Ek Ladka Milane Aata Hai
Author:
Sanjay Kumar 'Kundan'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
संजय कुमार ‘कुन्दन’ की शायरी किसी भी रूप में जब मेरे सामने आई तो मुझे यह समझने में बड़ी दुश्वारी हुई कि वे शायरी के हवाले से दिल पर बीतनेवाली वारदात का ज़िक्र कर रहे हैं या ये तमाम वारदातें तहरीर की शक्ल में संजय कुमार ‘कुन्दन’ को ख़ुद लिख रही हैं। ये वो सच्ची शायरी है जिसे समझने के लिए आपको दिल के आँगन में उतरना नहीं पड़ता, बल्कि दिल की पहली सतह पर ये अपनी जगह बनाती हैं, जबकि अपनी शायरी के ऐब को छुपाने के लिए लोग तरह-तरह के रंगो-रोग़न का इस्तेमाल करते हैं। चाहे ‘एक लड़का मिलने आता है...’, ‘उसको भी डर है’, ‘ख़याल कोई क़र्ज़ है’ हो या ‘तस्वीर’ ऐसा लगता है जैसे उन्होंने शब्दों के सहारे उन तमाम कैफ़ियतों की तस्वीर पेश कर दी है जहाँ बड़े-बड़े चित्रकार नाकाम होने पर उसे ऐब्सट्रैक्ट आर्ट का नाम दे दिया करते हैं। और शायरी इतनी आसान, इतनी सहज लेकिन दिल को काट देनेवाली है कि इसकी चुभन को हम भुला नहीं पाते।</p>
<p>‘एक लड़का मिलने आता है...’ में ‘नींद की बदगुमानी’, ‘हाथों में लम्स की ठंडक’, ‘शाम की ख़ुशबू’, ‘खिलखिलाहट का बचपन’, ‘रोशनी की धड़कन पर सियाही का ख़ौफ़नाक हमला’ और ‘लरज़ते काँपते क़दमों की आहट’ ही नहीं है, बल्कि ‘महीन खद्दरों में क़ैद बड़े-बड़े तोंद की क़लम से लिखी कहानियों को जलाकर ख़ाक कर देने’ का अज़्म, ‘कारख़ाने के वहशी तगो-दौ में राख में दबी हुई आग की किरचियों को कुदेरने’ की मशक़्क्त और ‘कितने शहरों, कितने बाग़ों, कितनी मिट्टी से होकर गुज़रने वाले आवारा लम्हों’ का कर्ब भी शामिल है। ऐसा महसूस होता है शायरी संजय कुमार ‘कुन्दन’ की महबूबा है जिसने ज़िन्दगी के इस लम्बे, वीरान और डगमगाते हुए क़दमों पर उसे और उसके पढ़नेवालों को सहारा दिया है। मुस्तकिल तरक़्क़ी की मंज़िलों को तय कर रही इस शायरी की नज़र एक शेर :</p>
<p>‘न थक के बैठ कि तेरी उड़ान बाक़ी</p>
<p>है ज़मीन ख़त्म हुई, आस्मान बाक़ी है।’</p>
<p>—शानुर्रहमान
ISBN: 9788126712328
Pages: 132
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Gunjan
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक पाठकों के सामने है। इसमें सभी तरह की कविताओं का समावेश है; कुछ नवीन प्रयत्न भी। सुविधा के लिए प्रत्येक पद्य के नीचे रचना-काल दे दिया है। यदि 'गुंजन' मेरे पाठकों का मनोरंजन कर सका, तो मुझे प्रसन्नता होगी, न कर सका तो आश्चर्य न होगा, यह मेरे प्राणों की उन्मन गुंजन मात्र है। ‘मेंहदी’ में दूसरे वर्ण पर स्वरपात मधुर लगता है। तब यह शब्द चार ही मात्राओं का रह जाता है, जैसा कि साधारणत: उच्चरित भी होता है। प्रिय प्रियाऽह्लाद से 'प्रिय प्रि'-'आह्लाद' अच्छा लगता है। इस प्रकार की स्वतंत्रता मैंने कहीं-कहीं ली है। ‘अनिर्वचनीय’ के स्थान पर ‘अनिर्वच’, ‘हरसिंगार’ के स्थान पर ‘सिंगार’ आदि। ‘पल्लव’ की कविताओं में मुझे ‘सा’ के बाहुल्य ने लुभाया था। ‘गुंजन’ में ‘र’ की पुनरुक्ति का मोह मैं नहीं छोड़ सका। ‘सा’ से, जो मेरी वाणी का संवादी स्वर एकदम ‘रे’ हो गया है, यह उन्नति का क्रम संगीत-प्रेमी पाठकों को खटकेगा नहीं, ऐसा मुझे विश्वास है।
—सुमित्रानंदन पंत
Ummeed Se Banate Hain Raste
- Author Name:
Santosh Kumar Chaturvedi
- Book Type:

- Description: संतोष कुमार चतुर्वेदी के इस संग्रह की कविताएँ भूलने के खिलाफ रचनाधर्मी विपक्ष के अस्तित्ववान होने का गवाह बनती हैं। अपनी समस्त रचनाधर्मिता के साथ जहाँ विपक्ष हो, वहाँ विचारों के चौराहे अनिवार्यत: होंगे ही। सुकरात और बुद्ध से ले कर मुक्तिबोध, धूमिल और आगे भी विपक्ष की रचनाधर्मिता ने इन चौराहों को बनाते हुए और इन्हीं चौराहों पर स्वयं को बनते हुए देखा है, विकल्पहीनता के हर दौर में विकल्पों को सृजित कर सता के नशे में चूर गढ़ों और मठों को ध्वस्त किया है। कविता के पास चीजों को ‘हटकर देखने’ की आँख होती है । इस संग्रह की ज्यादातर कविताएँ इसका उदाहरण हैं। कील-कब्जे, कूड़ा करकट, पोस्टमॉर्टम, पासंग जैसी कविताएँ ‘दृश्य’ के दबाव में ‘अदृश्य’ रह गयी श्रमशीलता की महत्ता को पूरी संवेदना के साथ उजागर करती हैं। एक समूचा ‘अदृश्य’ परिवेश हमारे सामने कौंध उठता है जो ‘दृश्यता’ के भारी-भरकम तामझाम को अपने श्रम के बूते थामे हुए है। कविता के असुविधाजनक और संघर्ष भरे पथ पर हर कोई नही चल सकता। ग़ालिब नें यों ही नहीं कहा था कि ‘जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।’ हर ‘छोटे’ और ‘बड़े’ कवि को हर दौर में हर कदम पर अपना आत्मविश्वास अर्जित करना पड़ता है, दुनियादारी के सर्वग्रासी खोल से बाहर निकल कर दुनिया का सामना करने के लिए। संतोष के कवि के पास यह आत्मविश्वास फिलवक्त है जो हिन्दी कविता के लिए आश्वस्ति की तरह है। —प्रियम अंकित
Jeewan Bhi Kavita Ho Sakta Hai
- Author Name:
Vishnu Nagar
- Book Type:

- Description: Poems
Dayare Hayaat Mein
- Author Name:
Kumar Nayan
- Book Type:

- Description: अपने एह्सासात से कारईन व सामईन को रफ़्ता-रफ़्ता मदहोश बना देनेवाले कुमार नयन की शायरी के कई रंग हैं। उनकी ग़ज़लें इश्क़ो-मुहब्बत से सराबोर हैं तो हालाते-हाजरा की मंज़रकशी करती हुई अवाम की दुखती रगों को छूती भी हैं। अपने वक़्त और समाज के तक़ाज़ों को पूरा करती हुई नाइंसाफ़ी, ज़ुल्मो-सितम, बन्दिशों के ख़िलाफ़ चुप्पी तोड़ने की शाइस्तगी से तरफ़दारी भी करती हैं। ग़ज़ल कहनेवालों की भीड़ में कुमार नयन अपनी ज़ुबान और शेरों के मफ़हूम से पहचाने जा सकते हैं। दरअस्ल इनकी ज़ुबान ख़ालिस हिन्दवी ज़ुबान है और शायर भी ख़ालिस गँवई हिन्दुस्तानी जिसका लहज़ा सरल व सहज होने के बावजूद अन्दाज़े-बयाँ क़ाबिलेतारीफ़ और ख़यालात दिलों में हलचल मचानेवाले हैं।
Raho Tum Nakshatra Ki Tarah
- Author Name:
Monalisa Zena
- Book Type:

-
Description:
‘भारतीय भाषाओं की विचार-सम्पदा, सृजन-सम्पदा, कला-चिन्तन आदि हिन्दी में लगातार प्रस्तुत करना रज़ा पुस्तक माला का एक ज़रूरी हिस्सा है। सौभाग्य से हिन्दी में दूसरी भाषाओं के प्रति खुलेपन और ग्रहणशीलता की लम्बी परम्परा रही है। हमारा प्रयत्न अपने समय और परिसर में इस परम्परा को सजीव-सशक्त बनाने का है। मोनालिसा ज़ेना ओड़िया की समकालीन कवयित्री हैं : उनकी कविता की सहज ऐन्द्रियता और निर्भीकता, प्रेम का उनका निस्संकोच अन्वेषण, परम्परा से उलझने का उनका जीवट आदि ऐसे गुण हैं जो उनकी कविता को, कई अर्थों में, विशिष्ट बनाते हैं। उनका हिन्दी अनुवाद में यह संग्रह हम सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।”
—अशोक वाजपेयी
Bachche ki hansi
- Author Name:
Durgaprasad Jhala
- Book Type:

