Hindi Patrakarita Ka Pratinidhi Sankalan
Author:
Tarushikha SurjanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 1196
₹
1495
Available
हिन्दी पत्रकारिता की डेढ़ सदी की यात्रा को एक पुस्तक में समाहित करने का यह प्रयास सराहनीय है। देश और समाज के निर्माण में हिन्दी पत्रकारिता की अपनी एक विशिष्ट और महती भूमिका रही है। यह संकलन न केवल महत्त्वपूर्ण सम्पादकों व पत्रकारों की लेखनी से परिचय कराता है, बल्कि पत्रकारिता के वास्तविक व आदर्श स्वरूप का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ भी प्रस्तुत करता है। हिन्दी पत्रकारिता अपने उद्भव काल से अभी तक जिन-जिन पड़ावों से गुज़री है, उनका भी दिग्दर्शन इस संकलन में होता है।</p>
<p>यह संकलन हिन्दी पत्रकारिता के अध्ययन और अध्यापन से जुड़े वर्ग के लिए भी एक मानक सन्दर्भ पुस्तक सिद्ध होगी—ऐसा मेरा विश्वास है। इस वृहद् कालखंड को समूची समग्रता के साथ अपने भीतर समेटे हुए इस संकलन में सम्मिलित किए गए मूर्धन्य पत्रकारों के सम्पादकीय वस्तुतः देश, समाज और विश्व को समझने के लिए भी एक उजली खिड़की उपलब्ध कराते हैं।</p>
<p>—भीष्म नारायण सिंह</p>
<p>(भूतपूर्व राज्यपाल एवं केन्द्रीय मंत्री)</p>
<p><strong> </strong>
ISBN: 9788183613903
Pages: 550
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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वर्तमान काल मीडिया का काल है। मीडिया की ताक़त का लोहा न माननेवाला शायद ही कोई दिखाई दे। जिस तरह मीडिया में माहौल और व्यवस्था को बनाने की ताक़त होती है, उसी तरह बिगाड़ने की भी। मीडिया को लेकर इस ग्रन्थ के लेखक की मान्यता है कि ‘यह वह अद्भुत आग है जो जीवन देती भी है और लेती भी, हँसाती भी है और रुलाती भी, बनाती भी है और बिगाड़ती भी’। लेकिन सकारात्मक सोच से कहना होगा कि मीडिया वह साधन है जिसका प्रयोग मानव जाति के कल्याण के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
वर्तमान काल का भयावह सच है बेरोज़गारी। लेकिन ऐसे माहौल में मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने रोज़गार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं, इसे भी नकारा नहीं जा सकता। सच तो यह है कि आई.टी. के इस उन्नत माहौल में रोज़गार के सबसे ज़्यादा अवसर भाषा के अध्येता के लिए हैं। भारत के सन्दर्भ में हिन्दी जैसी भाषा के अध्येता के लिए मीडिया के बूते पर रोज़गार की अनेक सम्भावनाएँ दावत दे रही हैं।
युवा पीढ़ी की स्थिति और गति को जाननेवाले समीक्षक डॉ. अर्जुन चव्हाण ने युग की माँग को देखते हुए प्रस्तुत रचना का लेखन किया है। उनकी समीक्षा खोखले आडम्बर एवं पाखंड पर जितनी क्षमता से प्रहार करती है, उतनी ही क्षमता से नई पीढ़ी को चुनौतियों का सामना करने की दृष्टि भी प्रदान करती है। दस अध्यायों में विभाजित इस रचना में अद्यतन विषय पर प्रकाश डाला गया है। विशेषतः ‘वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी’, ‘संचार माध्यम का हिन्दी परिप्रेक्ष्य’, ‘हिन्दी के बूते पर रोज़गार के अवसर’ तथा ‘संगणकीय हिन्दी’ जैसे विषय पर लेखन होना समकालीन समय और युग की माँग
थी।आधुनिक हिन्दी साहित्य के अलावा हिन्दी भाषा का प्रयोजनपरक पक्ष भी जिनके अध्ययन, अनुसन्धान और समीक्षा का विषय बना है, वे बेलाग समीक्षक डॉ. अर्जुन चव्हाण इस ग्रन्थ के ज़रिए न केवल हिन्दी समीक्षा को समृद्ध करते हैं, बल्कि अपने काल की चुनौतियों का सामना करने का ‘क्ल्यू’ भी देते हैं। प्रस्तुत रचना भाषा के अध्येताओं के भीषण वर्तमान को बेहतर भविष्य में बदलने के लिए दृष्टि और दिशा भी दे सकती है, इसमें सन्देह नहीं।
