Qabze Zaman
Author:
Shamsurrahman FarooquiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
यह छोटा-सा उपन्यास उर्दू की क़िस्सागोई की बेहतरीन मिसाल है। इक्कीसवीं, सोलहवीं और अठारहवीं सदियों के अलग-अलग सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मिज़ाज तथा उनके अपने वक़्तों की बोली-बानी में रचा गया है। जो फ़ारूक़ी साहब इस फ़न के उस्ताद लेखकों में एक हैं। कहानी बयान करने पर उन्हें कमाल हासिल है। इस उपन्यास की मुख्य विषय-वस्तु यह क़िस्सा है कि दिल्ली का एक सिपाही जिसका घर जयपुर के किसी गाँव में था, अपनी लड़की की शादी के लिए रुपए-पैसे का बन्दोबस्त करके अपने घर को चला लेकिन रास्ते में उसे डाकुओं ने लूट लिया। ख़ाली हाथ जयपुर पहुँच उसने लोगों से सुना कि वहाँ एक दानी तवायफ़ रहती है जो मदद कर सकती है। सिपाही ने उससे तीन सौ रुपए का क़र्ज़ लिया और जाकर अपनी बेटी की शादी की। वापसी में वह क़र्ज़ लौटाने जब उसके पास गया तो पता चला कि तवायफ़ गुज़र चुकी है और पैसे वापस लेने को कोई वारिस भी नहीं है। यह सोचकर कि मृत आत्मा की क़ब्र पर फ़ातिहा पढ़ता चलूँ, जब पहुँचा तो देखा कि क़ब्र फटी हुई है और उसमें एक दरवाज़ा-सा कहीं जाता दिखाई दे रहा है। वह उसमें अन्दर गया तो वहाँ एक महल में उस तवायफ़ से मिला। उसने पैसे वापस करना चाहा तो यह कहकर कि यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है, तवायफ़ ने उसे महल से निकलवा दिया। महल के बाहर एक मैदान था, बाग़ थे। वह वहाँ पर कोई तीन घंटे घूमा और जब बाहर निकला तो देखा कि दुनिया में तीन सौ साल का अरसा बीत चुका है। यह उपन्यास उसके इन दोनों वक्तों की दुनियाओं की उनके अपने मिज़ाज में दिलचस्प अक्काशी करता है और क्योंकि यह सारा क़िस्सा बयान किया है इक्कीसवीं सदी के एक शख़्स ने तो हमारा यह वक़्त भी इसमें आ गया है। इस तरह इस छोटे से उपन्यास की काया में तीन बड़े ज़मानों को समेट दिया गया है... “मालूम होता है कि अल्लाह ताला अपने किसी शख़्स के लिए लम्बे ज़माने को भी मुख़्तसर कर देता है जबकि वह दूसरों के लिए तवील ही रहता है।’’
ISBN: 9789389598933
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘‘...विनायक की यह दुनिया चार्ल्स डिकेंस के पिप या ओलीवर या डेविड कॉपरफिल्ड के बचपन की दुनिया है—काल्पनिक, पर अनुभूत; आत्यन्तिक, पर विश्वसनीय—इन्द्रधनुषी मानवीय ऊष्मा लिये, वास्तविक यथार्थ से कहीं ज़्यादा यथार्थ, कहीं ज़्यादा संवेद्य। इस दुनिया के अन्न-जल से पला-पुसा विनायक वास्तविक जीवन-समर में प्रवेश करते ही जटिलता की चट्टान से टकराकर बिखरने लगता है...’’
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Description:
“...हमारी मित्रमंडली ने कई दिनों अपनी उस रसप्रिया सखी का मातम मनाया था, फिर वर्षों तक मुझे उसका कोई समाचार नहीं मिला।...” वही अनसूया अपनी दारुण जीवनी की पोटली लिए लेखिका से एक दिन टकरा गई। जिन पर उसने भरोसा किया, उन्हीं विषधरों ने उसे डसकर उसके जीवन को रतिविलाप की गूँज से कैसा भर दिया था।
‘‘ ‘अचानक ही वह पगली न जाने किस गाँव से अल्मोड़ा आ गई थी,’ उस पर...उन्माद भी विचित्र था, कभी झील-सा शीतल, कभी...अग्निज्वाला-सा उग्र...’’ उद्भ्रान्त किशनुली को कारवी का ममत्वमय स्पर्श पालतू और सौम्य बना ही चला था, कि अभागी अवैध सन्तान ‘करण’ को जन्म दे बैठी। सरल, ममत्वमयी कारवी और पगली किशनुली और उसके ‘ढाँट’ करण की अद्भुत गाथा कभी हँसाती है, तो कभी रुला देती है।
वस्त्र चयन ही नहीं पुस्तक चयन में भी बेजोड़ थी कृष्णवेणी। पर दूसरों का भविष्य देख सकने की उसकी दुर्लभ क्षमता ने अनजाने ही उसका भविष्य भी कहला डाला तो? एक मार्मिक प्रेमकथा?
“मोहब्बत में खरे सोने की खाँटी लीक मैं कहाँ तक अछूती रख पाई हूँ, यह बताना मेरा काम नहीं है...यदि फिर भी किसी को यह लगे वह अलाँ है या वह फलाँ है, तो मैं कहूँगी, यह विचित्र संयोग मात्र है...।”
सम्पन्न घर में जन्म लेकर भी परित्यक्त रहा डॉ. वैदेही बरवे का बेटा। अभिशप्त किन्नर बिरादरी के सदस्य बने परित्यक्त मोहब्बत की हृदय मथ देनेवाली कहानी।
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