Zindagi Kabhi Dhoop Kabhi Chaav
Author:
Rajeev PundirPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 212.5
₹
250
Available
साहित्य की बहुत सारी विधाएँ हैं जिनमें कहानी और कविता का प्रमुख स्थान है । जहां कहानी एक बाग़ की तरह है, वहीं कविता उस बाग़ में छटा बिखेरते रंग-बिरंगे फूलों की तरह है । साहित्यकार रूपी बाग़बान दोनों ही विधाओं में अपनी बात कहने की क्षमता रखते हैं और साहित्य को हराभरा और समृद्ध बनाते रहते हैं । प्रस्तुत है आपके सामने एक ऐसा ही बगीचा जिसमें ज़िंदगी के सभी रंग ज़िंदादिली से धड़कते हैं – ज़िंदगी: कभी धूप कभी छांव.
ISBN: 9788193650172
Pages: 200
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Chitralekha
- Author Name:
Bhagwaticharan Verma
- Rating:
- Book Type:

- Description: चित्रलेखा’ न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलानेवाला पहला उपन्यास है, बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है। ‘चित्रलेखा’ की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? —इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमशः सामन्त बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। इनके साथ रहते हुए श्वेतांक और विशालदेव नितान्त भिन्न जीवनानुभवों से गुज़रते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी है, "संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।
Do Upanyas
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

-
Description:
‘वह समय’—कृष्णा जी ने इस टुकड़े को यही नाम दिया था, जिसे ‘ज़िन्दगीनामा’ के दूसरे भाग का हिस्सा होना था। सम्बन्धों के सामाजिक तर्कों और नैतिक आग्रहों के ऊपर चलती दिलों की यह कहानी शाह जी और राबयाँ की है। शाह जी अपने आधे को पार कर चुके हैं और राबयाँ जवानी की सीढ़ियाँ चढ़ रही है—तुकें मिलाती है, कवित्त लिखती है, शाह जी उसके लिखे को दुरुस्त करते हैं, उसे पढ़ाते-सिखाते हैं। इसी में उम्र, मज़हब और परिवारों की हदों से ऊपर उठ दोनों कहीं जुड़ जाते हैं...और उस दिन जब कचहरी से लौटते हुए शाह जी बाढ़ में घिर जाते हैं, राबयाँ अपनी छत से उन्हें देखती है और उन्हें बचाने पानी में कूद जाती है...दोनों को ढूँढ़ लिया जाता है, लेकिन शाह जी फिर लौट नहीं पाते, चले ही जाते हैं, और राबयाँ उनके पीछे...यह कहानी इश्क़ की है, इश्क़ की रूहानियत की,...कृष्णा सोबती की क़लम ही इसकी पवित्रता को इतने सुच्चेपन से आँक सकती थी!
इस जिल्द में मौजूद दूसरी कृति का सम्बन्ध इस समय से है—आज की दिल्ली से। रियल एस्टेट के मगरमच्छों के हत्थे चढ़े एक युवक की यह कहानी पैसे के उथले दलदल में छपछपाते उस तबके के बारे में बताती है, जिसके लिए सबसे पहला और सबसे आख़िरी मूल्य पैसा ही है। यह भी कि गाँवो-क़स्बों से रोटी-रोजगार की तलाश में आए लोगों को यह दलदल कैसी सफ़ाई से अपनी गिरफ़्त में ले लेता है!
Gora
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

