Samar Gatha
Author:
Howard FastPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789348229137
Pages: 274
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सिद्ध कथाशिल्पी बिमल मित्र की जादूगर लेखनी ने इस कथा द्वारा यह सत्य उद्घाटित किया है कि मानव-चरित्र कभी नहीं बदलता। दो सौ वर्ष पूर्व जो लोग थे, वे दूसरे नामों से आज भी वर्तमान हैं और यह भी सत्य मूर्त हो उठा है कि देश के कर्णधारों के कारण ही देश का पतन नहीं होता, बल्कि जनसाधारण का सामूहिक चरित्र-दोष के कारण होता है।
बिमल मित्र के इस ऐतिहासिक उपन्यास की नायिका बेगम मेरी विश्वास थी एक साधारण हिन्दू रमणी। सिराजुद्दौला के विलास-व्यसन की माँग पूरी करने के लिए जिन परिस्थितियों के बीच उसका जीवन व्यतीत हुआ, उसी आधार पर यह अनूठी कहानी लिखी गई है। सिराजुद्दौला के जीवन की कुछेक प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में मेरी विश्वास तथा और भी कुछेक नर-नारियों की विचित्र जीवन-कथा इस उपन्यास की उपजीव्य है। सिराजुद्दौला के व्यर्थ जीवन के विषादमय चित्र, उसके दुश्चरित्र सहयोगी, नवाब अलीवर्दी की बेगम सिराजुद्दौला की नानी तथा और अनेकानेक पार्श्व-चरित्रों के समावेश एवं 'चेहल-सुतून' की अन्दरूनी ज़िन्दगी के चित्र द्वारा अठारहवीं शताब्दी के मध्य के बंगाल की जीवन-यात्रा की एक अपूर्व छवि फूट पड़ी है। मेरी विश्वास के असाधारण व्यक्तित्व ने इस चित्र को महिमामंडित किया है।
इस उपन्यास में इतिहास के साथ कल्पना का विरोध नहीं, समन्वय घटित हुआ है।
‘बेगम मेरी विश्वास’ में मराली विश्वास गाँव-देहात की एक ग़रीब लड़की है लेकिन कालचक्र के प्रभाव से भारत के इतिहास को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाती है। घटना-चक्र से यही मराली विश्वास सिराजुद्दौला के हरम में पहुँचकर मरियम बेगम हो जाती है और बाद में क्लाइव के पास पहुँचकर बन पाती है मेरी। हिन्दू, मुसलमान और ईसाई—तीन विभिन्न धर्मों के संगम की प्रतीक बन जाती है एक मामूली-सी लड़की।
दो इतिहास पुरुष—सिराजुद्दौला और क्लाइव के बीच थी एक नायिका—मराली यानी बेगम मेरी विश्वास, दोनों शत्रुओं का समान रूप से विश्वास जीतनेवाली।
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अशरफ़ शाद पेशे से पत्रकार हैं और दिल से शायर। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी इन दोनों ख़ूबियों का भरपूर इस्तेमाल किया है। अपनी ज़मीनों से उखड़े, पराए मुल्कों में भटकते बेवतनों के आर्थिक-सामाजिक हालात का जायज़ा अगर उनका पत्रकार, बिलकुल एक शोधार्थी की तरह लेता है, तो उन लोगों के भीतर घुमड़ते दुःख को ज़बान उनका शायर देता है। तथ्यात्मक विवरणों की निर्वैयक्तिकता और इन विवरणों में गुँथे पात्रों के साथ लेखक की गहन संलग्नता के चलते ही वह तनाव जन्म लेता है जो दर्जनों कथाओं-उपकथाओं में फैली इस गाथा को अद्भुत ढंग से पठनीय बनाता है।
निस्सन्देह इसमें अशरफ़ शाद के ‘कहानीपन’ की भी भूमिका है जिसके लिए आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उन्हें एक ख़ास जगह हासिल है। अपने तमाम सरोकारों, चिन्ताओं और विस्तृत कथा-फलक के बावजूद ‘बेवतन’ का कहानीपन कहीं किसी झोल का शिकार नहीं होता।
‘बेवतन’ की चिन्ता के दायरे में वे लोग हैं जो बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में अपने घरों और मुल्कों को छोड़कर परदेसी हो जाते हैं और पूरी ज़िन्दगी अपनी ‘सम्पूर्ण’ पहचान के लिए अपने आपसे और हालात से जद्दोजहद करते रहते हैं।
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