Uska Bachpan
Author:
Krishna Baldev VaidPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 76
₹
95
Unavailable
‘उसका बचपन’ एक महत्त्वपूर्ण और असाधारण उपन्यास है और अपने शिल्प और शैली के आधार पर हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। इसमें एक संवेदनशील बच्चे के दृष्टिकोण से एक निर्धन परिवार के रोज़मर्रा के जीवन और जोखिम को अनेक दृश्य खंडों में उभारा गया है। इसका छोटा-सा संसार हमें विचलित भी करता है और एक गहरा आनन्द भी देता है।</p>
<p>यथार्थ से लबालब होते हुए भी यह उपन्यास यथार्थवादी उपन्यासों की कई पुरानी लकीरों के इधर-उधर होता हुआ आगे बढ़ता है। इसमें कोई एक कहानी नहीं, कोई बनावटी प्लाट नहीं। इसमें कृष्ण बलदेव वैद ने शब्दों का कहीं अपव्यय नहीं किया, न ही वे अतिभावुकता के शिकार हुए हैं। शिल्पगत आगाही और भाषागत ताज़गी के लिहाज़ से श्री वैद का यह पहला उपन्यास एक आदर्श प्रस्तुत करता है।</p>
<p>1957 में अपने प्रथम प्रकाशन के समय ‘उसका बचपन’ हिन्दी साहित्य की एक विशिष्ट घटना थी। इस संस्करण से उस घटना की याद ताज़ा हो जाएगी, ऐसी हमारी आशा है।
ISBN: 9788126721924
Pages: 148
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
कृषक जीवन की बुनियादी संरचना के तहत कृषि के निरन्तर उपेक्षित, अभावग्रस्त और परेशानीपूर्ण बनते जाने के कारणों का राईं-रक्स उजागर करता यह उपन्यास कृषक जीवन, कृषक समाज और कृषि समस्या का जीवन्त विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
खेत मज़दूरों को ही किसान मानकर उन पर आधारित रचनाओं से पृथक् एक मध्यवर्गीय किसान की त्रासद कथा के माध्यम से इस उपन्यास ने सही अर्थों में प्रतिनिधि कृषक चरित्र तथा कृषि जीवन से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं को न सिर्फ़ चिन्हित किया है, बल्कि उन्हें जानने-समझने और एक सही अंजाम तक पहुँचाने के लिए सार्थक ज़मीन भी मुहैया कराई है।
‘तेरा संगी कोई नहीं’ कृषक जीवन, कृषक समाज और कृषि से सम्बन्धित समस्याओँ की सूक्ष्मता, बेबाकी और ज़मीनी सार पर पड़ताल करनेवाला विलक्षण उपन्यास है।
Jenny Meharban Singh
- Author Name:
Krishna Sobti
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भारतीय मूल के प्रवासी मेहरबान सिंह और उनकी पत्नी लिज़ा की इकलौती सन्तान सुनहरी बालों वाली जैनी पूर्व और पश्चिम, देश और विदेश के दोरंगी सम्मिश्रण की अनोखी तस्वीर है। चुलबुली मनमौजी, समझदार और गम्भीर एक साथ।
‘जैनी मेहरबान सिंह’ ज़िन्दगी के रोमांस, उत्साह, उमंग और उजास की पटकथा है जिसे कृष्णा सोबती ने गुनगुनी सादगी से प्रस्तुत किया है।
वैन्कूवर से दूर पिछवाड़े से झाँकते हैं एक-दूसरे के वैरी दो गाँव पट्टीवाल और अट्टारीवाल। एक-दूसरे को तरेरते दो कुनबों के बीच पड़ी गहरी दरारें, जान लेनेवाली दुश्मनियाँ और मरने-मारने की क़समें! ऐसे में मेहरबान सिंह और साहिब कौर की अल्हड़ मुहब्बत कैसे परवान चढ़ती! मेहरबान सिंह ने अपनी मुहब्बत की ख़ातिर जान बख़्श देने की दोस्ती निभाई और गाँव को पीठ दे कनाडा जा बसे। नए मुल्क में नई ज़िन्दगी चल निकली। लिज़ा को ख़ूब तो प्यार दिया, जैनी को भरपूर लाड़-चाव, फिर भी दिल से लगी साहिब कौर की छवि मद्धम न पड़ी—इसके बाद की चलचित्री कहानी क्या मोड़ लेती है— पढ़कर देखिए ‘जैनी मेहरबान सिंह’।
Prasad Ke Sampurna Upanyas
- Author Name:
Jaishankar Prasad
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इस पुस्तक में छायावादी युग के महत्त्वपूर्ण कवि, कहानीकार, नाटककार और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद के तीनों उपन्यास—‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ संकलित किए गए हैं। भारतेन्दु के बाद जिन लोगों ने हिन्दी गद्य को एक परिपक्व रूप दिया उनमें प्रसाद की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
उनकी सांस्कृतिक अभिरुचि, यथार्थ को अपने ढंग से देखने का उनका तरीक़ा और उसे भाषा में अंकित करने का ढंग उन्हें एक अलग जगह देता है। ये उपन्यास भी इसके साक्षी हैं। उपन्यास ‘कंकाल’ और ‘तितली’ में उन्होंने तत्कालीन युग-बोध को एक भिन्न कोण से पकड़ा था। असहाय स्त्रियों के जीवन की चुनौतियों को दिखाने के लिए उन्होंने इन रचनाओं में यथार्थ के बाह्य रूपों को चित्रित करने के साथ-साथ व्यक्तिमन की आन्तरिक परतों को भी उद्घाटित किया। ‘तितली’ को कथा-शिल्प और वस्तु-विन्यास के दृष्टिकोण से प्रसाद का सर्वाधिक परिपक्व उपन्यास माना जाता है।
‘इरावती’ को वे पूरा नहीं कर सके थे। शुंगकालीन ऐतिहासिक विषय और बौद्धकालीन रूढ़ियों-विकृतियों के प्रति विद्रोह की जिस कथा-वस्तु को लेकर उन्होंने यह उपन्यास आरम्भ किया था, वह निश्चय ही एक बड़ी औपन्यासिक कृति के रूप में फलीभूत होता। यहाँ ‘इरावती’ के उपलब्ध स्वरूप को यथावत् संकलित किया गया है ताकि पाठक प्रसाद की उपन्यास-काल के मर्म को जान सकें।
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