सौदा का अन्दाज़े-बयाँ ज़्यादातर भाषा के खिलवाड़ों तक सीमित रहता है। फिर भी इसमें शक नहीं कि सौदा को कुछ कम करके आँकना ग़लत होगा<strong>—</strong>ख़ासकर हजो और शह्र-आशोब जैसी विधाओं में उनका कोई जवाब नहीं है। ख़ुद उन्हीं के शब्दों में कहें तो सौदा हिन्द के शायरों के पैग़म्बर तो नहीं हैं लेकिन सुख़न कहने में उन्हें एज़ाज़ ज़रूर हासिल है।
ISBN: 9788171197156
Pages: 188
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Mere Desh Mein Kahte Hain Dhanyavad
- Author Name:
Sharad Chandra
- Book Type:

-
Description:
रने एमिल शार्, जिन्हें अल्बैर् कामू अपने समय का महानतम कवि मानते थे, का जन्म दक्षिणी फ्रांस के प्रोवॉन्स प्रदेश के एक नामी और ख़ूबसूरत क़स्बे, ईल-सुर-सोर्ग में, 7 जून, 1907 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय पेरिस और प्रोवान्स में बिताया।
शार् ने अपने बिम्ब और प्रतिमाएँ दक्षिण फ्रांस में बीते अपने बचपन से और वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों से ली हैं। वो कोई देहाती कवि नहीं थे, लेकिन देहात के दृश्यों का प्रभाव उनकी कविताओं में भरपूर मिलता है। प्रकृति के प्रति शार् की आस्था उतनी ही दृढ़ थी जितनी अपनी कविताओं के शिल्प के प्रति। उन्होंने सोर्ग नदी के प्रदूषण, वान्तू—जिस पर प्रैटार्क ने 1336 में विजय प्राप्त की थी—और मौं मिराइल पहाड़ों की चोटियों पर न्यूक्लियर रिएक्टरों के लगाने पर शहरी आपत्ति जताई थी।
शार् की सृजनात्मक दृष्टि पर, उनके कविता लिखने के उद्देश्य और शिल्प पर जिन लोगों का प्रभाव रहा, उनमें ग्रीक दार्शनिक हेरा क्लाइटस, फ़्रैंच कलाकार जॉर्ज दि लातूर और कवि आर्थर रैम्बो को प्रमुख माना जाता है। रैम्बो का साया उनके बिम्बों पर स्पष्ट दिखता है, ख़ास तौर से उनकी सूक्ष्म, घनीभूत गद्य कविताओं में। शार् पर एक और प्रभाव रहा अति यथार्थवाद का।
शार् एक ही विधा में लिखना पसन्द नहीं करते। उन्होंने मुख्य रूप से तीन विधाओं (forms) में कविताएँ लिखी हैं : मुक्त छन्द, गद्य कविता, और सूक्ति। वो अपनी पद्य कविताओं (Verse Poems) और गद्य कविताओं में उन्हीं विषयों को परिवर्द्धित करते हैं जिन्हें उन्होंने अपनी सूक्तियों में उठाया।
अपनी आख़िरी किताब के प्रकाशन तक शार् इस धारणा के समर्थक रहे कि कला, साहित्य और संगीत पारस्परिक रूप से प्रतिरोध की आवश्यक अभिव्यक्ति में जुड़े हुए हैं।
Rekhta ke Insha
- Author Name:
Inshallah Khan Insha
- Book Type:

- Description: "रेख़्ता क्लासिक्स" सीरीज़ उर्दू के क्लासिकी शायरों के प्रतिनिधि शायरी को नए पाठकों तक पहुँचाने के एक अनूठा प्रयास है। प्रस्तुत किताब में इंशाअल्लाह इंशा की प्रतिनिधि शायरी है जिसका संकलन फ़रहत एहसास साहब ने किया है।
Sampoorna Kavitayein : Namwar Singh
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
एक कवि के रूप में नामवर सिंह जिस परिवेश में विकसित हुए वह नितान्त किसानी उजास और सौन्दर्य से भरा हुआ था। वहाँ आसपास सहज सुलभ थी–ग्रामीण मनोवृत्ति और प्रकृति से घनिष्ठता। नामवर जी ने कवि के रूप में उसी प्रकृति से उजाला पाया और अपनी कविता से उसी उजाले को विकसित और अभिव्यक्त किया।