-
Description:
भारतीय मनीषा के आधुनिक महानायक रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ‘गोरा’ की रचना एक शताब्दी पहले की थी और यह उपन्यास भारतीय साहित्य की पिछली पूरी शताब्दी के भीतर मौजूद जीवन-रेखाओं के भीतरी परिदृश्य की सबसे प्रामाणिक पहचान बना रहा। वर्तमान विश्व के तेज़ी से घूमते चक्र में जब एक बार फिर सभी महाद्वीपों के समाज इस प्राचीन राष्ट्र की ज्ञान-गरिमा, चिन्तन-परम्परा तथा विवेक पर आधारित नव-सृजन-शक्ति की ओर आशा-भरी दृष्टि घुमा रहे हैं, तो ‘गोरा’ की ऊर्जस्वी चेतना की प्रासंगिकता नए सिरे से अपनी विश्वसनीयता अर्जित कर रही है।
आज हम भारतीय साहित्य की परिकल्पना को लेकर जिस आत्म-संघर्ष से गुज़र रहे हें, उसे रवीन्द्रनाथ के विचारों और उनके ‘गोरा’ के सहारे प्रत्यक्ष करने का प्रयास किया जा सकता है। ‘गोरा’ की भाषिक संरचना और इसकी सांस्कृतिक चेतना भारतीय साहित्य की अवधारणा के नितान्त अनुकूल हैं। इस उपन्यास में रवीन्द्रनाथ ने पश्चिम बंग की साधु बांग्ला, पूर्वी बांग्ला (वर्तमान बांग्लादेश) की बंगाल-भाषा, लोक में व्यवहृत बांग्ला के विविध रूपों, प्राचीन पारम्परीण शब्दों, सांस्कृतिक शब्दावली, नव-निर्मित शब्दावली आदि का समन्वय करके एक बहुत अर्थगर्भी कथा-भाषा का व्यवहार किया है। भौगोलिक शब्दावली के लोक प्रचलित रूप भी ‘गोरा’ की कथा-भाषा की सम्पत्ति हैं। इसी के साथ रवीन्द्रनाथ ने ‘गोरा’ में अपनी कविता और गीत पंक्तियों तथा बाउल गीतों व लोकगीतों की पंक्तियों का प्रयोग भी किया है। अनुवाद करते समय कथा-भाषा तथा प्रयोगों के इस वैशिष्ट्य को महत्त्व दिया गया है।
‘गोरा’ में कितने ही ऐसे विभिन्न कोटियों के शब्द और प्रयोग हैं, जिनके सांस्कृतिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और लोकजीवन के दैनिक प्रयोगों से जुड़े सन्दर्भों को जाने बिना ‘गोरा’ का मूल पाठ नहीं समझा जा सकता। अनुवाद में इनके प्रयोग के साथ ही पाद-टिप्पणियों में इनकी व्याख्या कर दी गई है।
अब तक देशी या विदेशी भाषाओं में ‘गोरा’ के जितने भी अनुवाद हुए हैं, उनमें से किसी में भी यह विशेषता मौजूद नहीं है।...और यह ‘गोरा’ का अब तक का सबसे प्रामाणिक अनुवाद है।
Shigaf
- Author Name:
Manisha Kulshreshtha
- Book Type:

- Description: विस्थापन का दर्द महज़ एक सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत से कट जाने का दर्द नहीं है, बल्कि अपनी खुली जड़ें लिए भटकने और कहीं जम न पाने की भीषण विवशता है, जिसे अपने निर्वासन के दौरान सैनसबेस्टियन (स्पेन) में रह रही अमिता, लगातार अपने ब्लॉग में लिखती रही है। डॉन किहोते की ‘रोड टू ला मांचा’ से कश्मीर वादी में लौटने की, अमिता की भटकावों तथा असमंजस-भरी इस यात्रा को अद्भुत तरीक़े से समेटता हुआ यह उपन्यास विस्थापन और आतंकवाद की कोई व्याख्या या समाधान नहीं प्रस्तुत करता, वरन् आस्था-अनास्था की बर्बर लड़ाइयों के बीच, कुचले जाने से रह गए कुछ जीवट पलों को जिलाता है और ज़मीन पर गिर पड़े उस दिशा संकेतक बोर्ड को उठाकर फिर-फिर गाड़ता है जिस पर लिखा है—भाई मेरे, अमन का एक रास्ता इधर से भी होकर गुज़रता है। शिगाफ़ यानी एक दरार जो कश्मीरियत की रूह में स्थायी तौर पर पड़ गई है, जिसमें से धर्मनिरपेक्षता एक हद तक रिस चुकी है, इस शिगाफ़ को भरने के लिए प्रयासरत है उपन्यास का पत्रकार नायक ज़मान। अमिता और ज़मान जिनका लक्ष्य तो एक है मगर फिर भी दो विपरीत व विषम अतीत से उपजे जीवन-मूल्यों को सहेजते हुए वे कई बार प्रक्रिया तथा प्रतिक्रिया से उलझते हुए आपस में टकराते रहते हैं। अमिता के ब्लॉग, यास्मीन की डायरी, मानव बम जुलेखा का मिथकीय कोलाज, अलगाववादी नेता वसीम के एकालाप के ज़रिए कश्मीर और कश्मीरियत की विदीर्ण व्यथा-कथा को अलग कोण, नए शैलीगत प्रयोगों तथा ताज़गी-भरी भाषा के साथ अपने उपन्यास ‘शिगाफ़’ में अनूठे ढंग से प्रस्तुत कर रही हैं—मनीषा कुलश्रेष्ठ।
Swasthaya Prashnottari
- Author Name:
Anil Agrawal
- Book Type:

