Woh Aadmi
Author:
Fazal TabishPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
उपन्यास ‘वो आदमी’ एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कालखंड का प्रामाणिक दस्तावेज़ है जिसमें भोपाल से सम्बन्धित कथाएँ और किंवदन्तियाँ बहुत ख़ूबी और बिना किसी दिखावे के, बचपन की यादों के साथ, ख़ासतौर पर पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की यादें, जो समय के साथ ख़ामोश बदलाव के पात्र भी हैं और साक्षी भी, बुनी गई हैं। सॉमरसेट मॉम का भावार्थ उधार लेकर कहें तो किसी क़ीमती ग़लीचे के रहस्यमय पैटर्न में बुनी गई हैं।</p>
<p>यह उपन्यास दरअसल एक प्लॉट-रहित गाथा है, जो कि शायद ज़िन्दगी की असलियत भी है। इसे पढ़ते एहसास होता है कि बढ़ना और बदलना एक-दूसरे के बिना सम्भव नहीं, और कुछ होने के लिए बहुत सारी कभी रह चुकी चीज़ों का खो जाना ज़रूरी है।</p>
<p>‘वो आदमी’ पाठक को एक ओर जहाँ नॉस्टेल्जिया से भरता है, वहीं दूसरी सतह पर उससे मुक्त होने को सचेत भी करता है। सबसे महत्त्वपूर्ण, यह बताता है कि दुनिया किधर से आ रही है और किस दिशा में बढ़ रही है, और पाठक को अपने भीतर झाँक सकने के साहस के साथ ज़िन्दगी में भागीदारी का न्योता देता है।
ISBN: 9788126711864
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘महाभारत’ विश्व-इतिहास का प्राचीनतम महाकाव्य है। होमर की ‘इलियड’ और ‘ओडीसी’ से कहीं ज़्यादा प्रवीणता के साथ परिकल्पित और शिप्लित यह रचनात्मक कल्पना की अद्भुत कृति है। ऋषि वेदव्यास द्वारा ईसा के प्रायः 2000 वर्ष पूर्व रचित इस महाकाव्य में लगभग समस्त मानवीय मनोभावों—प्रेम और घृणा, क्षमा और प्रतिशोध, सत्य और असत्य, ब्रह्मचर्य और सम्भोग, निष्ठा और विश्वासघात, उदारता और लिप्सा—की सूक्ष्म प्रस्तुति मिलती है।
यों तो ‘महाभारत’ भारतीय मानस में रचा-बसा ग्रन्थ है, पर इसने सम्पूर्ण विश्व के पाठकों को आकर्षित किया है। शायद इसीलिए इस महाकाव्य का रूपान्तर विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में हुआ है। परन्तु विस्मय होता है यह देखकर कि ज़्यादातर रूपान्तरों में इसकी क्षमता का प्रतिपादन एक काव्यात्मक सौन्दर्य और सुगन्ध से समृद्ध कथा के रूप में नहीं हो पाया है। सम्भवतः इसलिए कि लेखकों ने मूलतः इसके कहानी पक्ष को ही प्रधानता दी।...किन्तु इस पुस्तक के लेखक शिव के. कुमार ने इसी कारण इस महाकाव्य में कुछ रंग और सुगन्ध भरने का प्रयास किया है।
यह वस्तुतः ‘महाभारत’ का एक नवीन रूपान्तर है। ‘महाभारत’ एक अद्वितीय रचना है। यह काल और स्थान की सीमाओं से परे है। इसलिए हर युग में इसके साथ संवाद सम्भव है। वर्तमान युग में भी सामाजिक न्याय, राजनीतिक स्वार्थजनित राष्ट्र विभाजन, नारी सशक्तिकरण और राजनेताओं के आचरण के सन्दर्भों में इसका आर्थिक औचित्य है। अंग्रेज़ी से हिन्दी में इस कृति का अनुवाद करते हुए प्रभा के. सिंह ने हिन्दी भाषा की प्रकृति का विशेष ध्यान रखा है। समग्रतः एक अनूठी रचना।
Jism Jism Ke Log
- Author Name:
Shazi Zaman
- Book Type:

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Description:
“जब जिस्म सोचता, बोलता है तो जिस्म सुनता है।”
“आप तो बोलते भी हैं, सुनते भी हैं, लिखते भी हैं...”
“लिखता भी हूँ?” मैंने कहा।
एक कम्पन, एक हरकत-सी हुई तुम्हारे जिस्म में—जैसे मेरी बात का जवाब दिया हो।
“रूमानी शायर जिस्म पर भी जिस्म से लिखता है,’’ मैंने कहा।
“आप जिस्मानी शायर हैं!”‘जिस्म जिस्म के लोग’ बदलते हुए जिस्मों की आत्मकथा है। ‘जिस्म जिस्म के लोग’ में—और हर जिस्म में—बदलते वक़्त और बदलते ताल्लुक़ात का रिकॉर्ड दर्ज है।
“इतने वक़्त के बाद...,” तुमने मुझसे या शायद जिस्म ने जिस्म से कहा।
“कितने वक़्त के बाद?”
