Rubaru : Laxmikant
Author:
Laxmikant VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ कवि की काव्य-यात्रा की अन्तिम परिणति है। ‘नयी कविता’ के परिसर में लक्ष्मीकान्त वर्मा का व्यक्तित्व सबसे अलग क़िस्म के विकास की छाप छोड़ती है। काव्य में उनका सर्जनात्मक व्यक्तित्व अधिक गहराई और व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है। ‘नयी कविता' में लक्ष्मीकान्त जी की अनेक कविताएँ छपकर आई थीं।</p>
<p>लक्ष्मीकान्त जी का कहना है कि ‘इन कविताओं के विषय में मुझे इतना ही कहना है कि यह मेरी व्यक्तिगत अनुभूतियों का संग्रह है। कहीं-कहीं इसमें पूरा परिवेश हमारे साथ रहा है, कहीं-कहीं मैं बिलकुल अकेला रह गया हूँ। जहाँ परिवेश ने मेरी अनुभूति को गहराई दी है, वहाँ मैं उसका ऋणी हूँ लेकिन जहाँ मैं बिलकुल अकेला रह जाता हूँ। वहाँ किसी को दोषी नहीं ठहराता क्योंकि अन्ततोगत्वा सब छूट जाते हैं। केवल कवि का व्यक्तित्व और स्थितियों का गहनतम दबाव यही दो शेष बचते हैं। उस साक्षात्कार की अभिव्यक्ति कठिन भी है और जटिल भी और वही कवि के व्यक्तित्व की परख भी होती है।’</p>
<p>कवि व्यक्तित्व की परख की जिस कसौटी की चर्चा लक्ष्मीकान्त जी ने इन पंक्तियों में की है, वह कसौटी आजीवन उनके काव्य के लिए निरन्तर बनी रही। ‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ की प्रत्येक कविता आत्मदर्शन की कविता है। किन्तु यह आत्मदर्शन संकुचित आत्मदर्शन नहीं है। समाज की विस्तृत भूमि पर खड़ा एक रचनाकार समाज द्वारा कितना देखा जा सका और कितना अनदेखा रह गया, इसकी गहरी पीड़ा इन कविताओं में झलकती है।</p>
<p>‘‘नहीं जानते लक्ष्मीकान्त। इस पिंजरे की मैना—कब और किस दिन उड़ जाएगी और यादगार रहेगा केवल एक ठाठर। जिसे कहते हैं मिट्टी और जिस मिट्टी को सभी चाहते हैं। अकारथ न जाय—पूरी की पूरी स्वारथ हो जाय।’’ ‘रूबरू : लक्ष्मीकान्त’ की कविताओं को गहराई से समझना एक अनिवार्य शर्त है और यही कवि के प्रति सबसे गहरी श्रद्धांजलि भी है।
ISBN: 9789352211807
Pages: 158
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Shame-Shehre-Yaran
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Beej Se Phool Tak
- Author Name:
Ekant Shrivastava
- Book Type:

