Local se Global
Author:
Prakash BiyaniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 600
₹
750
Available
हाँ, हम तैयार हैं...</p>
<p>—देश की अर्थव्यवस्था को लाइसेंसी राज की बेड़ियों से मुक्त कराकर आर्थिक स्वतंत्रता के वैश्विक रास्ते पर ले जानेवाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं—‘दुनिया में लोग चीन की तरक़्क़ी से आशंकित होते हैं, लेकिन इसके विपरीत भारत की आर्थिक तरक़्क़ी को सकारात्मक नज़रिये से देखते हैं...’</p>
<p>—व्हार्टन स्कूल ऑफ़ द यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया के चार प्रोफ़ेसरों के अध्ययन का निष्कर्ष है—‘वैश्विक आर्थिक मन्दी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया क्योंकि वहाँ के उद्योगपतियों के कामकाज का अपना तौर-तरीक़ा है...’</p>
<p>—भारतीय अर्थव्यवस्था सन् 2020 में तीन ट्रिलियन डॉलर होगी...</p>
<p>—कभी विदेशी उद्योगपति हमारी कम्पनियाँ ख़रीदते थे, आज भारतीय ‘कॉरपोरेट-हाट’ के बड़े सौदागर हैं। यहाँ तक कि कभी भारत पर राज करनेवाली ईस्ट इंडिया कम्पनी के नए मालिक हैं—मम्बई में जन्मे उद्योगपति संजीव मेहता...</p>
<p>ऐसी सकारात्मक सच्चाइयों से प्रेरित इस पुस्तक ‘लोकल से ग्लोबल : इंडियन कॉरपोरेट्स’ में उदारीकरण के दूसरे दशक (2001-2010) में भारतीय उद्योग जगत की ֹ‘लोकल से ग्लोबल’ बनने की सफल कोशिश दोहराई गई है। यह पुस्तक उन पचास भारतीयों की यशोगाथा है, जिन्होंने साबित किया है कि भारतीय ठान लें तो कुछ भी कर सकते हैं, वह भी दूसरों से बेहतर।</p>
<p>
ISBN: 9788126720767
Pages: 503
Avg Reading Time: 17 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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विगत कुछ वर्षों में भारत एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है और आज वह अपने नागरिकों और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अरबों की सम्पत्ति का सृजन कर रहा है। प्रश्न है कि भारत ने ग्लोबल मार्केट में यह निर्णायक स्थिति कैसे हासिल की? इतना ही अहम सवाल यह भी है कि भारत की व्यावसायिक सम्भावनाओं और विभिन्न उद्योगों में उल्लेखनीय वृद्धि क्षमता का उपयोग पश्चिमी विश्व कैसे कर सकता है और कैसे वह दुनिया के इस विशालतम लोकतंत्र के साथ एक लाभदायक रिश्ता क़ायम कर सकता है? इन सवालों के जवाब भला श्री कमलनाथ से बेहतर कौन दे सकता है। देश के भीतर और बाहर विश्व में इक्कीसवीं सदी के भारत का चेहरा कहे जानेवाले और भारत के आर्थिक सुधारों के प्रमुख शिल्पकार कमलनाथ का पूरा जीवन सत्ता के गलियारों में बीता है और जिन नीतियों ने भारत को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, उनके निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
‘भारत की शताब्दी’ पुस्तक में श्री कमलनाथ भारतीय आर्थिक चमत्कार की जड़ों तक पहुँचने के लिए ‘फ़्लैट वर्ल्ड’ की अवधारणा से आगे जाते हैं और गहन आर्थिक विश्लेषण, राजनीतिक अन्तर्दृष्टि तथा सांस्कृतिक समझ के द्वारा 1947 में औपनिवेशिक शासन के ख़ात्मे से लेकर नियोजित अर्थव्यवस्था के चार दशकों और 1990 के दशक में क्रमबद्ध उदारीकरण से होते हुए एक विश्व-शक्ति के रूप में भारत के उभरने तक की यात्रा का अन्वेषण करते हैं।
