Chhainya-Chhainya
Author:
GulzarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
<span style="font-weight: 400;">उनके पास लगभग उतने ही शब्द हैं, ठीक जितने ‘आम आदमियों’ के शब्दकोश में होते हैं । उनके पास लगभग नियत जीवन-हृदय हैं जैसे आम आदमियों की जिन्दगी में होते हैं। उनके पास क़रीब-क़रीब वही इच्छाएँ हैं जो किसी भी आदमी के निजीपन में उसे तरंगित या उद्वेलित कर सकती हैं। हिन्दी फ़िल्मों की लोकप्रियता में संगीत के जादू से मिलकर जो मनहरणकारी क्रिया सम्पन्न होती है, उसका मूल भी यही बिन्दु है। लेकिन, गुलज़ार इसी मनहरणकारी व्यवसाय में अपनी संवेदन-शीलता से रिश्तों का अनूठा स्पर्श देने में कामयाब होते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी खूबी बन जाती है। चाँद, रात, शाम, सुबह या सूरज उनके जरिए नई अर्थवत्ता ग्रहण करते चलते हैं। मुहावरों के नवप्रयोग होते हैं, प्रकृति की सूक्ष्म व्यंजनाएँ खुल जाती हैं। शायद इसलिए कि शब्दों की ध्वन्यात्मकता को उन्होंने अपने ढंग से परख लिया है। उनके पास लोक रस, गंध और स्पर्श सुरक्षित हैं। वे स्मृतियों और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते हैं। उदासी का तहलका मचाने वाली खामोशी की सर्जना करते हैं। गुलज़ार के शब्द, लोक-हृदय के उफानों, सुखों, इच्छाओं तथा यथार्थ के प्रति उत्पन्न आवेगों को इस तरह बाँटते प्रतीत होते हैं कि हम उन्हें देखने, सुनने, महसूसने लगते हैं। उनकी काव्य-यात्रा प्रकृति और मन के बीच अपने आपको खो देने की प्रबल इच्छा से संपन्न होती है। ‘बंदिनी’ सेΓ‘इजाज़त’ के बाद ‘सत्या’ और ‘फ़िलहाल’ तक गुलज़ार ऐसी निर्बन्ध परंपरा में बदलते हैं जो हमें लगातार अपने साथ ले चलने के लिए खींचती है। हमारी अनुभूतियों को उठाती है और उन्हें बेजान होने से बचने का अवसर प्रदान करती है। वह स्पर्श करती है, गूँजती है और अपने भीतर खो जाने की माँग करती है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फ़िल्मों के सौदे में भी गुलज़ार उम्र उधेड़ के, साँस तोड़ के लम्हे देते हैं। ‘छैंया-छैंया’ गुलज़ार के प्रेमियों के लिए उन्हीं लम्हों का ताजा गुच्छा है।</span>
ISBN: 9788171197774
Pages: 124
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: After being born as dawn unto his own self, the Lebanese Nightingale sings again, this time with a more vibrant and echoing voice. “The King of Rimes” is merely a mixture of the poet’s self-worth and his experimental literary perspectives speaking to the core of life and death. Including the first thirty sonnets following the Shakespearean model, and many more selected poems and quotes, this book is both an expression and a work of art.
