Vinayak
Author:
Rameshchandra ShahPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
...जो भी हो, इसका मतलब यही हुआ कि कुछ देना-पावना बचा था तुम्हारा मेरी तरफ़, जिसे तुम्हें मुझसे वसूल करना ही था।</p>
<p>...दूरबीन लगाकर देखा, तुम ख़ासे फल-फूल रहे हो। सेवानिवृत्ति की सरहद पर हो, फिर भी एक और लम्बी छलाँग लगाने को तैयार बैठे हो। ...इस सबके बीच तुम्हें घर की याद जैसी पिछड़ी और बासी-बूसी चिन्ता क्यों सताने लगी—मेरी समझ से बाहर है। देखता हूँ, तुम्हारे भीतर का वह कौतुकी-खिलंदड़ा बीनू अभी भी ज़िन्दा है। अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा।</p>
<p>...उफ़! ऐसी भरी-पूरी और फलती-फूलती गिरस्ती के बीचोबीच यह कैसा बवंडर बो दिया तुमने! अजीब भँवर में डाल दिया है तुमने मुझे विनायक! तुम मेरे क़ाबू से बाहर हुए जा रहे हो। मैं क्या करूँ तुम्हारा अब? मेरी स्मृति भी मेरा साथ नहीं दे रही। ओह, अब याद आया। स्मृति नहीं, ‘प्रतिस्मृति’। जानते हो यह क्या होती है?</p>
<p>...पर, विनायक! अब यह मेरी ज़िम्मेदारी है, तुम्हारी नहीं। तुम्हें मैं जहाँ तक देख-सुन सकता था, दिखा-सुना चुका। जितनी दूर तक तुम्हारा साथ दे सकता था, दे चुका। अब तुम अपनी राह चलने को स्वतंत्र हो, और मैं अपनी।</p>
<p>यह एक ऐसा उपन्यास है जिसे इस लेखक के ही सुप्रसिद्ध और पहले-पहले उपन्यास ‘गोबरगणेश’ के नायक की उत्तरकथा की तरह भी पढ़ा जा सकता है और अपने-आप में मुकम्मल स्वतंत्र कृति की तरह भी। हाँ, जैसे उस विनायक का, वैसे ही इस विनायक का भी जिया-भोगा सब कुछ संवेदनशील पाठकों को ख़ुद अपनी जीवनानुभूति के क़रीब लगेगा : क्योंकि, यह किसी सिद्धिविनायक की नहीं, हमारे-आपके जैसे ही हर असिद्ध की व्यथा-कथा है, जिसमें अन्तर्द्वन्द्व और त्रास ही नहीं, उमंग और उल्लास भी कुछ कम जगह नहीं घेरते। चाहे चरितनायक हो, चाहे लच्छू-चन्दू-त्रिभुवन और हरीशनारायण सरीखे उसके नए-पुराने संगी-साथी हों, चाहे स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की अक्षय ऊष्मा और दुर्निवार्य उलझनों को साकार करनेवाले चरित्र—मालती, मार्गरेट और शकुन्तला उर्फ मिसेज़ दुबे हों—सभी के इस आख्यान में घटित होने की लय हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत जीने की लय से अभिन्न है। लय, जो जितनी जीने के ‘सेंसेशन’ की है, उतनी ही सोचने-महसूसने और उस सोचने-महसूसने को कहने की ज़िन्दा हरकतों की भी।</p>
<p>अन्तर्बाह्य जीवन की सनसनी से भरपूर यह उपन्यास अपने ही ढंग से, अपने ही सुर-ताल में जीवन के अर्थ की तलाश में भी पड़ता है : अपने ही जिये-भोगे हुए का भरपूर दबाव उसे उस ओर अनिवार्यतः ठेलता है। जीवन क्या किसी का भी, महज़ सीधी लकीर नहीं, एक वृत्त, बल्कि वर्तुल है जो ‘अन्त’ को ‘आरम्भ’ से मिला के ही पूरा होता है? यह भी महज़ संयोग नहीं, कि उपन्यास का आरम्भ ‘माई डियर बीनू’ को लिखी गई एक चिट्ठी और एक ख़ुशबू से होता है और उपसंहार स्वयं इस चरितनायक को उसके रचयिता के सीधे सम्बोधन और ‘प्रतिस्मृति’ से।
ISBN: 9788126719921
Pages: 263
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत-पाकिस्तान विभाजन भारतीय राज्य के इतिहास का वह अध्याय है जो एक विराट त्रासदी के रूप में अनेक भारतीयों के मन पर आज भी जस-का-तस अंकित है। अपनी ज़मीनों-घरों से विस्थापित, असंख्य लोग जब नक़्शे में खींच दी गई एक रेखा के इधर और उधर की यात्रा पर निकल पड़े थे, यह न सिर्फ़ मनुष्य के जीवट की बल्कि भारतवर्ष के उन शाश्वत मूल्यों की भी परीक्षा थी जिनके दम पर सदियों से हमारी हस्ती मिटती नहीं थी।
