Hindi Patrakarita Ka Pratinidhi Sankalan
Author:
Tarushikha SurjanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 1196
₹
1495
Available
हिन्दी पत्रकारिता की डेढ़ सदी की यात्रा को एक पुस्तक में समाहित करने का यह प्रयास सराहनीय है। देश और समाज के निर्माण में हिन्दी पत्रकारिता की अपनी एक विशिष्ट और महती भूमिका रही है। यह संकलन न केवल महत्त्वपूर्ण सम्पादकों व पत्रकारों की लेखनी से परिचय कराता है, बल्कि पत्रकारिता के वास्तविक व आदर्श स्वरूप का एक प्रामाणिक दस्तावेज़ भी प्रस्तुत करता है। हिन्दी पत्रकारिता अपने उद्भव काल से अभी तक जिन-जिन पड़ावों से गुज़री है, उनका भी दिग्दर्शन इस संकलन में होता है।</p>
<p>यह संकलन हिन्दी पत्रकारिता के अध्ययन और अध्यापन से जुड़े वर्ग के लिए भी एक मानक सन्दर्भ पुस्तक सिद्ध होगी—ऐसा मेरा विश्वास है। इस वृहद् कालखंड को समूची समग्रता के साथ अपने भीतर समेटे हुए इस संकलन में सम्मिलित किए गए मूर्धन्य पत्रकारों के सम्पादकीय वस्तुतः देश, समाज और विश्व को समझने के लिए भी एक उजली खिड़की उपलब्ध कराते हैं।</p>
<p>—भीष्म नारायण सिंह</p>
<p>(भूतपूर्व राज्यपाल एवं केन्द्रीय मंत्री)</p>
<p><strong> </strong>
ISBN: 9788183613903
Pages: 550
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "सीरिया और इराक लगभग विखंडन के कगार पर पहुँच गए, क्योंकि उनके विभिन्न समुदायों—शिया, सुन्नी, कुर्द, अलावाइट और ईसाई—को यह लगा कि वे अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। इसलाम धर्म के कट्टरपंथी अनुपालन के लिए निष्ठुर इसलामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड सीरिया (ISIS) ने उन सभी को अपना निशाना बनाया, जिन्होंने इसके नियमों का विरोध भर किया। उन्हें या तो मार दिया या भाग जाने के लिए विवश कर दिया गया। 10 जून, 2014 इतिहास का एक काला दिन था, जब ISIS ने चार दिन की लड़ाई के बाद इराक की उत्तरी राजधानी मोसुल पर कब्जा कर लिया। भयाक्रांत करने में ISIS कुख्यात है। इसके द्वारा तैयार वीडियो क्लिपों में इसके लड़ाकों द्वारा शिया सैनिकों और ट्रक ड्राइवरों को फाँसी देते हुए दिखाया गया है, ऐसी कुत्सित घटनाओं ने मोसुल और टिकरित पर कब्जे के दौरान शिया सैनिकों को आतंकित करने और उनका मनोबल तोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई। मोसुल और इराक के अधिकांश उत्तरी भाग पर कब्जा करने के बाद ISIS नेता अबू बर्क अल-बगदादी को नई खिलाफत का मुखिया घोषित कर दिया गया, जो सभी मुसलमानों से अंधानुसरण की अपेक्षा करता है। मानवता के शत्रु और जेहादियों के जत्थे पैदा करनेवाली ISIS की काली करतूतों का सजीव लेखा-जोखा देती है यह पुस्तक, जो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी प्रभावी छाप छोड़नेवाले पैट्रिक कॉकबर्न ने अपनी जान जोखिम में डालकर तैयार की है।
Photo Patrakarita
- Author Name:
Dhananjai Chopra
- Book Type:

- Description: हमारा समय विजुअल कम्युनिकेशन यानी दृश्य संचार का समय है। वास्तविक दुनिया हो या आभासी दुनिया, हर तरफ छवियां ही छवियां हैं। कास्टिंग के लगभग सारे उपक्रम यानी प्रिंटकास्ट, ब्रॉडकास्ट, टेलीकास्ट, वेबकास्ट और ह्यूमनकास्ट अनायास ही छवियों के अधिकाधिक प्रयोग की होड़ में शामिल हो गए हैं। संचार के क्षेत्र में छवियों यानी दृश्यों के इस तरह प्रयोग से जन-संप्रेषण की दुनिया में बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव का कारण बना, हमारे मोबाइल फोन में कैमरे का आ जाना। इक्वींसवीं सदी के प्रारंभ से ही लोगों ने अपने आसपास के दृश्यों को सहेजना शुरू कर दिया था। दृश्यों के माध्यम से जन इतिहास का लिखा जाना यह बता रहा था कि आने वाले समय में शब्दों से कहीं अधिक दृश्य पढ़े जाएंगे। हुआ भी यही, हमने एक ऐसे समाज की रचना कर ली है, जिसमें दृश्य संचार के बिना रह पाना मुश्किल हो रहा है। टेक्नोलॉजी के बलबूते बदलती दुनिया और बदलते समय में दृश्य संस्कृति विकसित हो रही है। दृश्य गढ़े जा रहे हैं, रचे जा रहे हैं, प्रस्तुत किए जा रहे हैं और पढ़े जा रहे हैं। अब से पहले इतने अधिक दृश्यों का आदान-प्रदान कभी नहीं हुआ था। दरअसल यह दृश्य विस्फोट यानी विजुअल एक्सप्लोजन का समय है। यह फोटोग्राफी और फोटो पत्रकारिता को सीखने, समझने, सहेजने और संचरित करने का अप्रतिम समय है।
Lutian Ke Tile Ka Bhugol
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

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Description:
‘लुटियन के टीले का भूगोल’ में प्रभाष जोशी के वे लेख संकलित किए गए हैं जिनके केन्द्र में हैं राजनीतिक दल और उनसे जुड़े राजनीतिज्ञ तथा लोकतंत्र को क़ायम रखनेवाली संस्थाएँ। इसके अलावा ऐसे लेख भी हैं जो समाज और समुदाय के समकालीन प्रसंगों का विवेचन करते हैं और अपने समय की राजनीति से भी जुड़ते हैं।
प्रभाष जोशी अपनी भूमिका में लिखते हैं :
“ ‘लुटियन के टीले का भूगोल’ में ऐसे कागद हैं जो मैंने राजनीति पर कारे किए। नई दिल्ली में जहाँ केन्द्र सरकार बैठकर काम करती है—वह लुटियंस हिल कहलाती है। वहाँ अंग्रेज़ राजधानी लाए, उसके पहले रायसीना गाँव था और जिस पर अंग्रेज़ों ने अपनी सरकार के बैठने के लिए भवन बनवाए, वह रायसीना की पहाड़ी कही जाती थी। लुटियन उस वास्तुशास्त्री का नाम था जिसने रायसीना पहाड़ी पर वायसराय की लॉज (जो अब राष्ट्रपति भवन है) नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक और उसके नीचे एसेम्बली (जो अब संसद भवन है) बनवाए। बाद में यह पूरा परिसर लुटियंस हिल कहलाने लगा। उज्जैन के विक्रम के टीले की तर्ज पर इसे मैंने लुटियन का टीला बना लिया—दोनों का अन्तर्विरोध और विडम्बना दिखाने के लिए। आज की राजनीति और सत्ता का केन्द्र यह लुटियन का टीला है।
लेकिन ये मेरे राजनीति पर लिखे लेख नहीं हैं। वे मैंने ‘जनसत्ता’ के सम्पादकीय पेज पर लिखे और यहाँ संकलित नहीं हैं। ‘कागद कारे’ में राजनीति के मानवीय और निजी पहलुओं को खोलने की कोशिश करता हूँ। इनमें उन दस सालों की सभी राजनीतिक घटनाओं और उनके नायक-नायिकाओं के मानवीय और निजी पक्षों को समझने की कोशिश की गई है। नरसिंह राव, सोनिया गांधी, चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, मायावती आदि राजनीतिक व्यक्तित्वों को महज़ राजनीति के नज़रिए से नहीं देखा गया है। इनमें वे पहलू खोजे गए हैं जिनके बिना राजनीति नहीं होती। राजनीति के बिना लोकतंत्र नहीं हो सकता।”
Yashpal Ka Viplav
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