-
Description:
‘बीज से फूल तक’ की कविताओं में एक ख़ास तरह की कशिश है। उसे एकान्त एक जगह ‘गुरुत्वाकर्षण’ कहते हैं जब समुद्र उन्हें अपनी तरफ़ खींचता है, और अपनी तरफ़ खींचती है पृथ्वी। ‘इस खींच-तान में समुद्र की अद्भुत छवियाँ छिटकी हैं।’ समुद्र पर सूर्योदय में श्याम जल में झड़ते हैं इंगुरी के फूल, क्षितिज की झुकी हुई टहनी से।’ और ‘एक बहुत बड़ा हवनकुंड है भोर का समुद्र, मंत्रपुष्ट उठता है जल, हाहाकार है जल का मंत्रोच्चार।’ फिर ‘ढलती धूप की धीमी आँच में, पिघलता है शाम का समुद्र।’ लेकिन इन दोनों घड़ियों के बीच दोपहर का समुद्र तो अद्वितीय है। वह ‘हल्दी-मिला दूध है’, ‘जल का उद्विग्न वाद्य है’ और है ‘पानी का महाकाव्य, पानी की लकीरों पर लिखा हुआ, पानी का लोकगीत, पानी के कंठ से उठता हुआ।’ हिन्दी में समुद्र पर पहली बार ऐसी कविताएँ दृष्टिगत हुई हैं सम्भवत:। समुद्र को ‘पानी का महाकाव्य’ कहने का गौरव एकान्त को ही प्राप्त हुआ है। ऐसा लगता है जैसे कोई पहले-पहल समुद्र को देख रहा हो : धरती पर पहला मनुष्य और हिन्दी का पहला कवि! इस प्रसंग की सबसे कल्पनाशील कविता सम्भवत: ‘जल पाँखी’ है : ‘वे पानी के फूल हैं, पानी में ही फूलते, महकते, और झड़ते हुए, वे रात भर पानी की आँखों में, रंगीन स्वप्न की तरह रहते हैं, और भोर के धुँधलके में उड़ते हैं, जैसे धरती के प्रार्थना गीत हों।’ लेकिन प्रबल गुरुत्वाकर्षण समुद्र से अधिक पृथ्वी का ही है। बड़ी कथा वही है जो छोटी कथा को अपनी तरफ़ खींचती है ‘जैसे पृथ्वी खींचती है हमें अपने गुरुत्वाकर्षण से, जब हम उससे दूर जाने लगते हैं, वह बचाए रखती है, हमारे पाँवों को विस्थापित होने से।’ इसलिए ‘बीज से फूल तक’ की अधिकांश कविताओं का बीज भाव यह ‘विस्थापन’ ही है जिसमें अपनी धरती और अपने लोगों के प्रति आकर्षण तीव्रतर हो जाता है।
एकान्त वस्तुत: छत्तीसगढ़ की ‘कन्हार’ के कवि हैं और ‘कन्हार केवल मिट्टी का नाम नहीं है’ और यह केवल एक छोटा-सा ‘अंचल’ भी नहीं है क्योंकि ‘देश के किसी भी हिस्से में मिल जाएगा छत्तीसगढ़।’ इस दृष्टि से एकान्त को कोरा ‘आंचलिक’ कवि कहना भी ठीक न होगा। फिर भी ‘बीज से फूल तक’ कविता का ऐसा विशिष्ट अंचल है ‘जहाँ शब्दों की महक से, गमकता है काग़ज़ का हृदय, और मनुष्य की महक से धरती।’ इस प्रसंग में एकान्त यह याद दिलाना नहीं भूलते कि ‘दिन-ब-दिन राख हो रही इस दुनिया में जो चीज़ हमें बचाए रखती है वह केवल मनुष्य की महक है।' इसीलिए उनकी इस उक्ति में सन्देह नहीं होता कि ‘मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ, कि उस सुगन्ध को—जो मिट्टी की देह और मनुष्य की साँस को सुवासित करती है—मैं बचाए रख सका हूँ? हालाँकि दिनों-दिन यह कठिन होता जा रहा है।‘ (बुख़ार)।
‘बीज से फूल तक' का काव्य-संसार एक ओर माँ-बाप, भाई-बहन का भरा-पूरा परिवार है तो दूसरी ओर अन्धी लड़की, अपाहिज और बधिर जैसे असहाय लोगों का शरण्य भी और ‘कन्हार’ जैसी लम्बी कविता तो एक तरह से नख-दर्पण में आज के भारत का छाया-चित्र ही है। यदि वे साँस का नगाड़ा बजाते हैं तो उस स्पर्श से भी वाक़िफ़ हैं जिसमें किसी को छूने में उँगलियों के जल जाने की आशंका होती है। इस क्रम में दिवंगत भाई के लिए लिखी हुई कविताएँ सबसे मर्मस्पर्शी हैं, ख़ास तौर से ‘पाँचवें की याद’!
‘अन्न हैं मेरे शब्द’ से अपनी काव्य-यात्रा आरम्भ करनेवाले एकान्त आज भी विश्वास करते हैं कि ‘जहाँ कोई नहीं रहता, वहाँ शब्द रहते हैं।’ आज जब चारों ओर से 'शब्द पर हमला' हो रहा है, एकान्त उन थोड़े से कवियों में हैं जो ‘शब्द’ को अपनी कविताओं से एक नया अर्थ दे रहे हैं। निश्चय ही एकान्त का यह तीसरा काव्य-संकलन एक लम्बी छलाँग है और ऊँची उड़ान भी—कवि के ही शब्दों में एक भयानक शून्य की भरपाई।
—नामवर सिंह
Adhoore Swangon Ke Darmiyan
- Author Name:
Sudhanshu Firdaus
- Book Type:

- Description: नई पीढ़ी के अनिवार्य कवि सुधांशु फ़िरदौस की कविताओं की दुनिया ने अपने बनने के लिए जो रंग चुने हैं, उनमें प्रतीक्षा का रंग सबसे गहरा है। ‘अधूरे स्वाँगों के दरमियान’ में समाई कविताओं में प्रतीक्षा और धैर्य के अमर बिम्ब हैं, प्रेम और स्वप्न के भी। इन कविताओं की आधुनिकता एक चिन्तित नागरिक के अकेलेपन, अपराध-बोध और उदासियों से जुड़ी है। इनमें लोक तथा परम्परा की नव-निर्मितियाँ हैं और एक उम्र से एक उम्र की तरफ़ बढ़ती हुई यात्राएँ। चूँकि यह संग्रह तब आ रहा है, जब कवि ने अपना स्वर पा लिया है—इसलिए इसमें वे सारी उधेड़बुनें और बेचैनियाँ; वे सारे सरोकार और इन्तज़ार पाए जा सकते हैं जो एक जगह से दूसरी जगह जाने के सफ़र में सामने आए। इस कविता-संग्रह में कवि ने अपना अब तक का कुछ भी छोड़ा नहीं है, बल्कि वह सब कुछ जोड़ दिया है जिससे हमारा आज का कवि और कवि-समय बनता है।
Lamhe Zindagi Ke
- Author Name:
Prahlad Narayan Mathur
- Book Type:

- Description: 'लम्हे जिंदगी के' कविता पुस्तक, सामाजिक विषयों पर स्वयं लेखक की कविताओं का संकलन है। 'पिता क्या होता है' इसका अहसास पिता बनने के बाद ही होता है, यह इस कविता के माध्यम से बेहतरीन तरीके से बतलाया है। इस कविता के अलावा पिता पर बहुत-सी भावनात्मक कविताओं का समावेश है जैसे 'पिता', 'पिता का प्यार', 'पिता की डांट' एवं 'सूरज से पिता' इत्यादि। माँ पर भी दिल को छू लेने वाली बहुत-सी कविताएँ हैं। 'माँ को कभी सोते देखा नहीं' कविता में एक बच्चे का माँ के प्रति अथाह प्रेम को मर्मस्पर्शी तरीके से दर्शाया है। कोरोना ने समाज के हर तबके को बहुत गम दिये हैं। बहुत लोगों ने अपनों को खोया है। कविताओं के माध्यम से कोरोना के प्रति अपनी भावनात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। एक छोटे बच्चें की भावना को जो करोना के कारण लंबे समय से स्कूल नहीं जा पा रहा है, बहुत सुंदर तरीके से पेश किया है। दोस्तों पर लिखी कविताएँ भी बेमिसाल है। उपरोक्त पुस्तक में प्रत्येक कविता दिल को छू जाने वाली तथा आम आदमी के जीवन का प्रतिबिम्ब है। यह हर उम्र के व्यक्तियों के पढ़ने योग्य है।
KUDHAB KUBELA
- Author Name:
Shailey
- Book Type:

- Description: Collection of poems
O RANGREJ
- Author Name:
Anuradha Chandel 'OS'
- Book Type:

- Description: Poems
Jivan Kati Patang Re…
- Author Name:
Rameshraaj
- Rating:
- Book Type:


- Description: सर्पकुण्डली राज छंद, मुक्तक विन्यास, पद जैसी शैली , जनकछन्द, लययुक्त हाइकुदार, वर्णिक छंद में तेवरियाँ
Chakravayuh
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

