Chiranjeev
Author:
Chandrakishore JaiswalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 639.2
₹
799
Available
परम्परा और आधुनिकता का समन्वय करते हुए लोक-मन और उसमें प्रवाहित करुणा के सामाजिक भाव को अपनी रचनाओं में समेटकर जीवन की गाथाएँ रचने वाले चन्द्रकिशोर जायसवाल का यह उपन्यास पारिवारिक जीवन के सौन्दर्य को इतने विस्तार और बारीकी से सम्भवत: पहली बार अपने कथानक का विषय बनाता है। कथानक के केन्द्र में शशांक, दिव्या और इस दम्पति का पुत्र टीपू हैं। इन्हीं पात्रों और इनके जीवन के बहाने लेखक ने इस उपन्यास में ग्रामीण और कस्बाई जीवन के छोटे-छोटे ब्योरों से यह कथा बुनी है जो दरअसल भारत के समूचे लोक-परिवेश का महाख्यान है।</p>
<p>यह उपन्यास सम्बन्धों के जटिल संजाल के साथ लोक की उस ऊष्मा को भी पुनर्जीवित करता है, जो हमारे आधुनिक समय के हाशिये पर उपेक्षित जा पड़ी है। विवरण-सघनता इस उपन्यास में एक तरफ अगर लेखक की विशाल अनुभव-सम्पदा का प्रमाण है तो दूसरी तरफ उसकी रचनात्मक ऊर्जा का भी साक्ष्य है। यही वह भूमि है जो इस उपन्यास को अनूठा और दुर्लभ बनाती है, और जिससे गुजरते हुए पाठक इसके संसार का हिस्सा हो जाता है।</p>
<p>जिजीविषा के साथ यह उपन्यास मृत्यु को भी अपने कथ्य की परिधि में समेटता है, लेकिन जीवन की तलाश उसके परे भी जारी रहती है। निस्सन्देह इस उपन्यास में वह सब है जिसकी अपेक्षा एक विधा के तौर पर उपन्यास से की जाती है।
ISBN: 9789360864149
Pages: 824
Avg Reading Time: 27 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सैल्वेशन’ से लेकर ‘लिबरेशन’ तक स्त्री-मुक्ति किन कठिन रास्तों से गुजरी है–इसकी सजग दास्तान है अनामिका की कृति दस द्वारे का पींजरा। पितृसत्ता के वर्चस्व तले निरन्तर क्षयग्रस्त इस दुनिया में स्त्री की मुक्ति खोजना आकाश और धरती के बीच सांस्कृतिक पुल बनाने से कम मुश्किल नहीं है। लेकिन, यह कठिन काम अंजाम दिए बिना दस द्वारे के इस पींजरे में रहनेवाले सुन्दर पंछी खुले गगन में उड़ने के लिए तैयार नहीं हो सकते।
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दो परिच्छेदों की इस महागाथा में दो नायिकाएँ हैं : पंडिता रमाबाई और ढेलाबाई। इनकी आत्मीय कथा के जरिए अनामिका ने अपने पात्रों और परिस्थितियों के इर्द-गिर्द भारतीय समाज का एक ऐसा तत्कालीन परिदृश्य बुना है जिसमें आधुनिकता के उन्मोचक प्रभावों से परम्परा का पुनर्संस्कार करने की प्रक्रिया चलती दिखाई देती है।
Main Borishailla
- Author Name:
Mahua Maji
- Book Type:

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Description:
बांग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमें साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ और फिर भाषायी तथा भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना।
समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अन्त:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है। यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति-संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके ज़बर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा उस दौर के लूट, हत्या, बलात्कार, आगजनी की दारुण दास्तान बयान करता है। उस दौरान मानवीय आधार पर भारतीय सेना द्वारा पहुँचाई गई मदद और मुक्तिवाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में बनाए गए प्रशिक्षण शिविरों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका का भी ज़िक्र इसमें है।
युवा लेखिका महुआ माजी का यह पहला उपन्यास है। लेकिन उन्होंने राष्ट्र-राज्य बनाम साम्प्रदायिक राष्ट्र की बहस को बहुत ही गम्भीरता से इसमें उठाया है और मुक्तिकथा को भाषायी राष्ट्रवाद की अवधारणा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है। ज़मीन से जुड़ी कथा-भाषा और स्थानीय प्रकृति तथा घटनाओं के जीवन्त चित्रण की विलक्षण शैली के कारण यह उपन्यास एक गम्भीर मसले को उठाने के बावजूद बेहद रोचक और पठनीय है।
Hariyal Ki Lakdi
- Author Name:
Ramnath Shivendra
- Book Type:

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Description:
इक्कीसवीं सदी के जगमग विकास के दौर की यह विडम्बना ही है कि जहाँ वैश्विक धरातल पर अमरीकी दादागीरी सर चढ़कर बोल रही है, वहीं भारतीय समाज की तलछट में रह रहे लोगों की ज़िन्दगी भ्रष्ट नौकरशाही और सरकारी प्रपंचों में फँसकर और भी दूभर होती जा रही है।
‘हरियल की लकड़ी’ तलछट में रह रहे ऐसे ही लोगों की कहानियाँ बयान करती हैं। उपन्यास की मुख्य पात्र बसमतिया जीवट और दृढ़ चरित्र की स्त्री है जिसका पति उसे छोड़कर कहीं चला गया और लौटकर नहीं आया। फिर भी ससुराल में वह उसका इन्तज़ार करती अपनी बूढ़ी सासू की देखभाल और मेहनत-मज़दूरी करती है। माता-पिता की समझदार सन्तान होने के कारण उसे पिता के सहयोग के लिए बार-बार मायके आना पड़ता है।
सामाजिक जीवन की विभिन्न छवियों, विद्रूपताओं, विडम्बनाओं को बारीकी से रेखांकित करनेवाली यह कृति प्रेम-घृणा, सुख-दु:ख, वासना और भ्रष्टाचार की अविकल कथा को प्रवहमान भाषा और शिल्प में प्रस्तुत करती है।
गाँव के उच्चवर्ग के लोगों व सरकारी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष करती बसमतिया जीवन की बीहड़ अनुभवों से गुज़रती है लेकिन झुकना या हार मानना उसने नहीं सीखा। इस क्रम में उसे कई लोगों से सहयोग भी मिलता है और ताने-उलाहने भी सुनने पड़ते हैं। क्या बसमतिया को न्याय मिला? क्या उसका पति लौटा? गाँव के विकास के लिए उसके संघर्ष का क्या हुआ?—इन सवालों की जिज्ञासाओं को लेखक ने उपन्यास में बेहद दिलचस्प विन्यास में प्रस्तुत किया है। एक महत्त्वपूर्ण एवं संग्रहणीय कृति।
Sant Ravidas Ratnawali
- Author Name:
Mamta Jha
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- Description: संत रविदास का जन्म वाराणसी के निकट मंडूर नामक गाँव में संवत् 1433 को माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है। उनके विभिन्न नाम हैं—रविदास, रैदास, रादास, रुद्रदास, सईदास, रयिदास, रोहीदास, रोहिदास, रूहदास, रमादास, रामदास, हरिदास। इनमें से रविदास तथा रैदास दो नाम तो ऐसे हैं, जो दोनों ही उनकी रचनाओं में उपलब्ध होते हैं। बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी। बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया। जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते। जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते। रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्त गुरु रामानंद से दीक्षा ली। उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया। वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे। उनकी भक्ति उच्च दर्जे की थी। वे कठौती में ही गंगाजी के दर्शन कर लिया करते थे। ‘संत रैदास की वाणी’ में 87 पद तथा 3 साखियों का संकलन ‘रैदास’ के नाम से हुआ है, जिनमें से लगभग सभी में ‘रैदास’ नाम की छाप भी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में संत रविदास के आध्यात्मिक जीवन, उनकी रचनाओं, उनके जप-तप और समाज-उद्धार के लिए किए गए कार्यों का सीधी-सरल भाषा में विवेचन किया गया है।
Antaral
- Author Name:
Mohan Rakesh
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Description:
कुछ सम्बन्ध ऐसे भी होते हैं जिन्हें कोई नाम नहीं दिया जा सकता। परन्तु ये नामहीन सम्बन्ध कई बार अन्य सम्बन्धों की अपेक्षा कहीं सूक्ष्म और गहरे होते हैं।
‘अन्तराल’ एक स्त्री और एक पुरुष के बीच के ऐसे ही सम्बन्ध की कहानी है। दोनों की पारस्परिक अपेक्षा शारीरिक और मानसिक अपेक्षाओं के रास्ते से गुज़रती हुई वास्तव में एक और ही अपेक्षा है—एक-दूसरे के होने मात्र से पूरी हो सकनेवाली अपेक्षा—हालाँकि इस वास्तविकता की पहचान स्वयं उन्हें भी नहीं है। दोनों के जीवन में दो रिक्त कोष्ठ हैं—श्यामा के जीवन में उसके पति का और कुमार के जीवन में एक दुबली पीली-सी लड़की का जिसके साथ कभी उसने घर बसाने की बात सोची थी। इन रिक्त कोष्ठों की माँग ही उन्हें इस सम्बन्ध की स्वाभाविकता को स्वीकार नहीं करने देती। वे एक-दूसरे के लिए जो कुछ हैं, उसके अतिरिक्त कुछ और हो सकने की व्याकुलता ही उनके बीच का अन्तराल है।
‘अन्तराल’ आज की भाषा में लिखी गई आज के मानव-सम्बन्धों की एक आन्तरिक कहानी है। पहली बार आज की संश्लिष्ट मन:स्थितियों को इतना अनायास शिल्प मिल सका है। इस दृष्टि से यह उपन्यास लेखक की अन्यतम उपलब्धियों में से है।
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