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Author:
Rahi Masoom RazaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
“अली अमजद से मिलाया था न मैंने तुमको?”</p>
<p>“वह राइटर?”</p>
<p>“हाँ!”</p>
<p>“हाँ-हाँ यार, याद आ गया। बड़ा मज़ेदार आदमी है।”</p>
<p>“उसी का तो चक्कर है।” हरीश ने कहा, “आज ही प्रीमियर है। और वह मर गया। समझ में नहीं आता क्या करूँ?”</p>
<p>“मर कैसे गया?”</p>
<p>“पता नहीं। मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।”</p>
<p>आईने में उसने अपने चेहरे को उदास बनाकर देखा। उसे अपना उदास चेहरा अच्छा नहीं लगा। उसने आँखों को और उदास कर लिया...</p>
<p>अली अमजद मरा नहीं, क़त्ल किया गया है। और उसे क़त्ल किया है इस जालिम समाज, बेमुरव्वत हालात और इस बेदर्द फ़िल्म इंडस्ट्री ने...</p>
<p>उसने गरदन झटक दी। बयान का यह स्टाइल उसे अच्छा नहीं लगा।</p>
<p>मेरा दोस्त अली अमजद एक आदमी की तरह जिया और किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह बिला वज़ह ख़त्म हो गया।...</p>
<p>दाढ़ी बनाते-बनाते उसने अपना बयान तैयार कर लिया। और इसलिए जब वह अली अमजद के फ़्लैट में दाख़िल हुआ तो वह बिलकुल परेशान नहीं था।</p>
<p>हिन्दी फ़िल्म उद्योग की चमचमाती दुनिया की कुछ स्याह और उदास छवियों को बेपर्दा करता उपन्यास।
ISBN: 9788126709885
Pages: 130
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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