-
Description:
समकालीन हिन्दी कविता में जब भी नई कविता दौर की चर्चा होती है, कुँवर नारायण कुछ-कुछ अलग खड़ा नज़र आते हैं। इसका कारण है उनकी काव्य-संवेदना का निर्बन्ध होना। अपने दौर के कविता-आग्रहों को अपनी कविता में उन्होंने अपनी ही तरह स्वीकार किया; अपने कवि-स्वभाव और भारतीय काव्य-परम्परा को अस्वीकार कर कविता करना उन्होंने कभी नहीं ‘सीखा’।
‘चक्रव्यूह’ की कविताएँ इस नाते आज दस्तावेज़ी महत्त्व रखती हैं। उनमें एक अलग ही तरह का ‘कवि समय’ मौजूद है।
कुँवर नारायण के इस संग्रह का पहला संस्करण 1956 में प्रकाशित हुआ था। आकस्मिक नहीं कि ये कविताएँ आज भी हमारे संवेदन को गहरे तक छूती हैं। संगृहीत कविताओं में जो एक व्यवस्था है, चार खंडों में उन्हें जिन उपशीर्षकों (‘लिपटी परछाइयाँ’, ‘चिटके स्वप्न’, ‘शीशे का कवच’ और ‘चक्रव्यूह’) के अन्तर्गत रखा गया है; उसका वैयक्तिक नहीं, वैश्विक सन्दर्भ है लेकिन जिसे समझने के लिए स्वाधीनोत्तर भारतीय मन को ही नहीं, भारतीय राज्य-व्यवस्था के चरित्र को भी ध्यान में रखना होगा। कुँवर यदि यह जानते हैं कि कल का (या आज का) अभिमन्यु ‘ज़िन्दगी के नाम पर/हारा हुआ तर्क’ है तो यह कहने का साहस भी रखते हैं कि ‘छल के लिए उद्यत/व्यूह-रक्षक वीर कायर हैं’। अनुष्ठानपूर्वक, पूजकर मारे जानेवाले जीव की पीड़ा कवि-संवेदना से एकमेक होकर समष्टि की पीड़ा बन जाती है; और ऐसे में ईश्वर उसका अन्तिम भय।
संक्षेप में कहा जाए तो कुँवर नारायण की समग्र काव्य-चेतना और उसकी विकास-यात्रा में उनके इस कविता-संग्रह का मूल्य-महत्त्व बार-बार उल्लेखनीय है।
Rekhta Ke Momin
- Author Name:
Momin Khan Momin
- Book Type:

- Description: "रेख़्ता क्लासिक्स" सीरीज़ उर्दू के क्लासिकी शायरों के प्रतिनिधि शायरी को नए पाठकों तक पहुँचाने के एक अनूठा प्रयास है। प्रस्तुत किताब में मोमिन ख़ान मोमिन की प्रतिनिधि शायरी है जिसका संकलन फ़रहत एहसास साहब ने किया है।
Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi
- Author Name:
Majaz Lakhnavi
- Book Type:

-
Description:
‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।
एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Meer Taqi Meer
- Author Name:
Mohd Taqi
- Book Type:

- Description: बहुत आरज़ू थी गली की तेरी सो यां से लहू में नहा कर चले दिखाई दिए यूं कि बे-ख़ुद किया हमें आपसे भी जुदा कर चले पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है अश्क आंखों में कब नहीं आता लोहू आता है जब नहीं आता जी में क्या-क्या है अपने ए हमदम पर सुख़न ता-ब-लब नहीं आता किसका काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम कूचे के उसके बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया
Jee chahe Tu Sheesha Banja
- Author Name:
Zaheen Shah Taji
- Book Type:

- Description: हज़रत ज़हीन शाह ताजी के प्रसिद्ध सूफ़ी कलाम का संग्रह पहली बार हिंदी पाठकों के लिए किया जा रहा है. इस किता के संपादक सुमन मिश्र हैं
Mook Bimbon Se Bahar
- Author Name:
Aarti
- Book Type:

-
Description:
‘यह समय मेरा समय नहीं है फिर भी मैं इस समय में हूँ’, इस द्वन्द्व के चलते अपने समय के सच को पाने के लिए आरती समय के अन्तर्द्वन्द्वों और अन्तर्विरोधों को समझने-परखने के लिए, उसकी अनेक अन्दरूनी परतों में झाँकती हैं। इस समय को कहने के लिए वो मिथकों, स्मृतियों और इतिहास के स्मृत-विस्मृत संदर्भों को खँगालती हैं। लेकिन उनकी नज़रें मिथकीय आख्यान को मिथक की तरह या इतिहास की तरह नहीं वर्तमान की तरह देखती हैं। ऐसा करते हुए वह बार-बार मिथक और इतिहास के सन्दर्भों से बाहर अपने समय की सच्चाई से रूबरू होने की जद्दोजहद से गुजरती हैं। इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए इस द्वैत और द्वन्द्व को लगातार महसूस किया जा सकता है।
क्या ये कविताएँ सिर्फ़ स्त्री की आँख से देखा हुआ समय हैं? अगर ऐसा है भी तो भी ये उन सीमा रेखाओं का अतिक्रमण करती हैं। इनमें पुरुष वर्चस्व और स्त्री के संघर्ष की दीर्घ परम्परा की ध्वनियों और उसके अनुरणन को तो सुना ही जा सकता है, लेकिन संघर्ष के वर्तमान दृश्यों को भी लक्ष्य किया जा सकता है। इन दृश्यों में—सिरफिरे और आवारा समझे जाने वाले लेखक-कलाकार बैनर, पोस्टर लिये राजमार्गों पर खड़े युद्ध के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ हमारे समय की लोकतान्त्रिक सत्ताएँ जेल की दीवारों को मज़बूत करने में लगी हैं।
‘विधवा उत्सव मनाती मेरे गाँव की औरतें’ एक लम्बी कविता है। आरती की कविता मिथकों और इतिहास के सन्दर्भों में ही नहीं जाती वह उन कर्मकाण्डों को भी लक्ष्य करती है जो आज भी ज़ारी हैं। आत्यन्तिक परिणितियाँ अब कर्मकाण्डों से अलग कर दी गई हैं। ‘औरतों को ज़िन्दा मार सकने के नए तरीक़े समाज ने अपने विकास के साथ ईजाद कर लिए हैं’ लेकिन कर्मकाण्डों का स्वरूप बहुत नहीं बदला है। धर्मग्रन्थों के पास अपने तर्क हैं जिनके आगे ज्ञान-विज्ञान के सारे तर्क और धाराएँ झूठी पड़ जाती हैं। इस समय समाज के एक हाथ में मनुस्मृति है और दूसरे में संविधान—संविधान सबके लिए है लेकिन स्त्रियों के लिए मनुस्मृति सुरक्षित है।
आरती की इन कविताओं में विशेषरूप से ‘विधवा उत्सव मनाती मेरे गाँव की औरतें’ लम्बी कविता के शिल्प और भाषा में पूरा नाटकीय विधान मौजूद है। बल्कि इस लम्बी कविता में तो आरती ने नाटक की अनेक प्रविधियों का भी जगह-जगह इस्तेमाल किया है।
—राजेश जोशी
Karmanasha
- Author Name:
Sidhheshwar Singh
- Book Type:

- Description: Hindi Poems Karmnasha written by Sidheshwar Singh
Hindi Ki Janpadiya Kavita
- Author Name:
Vidhyaniwas Mishra
- Book Type:

-
Description:
जनपदीय कविताओं के इस संकलन को प्रस्तुत करने का एक उद्देश्य यह भी समझा जा सके कि सहज होना कठिन तो है और कृत्रिम होकर सहज होना तो और कठिन है, पर हिन्दी में सहजता उसके भीतर ही अनेक रूपों में पुरइन-पात की तरह पसरी हुई है। उससे अपरिचित होना हिन्दी के लिए गौरव की बात नहीं है। हिन्दी पाठ्यक्रम में लोग तर्क देते हैं कि हिन्दीतर भाषियों के लिए हिन्दी के इतने रूप देना उचित नहीं। यह तर्क लचर है। साहित्य, कोश रखकर नहीं लिखा जाता, न कोई निर्धारित साँचा रखकर लिखा जाता है। साहित्य की भाषा साँचों को तोड़ती है, नए साँचे बनाती है। साहित्य की भाषा ही जीवन्त मानकों का नक़्शा देती है। यह तभी सम्भव होता है जब साहित्य की भाषा में आदान-प्रदान भीतर-बाहर से हो। यदि हिन्दी अपनी अभ्यन्तर शक्ति से अपरिचित रह जाए तो केवल बाहरी प्रभाव को लेकर वह चल नहीं सकती, चलेगी भी तो एक छोटे से वर्ग की भाषा रह जाएगी। हिन्दी की इस अभ्यन्तर शक्ति के विस्तार का निदर्शन इस संकलन में है। इसके संकलनकर्त्ता इन भाषाओं के रचनाकार भी हैं और इनके सुप्रसिद्ध अध्येता भी हैं। प्रत्येक ने अपने-अपने ढंग से भूमिका भी लिखी है।...
हर संग्रह की अपनी सीमा होती है, इसकी भी है, पर यह एक शुरुआत है। मुझे विश्वास है कि महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय का यह आरम्भ शुभ होगा।
—विद्यानिवास मिश्र
Samidha : Vols. 1-2
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

-
Description:
मनुष्य के भीतर जो नाना प्रकार के राग-विराग हैं, उनके बीच जब वह अपने अन्तस में झाँकता है, उसे एक भारहीन दिगन्तव्यापी सौन्दर्य-चेतना का साक्षात्कार होता है। एक कवि अपनी काव्य-यात्रा में अपने अन्तस की उस हिरण्यमयी सच्चाई को साक्षात्कृत करता है। सारी करुणताएँ उसकी दृष्टिक्षेत्र के बाहर चली जाती हैं। केवल सौन्दर्य, केवल मंगल, केवल प्रार्थना का ही अहसास बचा रहता है।
श्रीनरेश मेहता की काव्य-दृष्टि में प्रकृति को एक उदात्त रूप में ग्रहण किया गया है। प्रकृति उनकी समूची संस्कृति में एक केन्द्रीय सत्ता बनकर नई क्रान्ति और नया संस्कार प्रदान करती है। प्रकृति से इस प्रकार का साक्षात्कार पुरुष को अपने विकारों से मुक्त कराता है।
श्रीनरेश मेहता की कविताओं में हमें कवि की दृष्टि प्रकृति और पुरुष के उदात्त रूप पर ही गड़ी दिखती है। उनके यहाँ प्रतिस्पर्द्धा के स्थान पर आत्मदान का महत्त्व है। केवल धृति नहीं है, वह उल्लास है, सृजन है, आह्लाद है और एक निरन्तर जीवन्तता है। उसमें संकोच, तिरस्कार या अस्वीकृति नहीं है। वह मनुष्य को एक नव्य मानवीय संस्कार देती है। मनुष्य के भीतर जो आसुरी वृत्तियाँ हैं, उन्हें दैवी वृत्तियों में बदलती चलती है।
Himalaya
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