उनकी जितनी भी कविताएँ हैं वे 1940 से 1950 के बीच में लिखी गई थीं। इसके बाद उनका रुझान आलोचना की ओर होता चला गया और कवि-मन कहीं पीछे छूट गया। जिस कालखंड में ये कविताएँ विकसित हुईं, हिन्दी में वह प्रयोगवाद का समय है। नामवर सिंह की कविताएँ इस प्रयोगवाद से किनारा करती हैं। ऐसा नहीं है कि उनकी कविताओं के विषय नवीन नहीं हैं, बल्कि उनके यहाँ मन की गाँठों के लिए कोई जगह दिखलाई नहीं देती। उनका स्वर उल्लास की ओर ही अधिक रहा।
उनकी कविताओं में अपने समय की राजनीतिक गतिविधियों के प्रति भी एक गहरी अन्तर्दृष्टि दिखलाई पड़ती है। स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय तत्कालीन राजनीतिक कार्यकताओं के जीवन-संघर्ष को आधार बनाकर वे अपने जन के मन को ओज से भरने का कार्य भी करते हैं।
ये कविताएँ पाठकों को छायावादी आभास लिये दिख ज़रूर सकती हैं, किन्तु उनमें आधुनिकता का पुट भी बराबर रहता है। राजनीतिक सजगता तो उन्हें छायावाद से अलग करती ही है। उनकी कविताएँ जीवन को बहुत नज़दीक से देखती हैं। जीवन का हास-परिहास उनके यहाँ जीवंतता के साथ आया है। उनकी अधिकतर कविताओं में ग्राम है और उसकी मनोहर प्रकृति। यह प्रकृति उन्हें ढाँढस भी बँधाती है और लड़ने की शक्ति भी देती है।
इस पुस्तक में नामवर जी लिखित ‘अपने बारे में’ शीर्षक एक आलेख भी शामिल है जिसमें वे अपने कवि का परिचय अत्यंत रोचक ढंग से देते हैं।
Aatmahatya Ke Virudh
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

-
Description:
रघुवीर सहाय का यह बहुचर्चित कविता-संग्रह कवि के अपने व्यक्तित्व की खोज की एक बीहड़ यात्रा है। मनुष्य से नंगे बदन संस्पर्श करने के लिए ‘सीढ़ियों पर धूप में’ संग्रह में कवि ने अपने को लैस किया था : अब वही साक्षात्कार इस दौर की कविताओं में उसके लिए एक चुनौती बनकर आया है।
बनी-बनाई वास्तविकता और पिटी-पिटाई दृष्टि से रघुवीर सहाय का हमेशा विरोध रहा है। अपनी कविताओं में उन्होंने अनुभव और भाषा दोनों के वैविध्य से जूझते हुए जो पाया था, वह चौंकाने या रोआब डालनेवाला कुछ नहीं था : वह नए मानव-सम्बन्ध का परिचय था और यह एक रोचक घटना है कि वह बहुधा परम्परावादियों के यहाँ ‘सहज’ कहकर मान्य हुआ, जबकि वह सहज बिलकुल नहीं था।
अपने को किसी क़दर सम्पूर्ण व्यक्ति बनाने की लगातार कोशिश के साथ रघुवीर सहाय ने पिछले दौर से निकलकर ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ में एक व्यापकतर संसार में प्रवेश किया है। इस संसार में भीड़ का जंगल है जिसमें कवि एक साथ अपने को खो देना और पा लेना चाहता है। वह नाचता नहीं, चीखता नहीं और सिर्फ़ बयान भी नहीं करता। वह इस जंगल में बुरी तरह फँसा हुआ है लेकिन उसमें से निकलना किन्हीं सामाजिक-राजनीतिक शर्तों पर उसे स्वीकार नहीं। नतीजा : ये कविताएँ।
भारतभूषण अग्रवाल के शब्दों में : ‘‘भीड़ से घिरा एक व्यक्ति—जो भीड़ बनने से इनकार करता है और उससे भाग जाने को ग़लत समझता है—रघुवीर सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व है।...
