Anuvad : Siddhant Avam Vyavahar
Author:
Dr. Jayanti Prasad NautiyalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
यद्यपि अनुवाद विषय पर अभी तक लगभग पन्द्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, परन्तु सभी की विषय-व्याप्ति अलग-अलग है। विद्यार्थियों को एक ही स्थान पर अनुवाद सम्बन्धी समस्त जानकारी आसान व संक्षिप्त रूप में मिल सके, यह पुस्तक इस उद्देश्य से लिखी गई है। हिन्दी को राजभाषा के रूप में केन्द्रीय सरकार के उपक्रमों, सरकारी कार्यालयों तथा बैंकों में लागू कर दिए जाने से हिन्दी अनुवादक एवं हिन्दी अधिकारी पदों हेतु लिखित परीक्षा में अनुवाद भी दिया जाता है। अत: लिखित परीक्षा देनेवाले अभ्यर्थियों को भी अनुवाद हेतु अधिकतम जानकारी प्राप्त हो सके, इसे भी ध्यान में रखकर कुछ नए अध्याय जोड़े गए हैं। इसके अलावा यह पुस्तक उनके लिए भी उपयोगी होगी जो अनुवाद के क्षेत्र में नए-नए हैं अथवा आरम्भिक स्तर पर अनुवाद शिक्षण से जुड़े हैं, जैसे—बीएड, पाठ्यक्रम व भाषाविज्ञान में डिप्लोमा जैसे विषयों में भी अनुवाद विषय रखा जाता है, अत: इसके स्तर को भी ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी गई है।
ISBN: 9788171795406
Pages: 166
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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युवा कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी की यह पुस्तक हमारे समय के वरिष्ठ कवि कुँवर नारायण की कविता पर केन्द्रित है। किसी भी विचारधारा के प्रभुत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने सत्य को एक विस्तृत पटल पर एक द्वन्द्वात्मक तथा बहुस्तरीय अवधारणा के रूप में आत्मसात् किया है।
आदर्श और यथार्थ, ज्ञान और संवेदना, समय और इतिहास की द्वन्द्वात्मक संहति से कुँवर नारायण की कविता संश्लिष्ट, गहन और विचारोत्तेजक घटित हुई है। उससे हम अपनी आत्मा को आलोकित और समृद्ध कर सकते हैं; क्योंकि उसमें वाग्जाल नहीं, एक मार्मिक पारदर्शिता और जीवन-सत्य का दुर्लब विवेक है।
लेखक ने इस पुस्तक के पहले निबन्ध में कुँवर नारायण के विचारों और उनकी समग्र काव्य-यात्रा से चुनी हुई कविताओं के विश्लेषण के ज़रिए उनकी काव्य-दृष्टि को समझने और उसका एक स्वरूप निर्मित करने की चेष्टा की है। बाद के निबन्धों में क्रमशः उनकी सभी काव्य-कृतियों का गहन और व्यापक मूल्यांकन किया गया है। बकौल लेखक, ‘शायद इसकी कोई सार्थकता है तो यह रेखांकित करने में कि कुँवर नारायण विचारों की बहुलता, दार्शनिक बेचैनी, आत्मवत्ता, प्रेम, जीवन की समृद्धि, सौन्दर्य, अपरिग्रह और सत्य के प्रति अदम्य आस्था के कवि ही नहीं; ग़ुलामी और अन्याय के विभिन्न रूपों के प्रति युयुत्सा और प्रतिरोध से सम्पन्न, गहरे विडम्बना-बोध, करुणा, व्यंग्य और परिवर्तन एवं प्रगति की कामना के भी कवि हैं।’
Hindi Aalochana
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Description:
प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के विपुल और विविध आलोचना-साहित्य का विकास-क्रम दिखाते हुए उसका विस्तृत विवेचन किया गया है। लेखक ने कोशिश की है कि आलोचना-साहित्य के मूल स्रोतों को देखकर ही उसके विषय में कुछ लिखा जाए।
यह अध्ययन प्रधानत: शुक्ल और प्रमुख शुक्लोत्तर समीक्षकों पर ही आधारित है। इसमें पं. रामचन्द्र शुक्ल के आलोचक की शक्ति को समझने का उद्यम किया गया है और उन्होंने आलोचक बनने की जो गम्भीर साधना की थी, उस पर प्रकाश डाला गया है। पं. नन्ददुलारे वाजपेयी, पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा डॉ. नगेन्द्र की आलोचनात्मक कृतियों का जायज़ा लिया गया है और प्रगतिशील समीक्षकों में डॉ. रामविलास शर्मा तथा
डॉ. नामवर सिंह के योगदान पर विचार किया गया है।पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग की पत्र-पत्रिकाओं और छायावादी कवियों के आलोचनात्मक विचारों के भी महत्त्व को ठीक ढंग से आँकने का प्रयास है। कुल मिलाकर, पुस्तक में हिन्दी आलोचना को नए ढंग से देखा-परखा गया है।
Nayi Parampara Ki Khoj
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Shiv Kumar Yadav
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- Description: यह पुस्तक २१ वीं सदी की बदलती हुई सभ्यता , संस्कृति और प्रकृति के द्वन्द्व का आलोचनात्मक रचाव है । इस समयावधि की सामाजिक , राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हलचल हिलोरों को जितनी प्रामाणिकता के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है , वह बहुत महत्त्वपूर्ण और अलग है । इसमें जीवन, समाज, देश और प्रकृति को यथार्थवादी दृष्टि से देखती कविताओं की सूक्ष्म परख है । आज की हिन्दी कविताएँ किस तरह से अपने समय प्रदूषण का प्रतिकार करते हुए मानवता का महाआख्यान रच रही हैं इसे भी इस पुस्तक से समझा जा सकता है । इसमें उदारीकरण , निजीकरण , पूँजीवाद और बाजारवाद के छल - छद्म से बदलते समाज की स्पष्ट छवि देखी जा सकती है । यहाँ निराला , मुक्तिबोध , धूमिल , त्रिलोचन , केदारनाथ सिंह , अरुण कमल , मदन कश्यप आदि की कविताओं के साथ - साथ इक्कीसवीं सदी की दलित, स्त्री और आदिवासी हिन्दी कविता का गहन विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत है ।
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