Geetanjali
Author:
Rabindranath ThakurPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘गीतांजलि’ गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर (1861-1941) की सर्वाधिक प्रशंसित और पठित पुस्तक है । इसी पर उन्हें 1913 में विश्वप्रसिद्द नोबेल पुरस्कार भी मिला । इसके बाद अपने पुरे जीवनकाल में वे भारतीय साहित्याकाश पर छाए रहे । साहित्य की विभिन्न विधाओं, संगीत और चित्रकला में सतत सृजनरत रहते हुए उन्होंने अंतिम साँस तक सरस्वती की साधना की और भारतवासियों के लिए ‘गुरुदेव’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए । प्रकृति, प्रेम, इश्वर के प्रति निष्ठा, आस्था और मानवतावादी मूल्यों के प्रति समर्पण भाव से संपन्न ‘गीतांजलि’ के गीत पिछली एक सदी से बांग्लाभाषी जनों की आत्मा में बसे हुए हैं । विभिन्न भाषाओँ में हुए इसके अनुवादों के माध्यम से विश्व-भर के सहृदय पाठक इसका रसास्वादन कर चुके हैं । प्रतुत अनुवाद हिंदी में अब तक उपलब्ध अन्य अनुवादों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें मूल बांग्ला रचनाओं की गीतात्मकता को बरक़रार रखा गया है, जो इन गीतों का अभिन्न हिस्सा है । इस गेयता के कारण आप इन गीतों को याद रख सकते हैं, गा सकते हैं ।
ISBN: 9788183612661
Pages: 164
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘पहाड़ पर लालटेन’ और ‘घर का रास्ता’ के बाद मंगलेश डबराल के तीसरे कविता–संग्रह ‘हम जो देखते हैं’ का पहला संस्करण 1995 में प्रकाशित हुआ था। इन वर्षों में इस संग्रह के कई संस्करणों का प्रकाशित होना इसका साक्ष्य है कि बाज़ार, उपभोगवाद, भूमंडलीकरण और साम्राज्यवादी पूँजी की बजबजाती दुनिया के बावजूद समाज में कविता के व्यापक और संवेदनशील कोने बचे हुए हैं और उसके सच्चे पाठक भी। यह संग्रह इस कठिन समय में भी ऐसी कविता को सम्भव करता है जो विभिन्न ताक़तों के ज़रिए भ्रष्ट की जा रही संवेदना और निरर्थक बनती भाषा में एक मानवीय हस्तक्षेप कर सके। ये कविताएँ उन अनेक चीज़ों की आहटों से भरी हैं जो हमारी क्रूर व्यवस्था में या तो खो गई हैं या लगातार क्षरित और नष्ट हो रही हैं। वे उन खोई हुई चीज़ों को ‘देख’ लेती हैं, उनके संसार तक पहुँच जाती हैं और इस तरह एक साथ हमारे बचे–खुचे वर्तमान जीवन के अभावों और उन अभावों को पैदा करनेवाले तंत्र की भी पहचान करती हैं। अपने समय, समाज, परिवार और ख़ुद अपने आपसे एक नैतिक साक्षात्कार इन कविताओं का एक मुख्य वक्तव्य है।
‘हम जो देखते हैं’ में कई ऐसी कविताएँ भी हैं जो चीज़ों, स्थितियों और कहीं–कहीं अमूर्तनों के सादे वर्णन की तरह दिखती हैं और जिनकी संरचना गद्यात्मक है। किसी नए प्रयोग का दावा किए बग़ैर ये कविताएँ अनुभव की एक नई प्रक्रिया और बुनावट को प्रकट करती हैं, जहाँ अनेक बार विवरण ही सार्थक वक्तव्य में बदल जाते हैं। लेकिन गद्य का सहारा लेती ये कविताएँ ‘गद्य कविताएँ’ नहीं हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ एक गहरी चिन्ता और यहाँ तक कि नाउम्मीदी भी जताती लगती हैं, लेकिन शायद यह ज़रूरी चिन्ता है जो हमारे वक़्त में विवेक और उम्मीद तक पहुँचने का एकमात्र ज़रिया रह गया है। इनकी रचना–सामग्री हमारी साधारण, तात्कालिक, दैनंदिन और परिचित दुनिया से ली गई है, लेकिन कविता में वह अपनी बुनियादी शक़्ल को बनाए रखकर कई असाधारण और अपरिचित अर्थ–स्वरों की ओर चली जाती है। विडम्बना, करुणा और विनम्र शिल्प मंगलेश डबराल की कविता की परिचित विशेषताएँ रही हैं और इस संग्रह में वे अधिक परिपक्व होकर अभिव्यक्त हुई हैं। यह ऐसी विनम्रता है, जो गहरे नैतिक आशयों से उपजी है और जिसमें आक्रामकता के मुक़ाबले कहीं अधिक बेचैन करने की क्षमता है।