रघुवीर सहाय की अनेक रचनाएँ आधुनिक कविता की स्थायी विभूति बन चुकी हैं; उनके नागर मन की भावप्रवणता, सूक्ष्मदर्शिता और तटस्थ निर्ममता अब नए परिचय की मोहताज नहीं। पर अभी यह पहचाना जाना शेष है कि सहज सौन्दर्य और सूक्ष्म अनुभूति से निर्मित रघुवीर सहाय का काव्य-संसार जितना निजी है, उतना ही हम सबका है—एक गहरे और अराजनीतिक अर्थ में जनवादी। सचमुच, ऐसे ही कवि को जनता से घृणा करने का अधिकार दिया जा सकता है।’’
Talash
- Author Name:
Govind Geete
- Book Type:

- Description: Book
Awara Tishnagi
- Author Name:
Purnendu Kumar Singh
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Dhoop Ke Liye Shukriya Ka Geet Tatha Anya Kavitayen
- Author Name:
Mithilesh Kumar Rai
- Book Type:

- Description: यथार्थ के अनुभवमूलक अन्वेषण और संवेदना के नए धरातल के कारण युवा कवि मिथिलेश कुमार राय के इस संग्रह की कविताएँ अलग से आकर्षित करती हैं। ग्रामीण जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए अब तक जो फ्रेम हिंदी कविता में बने या बनाए गए, ये कविताएँ उन ढाँचों या चौकठों से बाहर की कविताएँ हैं। हिंदी में ग्रामीण जीवन के चित्रण को लेकर बनी बद्धमूल धारणाओं को और नई अवधारणाओं को विकसित करने का उपक्रम 1990 के बाद से निरंतर होता रहा है। फिर भी, मिथिलेश की कविताओं को पढ़ते हुए एक सुखद आश्चर्य होता है कि लोक जीवन के बारे में अब भी इतना कुछ, इतना नया, इतना अनूठा और इतना मार्मिक भी; कहने को बचा रह गया था। संग्रह की पहली ही कविता 'लक्ष्मी देवी उपले बढिय़ा थोपती है' की शुरुआती पंक्तियाँ द्रष्टव्य है— लछमी देवी उपले बढिय़ा थोपती हैंसम्मान के पर्चे पर इनका भी नाम चढऩा चाहिए महोदयलछमी देवी सानी इतना अच्छा लगाती हैंकि नाद जब ख़ाली हो जाता हैभैंसें तभी गर्दन ऊपर करती हैंसंग्रह में एक कविता है—'चावल लेने पड़ोसी के घर दौड़ती हैं स्त्रियाँ।' इस तरह की कविता में प्राय: अभाव का चित्रण होता है, लेकिन मिथिलेश लिखते हैं कि चावल, चीनी, चायपत्ती आदि माँगने जाने वाली स्त्रियाँ पड़ोसियों के साथ नेह-छोह के रिश्तों को जुगाने के लिए भी जाती हैं। ज़ाहिर है, कहन का यह नया ढंग यथार्थ की नई समझ के चलते ही आया है। निस्संदेह लोक अस्मिता की नई पहचान के कारण युवा कवि का यह संग्रह अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करने में सफल होगा। —मदन कश्यप
Pani Bheetar Aag
- Author Name:
Rajesh Pal
- Book Type:

- Description: poetry
Ayodhya Mein Kalpurush
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

-
Description:
कविता प्रकारांतर से हर दौर में सभ्यता-समीक्षा रही है। कवि बोधिसत्व की ये ताजा कविताएँ इस बेहद जटिल समय की महत्त्वपूर्ण गवाही रच रही हैं। कविता और समय के रिश्तों की यह पड़ताल, एक ऐसे दौर में जब अंधकार, हिंसा, उत्पीड़न, नियंत्रण, सन्देह, बेबसी और अनिश्चय से भरे संसार में मनुष्य होने के किसी सार-तत्त्व की खोज एक कठिन चुनौती है, रचनाकार की यह पेशकश बहुत मानीखेज है। यह नवाचार आज बहुत अर्थ रखता है। कवि ने मिथक कथाओं, जनश्रुतियों, और घोर वर्तमान के रिश्तों