यशपाल का यह कालजयी उपन्यास उसी ऐतिहासिक कालखंड का महाआख्यान है। स्वयं यशपाल के शब्दों में यह इतिहास नहीं है, ‘कथानक में कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ अथवा प्रसंग अवश्य हैं परन्तु सम्पूर्ण कथानक कल्पना के आधार पर उपन्यास है, इतिहास नहीं।’ अर्थात् यह उस ज़िन्दगी का आख्यान है जो अक्सर इतिहास के स्थूल ब्योरों में कहीं खो जाती है।
‘झूठा सच’ के इस पहले खंड ‘वतन और देश’ में विभाजन के दौरान हुई लूट-पाट और हिंसा के रोंगटे खड़े कर देनेवाले माहौल और उस भीतरी विभाजन का यथार्थवादी अंकन किया गया है जिसके चलते वतन और देश दो अलग-अलग इकाइयाँ हो गए। उपन्यास यह भी जानने की कोशिश करता है कि इसके कारण क्या थे—अंग्रेज़ों की चाल, साम्प्रदायिकता, पिछड़ापन या आर्थिक विषमता या यह सब एक साथ?
Nadi Laharen Aur Toofan
- Author Name:
Shanti Kumari Bajpai
- Book Type:

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श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की वरिष्ठ अध्यापिका हैं। उनका चित्त संवेदनशील है। उनमें गुरु की गम्भीरता और भावुक की सहृदयता दोनों ही हैं। अपने समाज में और परिवार में आए दिन व्यक्तियों का जो संघर्ष हुआ करता है और अप्रत्याशित रूप से मानस-ग्रन्थियाँ बनती रहती हैं, उनसे अनेक प्रकार की पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। श्रीमती बाजपेयी ने इन समस्याओं का अध्ययन गम्भीरता के साथ किया है।
‘नदी लहरें और तूफ़ान’ उनका दूसरा उपन्यास है। इसमें एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार का बड़ा ही सजीव चित्रण है। दादी इस परिवार की केन्द्रीय शक्ति हैं। उन्हीं के इशारे पर सबको चलना पड़ता है। परन्तु उनमें स्नेह और ममता इतनी अधिक है कि उनके बच्चे स्नेह के बल पर अपने मन की मनवा लेते हैं। दादी का चरित्र बहुत ही जीवन्त होकर उभरा है। वे पुरानी रूढ़ियों और परम्पराओं से आक्रान्त हैं लेकिन ख़ानदान की मर्यादा की रक्षा के लिए सदा जागरूक हैं।
इस उपन्यास के नारी पात्र अधिक सशक्त हैं। लक्ष्मी का चरित्र तो अविस्मरणीय है। अपमान, उपेक्षा के बीच में स्थिर दीप-शिखा की तरह वह जलती रहती है और कठिन अवसरों पर परिवार को कठिन समस्याओं से उबारने का मार्ग भी दिखाती है। लक्ष्मी का पति उत्तम, नायक उतना नहीं है जितना नेय है। वह अपनी प्रथम पत्नी पार्वती से प्रेम करता है, उसे वचन भी देता है कि उसके जीवन में और कोई नारी पत्नी रूप में नहीं आ सकती। लेकिन दादी के दबाव से लक्ष्मी से फिर विवाह करता है। विवाह भी करता है लेकिन उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करने में समर्थ भी नहीं होता। बाद में जब लक्ष्मी की ओर उन्मुख भी होता है तो अकारण उत्पन्न मानसिक ग्रन्थियों से बिदक जाता है। इस प्रकार वह शुरू से अन्त तक कमज़ोर चरित्र का पात्र बना रहता है।
लक्ष्मी और दादी इस उपन्यास के बहुत सशक्त पात्र हैं। कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में धैर्य और विवेक रखनेवाली लक्ष्मी सचमुच गृह-लक्ष्मी है।
—डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी
Chhal
- Author Name:
Achala Nagar
