Sookha Bargad
Author:
Manzoor EhteshamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
सुपरिचित कथाकार मंज़ूर एहतेशाम का यह महत्त्वपूर्ण उपन्यास वर्तमान भारतीय मुस्लिम समाज के अन्तर्विरोधों की गम्भीर, प्रामाणिक और मूल्यवान पड़ताल का नतीजा है और यही कारण है कि इस उपन्यास को हिन्दी की कालजयी रचनाओं में गिना जाता है।</p>
<p>सामाजिक विकास के जिन अत्यन्त संवेदनशील गतिरोधों पर क़लम उठाने और उन्हें छूने-भर का साहस भी बहुत कम लोग कर पाते हैं, उन्हें इस उपन्यास में न सिर्फ़ छुआ गया है, बल्कि सबसे बड़े ख़ुदा—इंसान की ज़रूरतों, आशा-आकांक्षाओं और अस्तित्व के सन्दर्भ में उनकी गहरी छानबीन की गई है। धर्म, जातीयता, क्षेत्रीयता, भाषा और साम्प्रदायिकता के जो सवाल आज़ादी के बाद हमारे समाज में यथार्थ के विभिन्न चेहरों में उभरे हैं, उनकी असहनीय आँच इस समूची कथाकृति में मौजूद है।</p>
<p>यही सारे सवाल आज भी हमारे आसपास एक ऐसे बरगद की झूलती जड़ें बनकर फैले हुए हैं, जिसके नीचे किसी भी कौम की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली असम्भव है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण है यह जानना कि इस त्रासदी के पीछे किसका हाथ है और इसका हल क्या है? कहना न होगा कि इस प्रश्न का उत्तर देते हैं वे तमाम लोग जो इस समाज में शोषित, पीड़ित, अपमानित और लांछित हैं, लेकिन आज भी टूटे नहीं हैं।
ISBN: 9788126717637
Pages: 228
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: 'रोकड़ जो मिली नहीं' वस्तुत: मनुष्य के भाग्य का इतिहास है। आज के युग में मनुष्य टेक्नोलॉजी के तर्क से पैसे को ही सब कुछ मानकर किस प्रकार के अनैतिक कार्य करता है और अन्तत: सुख उसे समृद्धि से नहीं मिलता है। इस उपन्यास में 'सोने के हार की चोरी' की खोज के माध्यम से मानव की कमज़ोरियों का रहस्य समझने का प्रयत्न किया गया है। ब्लैक प्रिंस का इतिहास पैसे के पीछे पागल लोगों का इतिहास है। जासूसी कथा शिल्प के माध्यम से रचनाकार ने कलकत्ता महानगर के काले पक्ष को उजागर करने का आश्चर्यजनक प्रयत्न किया है। कौतूहल मनोरंजन आदि तत्त्वों से युक्त होने के बावजूद यह ‘रहस्य रोमांच’ से भिन्न एक साहित्यिक रचना है, यही इसका रहस्य है। सुनीति मित्र, झगड़ू और ब्लैक प्रिंस तो सामाजिक व्यवस्था के उस पक्ष के परिणाम हैं जो रोटी के लिए पूँजी की भूख पैदा करता है। अपराधों के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण क्या हैं, यह पुस्तक पढ़कर समझा जा सकता है, क्योंकि अपराध इसमें स्वयं प्रतीक के रूप में प्रयुक्त है। वस्तुत: इन्हीं कारणों से पुस्तक रोचक और कौतूहलपरक ही नहीं, शैली की दृष्टि से भी आकर्षक है।
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