को जिस प्रकार से बुना है, उनमें स्थितियों और मनोभावों की आँच में सारे समय पिघलकर स्मृति के एक बीहड़ प्रदेश को रच रहे हैं। तीव्र गति से बीतते किसी तर्कातीत क्रम के भीतर दृश्य-खंड, दिशाएँ और गंतव्य सब यहाँ एक दूसरे में लिथड़े हुए हैं और समय बोध का एक विराट फलक उपस्थित हो रहा है। इस फलक पर व्यथाओं के अनचीह्ने इलाके और मनोभावों के नानाविध रूपाकार हमें उन सारे सन्दर्भों में ले जा रहे हैं जो दिखकर भी नहीं दिखते। चेतना के धुँधलाए से धरातलों पर उभरते हुए वहाँ बहुत से किरदार हैं, जो एक दूसरे में गड्डमड्ड हो एक ऐसे वृत्तान्त को रच रहे हैं जो अशान्त मन की विकलता से उपजा है; जो किसी डरावने सच को उकेर रहा है। महत्त्वपूर्ण यह कि इस नैरेटिव में कुछ भी सुनिश्चित, तार्किक, क्रमबद्ध और स्थाई नहीं, बल्कि यहाँ शक्ति-संरचनाओं की घेराबन्दी और उनमें जन्मता कोई दु:स्वप्न ही बचा रह गया है। अनर्गल शोर, तीव्रता, आकस्मिकताओं और छीना-झपटी से सना वह खौफनाक मंजर जिसमें अनसुने क्लेश, हाशिए पर छूट गए चीत्कारों और दबी हुई पीड़ाओं के कंपन हैं। एक कविता जो इस तरह समय के आर-पार जाती हुई सारी संहिताओं, हदबन्दी और जकड़नों को ध्वस्त करती है, गहन व्यथा के संकेतों को उकेर सकती है, वह प्रकारान्तर से सृजन के उस आदिम विश्वास को ही पाना चाहती है जो हमेशा से शक्ति-संरचनाओं का प्रतिपक्ष रहा है। यह वह जमीन है जहाँ हर रचनाकार को लौटना होता है—उस क्षत-विक्षत विश्वास की रक्षा की खातिर जो फिर भी कहीं सदा स्पन्दित होता रहता है। बोधिसत्व ने समकालीन कविता के बहुत से रूढ़ मुहावरों से बाहर निकलने की कोशिश की है। इन कविताओं का निश्चय ही भरपूर स्वागत किया जाएगा।
—विजय कुमार
Raag Virag
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
...यह उन कविताओं का संग्रह है जिनमें जितना आनन्द का अमृत है, उतना ही वेदना का विष। कवि चाहे अमृत दे, चाहे विष, इनके स्रोत इसी धरती में हों तो उसकी कविता अमर है।
...जैसे ‘उड़ि जहाज को पंछी फिरि जहाज पर आवै’, निराला की कविता आकाश में चक्कर काटने के बाद इसी धरती पर लौट आती है।
...निराला की कल्पना धरती के भीतर पैठकर वनबेला की सुगन्ध के साथ ऊपर उठती है।
...इस धरती के सौन्दर्य से निराला का मन बहुत दृढ़ता से बँधा हुआ है। आकाश में उड़नेवाले रोमांटिक कवियों और धरती के कवि निराला में यही अन्तर है।
...नारी के सौन्दर्य के बिना बसन्त का उल्लास अधूरा है। निराला की शृंगारी रचनाएँ देखकर विरोधी आलोचक कहते थे—ये कैसे छायावादी कवि हैं, जो अपने को ही रहस्यवादी कहते हैं और नारी सौन्दर्य के गीत भी गाते हैं।
...निराला ने गतकर्म सरोज को अर्पित कर दिए, फिर नया कर्म आरम्भ किया, उन्होंने ‘राम की शक्ति-पूजा' लिखी। ‘सरोज-स्मृति’ से निराला का आधा दु:ख सरोज की मृत्यु के कारण है, आधा उनके अपने संघर्षों के कारण।
...वह दु:ख की कथा सरोज के जन्म से पहले शुरू हुई थी और सरोज की मृत्यु के बाद बहुत दिन तक चलती रही। उसी की एक कड़ी है ‘राम की शक्ति-पूजा'।
...यह संग्रह निराला के सुदीर्घ कवि जीवन की सार्थकता का भी प्रमाण है।
—रामविलास शर्मा (इसी संग्रह से)
Pallav