“जिस्म की लकीरों से वक़्त लिखा हुआ है।”
“दोनों जिस्मों पर वक़्त के दस्तख़त हैं,” मैंने कहा।
जिस्म पर वक़्त के दस्तख़त को मैंने उँगलियों से छुआ तो तुमने याद दिलाया—
“सूरज के उगने, न सूरज के ढलने से...
“वक़्त बदलता है जिस्मों के बदलने से।’”
दुनिया का हर इंसान अपना—या अपना-सा—जिस्म लिए घूम रहा है। उन्हीं जिस्मों को समझने, उन पर—या उनसे—लिखने और ‘जिस्म-वर्षों के गुज़रने की दास्तान है ‘जिस्म जिस्म के लोग’।
“बहुत जिस्म-वर्ष गुज़र गए...जिस्म जिस्म घूमते रहे!” मैंने कहा।
“तो दुनिया घूमकर इस जिस्म के पास क्यूँ आए?”
“जिस्मों जिस्मों होता आया”,
वक़्त के दस्तख़त पर मेरे हाथ रुक गए,
“अब ये जिस्म समझ में आया।”
Chand Achhoot Ank
- Author Name:
Nand Kishore Tiwari
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- Description: Chand Achhoot Ank
Peedhiyan
- Author Name:
Neel Padamnabhan
- Book Type:

-
Description:
तमिल साहित्य की पहली आंचलिक कृति के रूप में समादृत प्रस्तुत उपन्यास ‘पीढ़ियाँ’ (तमिल : तलैमुरैगळ) को मास्टर पीसेज़ ऑफ़ इंडियन लिटरेचर के यशस्वी सम्पादक डॉ. के.एम. जॉर्ज ने भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट कृति के रूप में स्थान दिया है।
तमिल के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘शिलप्पाधिकारम’ के रचयिता कवि इलंगो ने जिस श्रेष्ठि-कुल के सामान्य जन को काव्य के केन्द्र में रखा था, उसी कुल की एक शाखा कालान्तर में धुर दक्षिण की ओर संक्रमण कर गई और कन्याकुमारी ज़िले में इरणियल परिसर के सात गाँवों में बसकर एलूर चेट्टी कहलाई। आधुनिक तमिल साहित्य के जाने-माने हस्ताक्षर नील पद् मनाभन ने इसी चेट्टी-समुदाय के सम्पूर्ण जीवन को, वर्तमान युग में अपनी ही रूढ़ियों और अन्धविश्वासों के मकड़जाल में फँसकर अपनी अस्मिता बनाए रखने के लिए उसके द्वारा किए जा रहे जद्दोजहद को इस उपन्यास में उकेरा है। उपन्यास की ख़ासियत यह है कि एक समुदाय-विशेष के आस्था-विश्वास, जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत विविध संस्कार, रूढ़ियाँ, अन्धविश्वास और वर्जनाएँ, लोरी और शोकगीत सहित ग्राम्य गीत, कर्ण-परम्परा से चली आ रही दन्तकथाएँ आदि पात्रों की अपनी बोली में अविकल रूप से इसमें दर्ज हैं। इस कारण यह उपन्यास नृविज्ञानियों और समाज-भाषावैज्ञानिकों के लिए अमूल्य दस्तावेज़ का काम दे सकता है।
लगभग सत्तर साल की कालावधि में व्याप्त तीन पीढ़ियों के इतिवृत्त के केन्द्र में है दिरवी का परिवार, जो अपनी नेकनीयती और भोलेपन के कारण समाज के सबल वर्ग के स्वार्थपूर्ण हथकंडों का शिकार बनता है। अपनी बहन पर लगाए गए झूठे इल्जाम के ख़िलाफ़ यौवन की दहलीज़ पर क़दम रख रहे दिरवी को अकेले ही एक धर्मयुद्ध लड़ना पड़ता है और इस संघर्ष में वह कैसे कामयाब होता है, यही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है।
उपन्यास में यह भी दिखाया गया है कि अर्थहीन रूढ़ियों और परम्परागत विश्वासों की दुहाई देकर नारी को घर की चहारदीवारी के अन्दर बन्द रखने की मूढ़ता जिस समुदाय में प्रचलित हो, उसमें रातोंरात आमूल-चूल परिवर्तन लाना सम्भव नहीं है। अभी एक विशाल रणांगण में एक लम्बा युद्ध लड़ना शेष है। कल्पना की रंगीनी और अतिरंजनापूर्ण वर्णनों से सर्वथा अस्पृश्य होकर भी कोई कृति इतनी रोचक और मर्मस्पर्शी हो सकती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है नील पद् मनाभन की ‘पीढ़ियाँ’।
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