Media Ka Underworld
- Author Name:
Dilip Mandal
- Book Type:

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Description:
पेड न्यूज़ वर्तमान मीडिया विमर्श का सबसे चर्चित विषय है। ख़बरें पहले भी बिकती थीं। सरकारों और नेताओं से लेकर कम्पनियाँ और फ़िल्में बनानेवाले तक ख़बरें ख़रीदते रहे हैं। न्यूज़ के स्पेस में विज्ञापन की घुसपैठ नई नहीं है। बदलाव सिर्फ़ इतना है कि पहले खेल पर्दे के पीछे था, अब मीडिया अपना माल दुकान खोलकर और रेट कार्ड लगाकर बेचने लगा है। विलेन के रूप में किसी ख़ास मीडिया हाउस को चिह्नित करना काफ़ी नहीं है। सारा कॉरपोरेट मीडिया ही बाज़ार में बिकने के लिए खड़ा है। समाचार को लेकर जिस पवित्रता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी की शास्त्रीय कल्पना है, उसका विखंडन हम सब अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं। मीडिया छवि बनाता और बिगाड़ता है। इस ताक़त के बावजूद भारतीय मीडिया अपनी ही छवि का नाश होना नहीं रोक सका। देखते–ही–देखते पत्रकार आदरणीय नहीं रहे। लोकतंत्र का चैथा खम्भा आज धूल–धूसरित गिरा पड़ा है। मीडिया की बन्द मुट्ठी क्या खुली, एक मूर्ति टूटकर बिखर गई। यह पुस्तक इसी विखंडन को दर्ज करने की कोशिश है।
देश–काल की बड़ी समस्याओं पर लिखी गई पुस्तकों में आम तौर पर समाधान की भी बात होती है। समस्या का विश्लेषण करने के साथ ही अक्सर यह भी बताया जाता है कि समाधान का रास्ता किस ओर है। इस मायने में यह पुस्तक आपको निराश करेगी। हाल के वर्षों में जनसंचार के क्षेत्र के सबसे विवादित और चर्चित विषय पेड न्यूज़ को केन्द्र में रखकर लिखी गई यह पुस्तक समस्या का कोई समान नहीं सुझाती ।
पुस्तक यह समझने की कोशिश भर है कि पेड न्यूज़ ख़ुद एक बीमारी है, या फिर किसी बड़ी और गम्भीर बीमारी का लक्षण मात्र। पुस्तक में मीडिया अर्थशास्त्र और व्यवसाय की समीक्षा के ज़रिए यह बताने की कोशिश की गई है कि अपनी वर्तमान संरचना की वजह से मीडिया के लिए ख़बरें बेचना अस्वाभाविक नहीं है। मीडिया के लिए कमाई के मुक़ाबले छवि की क़ुर्बानी कोई बड़ी क़ीमत नहीं है।
Feature Lekhan : Swarup Aur Shilpa
- Author Name:
Manohar Prabhakar
- Book Type:

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Description:
माखनलाल चतुर्वेदी कवि थे, नाटककार थे, निबन्ध लेखक भी थे, अर्थात् उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी क़लम चलाई थी। वे देश की स्वतंत्रता के लिए लेखनी चलानेवाले एक अग्रणी पत्रकार भी थे। उनकी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। साहित्य और पत्रकारिता का यह संगम हमारी परम्परा में हमेशा रहा है। फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि आजकल पत्रकारिता और साहित्य को दो अलग-अलग खाँचों में बाँटा जाता है। इस विभाजक रेखा को भी लाँघनेवाली विधाएँ हैं। उनमें से कुछ हैं—फ़ीचर, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तान्त एवं संस्मरण।
इस पुस्तक के ज़रिए फ़ीचर लेखन के कौशल को सरल ढंग से पेश करने की कोशिश की गई है। उम्मीद है कि इससे पाठक साहित्य और पत्रकारिता की विभाजक रेखा को जोड़कर इन दोनों के सम्मिश्रण को नए सिरे से स्थापित कर सकेंगे। फ़ीचर लेखन जितनी अधिक मात्रा में होगा, उतनी ही मात्रा में साहित्य और पत्रकारिता को जनमानस में भी जुड़ा हुआ देखने की प्रवृत्ति विकसित होगी।