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
‘पल्लव’ बिलकुल नए काव्य-गुणों को लेकर हिन्दी-साहित्य जगत में आया...पंत में कल्पना शब्दों के चुनाव से ही शुरू होती है। छन्दों के निर्वाचन और परिवर्तन में भी वह व्यक्त होती है। उसका प्रवाह अत्यन्त शक्तिशाली है। इसके साथ जब प्रकृति और मानव-सौन्दर्य के प्रति कवि के बालकोचित औत्सुक्य और कुतूहल के भावों का सम्मिलन होता है तो ऐसे सौन्दर्य की सृष्टि होती है जो पुराने काव्य के रसिकों के निकट परिचित नहीं होता। कम संवेदनशील पुराने सहृदय इस नई कविता से बिदक उठे थे और अधिक संवेदनशील सहृदय प्रसन्न हुए थे। पल्लव के भावों की अभिव्यक्ति में अद्भुत सरलता और ईमानदारी थी। कवि बँधी रूढ़ियों के प्रति कठोर नहीं है, उसने उनके प्रति व्यंग्य और उपहास का प्रहार नहीं किया, पर वह उनकी बाहरी बातों की उपेक्षा करके अन्तराल में स्थित सहज सौन्दर्य की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करता है। मनुष्य के कोमल स्वभाव, बालिका के अकृत्रिम प्रीति-स्निग्ध हृदय और प्रकृति के विराट और विपुल रूपों में अन्तर्निहित शोभा का ऐसा हृदयहारी चित्रण उन दिनों अन्यत्र नहीं देखा गया।’’
—आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
Dinkar Ke Geet
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
भारतीय संस्कृति और परम्परा से गहरे जुड़े दिनकर के इस गीत-संग्रह में विविधता और बहुलता एक बड़े कैनवस पर देखने को मिलती है।
इस संग्रह में मातृभूमि की सौंधी गंध और करुण वेदना का मार्मिक मिश्रण इस तरह मूर्त है कि संवाद सहज ही स्थापित किया जा सकता है। यहाँ प्रेम अनेक रूपों में अपने वैशिष्ट्य को लिए हुए है। ऐतिहासिक और मिथकीय पात्र भी इतने जाने-पहचाने कि सम्बद्धता एक मौलिक पाठ की तरह ध्वनित होती प्रतीत होती है। और इतना ही नहीं, इन गीतों में गायक भी हैं, नायक भी; पंछी भी हैं, परियाँ भी; सावन भी है, भ्रमरी भी; प्रतीक्षा भी है, आश्वासन भी; स्वाधीनता के लिए आह्वान भी है, हाथों में मशाल भी। इन गीतों को एक सम्पूर्णता में देखें तो कह सकते हैं कि ये एक राष्ट्रकवि द्वारा रचित ज़मीनी गीत हैं। दिनकर जी का कहना भी है कि, “ये गीत इसलिए हैं कि ये गाए जा सकते हैं, बहुत कुछ उसी प्रकार जैसे छन्द में रची हुई प्रत्येक कविता गाई जा सकती है। वैसे इस संग्रह में दो-चार ऐसे भी गीत हैं जो स्वराज्य की लड़ाई के समय छात्रावासों में गाए जाते थे, सड़कों पर, सभाओं और जुलूसों में तथा कभी-कभी गुसलख़ानों में भी गाए जाते थे। मेरा सौभाग्य कि जनता ने मेरी कई कविताओं को भी गीत बना दिया। ‘माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेसी’ इस कविता को तो मिथिला के नटुए भी नाच-नाच कर गाते हैं।”
‘दिनकर के गीत’ पाठ और गायन दोनों में एक-सा आस्वाद पैदा करनेवाला एक बेमिसाल और विरल संग्रह है।
Apra
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: ‘अपरा’ पहली बार सन् 1946 में प्रकाशित हुई थी, इसमें महाकवि निराला की उस समय तक प्रकाशित उनके सभी संग्रहों में से चुनी हुई कविताएँ संकलित हैं। चयन स्वयं निराला ने किया था, इसलिए इसकी महत्ता स्वतःसिद्ध है। यहाँ संकलित कविताओं से निराला के कवि-रूप का समग्र परिचय प्राप्त किया जा सकता है। इस अर्थ में यह संकलन ‘गागर में सागर’ ही है।
