Media Ki Badalti Bhasha
Author:
Dr. Ajay Kumar SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
हिन्दी भाषा का जो स्वरूप आज हमारे सामने है, उसके निर्माण में लगभग एक हज़ार साल लगे हैं और हम दावे के साथ यह कहने की स्थिति में अब भी नहीं हैं कि यह स्वरूप आख़िरी या स्थिर है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति के कारण मीडिया की हिन्दी भाषा के स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। आज हमें ऐसी हिन्दी भाषा की आवश्यकता है जो संस्कृत शब्दों से अलंकृत भी हो और अन्यान्य देशी-विदेशी भाषाओं के सरल, सहज और प्रचलित शब्दों से समृद्ध हो। पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यक्तियों एवं पत्रकारिता का प्रशिक्षण ले रहे विद्यार्थियों को भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक में मीडिया की बदलती हिन्दी भाषा का विश्लेषण कर ऐसी हिन्दी भाषा को स्थापित करने का प्रयास किया गया है, जो प्रौद्योगिकी के साथ मिलकर चले और आम जनमानस की भाषा बन सके।
ISBN: 9788180317071
Pages: 222
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अमरीका के रक्षा विभाग में आँकड़ों और सूचनाओं के लेन-देन को आसान बनाने के लिए स्थापित किया गया इंटरनेट अब आम आदमी तक पहुँच चुका है। समाचार माध्यमों के सहयोगी और कई जगह विकल्प के रूप में यह नए समाचार और सूचना माध्यम का रूप ले चुका है।
पत्रकारिता के इतिहास में यह एक ज़बर्दस्त मोड़ है कि यह सिर्फ़ ‘पत्रकार’ का गढ़ नहीं रह गई है। पत्रकार और पत्रकारिता की परिभाषाएँ भी बदल रही हैं। नए संचार माध्यम तकनीकी रूप से बेहद समृद्ध हैं, लेकिन भिन्न आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों में इन तक लोगों की वास्तविक पहुँच, इनके उपयोग और असर की सीमाएँ हो सकती हैं। लेकिन निश्चित रूप से न्यू मीडिया की परिघटना क्षणिक आवेग या अस्थायी या किसी भौगोलिक क्षेत्र की सीमा में बँधी हुई नहीं है। एक ख़ास बात यह भी है कि इस सार्वभौम नेटवर्क के रूप, उपयोग के तरीक़ों में बदलाव भी सतत होता रहेगा।
नए माध्यमों का आना हमारे देश को किस तरह से प्रभावित कर रहा है? यह सिर्फ़ एक विकल्प है या फिर मुख्यधारा का सशक्त पत्रकारीय औज़ार? जन सूचना माध्यम के रूप में इसकी क्या सीमाएँ और शक्तियाँ हैं और इसके आगे बढ़ने के रास्ते में कौन-सी चुनौतियाँ इस समय देखी जा रही हैं? हमारे अपने देश की भाषाओं में इसके इस्तेमाल के लिए क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं और तकनीकी स्तर पर इसमें क्या रुकावटें हैं? ऐसे कई सवाल इस समय किसी भी मीडियाकर्मी या जिज्ञासु के सामने हैं। इन सवालों पर नए माध्यमों के कुछ सशक्त उपयोगकर्ताओं और विशेषज्ञों ने अपने पक्ष इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के रूप में रखे हैं।
—‘पुस्तक परिचय’ से
Television Ki Kahani : Part-1
- Author Name:
Shyam Kashyap +1
- Book Type:

