Samaychakra
Author:
Dhirendra VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Unavailable
संसार के सभी मनुष्यों का पूर्वजन्म और अगला जन्म होता है। पूर्वजन्म की यादें इसलिए भूल जाती हैं क्योंकि प्रत्येक जन्म स्वयं ही इतना विशद और विशाल होता है कि यदि हमें पिछला जन्म याद आ जाए तो इस जीवन का उत्तरदायित्व और भार वहन करना असम्भव हो जाएगा। इसका मतलब यह नहीं कि पूर्वजन्म हम एकदम से विस्मृत कर देते हैं। पूर्वजन्म की स्मृति हमारे अवचेतन में निरन्तर दबी रहती है जो कभी-कभी याद आ जाती है। हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह हमारे पिछले कर्मों के आधार पर हो रहा है और भविष्य में जो कुछ भी हमारे साथ होगा वह हमारे वर्तमान कर्मों के आधार पर होगा। अर्थात अतीत का जो वर्तमान से सम्बन्ध है वही सम्बन्ध वर्तमान का भविष्य से है। सारा संसार ही नहीं समस्त सृष्टि कार्य और कारण के सिद्धान्त के आधार पर चल रही है, जिसे हम कर्म और भाग्य का भी नाम दे सकते हैं। जो कुछ भी हम कर रहे हैं उसका परिणाम हमें भुगतना ही होगा। इसलिए हम यदि अपना भविष्य स्वर्णिम बनाना चाहते हैं तो हमें अच्छे से अच्छे कार्य करने होंगे।</p>
<p>समीर को नैनीताल के ‘जोशी लॉज़’ में एक अद्भुत अनुभव होता है। वहाँ पर समीर अपनी उम्र के पैंतीस वर्ष अतीत में पहुँच जाता है। उसकी भेंट सैम नामक युवक से होती है। सैम से उसे पता चलता है कि योग और मंत्र की साधना से उसने अपना अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों जान लिया है। अर्थात वह साधना की उस स्थिति में पहुँच गया है जहाँ मनुष्य अपना प्रारब्ध जान लेता है।</p>
<p>समीर को यह जीवन्त अनुभव जैसा लगता है परन्तु वास्तव में ऐसा नींद में हुआ। सैम से उसकी भेंट पूर्वजन्म से जुड़ी थी। ‘समयचक्र’ की परिक्रमा प्रत्येक मनुष्य करता है। समीर को यह अनुभव अपने जीवन में अनेक बार होता है। उसे विश्वास हो जाता है कि कर्म और भाग्यवाद का सम्बन्ध अवश्य ही पूर्वजन्म और पुनर्जन्म से है।
ISBN: 9789390971107
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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'मैं इंसानियत में बसता हूँ/लोग मुझे मज़हबों में ढूँढ़ते हैं।’
ज़िन्दगी को आसान कर देनेवाला ये फ़लसफ़ा ही 'मंगला से शयन तक’ का मुख्य आधार है जिसे डॉ. अचला नागर ने इतने रोचक अन्दाज़ में कह दिया कि उपन्यास कहीं भी बोझिल नहीं हो पाता।
इस उपन्यास में वर्तमान और देश के विभाजन उपरान्त के तो ट्रैक एक साथ कहानियाँ सुना रहे हैं। वर्तमान में शहर के जाने-माने और लोकप्रिय गायक-संगीतकार उस्ताद रमजान अली ख़ान जिन्हें सभी प्यार से नन्हें भाई कहते हैं, जो ख़ुद को मज़हबे-इन्सानियत का नुमाइन्दा बतलाते हैं, क्योंकि उन्हें जन्म दिया एक मुसलमान माँ ने, अपना दूध पिला के ज़िन्दा रखा एक सिख महिला प्रकाश कौर ने, और पाल-पोस कर संगीत के इस मुकाम तक पहुँचाया हिन्दू महिला पद्ममश्री तारा शर्मा ने, जो हालात की भंवर में डूबते उतराते एक ख्यातिप्राप्त गायिका बन गई थी । अपने कथ्य और प्रभाव में बेहद महत्त्वपूर्ण उपन्यास।
Snowflakes of Love
- Author Name:
Milan Modi +1
- Book Type:

- Description: Tender is the winter night, a walk in the Moonlight; they fell from the sky all shimmery and glittery, they fell for each other slowly yet suddenly; the warmth of love melts the heart, and just like a snowflake, love's a piece of art. Every snowflake has a unique charm. Don't you think every love story has to? Read "snowflakes of love", A collection of 13 short stories and six poems to fall in love, differently, all over again.
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- Author Name:
Rahi Masoom Raza
- Book Type:

-
Description:
“अली अमजद से मिलाया था न मैंने तुमको?”
“वह राइटर?”
“हाँ!”
“हाँ-हाँ यार, याद आ गया। बड़ा मज़ेदार आदमी है।”
“उसी का तो चक्कर है।” हरीश ने कहा, “आज ही प्रीमियर है। और वह मर गया। समझ में नहीं आता क्या करूँ?”
“मर कैसे गया?”
“पता नहीं। मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।”
आईने में उसने अपने चेहरे को उदास बनाकर देखा। उसे अपना उदास चेहरा अच्छा नहीं लगा। उसने आँखों को और उदास कर लिया...
अली अमजद मरा नहीं, क़त्ल किया गया है। और उसे क़त्ल किया है इस जालिम समाज, बेमुरव्वत हालात और इस बेदर्द फ़िल्म इंडस्ट्री ने...
उसने गरदन झटक दी। बयान का यह स्टाइल उसे अच्छा नहीं लगा।
मेरा दोस्त अली अमजद एक आदमी की तरह जिया और किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह बिला वज़ह ख़त्म हो गया।...
दाढ़ी बनाते-बनाते उसने अपना बयान तैयार कर लिया। और इसलिए जब वह अली अमजद के फ़्लैट में दाख़िल हुआ तो वह बिलकुल परेशान नहीं था।
हिन्दी फ़िल्म उद्योग की चमचमाती दुनिया की कुछ स्याह और उदास छवियों को बेपर्दा करता उपन्यास।
Bhaya Kabeer Udas
- Author Name:
Usha Priyamvada
- Book Type:

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Description:
शरीर की पूर्णता-अपूर्णता का प्रश्न किसी-न-किसी स्तर पर मन और जीवन की पूर्णता के प्रश्न से भी जुड़ जाता है। यह उपन्यास शुरू से लेकर आख़िर तक इसी सवाल से जूझता है कि क्या सौन्दर्य के प्रचलित मानदंडों और समाज की रूढ़ दृष्टि के अनुसार एक अधूरे शरीर को उन सब इच्छाओं को पालने का अधिकार है जो स्वस्थ और सम्पूर्ण देहवाले व्यक्तियों के लिए स्वाभाविक होती है। उपन्यास की नायिका विदेशी भूमि पर अपना सहज और अल्पाकांक्षी जीवन जी रही होती है कि अचानक उसे मालूम होता है, उसे स्तन-कैंसर है और यह बीमारी अन्तत: उसके शरीर से उसके सबसे प्रिय अंग को छीन ले जाती है। लेकिन मन! तमाम चोटों के बावजूद मन कब अधूरा होता है, वह फिर-फिर पूरा होकर मनुष्य से, जीवन से अपना हिस्सा माँगता है, अपना सुख।
उषा प्रियम्वदा बारीक और सुथरे मनोभावों की कथाकार रही हैं, उनके पात्र न कभी ऊँचा बोलते हैं, न कभी बहुत शोर मचाते हैं, फिर भी ज़िन्दगी और अनुभूति की उन गलियों को आलोकित कर जाते हैं, जहाँ से गुज़रना हर किसी के लिए उद्घाटनकारी होता है।
यह उपन्यास भी इसी अर्थ में महत्त्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने बहुत नई-सी दिखनेवाली कथाभूमि पर, बहुत सहज ढंग से मानव-मन की चिरन्तन लालसाओं, कामनाओं, निराशाओं और उदासियों का अत्यन्त कुशल और समग्र अंकन किया है।
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