Neelkanthi Prarthanayen
- Author Name:
Raghuveer Sharma
- Book Type:

- Description: Description Awaited
Aur Anya Kavitayen
- Author Name:
Vishnu Khare
- Book Type:

-
Description:
विष्णु खरे की कविताएँ हिन्दी भाषा के सामर्थ्य को कई तरह के विषयों में ले जाकर विस्तृत और स्थित करती हैं। उनमें महाभारत से आज के यथार्थ का वृहत् वितान बनता है। वाक्य-विन्यास में यदि शाब्दिक लाघव है, तो शब्दों में भाषायी अर्थ-गहनता। दोनों पर अद् भुत पकड़ और चुस्त अन्तर्गतियाँ हैं : ठहरी गहराइयाँ हैं तो पाँव उखाड़ देनेवाला प्रवाह भी।
खरे की कविता के दो स्पष्ट ध्रुवान्त बनते हैं। एक तो उस प्रकार की कविताएँ हैं, जो मौजूदा यथार्थ की भीड़ में कन्धे रगड़ती ही चलती हैं; दूसरी वे कविताएँ, जो हमें अनुभवों की अधिक अमूर्त शक्तियों का अहसास कराती हैं। दोनों के बीच फ़ासले हैं, किन्तु विरोध नहीं—यह आभास उनके काव्य-बोध को एक जटिल संगति देता है और अनुभूतियों के एक ज़्यादा बड़े क्षितिज की पहचान कराती है।
नैरेशन या वर्णन-विवरण की अनेक विधियों को विष्णु खरे ने अपनी कविताओं में कई तरह से इस्तेमाल किया है—इस बात को सही तरीक़े से लक्षित किया जाना चाहिए। एक अनोखा प्रयोग उनकी मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है। ‘महाभारत’ प्रसंग में रिपोर्ताज शैली का इस्तेमाल कविता, मिथक और मौजूदा यथार्थ को एक दुर्लभ त्रिकोणात्मक तनाव देता है।
—कुँवर नारायण
Akshat
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:

-
Description:
style="line-height: 10px;">तुम
मेरी एकमात्र पुस्तक हो
मेरे मन का धर्मग्रन्थ तुम
मेरी एकमात्र कविता हो
मेरे सृजन के सच्चे दस्तावेज़
तुम मेरा एकमात्र विश्वास हो
मेरी आत्मा के वास्तविक सहचर
प्रेम का यही अकुंठ भाव इन कविताओं का मूल स्वर है। यह प्रेम-कविताओं का संग्रह है जिनकी कमी इधर आकर बहुत खलने लगी है। कविता के केन्द्र से प्रेम का हटना बेशक जीवन का अनुगमन ही है, क्योंकि जीवन का केन्द्र भी आज प्रेम नहीं है, लेकिन इसीलिए प्रेम अपनी तमाम पारदर्शिताओं, स्वच्छताओं और उदात्तताओं के साथ और भी ज़रूरी हो जाता है। वह एक अमूर्त भाव है लेकिन दुनिया में उसका अभाव हमें किसी चीज़ की तरह कचोटता है, जिसे इतनी तमाम चीज़ों की उपस्थिति भी पूर नहीं पाती।
ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताक़त की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है, हमें ज़्यादा सहनशील, सहिष्णु और संसार को ज़्यादा रहने लायक़ बनाता है।
तुम
मेरे पास
सुख की तरह हो
जैसे जड़ों के पास ज़मीन
तुम्हारा स्पर्श मुझे छूता है
जैसे सूरज छूता है पृथ्वी।
Hind Mahasagar Ka Sanskritik Itihas
- Author Name:
Gopal Kamal
- Book Type:

-
Description:
आसियान के देशों तथा भारतवर्ष की मैत्री पुरानी है। कितनी पुरानी? काफ़ी पुरानी है, कम-अज-कम चार हज़ार वर्षों का इतिहास तो बता ही सकते हैं। संस्कृति के स्तर पर। कलाकृतियों एवं व्यापार में भँजाई हुई चीज़ों के स्तर पर। क्या इन देशों के पुराने इतिहास से नए सम्बन्ध गहरा करने में मदद मिलेगी? तो हिन्द महासागर की इस इकाई को केवल भौगोलिक एकरूपता के लिए जानेंगे। अन्तर्सम्बन्धों की जाँच-पड़ताल में अनेकानेक बिन्दु उभरते हैं।