-
Description:
संसार के किसी पर्वत की जीवन-कथा इतनी रहस्यमयी न होगी जितनी हिमालय की है। उसकी हर चोटी, हर घाटी हमारे धर्म, दर्शन, काव्य से ही नहीं, हमारे जीवन के सम्पूर्ण निश्रेयम् से जुडी हुई है। संसार के किसी अन्य पर्वत की मानव की संस्कृति, काव्य, दर्शन, धर्म आदि के निर्माण में ऐसा महत्त्व नहीं मिला है, जैसा हमारे हिमालय को प्राप्त है। वह मानो भारत की संश्लिष्ट विशेषताओं का ऐसा अखंड विग्रह है, जिस पर काल कोई खरोंच नहीं लगा सका।
वस्तुतः हिमालय भारतीय संस्कृति के हर नए चरण का पुरातन साथी रहा है। भारतीय जीवन उसकी उजली छाया में पलकर सुन्दर हुआ ये, उसकी शुभ्र ऊँचाई छूने के लिए उन्नत बना है और उसके हृदय से प्रवाहित नदियों में घुलकर निखरा है।
हमारे राष्ट्र के उन्नत शुभ्र मस्तक हिमालय पर जब संघर्ष की नील-लोहित आग्नेय घटाएँ छा गईं, तब देश के चेतना-केन्द्र ने आसन्न संकट की तीव्रानुभूति देश के कोने-कोने में पहुँचा दी।
धरती की आत्मा के शिल्पी होने के कारण साहित्यकारों और चिन्तकों पर विशेष दायित्व आ जाना स्वाभाविक ही था। इतिहास ने अनेक बार प्रमाणित किया है कि जो मानव समूह अपनी धरती से जिस सीमा तक तादात्म्य कर सका है, वह उसी सीमा तक अपनी धरती पर अपराजेय रहा है। आधुनिक युग के साहित्यकार को भी अपने रागात्मक उत्तराधिकार का बोध था। इसी से हिमालय के आसन्न संकट ने उसकी लेखनी को, ओज के शंख और आस्था की वंशी के स्वर दे दिये हैं।
Tumhare Jane Ke Baad
- Author Name:
Krishnkant Nilose
- Book Type:

- Description: Book
Fir ek Duryodhan Eintha Hai
- Author Name:
Sanjeev 'Majdoor' Jha
- Book Type:

- Description: हिन्दी की युवा पीढ़ी के सक्रिय हस्ताक्षर संजीव मज़दूर झा का यह पहला कविता संग्रह कवि की संभावनाओं को प्रकाशित करते हुए हमें आश्वस्त करता है कि संजीव सरीखे कवियों के माध्यम से कविता का प्रतिरोधी और आलोचनात्मक स्वर निरंतर शक्तिशाली बना रहेगा। संजीव ने अपने आसपास की दुनिया को सीधी-सपाट, परंतु जीवंत और तेज भाषा में व्यक्त किया है। इस संदर्भ में सिर और लाठी शीर्षक कविता विशेष रूप से रेखांकित करने योग्य है जो वर्तमान व्यवस्था के सभी पक्षों को बेनकाब करती हुई मनुष्य के सोचने की ताकत और साहस का यशोगान करती है। कवि ने सुचिंतित निर्णय के साथ अधिकतर कविताओं में भाषा को अभिधात्मक रखा है जिससे कविता सहज और सम्प्रेष्य तो बनती ही है साथ ही बेहद प्रभावकारी भी बन जाती है। संजीव मज़दूर गरीबों, दलितों और स्त्रियों के पक्षकार हैं। वह निर्ममता के साथ वर्ण व्यवस्था और पुरुष वर्चस्व पर चोट करते हैं। उनकी कविता स्वतंत्र, न्यायपूर्ण समाज के स्वप्नों से प्रेरित है। साथ ही, जीवन और प्रकृति के कुछ मनोरम चित्र भी यहाँ मिलते हैं जो कवि के आयतन को विस्तार देते हैं। संजीव झा मज़दूर की ये कविताएँ इसलिए भी विचारणीय हैं कि यहाँ नयी पीढ़ी के एक कवि की दृृष्टि से समकालीन जीवन को देखने-समझने का अवसर हमें मिलता है। भाषा और संवेदना के नये आचरण तथा कोण यहाँ मिलते हैं— जब विकास नहीं था दुनिया थी जब तंत्र नहीं था लोक था एक दिन फिर तुम न होगे पर हम होंगे यही विश्वास और साहसिक आशा आज हमें चाहिए। संजीव मज़दूर झा की सर्वोत्तम कविताएँ इन्हीं मूल्यों का प्रकाश स्तम्भ हैं। —अरुण कमल
Gungunati Nrityamay Kavitayen
- Author Name:
Pooja Saxena
- Book Type:

- Description: Poems
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...