Samkaleen Marathi Anudit Kavita
- Author Name:
Sunil Baburao Kulkarni
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Description:
मराठी कविता की 600 वर्ष की दीर्घ इतिहास परम्परा है। हर काव्य प्रवाह में उत्थान, ठहराव और अवसान के बाद पुनरुत्थान यह कालक्रम निरन्तर चलता रहता है। मध्यकाल में भक्ति परम्परा के माध्यम से निर्मित हुआ श्रेष्ठ संत काव्य मराठी कविता का महत्त्वपूर्ण उत्थान पर्व रहा है। 1920 से 1945 का काल एक अर्थ में थोपे गए रोमांटिसिज्म के कारण अवनति के काल के रूप में जाना जाता है। इस सांकेतिक शरणागतता तथा उसके कारण निर्मित तत्कालीन परिस्थिति को पहला आघात बा.सी. मर्ढेकर ने दिया।
स्वातंत्र्योत्तर काल के पहले दशक की कविताओं को नई कविता कहा जाता है। इस काल में बा.सी. मर्ढेकर और वि.दा. करन्दीकर की कविताओं में परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती हुई कविताओं की परिपाटी पर चलने वाली कविताओं के सृजन का प्रयास दिखाई देता है। वैश्वीकरण के कारण होने वाले बदलावों का अप्रत्यक्ष प्रभाव 1990 के बाद की कविताओं पर रहा है। इस काल के कवियों पर आसपास के परिवेश, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भाषिक पर्यावरण का प्रभाव होता है।
प्रस्तुत उपक्रम में इस काल में आकार लेने वाले नये सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवेश के माध्यम से मराठी कविता में आए नव प्रवाहों पर संक्षिप्त रूप में प्रकाश डालते हुए हिन्दी भाषिक विद्यार्थियों को मराठी कविता का परिचय कराने का प्रयास इस विषय पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य रहा है।
इस दृष्टि से कविता का सृजन करने वाले पिछले तीन दशकों में मराठी कवियों की संख्या विशेष लक्षणीय है। ये कवि महाराष्ट्र के कोने-कोने में व्याप्त हैं। ग्रामों से शहरों तक में निवास करने वाले ये कवि अपने परिवेश की सुगंध को कायम रख कविताएँ लिख रहे हैं।
संकलन की कविताओं और कवियों का चयन करते समय यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखी गई है कि चयनित कवि मूलत: मराठवाड़ा प्रांत से ही सम्बन्धित हों। इन सभी कवियों के मराठवाड़ा की मिट्टी में पले-बढ़े होने के कारण इनकी कविताओं में मिट्टी की सोंधी सुगन्ध के साथ-साथ मराठवाड़ा की भूमि पर घटित सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का यथार्थ चित्र अंकित हुआ है। उसे जानने और समझने में छात्रों को निश्चित रूप से सहायता मिलेगी, ऐसा हमें पूरा विश्वास है।
Athato Kavya Jigyasa
- Author Name:
Virendra Mullick
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- Description: पूजी द्वारा विकासक रूप मे प्रतिपादित बाजारवाद, सबकिछु केँ 'पसार' बना देलकए। प्रशासन, न्याय, वित्त, सूचना, स्वास्थ्य, शिक्षा... सबकिछु बाजार नियंत्रित होइत मनुखक विसंगति केँ ओहि स्तर तक ल' गेलए जे सांस्कृतिक परिचिति पर्यंत विलोपित भ' जाए। अही मर्मांतक पीड़ा सँ आप्लावित अछि ई कविता संग्रह 'अथातो काव्य जिज्ञासा'। कविता बिडंबनापूर्ण परिवेशक प्रतिपक्षी अछि, चिंतित अछि आ अस्तित्वक प्रश्न सँ पाठक केँ आविष्ट करै अछि, सोचबाक लेल, सक्रिय हेबाक लेल उत्प्रेरित करै अछि। पूजी, बाजार आ साम्राज्यवादक वर्चस्व हमर भाषा, हमर संस्कृति, हमर सर्वस्व विश्व मानवीय दृष्टिकोणक संग कविता, मनुष्यताक उत्कर्षक लेल प्रतिबद्ध अछि, बिना कोनो संशय-ओझरौनी के बेस स्पष्ट बिम्ब मे मुखर अछि, सत्यक साक्षात्कार लेल तत्पर अछि। ..... लोकक पेट पर मारैत लात नित नव-नव सिद्धांत आ विज्ञापनक भरमार। सामयिक, असत्य आ अन्यायक बलधकेल अधिनायकवादी सत्ताक पिशाची-नर्तनक काल मे, कविता अपन कर्तव्य सँ संपृक्त अछि, आशा आ विश्वासक संग अडिग अछि। मुदा नागरिक वीर देश केर एखनहु बरूदक ढेरी पर कविताक संग विहुँसि खेलाइछ। एक अग्निजीवी कविक लेल इएह ने काव्य-स्वभाव, कविता-प्रवृत्ति छी! —कुणाल (कवि-रंगकर्मी)
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