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Description:
टेलीविज़न की कहानी वर्तमान समय सूचना-समाचारों के विस्फोट का है। हर घर-आँगन में चौबीस घंटे की टेलीविज़न-उपस्थिति है। चकमक करती रौशनियाँ हैं, दमक-हुमक-भरे चेहरे हैं। हर्ष, विषाद, रुदन की आक्रामकता है। कहीं समाचार, कहीं फ़िल्म और घर-घर की कहानी बयान करते रंग-बिरंगे धारावाहिक। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस चमक-दमक के आविष्कारक कौन थे? टेलीविज़न का कब और कैसे आविष्कार हुआ? टेलीविज़न के अतीत-वर्तमान को ही जानने-समझने का सार्थक प्रयत्न करती है यह पुस्तक। वरिष्ठ लेखक-पत्रकार डॉ. श्याम कश्यप और चर्चित युवा टीवी पत्रकार मुकेश कुमार की क़लम-जुगलबन्दी ने टेलीविज़न की कहानी को आप तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है।
टेलीविज़न के विभिन्न आयामों का समावेश करती इस पुस्तक में कुल बारह अध्याय हैं, जिनमें टेलीविज़न की ईजाद और उसके क्रमिक विकास की कहानी के साथ उनके विशिष्ट आन्तरिक संरचना, चरित्र और सामाजिक प्रभावों की भी प्रभावी पड़ताल की गई है। इसमें प्रसंगवश उन तमाम समकालीन प्रश्नों से भी मुठभेड़ करने का प्रयास किया गया है, जिनका सामना टीवी पत्रकार को अक्सर करना पड़ता है।
पुस्तक में टीवी पत्रकारिता से जुड़ी उन तमाम बातों का ज़िक्र है, जिसकी ज़रूरत इस क्षेत्र के छात्रों और पत्रकारों को पड़ती है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए मददगार साबित होगी। न सिर्फ़ छात्रों और पत्रकारों के लिए बल्कि आम पाठक, जो टेलीविज़न के इतिहास और उसके संसार को जानना और समझना चाहते हैं, उनके लिए भी उपयोगी और रुचिकर पुस्तक।
Sanchar Bhasha Hindi
- Author Name:
Dr. Surya Prasad Dixit
- Book Type:

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Description:
जनसंचार माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति है, संचार भाषा। मीडिया द्वारा प्रसारित भाषा में लक्ष्यीभूत श्रोता, दर्शक, पाठक विभिन्न बौद्धिक स्तरों के होते हैं। जन-माध्यमों का यह प्रयास होता है कि वे भाषिक सम्प्रेषण को सर्व सुलभ बनाएँ। इसके लिए एक-एक शब्द को बड़ी सावधानी के साथ प्रयुक्त करना होता है। यह ध्यान रखना होता है कि उच्चरित भाषा में कितना अन्तराल, कितना आयतन, कितना आरोहावरोह और कितना यति-गति-विधान रखा जाए। इन जन-माध्यमों की अपनी अलग-अलग भाषिक प्रोक्तियाँ होती हैं। अख़बार भरसक जन-भाषा का प्रयोग करता है, रेडियो उसे ‘विजुअल’ बनाने का प्रयास करता है और टेलीविज़न दृश्य भाषा का पूरी क्षमता के साथ निर्वाह करता है।
इधर कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल आदि ने भाषा के नए-नए रूप निकाले हैं। इन्हें समझने के लिए भाषा प्रौद्योगिकी का संज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए अपेक्षित है—अनुवाद कला का अभ्यास, डबिंग, दुभाषिया प्रविधि और वाचिक कलाओं की जानकारी, कमेंट्री, उद्घोषणा तथा संचालन की सफलता पूर्णत: भाषिक उच्चारण और लहज़े पर निर्भर होती है। समाचार, फ़ीचर, ध्वनि नाटक, संवाद, वार्त्ता, वृत्तचित्र, रिपोर्ताज़ आदि विधाएँ मूलत: भाषिक प्रयोगों पर निर्भर होती हैं।
संचार भाषा में सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है शब्द संवेदना पर। उसी के सहारे विज्ञापन के नारे इतने हृदयस्पर्शी सिद्ध होते हैं।
इस कृति में प्रथम बार संचार भाषा रूप में हिन्दी का अनुप्रयोग स्पष्ट किया गया है। कहना न होगा कि यह कृति प्रत्येक संचारकर्मी के लिए मात्र उपादेय ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य है।
Corporate Media : Dalal Street
- Author Name:
Dilip Mandal
- Book Type:

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Description:
राडिया कांड मीडिया की ताक़त और उसकी ख़ामी, दोनों को एक साथ दर्शाता है। ताक़त इस बात की कि मीडिया जनमत बना सकता है, जनमत को बदल सकता है, लोगों के सोचने के एजेंडे तय करता है और ख़ामी यह कि मीडिया पैसों के आगे किसी बात की परवाह नहीं करता। मीडिया को पैसेवाले पैसा कमाने के लिए और ताक़त के लिए चलाते हैं। इसलिए इसके दुरुपयोग की आशंका इसकी संरचना और स्वामित्व के ढाँचे में ही दर्ज है।
राडिया कांड से यह ज़गज़ाहिर हो गया कि ख़ासकर ऊँचे पदों पर मौजूद मीडियाकर्मी पैसे और प्रभाव के इस खेल में हिस्सेदार बन चुके हैं। पिछले 20 वर्षों में मीडियाकर्मियों के मालिक बनने की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है। कुछ सम्पादक तो मालिक बन ही गए हैं। इसके अलावा भी मीडिया संस्थानों में मध्यम स्तर पर काम करनेवाले पत्रकारों तक को कम्पनी के शेयर दिए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह पत्रकार ही क्यों न हो, उस कम्पनी या उस व्यवसाय के विरुद्ध काम क्यों करेगा जिसमें उसके शेयर हों? इस तरह पत्रकारों की प्रतिबद्धता को नए ढंग से परिभाषित कर दिया जाता है। पत्रकारों का ईमानदार या बेईमान होना अब उनकी निजी पसन्द का ही मामला नहीं रहा। कोई पत्रकार अपनी मर्ज़ी से ईमानदार नहीं रह सकता। यह बात कई लोगों को तकलीफ़देह लग सकती है। राडिया कांड ने मीडिया को सचमुच गहरे ज़ख़्म दिए हैं।
—इसी पुस्तक से
Dizaster : Media And Politics
- Author Name:
Punya Prasun Bajpai
- Book Type:

- Description: based on print and electronic media by punya prasun bajpai
Samachar Patra Prabandhan
- Author Name:
Gulab Kothari
- Book Type:

-
Description:
आज आम शिकायत यह है कि सम्पादक नाम की संस्था का लोप हो रहा है। जहाँ वह मौजूद है, वहाँ या तो प्रतीकात्मक है या उसके कार्य-अधिकार, विवेक और निर्णय का दायरा घटता जा रहा है। वैश्वीकरण की अदम्य आँधी ने समाचार-पत्रों को भी एक बाज़ार की वस्तु का रूप ग्रहण करने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में समाचार-पत्रों में प्रबन्धन की महत्ता और महिमा निरन्तर बढ़ती जा रही है।
समाचार-पत्र का एक व्यावसायिक वस्तु बनकर रह जाना दर्दनाक हादसा है। बाज़ारजनित दृष्टिकोण के कारण समाज में समाचार-पत्र के स्थान, सम्मान और विश्वसनीयता में परिवर्तन की प्रक्रिया धीरे-धीरे चल रही है।
इस माहौल में समाचार-पत्र प्रबन्धन के सम्बन्ध में एक ऐसी परिपक्व दृष्टि की ज़रूरत है जो बाज़ार की बढ़ती हुई ताक़त की व्यावहारिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए उन बुनियादी मूल्यों पर अडिग रहने की कला, दृष्टि और शक्ति दे, जिसके कारण समाचार-पत्रों ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दर्जा पाया है। पत्रकारिता के पुरोधा गुलाब कोठारी की इस पुस्तक से यह सब मिल सकेगा, ऐसा विश्वास है।
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