- Description: आपके शरीर में यकृत (लिवर) क्या कार्य करता है? विटामिन आपके लिए क्यों आवश्यक हैं? मलेरिया से पीड़ित होने पर कौन सी दवा दी जानी चाहिए? क्या आप इन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं? यदि हों, तो आपको इस पुस्तक से मदद मिल सकती हे । एक सामान्य पाठक को ध्यान में रखकर लिखी गई यह पुस्तक आपको मानव शरीर, पौष्टिकता, रोग और उनके उपचार की संपूर्ण जानकारी देती है । इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् आपको मानव शरीर, स्वास्थ्य व रोगों के विषय में बहुत सी नई जानकारियाँ प्राप्त होंगी ।
Gaharaiyan Aur Oonchaiyan : Sahitya, Sanskriti Aur Sabhyata Ka Chintan
- Author Name:
Shyam Manohar
- Book Type:

-
Description:
"रजा पुस्तक माला की यह कोशिश है कि हिन्दीतर भारतीय भाषाओँ के लेखक क्या लिख-सोच रहे हैं, उसका महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक हिस्सा हिन्दी में प्रकाशित किया जाए। इसी प्रयत्न के अन्तर्गत मराठी लेखक-नाटककार के आलोचनात्मक लेखन के एक संचयन का हिन्दी-मराठी विद्वान निशिकान्त ठकार द्वारा किया गया अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। हमें उम्मीद है कि ऐसी सामग्री से हिन्दी के विचार और आलोचनात्मक चिन्तन का परिसर विस्तृत और समृद्ध होगा।"
–अशोक वाजपेयी
Tedhi Lakeer
- Author Name:
Ismat Chugtai
- Book Type:

-
Description:
इस्मत चुग़ताई का यह उपन्यास कई अर्थों में बहुत महत्त्व रखता है। पहला तो ये कि यह उपन्यास इस्मत के और सभी उपन्यासों में सबसे सशक्त है। दूसरे, इस्मत को क़रीब से जाननेवाले, इसे उनकी आपबीती भी मानते हैं। स्वयं इस्मत चुग़ताई ने भी इस बात को माना है। वह स्वयं लिखती हैं, ‘‘कुछ लोगों ने ये भी कहा कि ‘टेढ़ी लकीर’ मेरी आपबीती है—मुझे ख़ुद आपबीती लगती है। मैंने इस नाविल को लिखते वक़्त बहुत कुछ महसूस किया है। मैंने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है, इसके साथ आँसू बहाए हैं और क़हक़हे लगाए हैं। इसकी कमज़ोरियों से जल भी उठी हूँ। इसकी हिम्मत की दाद भी दी है। इसकी नादानियों पर रहम भी आया है, और शरारतों पर प्यार भी आया है। इसके इश्क़–मुहब्बत के कारनामों पर चटखारे भी लिए हैं, और हसरतों पर दु:ख भी हुआ है। ऐसी हालत में अगर मैं कहूँ कि मेरी आपबीती है तो कुछ ज़्यादा मुबालग़ा तो नहीं...’’
‘टेढ़ी लकीर’ एक किरदारी उपन्यास है जैसे ‘उमरावजान अदा’। ‘टेढ़ी लकीर’ की कहानी शम्मन के इर्द–गिर्द घूमती नज़र आती है। शम्मन को चूँकि अच्छा माहौल और अच्छी तरबीयत नहीं मिली, इसी वजह से उसके अन्दर इतना टेढ़ापन पैदा हो गया जहाँ उसकी नज़र में मुहब्बत मुहब्बत नहीं रही, रिश्ते रिश्ते नहीं रहे, जीवन जीवन नहीं रहा। सब कुछ मज़ाक़ बनकर रह गया। शम्मन के किरदार का विश्लेषण किया जाए तो वह मनोविकारों का गुलदस्ता नज़र आएगी। इस किरदार के बारे में इस्मत ने एक इंटरव्यू में कहा था ‘‘...ये नाविल जब मैंने लिखा तो बहुत बीमार थी, घर में पड़ी रहा करती थी। इस नाविल की हीरोइन ‘शम्मन’ क़रीब–क़रीब मैं ही हूँ। बहुत–सी बातें इसमें मेरी हैं। वैसे आठ–दस लड़कियों को मैंने इस किरदार में जमा किया है, और एक लड़की को ऊपर से डाल दिया है। जो मैं हूँ। इस नाविल के हिस्सों के बारे में मैं सिर्फ़ इतना बता सकती हूँ कि कौन–से हिस्से मेरे हैं और कौन–से दूसरों के !...’’
इस उपन्यास को इस्मत चुग़ताई ने उन यतीम बच्चों के नाम समर्पित किया है जिनके अभिभावक जीवित हैं। दरअसल यह व्यंग्य है उन माता–पिताओं पर जो बच्चे तो पैदा कर लेते हैं पर पालन–पोषण ठीक से नहीं करते। इन्हीं कारणों से यह उपन्यास उर्दू भाषा में जितना लोकप्रिय हुआ, उम्मीद है हिन्दी के पाठकों में भी लोकप्रिय होगा।
Lomharshini
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