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रेडियो नाटक, फ़िल्मों और धारावाहिक आदि माध्यमों की विख्यात सृजनकर्मी अचला नागर का यह पहला उपन्यास है। इस उपन्यास में उन्होंने परिवार और व्यवसाय की एक सहयोगी संरचना को आधार बनाते हुए एक ओर पीढ़ियों के संघर्ष को रेखांकित किया है, तो दूसरी तरफ़ विश्वास और भरोसे पर जीवित शाश्वत मूल्यों को प्रतिष्ठित किया है।
कथा के केन्द्र में एक व्यवसायी परिवार है जिसने व्यवसाय का एक सहयोग-आधारित ढाँचा खड़ा किया है, जहाँ व्यवसाय के सब फ़ैसले सहयोगियों की राय से लिए जाते हैं, लेकिन नई पीढ़ी के कुछ लोगों को यह तरीक़ा बहुत रास नहीं आता जिसका परिणाम परस्पर छल, अविश्वास और पारिवारिक मूल्यों के विघटन में होता है। लेकिन जल्दी ही उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है, और परिवार तथा परस्पर सौहार्द के जिस ढाँचे पर ग्रहण लगने लगा था, वह वापस अपनी आभा पा लेता है।
उपन्यास की विशेषता इसका कथा-रस है जो इधर के उपन्यासों में अक्सर देखने को नहीं मिलता। बिना किसी चमत्कारी प्रयोग के कथाकार ने सरल ढंग से अपनी कहानी कहते हुए अपने यथार्थ पात्रों को साकार और जीवित कर दिया है।
Amrit Aur Vish
- Author Name:
Amritlal Nagar
- Book Type:

- Description: शिकरमों और ऊँट-गाड़ियों के एक सदी पुराने ज़माने से लेकर आज तक के तेज़ी से बदलते हुए रोचक मार्मिक और सहज जन-जीवन के अन्तरंग जीवन्त चित्रों का वर्णन पढ़ते-पढ़ते आप यह भूल जाएँगे कि उपन्यास पढ़ रहे हैं, बल्कि यह अनुभव करेंगे कि आप स्वयं भी इस वातावरण के ही एक अभिन्न अंग हैं। इसकी रचना-शैली का अनूठापन औसत और प्रबुद्ध दोनों प्रकार के पाठकों को अपने-अपने ढंग से किन्तु समान रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। लेखक ने सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और दार्शनिक दृष्टि से जिस तन्मयता और गहराई से व्यक्ति और समाज का मनोरूप दर्शन यहाँ प्रस्तुत किया है, वह पाठकों के लिए आमतौर से अन्यत्र दुर्लभ है। पुस्तक एक बार हाथ में उठा लेने पर पूरा पढ़े बिना आप रह नहीं सकते। यही नहीं, आप इसे बार-बार पढेंगे और हर बार एक नई दृष्टि और नए रस-बोध की ताज़गी पाएँगे।
Radheya
- Author Name:
Ranjeet Desai
- Book Type:

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‘कर्ण’ के जीवन की विडम्बनाएँ और उसके चरित्र की उदात्तता बार-बार आधुनिक रचनाकारों को आकर्षित करती रही हैं। उसका जीवन-चरित बार-बार नाटकों, खंड-काव्यों और उपन्यासों का विषय बनता रहा है। यह उपन्यास भी कर्ण के जीवन पर आधारित है।
ऐतिहासिक-पौराणिक कथानकों पर प्रभावशाली औपन्यासिक सृष्टि करने में सिद्धहस्त लेखक रणजीत देसाई ने अपनी इस कृति में कर्ण की एक व्यक्ति और एक परिस्थिति, दोनों रूपों में व्याख्या की है। माता-पिता के स्नेह से वंचित, सतत उपेक्षित और अपमानित कर्ण जीवन-भर किसी ऐसे अपराध की सज़ा भोगता रहता है, जिसमें वह कहीं शामिल नहीं था। क़दम-क़दम पर उससे उसकी जातिगत श्रेष्ठता का प्रमाण माँगा जाता है, जो वह नहीं दे पाता, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व का प्राकृतिक तेज धूमिल पड़ जाता है। वह अकेला पड़ जाता है। ‘महाभारत’ के इतने विस्तृत फलक पर जिस तरह का अकेलापन कर्ण झेलता है, वह और कोई पात्र नहीं।
प्रस्तुत उपन्यास में गंगा के किनारे जाकर कर्ण को ध्यानस्थ होते देखना सचमुच उसे उस करुणा और सहानुभूति का अधिकारी बनाता है जिसे उसका देश-काल अपनी धार्मिक-सामाजिक सीमाओं के चलते नहीं दे पाया।
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