- Description: poetry
Do Sharan
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
निराला की सम्पूर्ण गीत-रचना का एक बहुत बड़ा भाग शरणागति या प्रपत्ति-भाव के गीतों से सम्बद्ध है। भक्ति, प्रार्थना और शरणागति के गीत ‘परिमल’ संग्रह से ही हमें मिलने लगते हैं। इसकी क्षीण ध्वनि उनके पहले संग्रह ‘अनामिका’ की ‘माया’ कविता में हमें सुनाई देती है। ‘या कि ले कर सिद्धि तू आगे खड़ी, त्यागियों के त्याग की आराधना’—कहकर कवि अपनी रचनात्मकता की उस विशेष दिशा की ओर संकेतित करता है, जो आगे चलकर उसके अवसाद, उसकी उदासी, खिन्नता, मृत्यु-भय और आत्म-जर्जरता से होती हुई, अन्ततः शरणागति की प्रार्थना-भूमि पर उसे उतारती है।
‘आराधना’ और ‘अर्चना’ में उसकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। अकेले ‘अर्चना’ में शरणागति के लगभग 34-35 गीत संगृहीत हैं। ‘गीत-गुंज’ और उनके अन्तिम संग्रह ‘सांध्य काकली’ में भी यह प्रार्थना-क्रम तिरोहित नहीं हुआ है। यद्यपि अपने जीवन के अन्तिम दिनों में निराला ‘प्रार्थना की व्यर्थता’ की बात भी करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन यह उत्कट नैराश्य के क्षणों की ही अभिव्यक्ति लगती है, अन्यथा वे अपनी कारुणिक आत्म-जर्जरता में लगातार ‘प्रभु’ की अमर फ़ैंटेसी में शरण लेते हुए दिखाई देते हैं। उनके सारे संग्रहों को मिलाकर शरणागति और प्रार्थना-क्रम के इन गीतों की संख्या लगभग 90 के आस-पास पहुँचती है। इस तरह निराला के अन्तःसंगीत का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग ‘प्रभु’ के इसी साक्षात्कार से सम्बद्ध है।
वरिष्ठ लेखक दूधनाथ सिंह ने निराला की प्रपत्ति भाव की कविताओं को संकलित किया है। इन कविताओं में मनुष्य की उस आत्मिक मुक्ति की जद्दोजहद को सहज ही परिलक्षित किया जा सकता है, जो दरअसल सम्पूर्ण मानवमुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा है।
Sampoorn Kavitayein : Om Prakash Valmiki
- Author Name:
Omprakash Valmiki
- Book Type:

-
Description:
ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताएँ एक ओर दलित समाज के वेदना, अपमान और यातना से भरे जीवन-अनुभवों का मार्मिक दस्तावेज हैं तो दूसरी तरफ वर्ण और जाति के नाम पर थोपी गई अपात्रता और वंचन के विरुद्ध प्रतिवाद का तप्त स्वर। ये कविताएँ आक्रोशभरा आह्वान हैं कि भारतीय समाज में हजारों सालों से जारी वर्चस्ववादी-ब्राह्मणवादी व्यवस्था को तत्काल खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि यह व्यवस्था बराबरी पर आधारित मानवीय समाज के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है। वास्तव में ये कविताएँ बाबा साहब आम्बेडकर के उस विचार का सृजनात्मक प्रसार हैं, जिसमें उन्होंने कहा था—“हमारे जीवन-मूल्य और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाने के लिए दलित साहित्यकारों को जागरूक और प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में साहित्यकारों का मैं आह्वान करता हूँ कि वे विभिन्न साहित्यिक विधाओं के द्वारा उदात्त जीवन-मूल्यों और सांस्कृतिक मूल्यों को रेखांकित करें। अपने लक्ष्य को मर्यादा में मत बाँधो, उसे और अधिक विशाल बनने दो। वाणी का विस्तार करो। अपनी लेखनी को केवल अपने प्रश्नों तक सीमित मत रखो। उसे तेजस्वी बनाओ जिससे गाँव में फैला अन्धकार दूर हो सके। यह मत भूलो कि इस भारत देश में उपेक्षित दलितों का बहुत बड़ा विश्व है। अपनी रचनाओं द्वारा उनकी वेदना को समझकर उनके जीवन को उज्ज्वल बनाने की कोशिश करो। यही मानवता की सचाई है।”
कहना न होगा कि अपने एक-एक शब्द से, उत्पीड़ित मनुष्यता की तरफदारी करती, वाल्मीकि की कविताएँ उनकी रचनात्मकता की उपलब्धि तो हैं ही, हिन्दी कविता की भी उपलब्धि हैं।
Pratinidhi Kavitayein : Kailash Vajpeyi
- Author Name:
Kailash Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
कैलाश वाजपेयी सभ्यता के ध्वंस, मानवीयता के लोप, बंजर होते संवेदन और संताप से झुलसते आँसुओं पर विक्षोभ प्रकट करने वाले, कविता के एक ऐसे नागरिक रहे हैं, जिनकी आवाज़ इतनी वेधक, प्रखर और सत्वग्राही है कि वह अपने अनहद से निष्करुण होती पृथ्वी तक को कँपा दे। कविता का यह तात्त्विक-सात्विक स्वर कैलाश वाजपेयी के पहले संग्रह ‘संक्रान्त’ से लेकर ‘हंस अकेला’ तक में समाया हुआ है। उनका काव्य संसार सामान्य जीवन से लेकर वैश्विक सन्दर्भों और मिथकों की अन्तर्वस्तु से सम्पुष्ट है। वह विश्व वैचारिकी की उनकी विपुल यायावरी से निस्सृत कवि विवेक और जीवन विवेक से संवलित है।
भूमंडलीकरण और बाजारवाद के पसरते प्रभुत्व ने सदियों की हमारी सांस्कृतिक विरासत की चूलें हिला दी हैं। हमारी संवेदना को जड़ बनाते पूँजी के प्रेतों ने जिस तरह हमारे इर्द-गिर्द प्रलोभनों का जाल बिछा दिया है, उसके परिणाम निश्चय ही शुभंकर नहीं हैं। कैलाश वाजपेयी का काव्य-संसार कवि के कारुण्य, विक्षोभ और उसकी कबीरी फटकार की साखी बन गया है। भारतीय समाज, वैश्विक यथार्थ और सभ्यता के ज्वलन्त प्रश्नों से लैस कैलाश वाजपेयी की ये कविताएँ उनके काव्य का एक प्रातिनिधिक चयन हैं।
—ओम निश्चल
Navya-Shodhat
- Author Name:
Rahul Shinde
- Book Type:

- Description: The best poetry collection
Pida, Neend Aur Ek Ladki
- Author Name:
Prerana Sarwan
- Book Type:

-
Description:
डायरी से :
दु:ख का गर्भपात नहीं होता है। दु:ख सतमासे भी नहीं होते हैं। दु:ख तो सम्पूर्ण रूप से जन्मते हैं जीवन की कोख से, इस विचार मात्र से मेरे भीतर दु:खों की ज्वालामुखी उमड़ पड़ती है। उसी बहते हुए लावे में हैं हज़ारों दु:खों के भ्रूण, जो एक क्षण में पूर्ण रूप से जन्म लेते हैं। जो मेरे पतन के कारण हैं या उन्नति के, मैं नहीं जानती। मैंने स्वयं से बाहर निकलकर कभी कुछ देखने का साहस या प्रयास नहीं किया। मैं भीतर ही भीतर जीवन की खाई को गहरा करने में लगी रहती हूँ। मुझे याद है, मुझे चाँद ने कभी नहीं छुआ लेकिन बन्द कमरों में आकर सूरज की आग मेरी कोमल देह को झुलसाती रही, पीड़ा देती रही।
11 जुलाई, 1999
मेरी प्रत्येक कविता जीवन की प्रत्येक साँस का ऋण चुकाती है। मेरे जाने पर जीवन मुझ पर एहसान या दया की दुहाई न दे। मैं नहीं कहूँगी अपनी व्यथा, पर मेरी कविता जीवन के मुझ पर किए हुए अन्याय की कथा कहेगी। मृत्यु के बाद भी मेरी कविता ख़ामोश नहीं होगी। मेरी कविता की सत्यता से यह जीवन मृत्यु के बाद भी नहीं बच पाएगा।
25 जनवरी, 1999
कितना बचाया पर आज आख़िरकार गिन्नी चिड़िया के एक बच्चे को खा गई। हम क्या कर सकते हैं! ईश्वर ने जीवों की यही नियति निर्धारित की है। उसकी लीला वो ही जाने, चिड़िया जैसी कितनी इच्छाएँ मेरी रोज़ मरती हैं और आँसुओं में बहा दी जाती हैं।
20 मई, 2011
Kudrat Rang-Birangi
- Author Name:
Kumar Prasad Mukherji
- Book Type:

-
Description:
भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रवाह को समझना, किसी नदी के प्रवाह को समझने जैसा ही जटिल है। किसी नदी के उद्गम, उसकी विभिन्न शाखाओं और प्रशाखाओं की भाँति भारतीय शास्त्रीय संगीत के घराने, घरानों का उद्गम, घरानों के स्रष्टा, वाहक, गुरु, परम्परा, राग, रागरूप, श्रुति, स्मृति, आरोह, अवरोह, वादी, विवादी, समवादी इत्यादि शब्दों के चलते ये पूरा विषय आम पाठक के लिए पहली नज़र में अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है। लेकिन इस पुस्तक में शताब्दी के श्रेष्ठ कलाकारों और संगीत घराने के इतिहास एवं उनकी विशेषताओं, एक घराने के साथ दूसरे घरानों की तुलना, राग-रागिनियों के सूक्ष्मविश्लेषण आदि विषयों को अत्यन्त रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
यह रोचकता ही कुमार प्रसाद मुखर्जी के लेखन की विशेषता है या कहा जा सकता है कि यह उनके लेखन का एक विशेष घराना है। लेखक स्वयं एक संगीत घराने से सम्बन्धित थे और ख़ुद भी विख्यात कलाकार रहे। अपने बचपन के दिनों से ही संगीत के मूर्धन्य विद्वानों को सामने बैठकर सुनने का मौक़ा उन्हें मिला। इसके साथ-साथ वे विदग्ध पाठक और असाधारण गुरु भी थे। प्रस्तुत पुस्तक में उनकी इन सभी प्रतिभाओं की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है, इसीलिए भारतीय संगीत और उससे जुड़े विभिन्न गम्भीर विषय पाठकों के सामने अत्यन्त सरल रूप में प्रस्तुत होते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को राजाओं-महाराजाओं का आश्रय प्राप्त था, इसके अलावा संगीत कलाकारों के मनमौजी स्वभाव, उनके जीवन की रोचक घटनाओं के चलते संगीतज्ञ आम जनता के लिए आकर्षण का केन्द्र बने रहते थे। इस पुस्तक में विभिन्न स्थानों पर ऐसी रोचक घटनाओं का वर्णन भी है। लेखक के पिता धूर्जटि प्रसाद मुखोपाध्याय शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात आलोचक व लेखक थे। स्वयं भी एक संगीतज्ञ होने के चलते लेखक की यह पुस्तक न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत पर एक प्रामाणिक ग्रन्थ है, बल्कि अपने आपमें भारतीय शास्त्रीय संगीत पर एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है।
Antas
- Author Name:
Dr. Yashika
- Book Type:

- Description: ‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है। मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच...एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
Pratinidhi Kavitayen : Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

-
Description:
दुर्धर्ष भाग्य और क्षुद्र समय से आजीवन घिरे रहे महा-कवि और महा-प्राण मनुष्य निराला ने हिन्दी कविता को अपने ही हाथों वह दे दिया जिसे अर्जित करने में युगों की प्रतिभा और शक्ति व्यय हो जाती है। छायावाद के दौर में ही उन्होंने एक कदम बढ़कर मुक्त छन्द में यथार्थवादी कविता को सम्भव किया तो स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और आजादी के बाद भारतीय राजनीति तथा समाज की स्थितियों को लक्षित कर कविताएँ और उपन्यासों की रचना भी की। ‘सरोज स्मृति’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसी कविताओं से उन्होंने कविता की सामर्थ्य के नए मानक गढ़े, तो गीतों में परम्परा, प्रयोग और लोकचेतना के असंख्य अर्थसघन बिम्ब अगली पीढ़ियों के लिए छोड़े। लेकिन यह नवीनता और प्रयोगधर्मिता किसी मामूली चमत्कार-प्रियता का परिणाम नहीं थी, यह निश्चय ही दुख के ताप से नित नूतन होते उनके मन का स्वाभाविक प्रवाह रहा होगा जो क्षणों की अवधि में वर्षों-दशकों को लाँघता चलता है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में प्रयास किया गया है कि पाठक निराला के विराट कृतित्व के कुछ सबसे दीप्तिमान शिखरों का साक्षात्कार कर सके।
Dhoop Ka Tukda
- Author Name:
Amrita Preetam
- Book Type:

-
Description:
अमृता प्रीतम की कविताओं में रमना, हृदय में कसकती व्यथा का घाव लेकर, प्रेम और सौन्दर्य की धूपछाँह-वीथी में विचरने के समान है, जहाँ वियोग तथा अतृप्ति के तीखे नुकीले काँटे भावना के सुकुमार चरणों को क्षत-विक्षत करते रहते हैं । ऐसी गहरी, दर्द में डूबी, प्राणिक संवेदनाओं के गीत कम ही देखने को मिलते हैं। अमृताजी धरती के जीवन के गीत भी गाती हैं । वह युग-संघर्ष के प्रति प्रबुद्ध होने के कारण प्रगतिशील भावधारा से प्रेरित हैं, किन्तु प्रेम के प्रति एकाग्र समर्पण ही उनकी जीवन-साधना तथा आत्म-विकास का एकान्त पथ है।
अमृताजी की कविताओं के अनुवाद से हिन्दी काव्य भाव-धनी, स्वप्न-संस्कृत तथा शिल्प-समृद्ध बनेगा। इन कविताओं से यह सहज ही प्रमाणित हो जाता है कि अमृताजी का स्थान पंजाबी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं में भी प्रथम श्रेणी के योग्य है । इस संग्रह से हिन्दी के नये कवियों को विशेष प्रेरणा मिलेगी। जिस गहरी भाव-संवेदना, सामाजिक यथार्थ तथा युग मानव की व्यथा का सच्चा चित्रण अमृताजी ने अपनी नारी-हृदय की जादू-तूली से इन कविताओं में किया है, वह उनकी कृति को एक अत्यन्त उच्च तथा व्यापक स्तर पर उठा देती है।
—सुमित्रानन्दन पंत
Naye Subhashit
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
सुभाषित संस्कृत काव्य-साहित्य की एक प्रचलित शैली है जिसमें रचित पदों में दृष्टि, सत्य, सौन्दर्य आदि का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। कम शब्दों में बात कहने की कला इस शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। राष्ट्रकवि दिनकर की इस पुस्तक में इसी शैली में रचे गए हिन्दी-पद शामिल हैं।
सुभाषित हमेशा वाक्-कौशल लिये होते हैं। इनमें अन्तर्निहित सन्देश ऐसी चतुराई से पद्य-बद्ध किए जाते हैं कि इन्हें याद भी किया जा सकता है और अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग भी किया जा सकता है। इस पुस्तक के सुभाषित विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं और इनका कैनवस बहुत बड़ा है। ये अनुभव और अध्ययन के साँचे में ढले हुए सुभाषित हैं। इसलिए इनमें जो एक अलग छन्दात्मक रंग देखने को मिलता है, उसके प्रभाव में ग़ज़ब का आकर्षण और माधुर्य है। व्यंग्य-विनोद का पुट तो ख़ास है ही।
दिनकर ने अपने इन सुभाषितों में जिस काव्य-कौशल का परिचय दिया है, वह अपनी सम्प्रेषणीयता में एक मिसाल है। मिसाल इस मायने में भी कि आम पाठकों को ध्यान में रखकर भी ऐसे काव्य की रचना की जानी चाहिए। यही कारण है कि ये सुभाषित पढ़नेवाले को अपनी ही कहन का हिस्सा लगने लगते हैं और हृदयतल को छू वहीं ठहर जाते हैं।
इस पुस्तक में ऐसे कई सुभाषित हैं जो आज के उथल-पुथल-भरे समय में साठ साल पहले लिखे जाने के बाद भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह पुस्तक सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, एक ज़रूरी पुस्तक भी है।
Har Qissa Adhoora Hai
- Author Name:
Raj Kumar Singh
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी ग़ज़ल अब एक सक्षम विधा बन चुकी है। मौजूदा भारतीय समाज के अनुभव-विस्तार में अलग-अलग जगहों पर अनेक शायर हैं जो उर्दू की इस लोकप्रिय विधा को अपने ढंग से बरत रहे हैं। कहीं उर्दू शब्दों की बहुतायत है, कहीं खड़ी बोली के शब्दों के प्रयोग हैं, तो कहीं आमफ़हम ज़बान में ज़िन्दगी के तजुर्बों की अक्कासी की जा रही है।
राज कुमार सिंह की ग़ज़लें सबकी समझ में आनेवाली शब्दावली में बिलकुल आम मुहावरे को ग़ज़ल में बाँधने की कोशिशें हैं। वे रोज़मर्रा जीवन के अनुभवों और संवेदनाओं को ग़ज़ल के फ़ॉर्म में ऐसे पिरो देते हैं कि पढ़ते हुए पता ही नहीं चलता कि आप ज़िन्दगी से किताब में कब आ गए, और कब किताब से वापस अपनी ज़िन्दगी में चले गए।
उनकी एक ग़ज़ल का मतला है ‘जितनी भी मिल जाए कम लगती है/देर से मिली ख़ुशी ग़म लगती है’, या फिर यह कि, ‘नज़र को फिर धोखे बार-बार हुए/यूँ जीने के बहाने हज़ार हुए’। ये पंक्तियाँ अपनी सहजता में बिना आपको आतंकित किए आपके साथ हो लेती हैं। यही शायर की क़लम की विशेषता है।
इस संग्रह में राज कुमार सिंह की उन्वान-शुदा ग़ज़लों के अलावा उनकी नज़्में भी दी जा रही हैं। लगता है जैसे ज़िन्दगी का जो ग़ज़लों से छूट रहा था, उसे उन्होंने नज़्मों में बड़ी महारत के साथ समेट लिया है। प्रेम और बिछोह से प्रोफ़ेशनल जीवन की आधुनिक विडम्बनाओं तक को उन्होंने इन ग़ज़लों और नज़्मों में पिरो दिया है। एक शे’र और देखें–‘गाँव से हर बार झूठ कहता हूँ/बहुत अच्छे से हम शहर में हैं।‘ कहने की ज़रूरत नहीं कि यह किताब नए से नए पाठक को भी अपने जादू से सरशार करने की क़ुव्वत रखती है।
Ek Janam Mein Sab
- Author Name:
Anita Verma
- Book Type:

-
Description:
जिस जीवन के भीतर से चलकर अनीता वर्मा और उनकी कविताएँ हमारे पास आती हैं वह एकांगी या द्वि-आयामीय नहीं है, बल्कि वे उसके दुर्निवार वैविध्य को पहचानने, स्वीकारने और फिर उसे हमें देने की चुनौती और जोखिम उठाती हैं। वे हिंदी के उन बहुत कम रचनाकारों में हैं जो आत्म-मोह या आत्म-रति के परे अपनी अंदरूनी दुनिया का भी अन्वेषण करते हैं और उसे स्वपीड़न या सुखवाद की चाशनी में पाग कर पेश नहीं करते। अनीता वर्मा को ‘आत्मा’, ‘प्रेम’, ‘शून्य’, ‘चुंबन’, ‘यातना’, ‘विषाद’, ‘पवित्र’, ‘उजास’, ‘दुख’, ‘देह’, ‘रूप’, ‘मृत्यु’, ‘निराशा’, ‘स्पंदन’, ‘अनंत’, ‘वृंत’, ‘सिहरन’, ‘एकांत’, ‘छाया’, ‘स्पर्श’, ‘उदासी’, ‘प्राण’, ‘बेसुध’, ‘स्निग्ध’ जैसे आज की कविता से लगभग निर्वासित प्रत्ययों के हठीले और दुस्साहसिक इस्तेमाल से कोई गुरेज़ नहीं है जिनसे वे एक ऐसा भीतरी, निजी–एकांत नहीं–संसार बसाती हैं जिससे गुज़रते हुए कभी महादेवी-शिम्बोर्स्का जैसी कवयित्रियों की याद आती है तो कभी शमशेर-लोर्का की जटिल, ऐन्द्रिक बिम्बात्मकता की। उनकी ऐसी कविताओं में कोमल मानवीय भावनाओं और रिश्तों के कई संवेदनशील चित्र हैं लेकिन वे लगभग हमेशा भावुकता, दैन्य तथा आत्मावसाद से बच पाई हैं और उन्हें एक मननशील आत्माभिव्यक्ति में बदल सकी हैं। परिणामस्वरूप हिंदी को ‘प्रार्थना’, ‘प्रेम’, ‘व्यर्थ’, ‘अभी’, ‘भीतर’, ‘पानी के दरवाज़े’, ‘खेल’, ‘वह’, ‘विकलता’, ‘सुंदरता’, ‘अवसान’, ‘पृथ्वी के ऊपर’, ‘जुलाई’, ‘चुंबन’, ‘स्पर्श’, ‘लक्ष्यहीन’, ‘इसी तरह’ तथा ‘न बोलो’ जैसी अपूर्व रचनाएँ मिल पाई हैं जिनमें भावनाओं, विचारों, शब्दों, चित्रों, बिम्बों, संगीत तथा गीतिमयता का एक विस्मयकारी सामंजस्य नज़र आता है। चित्रांकन और बिम्बसृष्टि अनीता वर्मा को बहुत आकृष्ट करते लगते हैं और वे कभी-कभी अभिव्यक्तिवादियों-बिम्बवादियों-प्रतीकवादियों की तरह उनके तर्कातीत सौंदर्य के लिए एक निजी, स्वायत्त, परिष्कृत भाषा के प्रयोग का ख़तरा उठा लेती हैं और हिंदी की नई उद्रेक-क्षमता को उजागर करती हैं। लेकिन ऐसी कविता में हर्ष-विषाद तथा प्रेम की अनूठी, यथार्थ अभिव्यक्तियाँ भी हैं।
ऐसी रचनाएँ ही कवयित्री को महत्त्वपूर्ण बनाने में अपर्याप्त न होतीं लेकिन उसकी निगाह केवल अभ्यंतर और व्यष्टि तक सीमित नहीं है, वह बाह्य विश्व और समष्टि को भी देखती है। यह इसी दृष्टिसम्पन्नता का परिणाम है कि अनीता वर्मा वान गॉग, दा विंची और रेन्वा की सुप्रसिद्ध कृतियों के चाक्षुष पक्ष को ही नहीं देखतीं, उनमें छिपी तकलीफ़देह कहानियों और जटिल ज़िंदगियों को भी पहचानती-महसूस करती हैं। कलाकृतियों के पीछे के समाज और जीवन को हिंदी कविता में इस तरह कम ही देखा गया है। इससे भी आगे, अनीता वर्मा को अपने आसपास ‘इसी समय’ चलते ‘कोमलता और दर्द के व्यापक संसार’ का पूरा भान है जिसमें नवजात शिशु हैं, पूँजी के भयावह व्यापार हैं, वहशियों के बीच चीख़ती स्त्री है, ईर्ष्या, लालच और मासूम सपने हैं, मृत्यु की परछाइयों से परे हँसी और प्रेम हैं। यह दृष्टि महज़ एक ‘टूटता मकान’ नहीं देखती, उसके गिरते अतीत, भयानक भविष्य, मज़दूरों, भिखारियों, जानवरों तथा उस घर की गृहिणी को भी देखती है जिसकी ईंटें ले जाने के लिए अब एक ट्रक रात गये आता है। ‘घर’ में कवयित्री आज के बसेरे से शुरू कर आदिम