इस पुस्तक में नई किताबों नए शोधों को आत्मसात् किया गया है। नेचर, साइंस एवं साइंटिफ़िक अमेरिकन में परिपक्व शोधों के आधार पर, भाषाओं के अन्तर्द्वन्द्व को ठोस वस्तुओं, लेखों-शिलालेखों एवं प्रशस्तियों को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में रखा गया है। भारतीय इतिहास लेखन में भी स्वतंत्रता आन्दोलन के ‘भारतीयपन’ को पिछली सीट दी जाने लगी है। मार्क्सीय लेखन में वस्तुपरकता एवं चीज़ों के आधार पर सम्बन्धों की परख शुरू हुई है। नए इतिहासकार ‘लोकल’ तथा ‘सब आल्टर्न’ को समझते हैं। इन सबकी ब्योरेवार तो नहीं किन्तु पूरी नई समीक्षा की गई है।
हीगेल, वाल्तेयर ‘इतिहास के दर्शन’ को समझाते हैं तथा इसे धर्म तथा धार्मिक मान्यताओं से अलग भी करते हैं। वे दोनों ‘इतिहास का दर्शन’ एवं ‘दर्शन का इतिहास’ में दिलचस्पी रखते हैं तथा इतिहास को रीजन से संचालित मानते हैं। उसी परम्परा में एक वैज्ञानिक ईमानदार प्रयास।
—भूमिका से
Kroorata
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
‘क्रूरता’ संग्रह की कविताएँ अपने प्रकाशन के साथ ही ध्यानाकर्षण का केन्द्र बन गई थीं। ये कविताएँ हमारे समय में नागरिक होने के संघर्ष, चेतना और व्यथा को गहरे काव्यात्मक आशयों के साथ विमर्श का विषय बनाती हैं। इसी क्रम में कुमार अंबुज, हिन्दी कविता में पहली बार, ‘क्रूरता’ पद को व्यापक सामाजिक एवं राजनैतिक अर्थों में, ऐतिहासिक समझ के साथ व्याख्यायित और परिभाषित करते हैं। यहीं वे काव्य-विषयों की कोमल और सकारात्मक समझी जानेवाली पदावली की परिधियों को भी तोड़ते हैं।
उचित ही प्रबुद्ध आलोचकों-पाठकों ने इन कविताओं को ‘विडम्बना के नए आख्यान’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का उदाहरण माना है। ये कविताएँ भाषा के सम्प्रेषणीय प्रखर मुहावरों, अभिव्यक्ति के संयम और वर्णन की चुम्बकीय शक्ति के लिए भी पहचानी गई हैं। कवि-कर्म की नई चुनौतियों का स्वीकार यहाँ स्पष्ट है। ये कविताएँ हमारे समय में उपस्थित तमाम क्रूरताओं की शिनाख़्त करने का गम्भीर दायित्व उठाती हैं। यही कारण है कि वे पाठक की चेतना में प्रवेश कर वैचारिक स्तर पर उद्विग्न करती हैं। सांस्कृतिक प्रतिरोध की दृष्टि से सम्पृक्त ये कविताएँ अनुभवों के वैविध्य और विस्तार में जाकर एकदम अछूते काव्यात्मक वृत्तान्तों को सम्भव करती हैं।
जो कुछ न्यायपूर्ण है, सुन्दर है, सभ्य सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, उसे पाने की आकांक्षी और पक्षधर ये कविताएँ सहज ही साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक, उपभोक्तावादी, साम्प्रदायिक और पूँजीवादी शक्तियों को अपने सूक्ष्म रूप में भी उजागर करती हैं। ‘क्रूरता की संस्कृति’ को चिह्नित करते हुए वे संवेदना, मनुष्यता, लौकिकता और करुणा का विशाल फलक रचती हैं, अपने काव्यात्मक अभीष्ट तक पहुँचती हैं।