-
Description:
प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान् कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी उपन्यासकार के नाते न केवल गुजराती, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य में समादृत हैं! कई खंडों में प्रकाशित विशाल औपन्यासिक रचना ‘कृष्णावतार’, ‘भगवान परशुराम’, ‘लोपामुद्रा’ जैसे वैदिक और पौराणिक काल का दिग्दर्शन करनेवाले उपन्यासों के क्रम में ‘लोमहर्षिणी’ उनकी एक और महत्त्वपूर्ण कथाकृति है।
लोमहर्षिणी राजा दिवोदास की पुत्री और परशुराम की बाल-सखी थीं, जो युवा होने पर उनकी पत्नी बनीं। भृगुकुलश्रेष्ठ परशुराम ने अत्याचारी सहस्रार्जुन के विरुद्ध व्यूह-रचना का जो लम्बा संघर्ष किया, उसमें लोमहर्षिणी की भूमिका भारतीय नारी के गौरवपूर्ण इतिहास का एक उज्ज्वलतर पृष्ठ है। साथ ही इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में ऋषि विश्वामित्र और मुनि वसिष्ठ के मतभेदों की कथा भी है। उनके यह मतभेद त्रित्सुओ के राजा सुदास के पुरोहित-पद को लेकर तो थे ही, इनके मूल में विश्वामित्र द्वारा आर्य और दस्युओं के भेद का विवेचन तथा वसिष्ठ द्वारा आर्यों की शुद्ध सनातन परम्परा का प्रतिनिधित्व करना भी था।
वस्तुतः लोमहर्षिणी में मुंशी जी ने नारी की तेजस्विता तथा तत्कालीन समाज, धर्म, संस्कृति और राजनीति के जटिल अन्तर्सम्बन्धों का प्राणवान उद्घाटन किया है।
Makaan
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

-
Description:
नारायण एक सितारवादक है। जीविका के लिए वह परिवार को दूसरी जगह छोड़कर अपने पुराने शहर में आता है और यहीं से मकान की तलाश शुरू होती है। इस दौरान उसका सितार से साथ छूटने लगता है; और अब वह जिनके साथ जुड़ता है, उनमें मकान बाँटनेवाला अफ़सर है, कर्मचारी-यूनियन का नेता बारीन हालदार है, पुरानी शिष्या श्यामा है, वेश्या-पुत्री सिम्मी है और वे तमाम तत्त्व हैं जो ज़िन्दगी के बिखराव को तीखा बनाते हैं। इस संघर्ष, शोषण और अव्यवस्था के दौर से गुज़रते हुए तीक्ष्ण प्रतिक्रियाएँ व्यक्त होती हैं : ‘मज़ाक़ देखा तुमने? हम आसमान में उपग्रह उड़ा सकते हैं पर इस निगम के सीवेज़ के लिए मशीनों का जुगाड़ नहीं कर सकते। यहाँ सीवेज़ की सफ़ाई के लिए तो बलि के बकरे चाहिए, पर बिस्कुट बनाने के लिए यहाँ नई से नई मशीनें मौजूद हैं...’
‘जैसे कुछ तांत्रिक लोग शराब पीने से पहले माँ काली के नाम पर दो-चार बूँदें ज़मीन पर छिड़क देते हैं; वैसे ही हाउसिंग की पूरी-की-पूरी स्कीम गटकने से पहले चतुर लोग हरिजनों के नाम पर दस-बीस प्लॉट निकाल देते हैं...’ उपन्यास का अन्त सर्वथा अप्रत्याशित मोड़ पर होता है।
‘मकान’ यशस्वी कथाकार श्रीलाल शुक्ल की बहुप्रशंसित कृति है। वस्तुत: संगीत की पृष्ठभूमि में कलाकार के जीवन की आकांक्षाओं, ज़िम्मेदारियों, विसंगतियों और तनावों को केन्द्र बनाकर लिखा गया हिन्दी में अपनी तरह का यह पहला उपन्यास है।
Mam Aranya
- Author Name:
Sudhakar Adeeb
- Book Type:

-
Description:
वीरवर लक्ष्मण अपने चारों ओर विस्तीर्ण एवं अभ्यन्तर में घुमड़ते-गूँजते अरण्य से जूझते चौदह वर्ष देश निकाला पाए अपने अग्रज श्रीराम के साथ विचरते रहे। रामकथा तो इस धरती के कण-कण और पत्ते-पत्ते पर लिखी गई तथा बहुश्रुत है। परन्तु त्यागमूर्ति लक्ष्मण अधिकतर मौन-से चित्रित किए गए हैं। कुछेक स्थलों पर जब वह अपने सम्पूर्ण तेज के साथ मुखर होते हैं, तो उन्हें उनके मर्यादाप्रिय अग्रज श्रीराम शान्त करा देते हैं। ऐसा अनेक रामायणों में होता आया है।
विचारणीय यह है कि क्या सौमित्र-लक्ष्मण सम्पूर्ण रामकथा में सदैव मौन ही रहे होंगे? क्या उनका अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं रहा होगा? इतना तेजस्वी, इतना कर्मठ और शौर्यवान् योद्धा भला क्या इतना चुपचाप रह सकता है? फिर रामानुज लक्ष्मण का स्वयं का चिन्तन क्या रहा होगा? ये प्रश्न वर्षों तक मेरे मन में आकार लेते रहे। समाधान इस ‘मम अरण्य’ के रूप में उपस्थित हुआ है।...
Eyes I Have Been Searching For
- Author Name:
Haseena T
- Book Type:

- Description: For avyukta falling in love was everything. She is vibrant that way, but she never knew where to find love until she met those eyes.
Laal Pasina
- Author Name:
Abhimanyu Anat
- Book Type:

-
Description:
मॉरिशस के यशस्वी कथाकार अभिमन्यु अनत का यह उपन्यास उनके लेखन में एक नए दौर की शुरुआत है। इस उपन्यास में वे देश और काल की सीमाओं में बँधी मानवीय पीड़ा को मुक्त करके साधारणीकरण की जिस उदात्त भूमि पर प्रतिष्ठित कर सके हैं, वह उनके रचनाकार की ही नहीं, समूचे हिन्दी कथा-साहित्य की एक उपलब्धि मानी जाएगी।
मॉरिशस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में उन भारतीय मज़दूरों के जीवन-संघर्षों की कहानी है, जिन्हें चालाक फ़्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवादी सोना मिलने के सब्जबाग दिखाकर मॉरिशस ले गए थे। वे भोले-भाले निरीह मज़दूर अपनी ज़रूरत की मामूली-सी चीज़ें लेकर अपने परिवारों के साथ वहाँ पहुँच गए। उन्होंने वहाँ की चट्टानों को तोड़कर समतल बनाया, और उनकी मेहनत से वह धरती रसीले और ठोस गन्ने के रूप में सचमुच सोना उगलने लगी। आज मॉरिशस की समृद्ध अर्थव्यवस्था का आधार गन्ने की यह खेती ही है। लेकिन जिन भारतीयों के खून और पसीने से वहाँ की चट्टानें उपजाऊ मिट्टी के रूप में परिवर्तित हुईं, उन्हें क्या मिला? यह उपन्यास मॉरिशस के इतिहास के उन्हीं पन्नों का उत्खनन है जिन पर भारतीय मज़दूरों का ख़ून छिटका हुआ है, और जिन्हें वक़्त की आग जला नहीं पाई। आज मॉरिशस एक सुखी-सम्पन्न मुल्क के रूप में देखा जाता है।
Chidiya Bahnon Ka Bhai
- Author Name:
Anand Harshul
- Book Type:

-
Description:
चिड़िया बहनों का भाई’ के जिस कथा-संसार में आप दाख़िल होने जा रहे हैं, वह आनन्द हर्षुल का रचा हुआ एक ‘अनिर्वचनीय’ ऐन्द्रिय लोक है। यह कथानायक भुलवा का घर-संसार है। इस दुनिया की प्रकृति में पशु, वनस्पति और मनुष्य का अनिवार्य मेल है। एक से दूसरे के अस्तित्व में आवाजाही इस दुनिया में ज़िन्दगी का सहज सामान्य दैनंदिन तरीक़ा है। नवजात बेटियाँ पैदा होते ही अपने कन्धों पर पंख उगाकर खिड़की से उड़ जाती हैं—आँखों में अथाह करुणा-भरे, अपनी माँ और घर को अपने जन्म के अतिशय दु:ख से बचाने के लिए। उनके इकलौते भाई भुलवा की पकड़ी हुई मछलियाँ स्वयं उड़कर उसके घर जा पहुँचती हैं, उनकी ठठरी नदी में फिंककर फिर ज़िन्दा मछलियों में तब्दील हो जाती हैं...और भी वे सारी घटनाएँ और चरित्र जिनकी चर्चा यहाँ अनावश्यक है, क्योंकि आगामी पृष्ठों में आप उनको स्वयं इस यथार्थ को रचते और उस यथार्थ से प्रसूत होते देखेंगे।
यह भाषा के मिथकीय स्वभाव में जन्म लेने और व्यक्त होनेवाली दुनिया है। संवेदनाओं का समग्र संश्लिष्ट बोध इस दुनिया की जीवन-प्रणाली है, जैसी कि वह आदिम मनुष्य की रही होगी। आनन्द हर्षुल ने वैसी ही संश्लिष्ट सघन भाषा रचकर उस दुर्लभ अनिर्वचनीय समग्रता को वचनीय बनाया है और निस्सन्देह, यह स्वयं किसी चमत्कार से कम नहीं।
आनन्द हर्षुल के हाथों में मिथकीय भाषा केवल दर्ज करने का उपकरण नहीं रह जाती। वह वस्तुत: आँख है, अनुभव को देखती और यथातथ्य भाव से उसकी उद्दामता को पकड़ती। यह तो अनुभव की उद्दामता है जो उसको यथातथ्य नहीं रहने देती। इस भाषा के हाथों में मिथक वह रूप ले लेता है जिसे कभी कोलरिज ने प्राथमिक कल्पना की तरह पहचाना था और उसे समस्त मानवीय बोध की जीवनी शक्ति और पुरोधा माना था जो सीमित आबद्ध चेतना में अनादि अनन्त 'अस्मि' की सृजनाकांक्षा की पुनरावृत्ति कही जा सकती है।
यह संस्कृति की सुसंस्कारित प्रकृति की विकासगाथा है जो विकृति के प्रतिपक्ष की तरह स्थापित हो जाती है। प्रकृति को लौटा लाने का निर्विकल्प आह्वान अब एकमात्र बच रहा विकल्प है। 'चिडिय़ा बहनों का भाई' में आनन्द हर्षुल इसी आह्वान को साकार उपस्थित करते दिखाई देते हैं।
—अर्चना वर्मा
Apavitra Aakhyan
- Author Name:
Abdul Bismillah
- Book Type:

- Description: अब्दुल बिस्मिल्लाह उन चन्द भारतीय लेखकों में से हैं, जिन्होंने देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को काफ़ी क़रीब से देखा है और उसे अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया है। समय की सबसे बड़ी विडम्बना है, मनुष्य का इनसान नहीं हो पाना। हम हिन्दू, मुसलमान तो हैं, लेकिन इनसान बनने की जद्दोजहद हमें बेचैन कर देती है। यह उपन्यास हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते की मिठास और खटास के साथ समय की तिक्ताओं और विरोधाभासों का भी सूक्ष्म चित्रण करता है। उपन्यास के नायक का सम्बन्ध ऐसी संस्कृति से है, जहाँ संस्कार और भाषा के बीच धर्म कोई दीवार खड़ा नहीं करता। लेकिन शहर का सभ्य समाज उसे बार-बार यह अहसास दिलाता है कि वह मुसलमान है। और इसलिए उसे हिन्दी और संस्कृत की जगह उर्दू या फ़ारसी की पढ़ाई करनी चाहिए थी। वहीं ऐसे पात्रों से भी उसका सामना होता है, जो अन्दर से कुछ तो बाहर से कुछ और होते हैं। उपन्यास की नायिका यूँ तो व्यवहार में नमाज़-रोज़े वाली है, लेकिन नौकरी के लिए किसी मुस्लिम नेता से हमबिस्तरी करने में उसे कोई हिचक भी नहीं होती। ‘अपवित्र आख्यान’ मौजूदा अर्थ केन्द्रित समाज और उसके सामने खड़े मुस्लिम समाज के अन्तर्वाह्य अवरोधों की कथा के बहाने देश-समाज की मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का भी गहन चित्रण करता है।
Smritipath
- Author Name:
Dhirendra Verma
- Book Type:

-
Description:
स्मृतिपथ
स्मृतिपथ धीरेन्द्र वर्मा का सातवाँ उपन्यास है। स्मृतिपथ इस अर्थ में एक उपन्यास है कि इसमें एक कहानी है, जो कल्पना पर आधारित है परन्तु यह एक कथा इस अर्थ में नहीं है कि यह कथाक्रम के पारम्परिक परिभाषा से पृथक् और भिन्न है। इसमें जीवन के आधारभूत मूल्यों का विश्लेषण किया गया है। स्मृतिपथ की कथा का किसी देश, काल या परिस्थिति से सीधा सम्बन्ध नहीं है और इसका परिदृश्य सार्वभौमिक है।
स्मृतिपथ एक कहानी न होकर एक धारणा है जो मनुष्य के जीवन से अपरिहार्य रूप से जुड़ी हुई है। इस सम्पूर्ण सृष्टि में जहाँ भी जीवन है, सभ्यता है, वहाँ के प्राणियों को एक सशक्त ‘स्मृति’ मिली है और एक ‘पथ’ मिला है जिस पर उन्हें चलना है, और बढ़ना है। अपनी जीवनयात्रा में हमें अपने स्वविवेक से अपना मार्ग चुनकर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ना होता है और इस जीवन यात्रा को हम अपनी स्मृति के कोश में संचित करते हुए अपने स्मृतिपथ पर अपने कर्मों को छायांकित करते जाते हैं जिससे हम अपने इस जीवन के भाग्य का और अपने पुनर्जन्म का निर्धारण करते हैं।
Jo Aman Mili To Kahan Mili
- Author Name:
Mohd. Aleem
- Book Type:

-
Description:
‘जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली’ उर्दू साहित्य में मो. अलीम का कथा-साहित्य ताज़ा हवा के झोंके की तरह है। संस्कृति पुरस्कार से अलंकृत इस उपन्यास की भी उर्दू पाठकों और विद्वानों में ख़ासी चर्चा है।
मो. अलीम के लेखन में यथार्थ को उभारनेवाली नई तरकीबों का इस्तेमाल है। उनकी भाषा में रवानी है और चीज़ों को एक नए कोण से देखने-परखने का सामर्थ्य भी।
‘जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली’ उपन्यास में बिहार के एक गाँव के लुहार परिवार की ख़स्ताहाल होती जा रही ज़िन्दगी का मर्मस्पर्शी चित्रण है। यह उपन्यास एक ऐसी तस्वीर की तरह है, जिसमें यथार्थ के विभिन्न रंग सोच-समझकर और संवेदना के साथ भरे गए हैं।
बदलती हुई सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियाँ, उन्हीं के बीच उभरनेवाले साम्प्रदायिक तनाव, और अन्य सामाजिक प्रश्न उपन्यास में इस तरह पिरोये गए हैं कि लेखक की मानवीय दृष्टि से हमारा बार-बार साक्षात्कार होता है और हम उसकी संवेदनशील निगाह से क़ायल हो जाते हैं।
Tabadala
- Author Name:
Vibhuti Narayan Rai
- Book Type:

-
Description:
बहुराष्ट्रीय निगमों की बढ़ती मौजूदगी और कॉरपोरेट दुनिया में कार्य-संस्कृति पर लगातार एक नैतिक मूल्य के रूप में ज़ोर दिए जाने के बावजूद भारतीय मध्यवर्ग की पहली पसन्द आज भी सरकारी नौकरी ही है, तो उसका सम्बन्ध, उस आनन्द से ही है जो ग़ैर-ज़िम्मेदारी, काहिली, अकुंठ स्वार्थ और भ्रष्टाचार से मिलता है; और हमारे स्वाधीन पचास सालों में सरकारी नौकरी इन सब ‘गुणों’ का पर्याय बनकर उभरी है। इन्हीं के चलते तबादला-उद्योग वजूद में आया तो आज दफ़्तरों से लेकर राजनेताओं के बँगलों तक, शायद बाक़ी कई उद्योगों से ज़्यादा, फल-फूल रहा है।
इस उद्योग की जिन बारीक डिटेल्स को हम बिना इसके भीतर उतरे, बिना इसका हिस्सेदार बने, नहीं जान सकते, उन्हीं को यह उपन्यास इतने तीखे और मारक व्यंग्य के साथ हमारे सामने रखता है कि हमें उस हताशा को लेकर नए सिरे से चिन्ता होने लगती है जो भारतीय नौकरशाही ने पिछले पचास सालों में आम जनता को दी है। इस उपन्यास का वाचक व्यंग्य के उस ठंडे कोने में जा पहुँचा है जहाँ ‘कोई उम्मीदबर नहीं आती’। उपन्यास पढ़कर हम सचमुच यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि अगर यह हताशा वास्तव में हमारे इतने भीतर तक उतर चुकी है तो फिर रास्ता है किधर!
Anandmath
- Author Name:
Bankim Chandra Chatterjee
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक ‘आनन्दमठ’ में 1770 ई. से 1774 ई. तक के बंगाल का चित्र खींचा गया है। यह उपन्यास या ऐतिहासिक उपन्यास से बढ़कर है। ऋषि बंकिम ने इसमें उस युग का सिर्फ़ फ़ोटो नहीं खींचा, बल्कि राष्ट्र-विप्लब के भँवर में फँसे कुछ ऐसे जीवन्त मनुष्यों के चित्र दिए हैं, जो आज भी हमें बड़े अपने लगते हैं। इनमें सामान्य स्त्री-पुरुष भी हैं और महापुरुष भी। वे आज भी हमें राष्ट्रोत्थान का मार्ग दिखाते हैं। यह मार्ग है संघर्ष का, अन्याय से लोहा लेने का। गीता की जो टेक है—युध्यस्व-युद्ध करो, वही टेक है ‘आनन्दमठ’ की। ‘भगवतगीता’ और ‘आनन्दमठ’, इन दोनों में पलायनवाद नहीं है। इसलिए हमारे स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान ‘गीता’ को जो महत्त्व मिला, उससे कम महत्त्व ‘आनन्दमठ’ को नहीं दिया गया। इसीलिए ‘आनन्दमठ’ के सन्तान-व्रतधारियों का गीत ‘वन्दे मातरम’ हमारा राष्ट्रगीत है।
Channa
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