Navin
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
- Book Type:

- Description: हिन्दी कविता को जनमानस तक पहुँचाने में गोपाल सिंह नेपाली का अद्वितीय योगदान है। -हरिवंशराय बच्चन ‘हम राजनीति में नौजवान और साहित्य में बूढ़े एक साथ नहीं बने रह सकते’—इस कविता-संग्रह ‘नवीन’ की भूमिका में गोपाल सिंह नेपाली यह उल्लेखनीय वक्तव्य देते हैं और एक तरह से साहित्य और साहित्यिकों के लिए भी एक कार्यभार तय कर देते हैं। इस संग्रह का समय 1940 का दशक है जब देश आजादी पाने से कुछ ही दूर था और राजनीति के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन भी एक नई करवट ले रहा था। अब जरूरत थी साहित्य के एक नया रूप लेने की। ‘नवीन’ की कविताओं में उन्होंने यही करने का प्रयास किया है। न सिर्फ कथ्य, बल्कि शिल्प, छन्द और भाषा के स्तर पर भी। संग्रह की पहली ही कविता ‘नवीन’ में वे पुराने तथा रूढ़िबद्ध को छिन्न-भिन्न करते हुए नवीन कल्पना का आह्वान करते हैं : तुम प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली/तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली/इस आर्त दीन देश की न दुर्दशा हिली। अब अश्रु-दान छोड़ आज शीश-दान से/तुम अर्चना करो, अमोघ अर्चना करो।... नवीन कल्पना करो। प्रकृति की महिमा के साथ-साथ इस संग्रह में राष्ट्र और जन-चेतना से सम्पन्न कविताएँ भी विशेष रूप से ध्यान खींचती हैं। ‘फुटपाथ पर खड़े दर्शकों से’ और ‘नौजवान की मृत्यु पर’ जैसी कविताएँ अपनी चुस्त गठन और स्पष्ट भावाभिव्यक्ति में जैसे आज भी पूरे समाज को झकझोर देने की क्षमता रखती हैं।
Aashna
- Author Name:
Yogita bajpaye Kanchan
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- Description: Yogita bajpaye Kanchan Potry Book
Trishanku Swarg
- Author Name:
Akkitam Achyutan Nambudiri
- Book Type:

- Description: त्रिशंकु स्वर्ग ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मलयालम भाषा के शीर्षस्थ कवि अक्कितम अच्युतन नम्बूदिरी की चुनिन्दा कविताओं का संकलन है। उनकी कविताओं में परम्परा और आधुनिकता का अपूर्व मेल दिखाई पड़ता है। वेदों के गहन अध्ययन से परम्परा के उदात्त तत्वों को उन्होंने अपनी कविता में उतारा, तो सात दशक पहले प्रकाशित उनके खंड काव्य ‘इरूपदाम नूट्टांडिंडे इतिहासम्’ (बीसवीं शताब्दी का इतिहास) से मलयालम कविता में आधुनिकता का प्रवेश हुआ। परम्परा की निरन्तरता में विश्वास रखने वाले इस महाकवि के लिए मनुष्यता की पक्षधरता और मानवीय वेदना का परित्राण हमेशा सर्वोपरि रहा, जिसका प्रमाण इस चयनिका की कविताओं में मिलता है।
Aankhein
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Sara Shagufta
