
Batohi
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
79
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
158 mins
Book Description
‘बटोही’ एक नए भिखारी ठाकुर की खोज है, जो हर समय और हर देश में एक सृजनशील रचनाकार के बनने और विकसित होने की गाथा बनकर सार्वभौमिक विस्तार पाता है...जो इक्कीसवीं सदी के आरम्भिक उत्तर-आधुनिक ग्लोबल समय में संस्कृति के वैश्विक उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ स्थानीय अस्मिताओं की लड़ाई लड़ रहा है। ‘बटोही’ के इस नए भिखारी ठाकुर की लड़ाई ब्रिटिशकालीन भारत में जन्मे भिखारी ठाकुर की लड़ाई से ज़्यादा कठिन है।...‘बटोही’ अपनी प्रस्तुति-भाषा के स्तर पर भी एक सशक्त प्रयोग है। यह लोकभाषाओं की शक्ति को स्थापित करता है।...भिखारी एक ऐसे बटोही हैं जो एक सदी बाद की यात्रा तय करके हमारे सामने इक्कीसवीं सदी में कला का आधुनिक पाठ गढ़ते हैं।</p> <p>—अजित राय (‘हंस’ मासिक और दैनिक ‘हिन्दुस्तान’)</p> <p> </p> <p>भिखारी ठाकुर गाँव-समाज में स्त्रियों की दशा देखकर बार-बार विचलित होते हैं। हृषीकेश सुलभ इस बहाने स्त्री की पीड़ा का एक विमर्शमूलक आख्यान अपने नाटक में बुनते हैं। सुलभ तत्कालीन ग्राम्य यथार्थ के कुछ उपपाठ भी अपने नाटक में बुनते हैं। जातिवाद का प्रसंग एक ऐसा ही उपपाठ है। नाई जाति के भिखारी ठाकुर की परवर्ती ख्याति के बरक्स जाति के सन्दर्भ में ख़ुद उनके पीड़ादायी अनुभवों का बेहतर समावेश हृषीकेश सुलभ ने अपने नाटक में किया है।...एक आधुनिक लोकगायक पर लिखते हुए सुलभ आख्यान की पुरबिया पद्धति को ही चुनते हैं। वे चरित्र का कोई विमर्श नहीं बनाते, रिश्तों की एक दुनिया बनाते हैं। विचार का प्रत्यक्ष न होना हृषीकेश सुलभ के नाटक की एक प्रमुख विशेषता है। विचार अक्सर नामालूम-सा उनके नाटक में मौजूद है।</p> <p>—संगम पाण्डेय (‘जनसत्ता’)</p> <p> </p> <p>राजनीतिक रूप में अम्बेडकर ने वर्णवादी व्यवस्था के जो दुष्परिणाम देखे थे, भिखारी ठाकुर ने रंगकर्म के क्षेत्र में इसे काफ़ी क़रीब से महसूस किया था। नाटक में यह बात जीवन्त रूप से उभरकर आती है।...हृषीकेश सुलभ अपने नए नाटक ‘बटोही’ के माध्यम से भिखारी ठाकुर के रचनात्मक संघर्ष के विभिन्न पक्षों से दर्शकों को रू-ब-रू कराते हैं, जिससे आज भी लोकधर्मिता से जुड़ा हर रंगकर्मी जूझता है।</p> <p>—राजेश कुमार (‘कथादेश’)</p> <p>