आसरों तक जाती है, सारी पृथ्वी को निवास की तरह देखती है लेकिन इस क्रूर वास्तविकता को जानती है कि अब समझौतों से घर बनता है, जिसमें प्रेम संस्कारों पर टिका हुआ है। यथार्थ को देखती हुई कवयित्री की दृष्टि सर्वसंशयी नहीं है। कवयित्री अपने कथ्य, भाषा तथा शिल्प पर हमेशा एक संतुलित नियंत्रण रख पाने में सफल हो पाती है। वृहत्तर संसार की उसकी कविताएँ असंदिग्ध रूप से वंचितों, औरतों और बच्चों के पक्ष में हैं और पूँजी, मुनाफ़े, नियमों, बाज़ार, विज्ञापन, शोषण और नृशंसताओं के खिलाफ़ हैं। यदि ‘अमीर’ में विलासिता का जीवन उसके निशाने पर है तो ‘एक और प्रार्थना’ में उसे यह आत्म-विडंबनापूर्ण एहसास भी है–“प्रभु मेरी दिव्यता में/सुबह-सवेरे ठंड में काँपते/रिक्शेवाले की फटी कमीज ख़लल डालती है।” ‘तर्पण’ में धर्म और सभ्यता को मानवताविरोधी बताने का दुस्साहस है जबकि ‘विज्ञापन’ में उपभोक्तावाद से बर्बाद होते आदमी और समाज की तस्वीर है। स्त्रियों और बच्चों पर कुछ निहायत अलग ढंग की कविताएँ अनीता वर्मा के पास हैं। ‘अब भी विरोध’ में एक ऐसी औरत की कहानी है जो पहले ‘पैसे कमाती और दुआ माँगती थी’ लेकिन जब खुले, सुंदर संसार में आती है तो भी उसकी मुखालिफ़त की जाती है। ‘स्त्रियों से’ कविता का उद्बोधन लोकप्रिय नारीवादी पदावली का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि ‘अपनी निबिड़ताओं से निकाल लानी होगी उजली हँसी’ का आह्नान करता है। स्त्री-शरीर के बाज़ारीकरण का गहरा आकलन ‘इस्तेमाल’ में है जिसकी “शुक्र करो कि खूबसूरत माँएँ बच्चे नहीं बेचतीं/यह काम बदसूरत माँओं के लिए तय किया गया है” सरीखी मार्मिक पंक्तियाँ भयावह हैं। लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा के दलित हत्याकांडों पर लिखी गयी कविता एक रोती हुई स्त्री से शुरू होती है। स्कूली बच्चों पर लिखी अनीता वर्मा की ‘अपनी कक्षा’, ‘ज़ाहिद अली का पन्ना’ (जो बचपन और साम्प्रदायिकता दोनों विषयों के बीच अद्भुत आवाजाही करती है), ‘स्कूल’ तथा ‘हम जो हैं’ सरीखी रचनाएँ एक विरल कोमलता से बच्चों के जटिल वर्तमान तथा अनिश्चित भविष्य को देखती हैं। ज़मीन सार्वजनीन हो या निजी, विषय समसामयिक हों या देश-कालातीत, अनीता वर्मा ने एक ऐसी भाषा और शैली अर्जित की है, पूरी मानवीय सहानुभूति देने और अपनी अंतर्तम बात को कह पाने का ऐसा तरीक़ा, कि वे पिछले दो दशकों में उभरी हिंदी युवा कवियों की बड़ी पीढ़ी में भी अगली पंक्तियों में अपनी विशिष्ट पहचान और स्थायी जगह बना चुकी हैं। — विष्णु खरे
Madhumas Utar Aya
- Author Name:
Kashiram Soni
- Book Type:

- Description: poetry-and-plays
Meraki
- Author Name:
Harshita Ray +4
- Rating:
- Book Type:

- Description: Meraki is a journey in pages, filled with experiences and emotions that we hope you can resonate with, and realise you aren’t alone. It is bittersweet growth in words; an account of our stories that we hope, to some extent, are yours too. Describing this compilation in a few words, wouldn’t do it justice, but to put it simply- Meraki is the story of five passionate teenagers presented in forms of poetry and prose.
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.