- Description: “स्वाधीनता आन्दोलन के अन्तिम दशक में ‘विप्लव’ का प्रकाशन हिन्दी पत्रकारिता की दुनिया में एक विस्फोट सरीखा था। यशपाल ने अपने क्रान्तिकारी दौर की वैचारिक सम्पदा को इस पत्रिका के मंच से व्यापक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ प्रदान किए। ‘विप्लव’ की विशिष्टता एक आन्दोलन सरीखी थी! ब्रिटिश साम्राज्यवाद को नेस्तनाबूद किए जाने के सारे प्रयत्नों के साथ सहभागिता दर्ज करते हुए भी यशपाल ने ‘विप्लव’ को स्वाधीनता आन्दोलन के वर्चस्वशाली नेतृत्व के प्रतिपक्षी की भूमिका में ढाल रखा था। ‘विप्लव’ के सम्पादकीयों का स्वरूप प्रायः राजनीतिक व सामाजिक हुआ करता था। ‘विप्लव’ को समय-समय पर ब्रिटिश शासन के कोप का शिकार होना पड़ा। दरअसल ‘विप्लव’ के सम्पादकीय अग्रलेखों के माध्यम से स्वाधीनता-संग्राम की उस दौर की उन हलचलों और बहसों का भी पता चलता है जो प्रायः मुख्यधारा की इतिहास में अनुपस्थित हैं। कहना न होगा कि यशपाल एक व्यक्ति नहीं, आन्दोलन थे और ‘विप्लव’ इस आन्दोलन का उद्घोष।”
Jeene Ke Bahaane
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

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Description:
प्रभाष जोशी ने ‘जीने के बहाने’ में अपने समय के चर्चित व्यक्तित्वों के चरित्र और विचार का दो टूक विश्लेषण किया है। जिन व्यक्तित्वों ने इतिहास की धारा को सही दिशा में ले जाने की कोशिश की है, प्रभाष जोशी ने ऐसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के अवदान का रेखांकन किया है। कुछ व्यक्तित्व ऐसे हैं जिन्होंने अपनी वैचारिक विसंगतियों से इतिहास के प्रवाह में गतिरोध पैदा करने का प्रयास किया है, प्रभाष जी ने उनकी ख़बर ली है।
प्रभाष जोशी लिखते हैं : “ये व्यक्तिचित्र नहीं हैं। जीवनियाँ भी नहीं हैं, और तो और, संस्मरण भी नहीं हैं। जैसे गांधी के साथ मेरे क्या संस्मरण हो सकते हैं। दिल्ली में जब नाथूराम गोडसे ने उनको गोली मारी तो मैं इन्दौर में दस बरस का था। माताराम कहती हैं कि उन्होंने मुझे गांधी जी को दिखाया था। तब वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करने इन्दौर आए थे। लेकिन तब मैं साल-भर का था और कहना कि उन्हें मैंने देखा, गप्प लगाना होगा। लेकिन इस पुस्तक की शुरुआत ही गांधी पर लिखे लेख से होती है। और तीन निबन्ध हैं जिन पर लिखा है, वे सार्वजनिक जीवन के लोग हैं।...जिन-जिन रूपों और तरीक़ों से कोई हमारे जीवन में जा सकता है, उन्हीं रूपों और तरीक़ों, में मैंने उनको जिया और याद रखा है। ये बहाने हैं जिनके कारण मैं जीता हूँ।”
पुस्तक में जिन व्यक्तित्वों पर प्रभाष जी ने लिखा है, वे जीवन और समाज के विविध क्षेत्रों के लोग हैं। उनमें कुछ अन्य प्रमुख नाम हैं : विनोबा, जेपी, ज्ञानी जैलसिंह, के.आर. नारायणन, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मधु लिमये, सोनिया गांधी, रामनाथ गोयनका, राहुल बारपुते, एस. मुलगावकर, रामविलास शर्मा, त्रिलोचन, गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, हरिशंकर परसाई, वी.एस. नॉयपाल, अरुंधती राय, सत्यजित राय, लता मंगेशकर, जे.आर.डी. टाटा, राधाकृष्ण, सिद्धराज ढड्ढा, सी.के. नायडू, गावसकर, तेंदुलकर, नवरातिलोवा आदि।
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