Management Mantra
Author:
Vijay JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 76
₹
95
Available
कॉरपोरेट की नई दुनिया में एक सन्तुलित प्रबन्धन शैली अपनाना आज बहुत ज़रूरी हो गया है, ताकि उससे जुड़े लोगों की पूरी क्षमता का इस्तेमाल भी हो सके, और उन्हें उनके योगदान का सन्तोषजनक फल भी प्राप्त हो, और इस सबके साथ कॉरपोरेट निकाय का समग्र विकास भी सम्भव हो।</p>
<p>यह पुस्तक इसी के लिए कुछ साधारण लेकिन अत्यन्त मूल्यवान गुर बताती है। पुस्तक की आधारभूत मान्यता है कि सम्पत्ति-निर्माण का कार्य मानवीय मूल्यों को नज़रअन्दाज़ करके नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए। कर्ता अपने कर्तव्य को पहले समझे, जिसके तहत ज़रूरी है कि उस समय निकाय का नेतृत्व अपना सब कुछ हासिल कर लेता है, तब उसकी मनोवृत्ति दूसरों के हित की ओर जानी चाहिए। यानी किसी भी प्रकार की प्रगति को केवल अपने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। एक नीति निर्धारित करें, जिसका आधार परहित हो। जो अपने सहयोगियों की सुरक्षा की गारंटी दे, दूसरों की ग़लतियों को भूलकर आगे बढ़े और सह-अस्तित्व को अपनी कार्यशैली की पहचान बनाए।</p>
<p>ऐसी ही कुछ आवश्यक बातों को इस पुस्तक के लेखक ने सरल ढंग से, उदाहरणों-क़िस्सों की मदद से समझाते हुए क्रमश: संकलित किया है। विशेष उल्लेखनीय यह है कि लेखक स्वयं एक सफल प्रबन्धक रहे हैं, और यह सब उन्होंने व्यवहारत: आज़माया है।
ISBN: 9788126717644
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यदि हमसे कहा जाए कि बोलिए मत, चुप रहिए तो हम कितनी देर तक चुप रह सकते हैं? और चुप होते ही हम पाएँगे कि हमारे अधिकांश काम भी ठप हो गए हैं। यानी, बोलना तो है ही। बोले बिना किसी का काम चलता नहीं। नींद के बाद बचे समय पर ज़रा ग़ौर कीजिए, पाएँगे कि ज़्यादातर वक़्त (75 प्रतिशत से भी ज़्यादा) हम, या तो, बोल रहे हैं या सुन रहे हैं। ज़रा सोचिए, कि जिस काम पर सबसे ज़्यादा समय ख़र्च कर रहे हों, यदि उसे बेहतर कर लें तो हमारे जीवन का अधिकांश भी बेहतर हो जाएगा। यानी, अपने बोलने और सुनने को बेहतर बनाना, जीवन को ठीक करने जैसा काम होगा, क्या नहीं?
दरअसल, चार मौलिक विधाएँ हैं—बोलना, सुनना, लिखना, पढ़ना। इनमें से लिखने-पढ़ने की तो हम औपचारिक शिक्षा पाते हैं, लेकिन बोलना-सुनना, आश्चर्यजनक रूप से, सिर्फ़ नक़ल और अनुकरण के हवाले हैं। बोलना-सुनना औपचारिक तरीक़े से सीखा और सुधारा जा सकता है, और इसी की पहली सीढ़ी है यह पुस्तक।
Aapsi Madad - Hard Back
- Author Name:
Prince Peter Alexeyevich Kropotkin
- Book Type:

- Description: पशु-जगत में हमने देखा है कि अधिकांश प्रजातियाँ सामाजिक जीवन जीती हैं तथा साहचर्य उनके लिए संघर्ष का सर्वोत्तम हथियार है तथा यह संघर्ष डारविन के भावानुरूप केवल अस्तित्व-रक्षा के लिए नहीं, बल्कि प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के विरुद्ध होता है। इस प्रकार उन्हें जो पारस्परिक सुरक्षा उपलब्ध होती है, उससे उनकी दीर्घायु तथा संचित अनुभव की सम्भावना तो बढ़ती ही है, उनका उच्चतर बौद्धिक विकास भी होता है तथा प्रजाति का और अधिक विस्तार भी होता है। इसके विपरीत अलग-थलग रहनेवाली प्रजातियों का क्षय अवश्यम्भावी होता है। जहाँ तक मनुष्य का सवाल है, पाषाण-युग से ही हम देखते हैं कि मनुष्य कुनबों और कबीलों में रहता है; कुल-गोत्रों और जनजातियों में देखा जा सकता है कि किस प्रकार उनमें सामाजिक संस्थानों की एक व्यापक शृंखला पहले से ही विकसित है; और हमने देखा कि प्रारम्भिक जनजातीय