Agar Main Sher Na Kahta
Author:
Abbas TabishPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789391080877
Pages: 129
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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इस ‘मतलबपरस्ती’ के बरक्स कुछ स्वर हिन्दी कविता में ऐसे भी उभरे जिन्होंने नए यथार्थ की चमकीली सतह की चकाचौंध से आक्रान्त हुए बिना उसकी गहराइयों में जाने का जोखिम उठाया और वहाँ से भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे तत्त्व एकत्र किए। स्वभावतः, बहुस्तरीय यथार्थ से सम्पर्क और तदनुरूप भाषा-शैली की ईमानदार खोज के कारण उनके स्वर भी अलग-अलग थे, लेकिन उनकी एकसूत्रता भी ठीक उसी वजह से थी—‘इसी भीड़ में रहते हुए भीड़ से अलग/हर एक रोता है अपने-अपने ढंग से/जिस पर दूसरे अपने अनूठे तरीक़ों से हँसते हैं’ (मसखरे)। यतीन्द्र मिश्र की कविता इन्हीं नए स्वरों का प्रतिनिधित्व करती है। धैर्य के साथ चीज़ों को देखना, उनके रहस्यों को विखंडित करना यतीन्द्र मिश्र को विशेष प्रिय है।
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- Description: एक मज़ेदार दोहा सप्तक, जिसमे कुछ गुदगुदाने के साथ साथ कुछ गंभीर बातों पर भी ध्यानाकर्षण किया है रमेशराज ने। आशा है हिन्दी और English की मिली-जुली भाषा बोलने वालों को यह पसंद आयेगी।
Kuchh Samuday Hua Karte Hain
- Author Name:
Sushant Supriy
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- Description: Collection of Poems
Bas Chaand Royega
- Author Name:
Madan Kashyap
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Description:
मदन कश्यप की कविता इस लोक को सम्बोधित कविता है। वह इसी छोटे लेकिन मनुष्य के लिए फिर भी बहुत बड़े लोक को जीना चाहती है। यह देह जो नश्वर है, उसके लिए बहुत कुछ है क्योंकि इसी देह के झरोखे पर बैठकर आँखें उस दुनिया को देखती हैं जिसे अन्तत: हमें जीना है।
यह कविता कहती है कि ईश्वर हो, लेकिन वह उतना काम्य नहीं है जितना मनुष्यों में मनुष्यता। मनुष्यता की क़ीमत पर वह ईश्वर नहीं चाहिए जिसे वे लोग मनमाने ढंग से इस्तेमाल कर सकें, जो ख़ुद ईश्वर होना चाहते हैं। यह कविता नहीं चाहती कि दुनिया में इतना ज़्यादा ईश्वर हो जाए कि ‘जय श्रीराम’ कहकर किसी मनुष्य को मार देना धार्मिक लगने लगे। ये कविताएँ विजय के ऊपर शान्ति को तरजीह देती हैं और वीरता के ऊपर जीवन के सातत्य को। इस तरह ये कविताएँ विकास और विध्वंस के दुश्चक्र में फँसे जीवन को एक रास्ता दिखाती हैं। यह मदन कश्यप का नया संग्रह है। अपनी कविताओं में उन्होंने लोक को, लोक की भाषा को, जीवन में प्रकृति की अनवरत उपस्थिति को और संसार में एक साधारण मनुष्य की महिमा को अत्यन्त ग्राह्य शब्द-चित्रों में साकार किया है। ‘बस चाँद रोएगा’ संग्रह में उनकी इधर की कविताएँ संकलित हैं, इनमें देश का वर्तमान, वर्तमान को अपने स्वार्थों के अनुसार गढ़ती-बदलती राजनीति और कोरोना जैसी महामारी और युद्धों से पैदा हुई विडम्बनाओं के चिह्न भी मौजूद हैं; और इस माहौल में अपनी निजी पीड़ाओं और मानवीय सरोकारों के साथ जीता व्यक्ति भी, और वह उम्मीद, वह प्रेम, वह स्पर्श भी जो विनाश की तमाम कोशिशों के बावजूद बचे रहते हैं।