डॉ. मनोहर प्रभाकर ने, जो स्वयं उच्च कोटि के फ़ीचर लेखक रहे हैं और जिन्होंने ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवज्योति’ एवं अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपने लेखन कौशल को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है, इस पुस्तक में अपने अनुभवों का सार इस ढंग से प्रस्तुत किया है कि उसे सरलता से व्यवहार में लाया जा सके।
Television Aur Crime Reporting
- Author Name:
Vartika Nanda
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Description:
वर्तिका नन्दा की यह किताब हिन्दी पत्रकारिता के गम्भीर अध्येताओं, विशेषकर टीवी पत्रकारिता के छात्रों के लिए, अपराध पत्रकारिता के अनेक आयाम उजागर करनेवाली पठनीय सामग्री देती है। आज के भाषाई समाचार जगत में अपराध संवाददाता की भूमिका, उसके लिए ख़बरों के सही स्रोत और प्रस्तुति के तरीक़े क्या हों? टीवी के न्यूज़रूम में अपराध विषयक ख़बरें किस तरह अन्तिम आकार पाती हैं? टीवी के लिए अपराध से जुड़े समाचारों को किस तरह से लिखा जाना चाहिए? उसका तकनीकी पक्ष, साक्षात्कार तथा एंकरिंग की दृष्टि से उनका सही नियामन तथा प्रसारण कैसा हो?—इस सब पर अपने लम्बे अनुभवों की मदद से लेखिका ने सिलसिलेवार तरीक़े से प्रकाश डाला है। पुस्तक के अन्त में दिए गए टीवी स्क्रिप्ट के कुछ नमूने तथा उनसे जुड़ी शब्दावली का समावेश पुस्तक की उपादेयता को बढ़ाता है।
—मृणाल पाण्डे
‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार’ प्राप्त वर्तिका नन्दा के स्तम्भ पढ़ता रहा हूँ। उनकी पृष्ठभूमि, मीडिया में व्यावहारिक अनुभव और अध्यापन सम्पन्न है। मीडिया के तीनों सशक्त माध्यमों—इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और रेडियो में उन्होंने काम किया है। ख़ासतौर से मीडिया पर उनके स्तम्भ अत्यन्त सूचनाप्रद और विचारपरक होते हैं। आज मीडिया में कैरियर की अनन्त सम्भावनाएँ और अवसर हैं। यह पुस्तक मीडिया जगत की सूक्ष्म और बारीक़ चीज़ों को भी पाठकों तक पहुँचाएगी। उनकी दोनों भूमिकाएँ (पत्रकारिता अध्यापन) इस पुस्तक को विशिष्ट, अलग और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। मीडिया जगत के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े लोगों के लिए नहीं, बल्कि पत्रकारिता जगत में रुचि रखनेवाले सामान्य पाठकों के लिए भी।
—हरिवंश।
Bharat Mein Jansanchar Aur Prasaran Media
- Author Name:
Madhukar Lele
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Description:
भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरम्भ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नए युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलाना एक गम्भीर चुनौती थी। ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया। कालान्तर में टेलीविज़न भी उससे जुड़ गया। दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंज़िलें पार की हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ बड़ी चुनौती-भरी रही हैं। प्रसारण टेक्नोलॉजी में हाल के कुछ वर्षों में जो ज़बर्दस्त प्रगति हुई और उसके साथ ही जब भूमंडलीकरण का दौर चला तो लाज़िमी था कि तेज़ी के साथ फलते-फूलते वैश्विक मीडिया उद्योग को भी भारत में अवसर दिए जाते। यह नया दौर निश्चित ही अपने साथ नई और अधिक गम्भीर चुनौतियाँ लेकर आया है।
मधुकर लेले ने आकाशवाणी और दूरदर्शन सेवा में लम्बी पारी पूरी की है और दोनों प्रसारण माध्यमों के विकास, विस्तार और उससे जुड़े विमर्श को उन्होंने नज़दीक से देखा-जाना है। प्रस्तुत पुस्तक में भारत में प्रसारण मीडिया की इस चुनौती-भरी यात्रा के मुख्य पड़ावों पर उन्होंने विहंगम दृष्टि से प्रकाश डाला है।
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