-
Description:
कृष्णा जी का सबसे पहला उपन्यास है ‘चन्ना’ जिसे पिछली सदी के पाँचवें दशक में ही पाठकों तक पहुँच जाना था, लेकिन यह नहीं हो सका। प्रकाशक ने एक नए लेखक की भाषा में बदलाव करने की कोशिश की तो लेखक ने अपने पाठ के शील-सौन्दर्य की रक्षा हेतु उसे वापस ले लिया। तब से अब तक विभाजन-पूर्व भारत के खेतिहर समाज और उस परिवेश में जन्म लेकर पलती-बढ़ती-लड़ती चन्ना की यह गाथा लेखक के तहखाने में खामोशी से इन्तज़ार करती रही।
अब ‘चन्ना’ पाठकों के सामने है और अपनी चेतना के रूप-स्वरूप से आपको हैरान करने जा रही है। चन्ना का पारिवारिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य भारत के उस समय का है जब दुनिया के अग्रणी मुल्कों में भी स्त्री-स्वतंत्रता की बहुत सुगबुगाहट नहीं थी। लेकिन चन्ना ठीक उन्ही अर्थों में आधुनिक है जिन्हें हम आज जानते हैं। पैदाइश के वक़्त ही माँ की छाया से वंचित, पिता के स्नेह से दूर, नाना-नानी के प्यार-तले पली-बढ़ी चन्ना आज़ाद ख़याल है, शिक्षित है, और सबसे ज़्यादा ध्यान देने लायक़ यह कि अपने अधिकार को लेकर सजग है । और यह अधिकार उसके व्यक्तित्व की हदों तक सीमित नहीं, उन ज़मीनों और खेतों तक फैला है जिन्हें वह अपने पुरखों की ओर से मिला दायित्व भी मानती है।
कृष्णा सोबती कभी भी उन स्त्रीवादी लेखकों में नहीं रहीं जो हिन्दी में अक्सर फ़ैशन में रहे। उन्होंने स्त्रीत्व और पुरुषत्व को दो अलग खाने कभी नहीं माना। उनका ज़ोर व्यक्ति के उस आत्मबोध को जगाने पर रहा है जो किसी भी देह में प्रकट होकर प्रकाश देता है—वह देह स्त्री की हो या पुरुष की। ‘चन्ना’ इसी आत्मबोध का साकार रूप है जिसे कृष्णा जी ने आज से लगभग सात दशक पहले गढ़ा था। यह अपनी ज़मीन, अपनी विरासत से निकलती स्त्री है जिसे हम चन्ना की व्यक्ति-सत्ता में देखते हैं।
Yaron Ke Yaar
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

-
Description:
राजधानी का एक सरकारी दफ़्तर, उसकी आबो-हवा और वहाँ काम करनेवाले लोगों की रग-रग का हाल। वास्तविकता के एक-एक शेड को कम-से-कम शब्दों में पकड़कर सँजो देने में माहिर कृष्णा जी की भाषा इस कृति में भी अपने रचनात्मक शिखर पर है।
उनकी तमाम कृतियों की तरह यह उपन्यास भी उनकी इस धारणा की पैरवी करता है कि ‘किसी भी व्यक्ति के लिए, जिसकी मूल और आन्तरिक प्रेरणा सत्य है, केवल साहित्य ही एक ऐसा कवच है, जिसके भीतर वह अपनी अस्मिता को सुरक्षित रख सकता है।'
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...