Pachis Global Brand
Author:
Kamlesh Maheshwari, Prakash BiyaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Available
ब्रांड यानी उत्पाद विशेष का नाम...एक ट्रेडमार्क।
वेबस्टर्स शब्दावली के अनुसार ब्रांड यानी... A mark burned on the skin with hot iron.</p>
हिन्दी में इसका भावार्थ है : व्यक्ति के शरीर पर उसकी पहचान दाग देना।
यही इस पुस्तक का सार है।
ब्रांड किसी उत्पाद का केवल नाम ही नहीं होता। उसके उत्पाद का पेटेंटेड ट्रेडमार्क भी नहीं होता। ग्राहक जब ब्रांडेड उत्पाद खरीदता है तो वह इस विश्वास का मूल्य भी चुकाता है कि उत्पाद गुणवत्तायुक्त होगा, झंझटमुक्त लम्बी सेवा प्रदान करेगा और उसे वादे के अनुसार बिक्री बाद सेवा मिलेगी। दूसरे शब्दों में, ब्रांडेड उत्पादों के निर्माता केवल वस्तु का मूल्य प्राप्त नहीं करते। वे एक भरोसे, एक विश्वास की क़ीमत भी वसूल करते हैं। वही ब्रांड लम्बी पारी खेलते हैं, जो अपने पर ‘दाग' दी गई ‘पहचान' को एक बार नहीं, बार-बार भी नहीं, बल्कि हर बार सही साबित करते हैं। ऐसे ही शतकीय पारी के बाद ग्लोबल मार्किट में आज भी अव्वल 25 ग्लोबल ब्रांड का इतिहास इस पुस्तक में सँजोया गया है।
ISBN: 9788126730001
Pages: 169
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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—कभी विदेशी उद्योगपति हमारी कम्पनियाँ ख़रीदते थे, आज भारतीय ‘कॉरपोरेट-हाट’ के बड़े सौदागर हैं। यहाँ तक कि कभी भारत पर राज करनेवाली ईस्ट इंडिया कम्पनी के नए मालिक हैं—मम्बई में जन्मे उद्योगपति संजीव मेहता...
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- Description: पशु-जगत में हमने देखा है कि अधिकांश प्रजातियाँ सामाजिक जीवन जीती हैं तथा साहचर्य उनके लिए संघर्ष का सर्वोत्तम हथियार है तथा यह संघर्ष डारविन के भावानुरूप केवल अस्तित्व-रक्षा के लिए नहीं, बल्कि प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के विरुद्ध होता है। इस प्रकार उन्हें जो पारस्परिक सुरक्षा उपलब्ध होती है, उससे उनकी दीर्घायु तथा संचित अनुभव की सम्भावना तो बढ़ती ही है, उनका उच्चतर बौद्धिक विकास भी होता है तथा प्रजाति का और अधिक विस्तार भी होता है। इसके विपरीत अलग-थलग रहनेवाली प्रजातियों का क्षय अवश्यम्भावी होता है। जहाँ तक मनुष्य का सवाल है, पाषाण-युग से ही हम देखते हैं कि मनुष्य कुनबों और कबीलों में रहता है; कुल-गोत्रों और जनजातियों में देखा जा सकता है कि किस प्रकार उनमें सामाजिक संस्थानों की एक व्यापक शृंखला पहले से ही विकसित है; और हमने देखा कि प्रारम्भिक जनजातीय रीति-रिवाजों तथा व्यवहार ने मनुष्य को उन संस्थानों का आधार दिया जिन्होंने प्रगति की प्रमुख अवस्थिति का निर्माण किया। विश्वविख्यात लेखक प्रिंस पीटर एलेक्सेयेविच क्रोपोत्किन की इस अत्यन्त चर्चित कृति में यह दर्शाया गया है कि आपसी सहयोग की प्रवृत्ति जो मनुष्य को सुदीर्घ विकास-क्रम के दौरान उत्तराधिकार स्वरूप प्राप्त हुई, उसका हमारे आधुनिक व्यक्तिवादी समाज में भी अत्यन्त महत्त्व है। विश्व की महानतम कृतियों में शुमार यह कृति हमेशा ही समाजवैज्ञानिकों और विचारकों की दिलचस्पी का विषय रही है। आज भी इस पुस्तक की लोकप्रियता उतनी ही है जितनी लगभग एक सदी पहले थी, जब यह पहली बार पाठकों के सामने आई थी।
Udyog Mein Safalta Ke 36 Mantra
- Author Name:
Girish P. Jakhotiya
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- Description: उद्यमकला की नींव मज़बूत हो तभी इमारत मज़बूत होगी। उद्योग और उद्यमकला के लक्ष्य का निर्धारण कैसे किया जाता है यह हम 'प्रैक्टिकली' देखेंगे। मूलतः ‘उद्यमी’ ही होना और सम्पत्ति अर्जित करना है, इस बात का संकल्प करना उद्यमी के लिए जरूरी है। रिलायन्स के कर्ताधर्ता स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी का, ‘बड़ा बनने का नशा है।' यह प्रिय घोष वाक्य था। अर्थात् सम्पत्ति कमाने की भी लत लगनी चाहिए। मूलतः उद्यमी होने के लिए पाँच कसौटियाँ हैं। उद्यमी बनने का निर्णय करने पर इन कसौटियों को पार करने के लिए उचित 'अभ्यास' करना आवश्यक है। कौन-सी हैं ये कसौटियाँ? ये कसौटियाँ हैं—सम्पत्ति अर्जित करने के लिए लगन, स्वभाव और आचार में लचीलापन, व्यवसाय प्रक्रिया के रहस्य की जानकारी, उद्योग की शृंखला, परस्पर सम्बन्ध निर्माण करने की तैयारी तथा बिना थके, बिना घबराए, बिना निराश हुए कोशिश करते रहने की मानसिक-शारीरिक-सांस्कृतिक तैयारी।
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