Patrakarita Ke Naye Ayam
Author:
S. K. DubeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 180
₹
225
Unavailable
पत्रकारिता एक बौद्धिक कर्म है। पत्रकारिता अतीत का मन्थन करती है, वर्तमान को सँवारती है और भविष्य को सुधारने का ताना-बाना बुनती है। युग-चेतना से समृद्ध पत्रकारिता ही विषम परिस्थितियों का सम्यक् विवेचन करके जनमानस को आम सहमति के बिन्दु तक ले जाने का मंच प्रदान करती है। युगीन समस्याओं, जन-आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और सम्भावनाओं पर मनन करके एक रचनात्मक चिन्तन का कैनवस तैयार करती है।</p>
<p>चेतना का प्रवाह करना पत्रकारिता है। परस्पर विरोधी विचारों को समर्थन-विरोध प्रणाली से तौलते हुए तत्त्व की बातें तथ्य सहित पाठकों के सामने लाना पत्रकार कर्म की सफलता है। पत्रकारिता जन-जन को जोड़ने का काम करती है। इसका प्रमुख कार्य मेल-जोल की संस्कृति का विकास करना है। 21वीं सदी की पत्रकारिता महज़ सैद्धान्तिक या वैचारिक ही नहीं रह गई है, उस पर व्यावसायिकता निरन्तर हावी होती जा रही है। विश्वविद्यालयों के अध्यापक पहले से तथा कार्यरत पत्रकार दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं। पत्र-पत्रिका आख़िर व्यावसायिक उत्पाद भी हैं।</p>
<p>पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में अपने समय के विभिन्न आयामों से गुज़रती एक महत्त्वपूर्ण और संग्रणीय पुस्तक।
ISBN: 9788180310980
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अरसे तक ‘राष्ट्रीय मीडिया’ मानी जानेवाली अंग्रेजी मीडिया के वर्चस्व को, अपने व्यापक जमीनी जुड़ाव की बदौलत किनारे कर, देश के कोने-कोने तक पहुँच बना चुकी हिन्दी मीडिया का यह ऐतिहासिक सफर अत्यन्त चुनौतीपूर्ण रहा है, जिसका ब्योरा मृणाल पाण्डे ने इस किताब में दर्ज किया है। इसमें औपनिवेशिक काल में बढ़ती राष्ट्रीय भावना से उपजे अखबार और अंग्रेजी की अधीनता से लेकर, आजादी के बाद के दौर में विज्ञापन और निजी कॉरपोरेटों की बढ़ती मौजूदगी से आए उन बदलावों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है जिन्होंने पत्रकारिता का परिदृश्य आमूल बदल दिया। आगे डिजीटलीकरण, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बढ़ते प्रभावों और विज्ञापनों पर भारी निर्भरता ने बदलावों को और तेज किया। और अब, राजनीति, कारपोरेट और मीडिया के बीच स्पष्ट किन्तु जटिल रिश्तों की छाया में यह सवाल सामने है कि एक समय भारतीय लोकतंत्र को आगे बढ़ाने का जरिया बनी हिन्दी मीडिया आज हमारे संविधान प्रदत्त सूचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक को आगे बढ़ा पाने में किस हद तक सक्षम है? जरूरी जानकारियों से भरी यह किताब पत्रकारिता के छात्रों, प्रोफेसरों और मीडियाकर्मियों के साथ-साथ उन सबके लिए एक विचारोत्तेजक पाठ है जो मीडिया और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास, वर्तमान और भविष्य में दिलचस्पी रखते हैं।
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Punya Prasun Bajpai
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Vigyapan Aur Jansampark
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यह पुस्तक विज्ञापन और जनसम्पर्क संचार की विधा को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में विज्ञापन के विविध स्वरूपों की विस्तार से चर्चा की गई है। विज्ञापन को परिभाषित करते हुए इसके विविध प्रकार, माध्यमों एवं लाभ की विस्तृत विवेचना की गई है। जनसम्पर्क की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए जनसम्पर्क की विविध विधाओं पर विस्तार से चर्चा की है। कारपोरेट जनसम्पर्क की आवश्यकता और उपयोगिता की विस्तृत विवेचना इस पुस्तक को और भी उपयोगी बनाती है।
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के पाठ्यक्रमानुसार लिखित यह पुस्तक जहाँ एक ओर पत्रकारिता एवं जनसंचार के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी वहीं दूसरी ओर विज्ञापन एवं जनसम्पर्क के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए भी मार्गदर्शक के रूप में लाभप्रद होगी।
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