इस पुस्तक में श्री कमलनाथ भारतीय जन-गण की ‘जुगाड़’ की क्षमता को रेखांकित करते हुए उसकी सदियों पुरानी उद्यमशीलता की तरफ़ भी संकेत करते हैं जो आज फिर समाज के हर स्तर पर अपने आपको स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्त कर रही है। इसी के साथ एक राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में वे व्यवसायियों और विश्व के नीति-निर्माताओं के लिए वह आधारभूत समझ भी उपलब्ध कराते हैं जिसका उपयोग 21वीं सदी में भारत के साथ लाभदायक द्विपक्षीय सम्बन्धों और नीतियों की रचना में किया जा सकता है।
यह पुस्तक व्यावसायिक रणनीतिकारों और सार्वजनिक नीति-निर्माताओं के साथ-साथ हर उस विचार-सम्पन्न पाठक के लिए अनिवार्य है जो विश्व के सबसे विशाल और सबसे गतिशील लोकतंत्र यानी भारत के बारे में जानना चाहता है और उस भूमिका को समझना चाहता है जिसे आनेवाले वर्षों में यह देश विश्व मंच पर निभाने जा रहा है।
Beema Prabandhan Evam Prashashan
- Author Name:
M. N. Mishra
- Book Type:

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‘बीमा प्रबन्ध एवं प्रशासन’ बीमा व्यवसाय के सफल संचालन की एकमात्र पुस्तक है। इसे गहन शोध और विस्तृत अध्ययन के बाद लिखा गया है। बीमा व्यवसाय का प्रबन्धन एवं निर्देशन कैसे किया जाए, इस पुस्तक के अध्ययन से पता लग सकता है।
इस पुस्तक में सात खंड हैं जो विभिन्न कार्यक्षेत्रों के संचालन में सहायक हैं। बीमा परिचय, प्रबन्ध एवं प्रशासन को प्रथम खंड में दिया गया है, जिसमें बीमा की परिभाषा एवं स्वभाव, बीमा का विकास एवं संगठन, बीमा प्रसंविदा, प्रबन्ध, प्रशासन एवं संगठन, जीवन बीमा निगम संगठन का रूप, सामान्य बीमा निगम, जीवन बीमा प्रसंविदा, सामुद्रिक बीमा प्रसंविदा और अग्नि बीमा परिचय एवं प्रसंविदा का वर्णन है। द्वितीय खंड में कार्यालय संगठन और प्रबन्ध की विवेचना है, जिसमें कार्यालय अभिन्यास एवं कार्य-दशाएँ, कार्यालय फर्नीचर, उपकरण एवं मशीनें, कार्यालय पद्धति, कार्यालय संगठन और कार्यालय प्रबन्ध का वर्णन है। कायिक प्रबन्ध का विश्लेषण तृतीय खंड में है जिसमें कार्यालय कार्यकर्त्ता प्रबन्धन, विक्रय संगठन एवं प्रबन्ध, अभिकर्त्ता की नियुक्ति, अभिकर्त्ता का प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण एवं प्रेरणा और अभिकर्त्ता का नियंत्रण बताया गया है। चतुर्थ खंड विपणन का है जिसमें विक्रय-कार्यकर्त्ताओं का संगठन, कार्यक्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं के गुण, बीमा विक्रय विधि, प्रचार एवं तर्क, आक्षेपों का उत्तर, बीमा जब्ती नए व्यापार का अभिगोपन, बीमा कराने की विधि एवं चुनाव, बीमापत्र की शर्तें, नवकरण विधियों के प्रबन्ध का वर्णन है। पंचम खंड बीमापत्रधारियों की सेवा का है जिसमें बीमापत्रधारियों की सेवा, अध्यर्थन का भुगतान का वर्णन है। वित्तीय प्रबन्ध का वर्णन षष्ठम खंड में है जिसमें प्रव्याजि निर्धारण, कोष का प्रबन्ध, मूल्यांकन, संचय, कोष का विनियोग, लागत नियंत्रण, अंकेक्षण एवं परीक्षण का विवरण है। सप्तम खंड में बीमा अधिनियम एवं प्रसंविदा, जैसे—बीमा अधिनियम, 1938, जीवन बीमा अधिनियम, 1956, सामुद्रिक बीमा अधिनियम, 1963, सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, 2000 का विशद विश्लेषण है।
यह पुस्तक वर्तमान अर्थव्यवस्था के विकास और विस्तृतीकरण में मील का पत्थर है। यह पुस्तक आनेवाले समय में बीमा की विभिन्न समस्याओं के समाधान की गीता है जिसके विभिन्न सिद्धान्तों का उपयोग करके कठिन-से-कठिन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
Manav Sansadhan Prabandhan Ke Anubhoot Aayam
- Author Name:
Ram Janam Singh
- Book Type:

- Description: H R Management
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