रीति-रिवाजों तथा व्यवहार ने मनुष्य को उन संस्थानों का आधार दिया जिन्होंने प्रगति की प्रमुख अवस्थिति का निर्माण किया। विश्वविख्यात लेखक प्रिंस पीटर एलेक्सेयेविच क्रोपोत्किन की इस अत्यन्त चर्चित कृति में यह दर्शाया गया है कि आपसी सहयोग की प्रवृत्ति जो मनुष्य को सुदीर्घ विकास-क्रम के दौरान उत्तराधिकार स्वरूप प्राप्त हुई, उसका हमारे आधुनिक व्यक्तिवादी समाज में भी अत्यन्त महत्त्व है। विश्व की महानतम कृतियों में शुमार यह कृति हमेशा ही समाजवैज्ञानिकों और विचारकों की दिलचस्पी का विषय रही है। आज भी इस पुस्तक की लोकप्रियता उतनी ही है जितनी लगभग एक सदी पहले थी, जब यह पहली बार पाठकों के सामने आई थी।
Vittiya Prabandhan
- Author Name:
R. K. Pandey
- Book Type:

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वित्त भौतिक जीवन का आधार स्तम्भ है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसकी उपादेयता निर्विवाद है। वित्त जैसे अमूल्य पदार्थ का कुशलतम उपयोग वित्तीय प्रबन्ध से ही सम्भव हो सकता है। वित्तीय प्रबन्धन आज के वैश्विक परिदृश्य की आवश्यकता है। भूमंडलीकरण के दौर में अर्थव्यवस्था का खुलापन बढ़ती प्रतियोगिता का द्योतक है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वित्तीय प्रबन्धन’ आधुनिक व्यापारिक संगठनों की सम्भाव्य वित्तीय प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए लिखी गई है। पुस्तक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा देश के समस्त विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों हेतु निर्धारित पाठ्यक्रम को समाहित करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में दीर्घउत्तरीय, लघुउत्तरीय, वस्तुनिष्ठ एवं व्यावहारिक प्रश्नों का समावेश करते हुए पर्याप्त मात्रा में उदाहरणों द्वारा विषय को सरल, सुग्राह्य एवं रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।
पुस्तक की सार्थकता के परीक्षण हेतु सुधी पाठकों वित्त विशेषज्ञों, प्रबन्ध विशेषज्ञों, छात्र-छात्राओं एवं विद्वान शिक्षकों के अमूल्य सुझावों का अहर्निश स्वागत रहेगा।
Aap Hi Baniye Krishna
- Author Name:
Girish P. Jakhotiya
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- Description: महाभारत के चरित्रों में अकेले कृष्ण हैं, जिनका किसी न किसी रूप में प्रायः सभी चरित्रों से जुडाव रहा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सिंहासन पर विराजमान सम्राट से लेकर गली-कूचों में घूमनेवाली ग्वालिनों तक सबसे उनके स्तर पर जाकर संवाद ही नहीं कर लेते थे, उन्हें अपनी नीति और राजनीति का पोषक भी बना लेते थे। बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक देश-भर में उन्होंने जो किया और जैसे किया, उनके सिवा और कौन कर सका? अपने हर काम से वे विपक्षी को पस्त-परास्त और निरस्त्र ही नहीं कर देते थे, उसे अपना अनुरक्त भी बना लिया करते थे। अपने कारनामों के औचित्य के अदभुत-अपूर्व तर्क भी वे जुटा लिया करते थे। धरती के भविष्य को सँवारने और पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ सबको प्यार देने और सबका प्यार पाने में कृष्ण पूर्णतः सफल सिद्ध हुए। योगेश्वर कृष्ण की क्रन्तिकारी नीतियों, सफल रणनीतियों, दार्शनिक विचारों और नेतृत्व की अदभुत शैलियों को प्रबन्धन की दृष्टि से विवेचित-विश्लेषित करनेवाली हिन्दी की एक ऐसी पुस्तक, जिसे पढ़कर आप भी अपने जीवन को कृष्ण की तरह एक विजेता के रूप में ढाल सकते हैं।
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