Sham Ka Pahla Tara
- Author Name:
Zohra Nigah
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शुरुआती वक़्त में जब ज़ोहरा निगाह मुशायरों में अपनी ग़ज़लें पढ़तीं तो लोग कहा करते थे कि ये दुबली-पतली लड़की इतनी उम्दा शायरी कैसे कर लेती है, ज़रूर कोई बुज़ुर्ग है जो इसको लिखकर देता होगा; लेकिन बाद में सबने जाना कि उनका सोचना सही नहीं था। छोटी-सी उम्र में मुशायरों में अपनी धाक ज़माने के बाद उन्होंने दूसरा क़दम सामाजिक सच्चाइयों की ख़ुरदरी ज़मीन पर रखा; यहीं से उनकी नज़्म की भी शुरुआत होती है जो शायरा की आपबीती और जगबीती के मेल से एक अलग ही रंग लेकर आती है और ‘मुलायम गर्म समझौते की चादर’, ‘कसीदा-ए-बहार’ तथा ‘नया घर' जैसी नज़्में वजूद में आती हैं।
ज़ोहरा निगाह आज पाकिस्तान की पहली पंक्ति के शायरों में गिनी जाती हैं; ‘शाम का पहला तारा’ उनकी पहली किताब थी, जिसे भारत और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सराहा गया था। ज़ोहरा निगाह औरत की ज़बान में दुनिया के बारे में लिखती हैं, फ़ैमिनिस्ट कहा जाना उन्हें उतना पसन्द नहीं है। वे ऐसे किसी वर्गीकरण के हक़ में नहीं हैं। इस किताब में शामिल नज़्में और ग़ज़लें उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई की गवाह हैं।
‘‘दिल गुज़रगाह है आहिस्ता ख़रामी के लिए
तेज़ गामी को जो अपनाओ तो खो जाओगे
इक ज़रा देर ही पलकों को झपक लेने दो
इस क़दर ग़ौर से देखोगे तो खो जाओगे।’’
Amiri Rekha
- Author Name:
Kumar Ambuj
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Description:
न्याय और अन्याय, अभाव और रईसी, इच्छा और यथार्थ, पुरातन और नई सभ्यता जैसे अनेक विलोम प्रत्ययों के बीच वैचारिक आवागमन को ये कविताएँ अप्रत्याशित अनूठेपन एवं द्वंद्वात्मकता के साथ सम्भव बनाते हुए नए प्रस्ताव प्रस्तुत करती हैं। यहाँ भाषा, विचार, नैतिकता और स्वप्नशीलता के साथ कलाकर्म की वही अप्रतिम सर्जनात्मकता दृष्टव्य है जिसे कुमार अंबुज की कविता ने लगातार अर्जित किया है और अंबुज हर बार उसे नई ऊँचाइयों, अभिनव जगहों तक ले गए हैं। ये कविताएँ सक्रिय और सकर्मक प्रतिरोध की रचनात्मक कार्रवाई हैं। इनमें जीवन के संगीत, उत्तराधिकार, वैश्विकता, राजनीति, बाज़ार, मनुष्यता, प्रेम और अपमान की, हमारे समय और हमारी भाषा की पुनर्परिभाषाएँ हैं, उनकी आधुनिक पहचान है। साहसिक आत्मावलोकन और प्रवंचनाएँ भी हैं। इन कविताओं से अपने भीतर के टूटे-फूटे मनुष्य की मरम्मत की जा सकती है। इन्हें इनके खुरदुरेपन के लिए प्यार किया जा सकता है और इस बात के लिए भी कि इनके भीतर कितना कुछ है—शान्त, चपल और भविष्य से लबालब भरा हुआ। संवेदित, व्यग्र अभिव्यक्ति, अचूक दृष्टि और पक्षधरता से पुष्ट कविता कुमार अंबुज की अपनी उपलब्धि है, जिसे यहाँ समूची हिन्दी कविता के सन्दर्भ में कुछ अधिक शक्ति के साथ औचक, विस्मयकारी, दुर्लभ, हार्दिक और नव्यतर भंगिमाओं के साथ देखा जा सकता है। किंचित् लम्बे अन्तराल और प्रतीक्षा के बाद प्रकाशित यह संग्रह निश्चय ही नई बहसों, रुझानों, प्रस्थानों और चुनौतियों का कारण बनेगा।
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