मनुष्य समाज के साथ रागात्मक सम्बन्धों के ठोस आधार कुमार अंबुज की निगाह से कभी ओझल नहीं होते हैं, इसलिए उनकी ये कविताएँ सर्जना के नए पड़ावों तक यात्रा करती हैं। इन कविताओं की प्रासंगिकता और प्रतिबद्धता इन्हें नए सिरे से विचारणीय बनाती है। वे इस पक्ष के लिए भी रेखांकित की जाती रही हैं कि हिन्दी कविता का यह नया विकास है, विशेष अर्थ में एक नया प्रस्थान।
Padmavaat : Mool Evam Sanjeev Vyakhya
- Author Name:
Malik Mohd. Jayasi
- Book Type:

- Description: भारत के प्रसिद्ध विद्वान और इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल की यह केवल संजीवनी व्याख्या टीका ही नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति के विकास का इतिहास भी है। अनेक शब्दों की इतनी मार्मिक व्याख्या की गई है कि उनके द्वारा नए सांस्कृतिक सन्दर्भ और प्रसंग व्याख्यायित होते हैं। किसी भी मध्यकालीन ग्रन्थ की ऐसी टीका हिन्दी में नहीं है। इस पुस्तक के द्वारा न केवल जायसी को बल्कि पूरे मध्यकालीन सूफ़ी काव्य को गहराई से समझा जा सकता है।
Dwandgeet
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
डॉ. नगेन्द्र दिनकर को द्वन्द्व का कवि मानते हैं। और सचमुच अपने द्वन्द्व की साधना में दिनकर जितने बड़े क्रान्ति के कवि दिखते हैं, उतने ही प्रेम, सौन्दर्य और करुणा के भी। यह विशेषता छायावादोत्तर युग में उनके अलावा अन्यत्र दुर्लभ है। ‘द्वन्द्वगीत’ में इन सबका सम्मिलित रूप देखने को मिलता है।
इस पुस्तक में दिनकर ने द्वन्द्वात्मकता की ज़मीन पर जो पद-सृजन किया है, वह उनकी अभिधा और व्यंजना-अभिव्यक्ति में एक अलग ही लोक की रचना करता है। संग्रह के कई पदों से पता चलता है कि वे शोषित जन की पीड़ा के वाचक नहीं, उसे संघर्ष और सरोकारों के रंग में रँगनेवाले चितेरे हैं। कहते हैं—‘चाहे जो भी फ़सल उगा ले/तू जलधार बहाता चल।’ जो क्रूर व्यवस्था के शिकार हैं, उन्हें वे झुकते, टूटते नहीं देख सकते। उनकी नज़र में वही असली निर्माणकर्ता हैं, जिनको कुचलकर कोई तंत्र क़ायम नहीं रह सकता। इसलिए हुंकार भरते हैं कि ‘उठने दे हुंकार हृदय से/जैसे वह उठना चाहे/किसका, कहाँ वक्ष फटता है/तू इसकी परवाह न कर।’
दिनकर संवेदना और विचारों के घनत्व में सृजन को जीनेवाले रचयिता हैं। उन्हें मालूम है कि आज जो मूक हैं, एक दिन समझेंगे कि व्याध के जाल में तड़प-तड़पकर रहने को जीवन नहीं कहते। तभी तो यह उम्मीद रचते हैं—‘उषा हँसती आएगी/युग-युग कली हँसेगी, युग-युग/कोयल गीत सुनाएगी/घुल-मिल चन्द्र-किरण में/बरसेगी भू पर आनन्द-सुधा।’
इस संग्रह में प्रेम-सम्बन्धित भी कई पद हैं जिनमें शृंगार, मिलन और वियोग का भावनात्मक और कलात्मक अंकन हुआ है। उनमें अलंकारों का विलक्षण प्रयोग देखने को मिलता है—'दो अधरों के बीच खड़ी थी/भय की एक तिमिर-रेखा/आज ओस के दिव्य कणों में/धुल उसको मिटते देखा।/जाग, प्रिये! निशि गई, चूमती/पलक उतरकर प्रात-विभा/जाग, लिखें चुम्बन से हम/जीवन का प्रथम मधुर लेखा।’
कहें तो यह एक ऐसा संग्रह है, जिसके पद पढ़े भी जा सकते हैं, गाए भी जा सकते हैं। हिन्दी काव्य-साहित्य में एक उच्च कोटि की पुस्तक है ‘द्वन्द्वगीत’।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...