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पाकिस्तान में उर्दू की शायरात शायरी के मैदान में शायरों से कहीं आगे निकल गई हैं, जिसकी मिसाल दुनिया भर में किसी देशकाल में नहीं मिलेगी। उन शायरात में जो पोस्ट-मॉडर्न कहलाती हैं, उनमें सारा शगुफ़्ता, अज़रा अब्बास, किश्वर नाहीद, नसरीन अंजुम भट्टी, अनूपा, तनवीर अंजुम और शाइस्ता हबीब के नाम ज़्यादा नुमायाँ हैं। लेकिन सारा शगुफ़्ता इनमें सब से ऊपर हैं। ‘सुपर पोएटेस’ या ‘क्वीन ऑफ़ पोएटिक्स’ के तौर पर वह चमत्कार से कम नहीं। ...पढ़ने वाले मेरी राय से इत्तिफ़ाक़ करेंगे कि इतनी आला शायरी पश्चिम में भी नहीं हो रही। यह शायरी हालाँकि आज की पोस्ट-मॉडर्न रिवायत की तरह सुगठित नहीं लेकिन असर-अंगेज़ी में अपना जवाब नहीं रखती, और आला सतह की शायरी को भी कहीं पीछे छोड़ जाती है।
—मुबारक अहमद, आँखें (उर्दू) के फ़्लैप से
सारा जिस तरह की ज़िन्दगी गुज़ारती थी, ज़हनी सतह पर ख़ुद भी उसे पसंद नहीं करती थी। इसीलिए हमेशा अपराध-भाव से भरी रहती थी। उसकी शायरी में इसी अपराध-भाव की झलक नज़र आती है। ऐसी ज़िन्दगी को वह ख़ुद से चिमटाये हुए चलती थी... एक नज़्म में वह कहती है : मुझे रोटी दो, और फिर गाली दो।
—अतिया दाऊद, ‘सारा मेरी दोस्त’ से
...सारा शगुफ़्ता के नाम और उसकी शायरी को दूसरे समकालीन शायरों और उनकी रचनाओं के साथ ब्रैकेट नहीं किया जा सकता। यह तो ज़रूर है कि उसने ज़्यादातर नज़्में नस्री नज़्म के रूप में लिखीं लेकिन उसकी नस्री शायरी पिछले तीन दशकों (1960 के बाद) से अब तक की नस्री शायरी से बिलकुल अलग नज़र आती है। उसकी शब्दावली की बनावट बेमिसाल है। हम उसकी शायरी की विषय-वस्तु पर बात करें तो उसकी आँखें सब से अहम समयकाल—चरम-जीवन से चरम-मृत्यु तक फैली है। कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में सारा शगुफ़्ता के सिवा कोई ऐसी औरत नज़र नहीं आती जिसने शायरी और अदब के माध्यम से इस इन्तहा पर पहुँच कर सच—बल्कि नंगा सच—बोला हो।
—अहमद हमीश, मशहूर शायर और ‘आँखें’ (उर्दू) के प्रकाशक
Kuchh Rafoo Kuchh Thigare
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
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“यह तो अच्छा हुआ कि कविता मेरे साथ है/जो यह भरोसा दिलाती है कि/कोई भी पथ कभी समाप्त नहीं होता/और सब कुछ गँवा देने के बाद भी/कुछ बचा रहता है।”
अशोक वाजपेयी की अथक और अदम्य जिजीविषा इन कविताओं में उदास विवेक और आत्मस्वीकार के बीच गहरे संयम के साथ नाजुक ढंग से सन्तुलित है। कुल एक वर्ष की अवधि में लिखी गई ये कविताएँ कई बार उदासी से घिरी होने के बावजूद अपनी पारदर्शिता में उजली और निर्मल हैं। सारे ध्वंस और नाश के विरुद्ध कविता को अपने लिए एकमात्र बचाव माननेवाले इस कवि की भाषा, सयानापन और शिल्प पर सहज अधिकार एक बार फिर सत्यापित करते हैं कि हमारे समय में कविता मनुष्य की हालत, उसकी उलझनों और जीवट का सूक्ष्म बखान करती है और ऐसा करते हुए हमें सचाई में ऐन्द्रिय शिरकत का अवसर देती है।
अशोक वाजपेयी की आवाज़, हमेशा की तरह, निजी और समाजधर्मी एक साथ है और वे लगातार अपने को वेध्य और बेबाक बनाए हुए हैं। उनकी कविता के केन्द्र में साधारण जीवन की आभा और छवियाँ हैं जिन्हें उनकी भाषा अनूठे शब्दालोक और समयातीत आशयों से उद्दीप्त करती है।
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