Rajasthan Ki Lokkathayen
Author:
Dr. Mahendra BhanawatPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
राजस्थान में कहानी को ‘वात’ नाम से भी जाना जाता है। वात के साथ ‘ख्यात’ नाम भी प्रचलन में है। कुछ जातियों का काम ही कहानियाँ सुनाना रहा। इन्हें बड़वाजी, रावजी अथवा बारैठजी कहते हैं, जो कहानियाँ सुनाने की एवज में यजमानों से मेहनताना स्वरूप नेग प्राप्त करते।
कहानी का मजा पढ़ने में नहीं, उसके सुनने तथा सुनाने में है। सुनाई जानेवाली कहानियाँ ही अधिक रसमय लगती हैं। राजस्थान में कहानी-कथन की चार शैलियों में कथा-कथन, कथा-वाचन, कथा-गायन तथा कथा-नर्तन जैसी शैलियाँ प्रमुख रही हैं। कहानी चाहे कोई कहता हो, उसका हुंकारा अवश्य दिया जाता है। सुनने वालों में से किसी के द्वारा हुंकारा ‘हूँ’ कहकर दिया जाता है। हुंकारा देनेवाले को ‘हुंकारची’ कहते हैं। हुंकारा कहानी में जान लाता है और उसकी कथन-रफ्तार को बनाए रखता है।
अत्यंत अजीबोगरीब तथा मीठी-मजेदार लगनेवाली ये लोककथाएँ निराश जीवन में आशा का संचार करती हैं तो कर्मशील बने रहने का जागरण देती हैं। ज्ञान का भंडार भरती हैं तो कल्पनाओं के कल्पतरु बन हमारी उत्सुकता और जिज्ञासा को शंखनाद देकर सवाया बनाती हैं।
इन लोककथाओं में हास्य है तो विनोद भी; व्यंग्य है तो रुदन भी; जोश है तो उत्साह भी; सीख है तो उपदेश भी; कर्तव्य के प्रति समर्पण है तो मर-मिटने का जज्बा भी। इनके माध्यम से बच्चे अपनी स्मरणशक्ति, कल्पनाशक्ति और विचारशक्ति का संचयन करते हैं। शुद्ध सात्त्विक एवं शुचितापूर्वक जीवन-निर्वाह के लिए आध्यात्मिक अनुशासन एवं अंतर्मन में उजास भरते हैं।
ISBN: 9789355210524
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: "वर्तमान में विद्यालयों में अनुशासनहीनता एवं हिंसक व्यवहार की घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं। अतः अगर हम अपनी शिक्षा को मूल्य-आधारित और संस्कार-आधारित बना पाएँ तो हम इस प्रकार की सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षण के मानवतावादी पहलुओं पर जोर देते हुए भारत ने अपनी नई शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा का तात्पर्य अध्यापकों, किताबों से प्राप्त जानकारी और सूचनाओं का संप्रेषण मात्र नहीं है। उन मूल्यों, योग्यताओं और प्रवृत्तियों को विकसित करना भी है, जो शांतिपूर्ण, न्यायोचित, समावेशी और टिकाऊ समाज के निर्माण के लिए विश्व समुदाय को एकत्र एवं प्रेरित कर विश्व-कल्याण में योगदान देने के लिए संकल्पबद्ध कर सकें। भारतीय ज्ञान-परंपरा में मूल्यपरक शिक्षा का बड़ा महत्त्व है। मूल्य-आधारित शिक्षा का अर्थ छात्रों को नैतिक मूल्यों, धैर्य, ईमानदारी, प्रेम, सद्भावना, दया, करुणा, मानवता, इत्यादि सार्वभौमिक मूल्यों को सिखाना है। मूल्य शिक्षा का संपूर्ण उद्देश्य विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में निहित है। मूल्य-आधारित शिक्षा से न केवल मानवीय गुणों का विकास होगा, बल्कि हम अपनी नागरिकता के प्रति जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से समझ पाएँगे। नैतिकता पर आधारित शिक्षा हो तो उसमें मूल्य अपने आप आ जाएँगे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी हम मानवतावादी मूल्यों का समावेश करने हेतु कटिबद्ध हैं, जिससे कि भविष्य का भारत एक सुखी, संपन्न व मानव मात्र के लिए कल्याणकारी जीवन की अवधारणा के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अग्रसर हो तथा संपूर्ण विश्व में शांति, प्रेम व भाईचारे की स्थापना हेतु हम ध्वजवाहक बन सकें। "
Billesur Bakariha
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

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Description:
निराला के शब्दों में ‘हास्य लिये एक स्केच’ कहा गया यह उपन्यास अपनी यथार्थवादी विषयवस्तु और प्रगतिशील जीवनदृष्टि के लिए बहुचर्चित है। बिल्लेसुर एक ग़रीब ब्राह्मण है, लेकिन ब्राह्मणों के रूढ़िवाद से पूरी तरह मुक्त। ग़रीबी से उबार के लिए वह शहर जाता है और लौटने पर बकरियाँ पाल लेता है। इसके लिए वह बिरादरी की रुष्टता और प्रायश्चित्त के लिए डाले जा रहे दबाव की परवाह नहीं करता। अपने दम पर शादी भी कर लेता है।
वह जानता है कि ज़ात-पाँत इस समाज में महज़ एक ढकोसला है जो आर्थिक वैषम्य के चलते चल रहा है। यही कारण है कि ‘पैसेवाला’ होते ही बिल्लेसुर का जाति-बहिष्कार समाप्त हो जाता है। संक्षेप में यह उपन्यास बदलते आर्थिक सम्बन्धों में सामन्ती जड़वाद की धूर्तता, पराजय और बेबसी की कहानी है।
Dus Baras Ka Bhanwar
- Author Name:
Ravindra Verma
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बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) और गुजरात नरसंहार (2002) के बीच फैले दस वर्ष हमारे समकालीन इतिहास का ऐसा समय रचते हैं, जिसकी प्रतिध्वनियाँ देर और दूर तक जाएँगी। इस दशक में केवल साम्प्रदायिकता ही परवान नहीं चढ़ी, बल्कि नव-उदारवाद ने भी हमारे समाज में जड़ें पकड़ीं—जैसे दोनों सगी बहनें हों। उपभोक्तावाद मूल्य बना। सामाजिक सरोकार तिरोहित होने लगे। यह उपन्यास इसी आरोह-अवरोह को एक परिवार की कहानी द्वारा पकड़ने की कोशिश है, जिसके केन्द्र में रतन का तथाकथित ‘शिज़ोफ्रिनिया’ है और उसका सामना करते बाँके बिहारी
हैं। रतन के भाइयों की संवेदनहीनता जाने-अनजाने एक चक्रव्यूह की रचना करती है, जिससे बाँके बिहारी अपने छोटे बेटे को निकालते हैं। रतन अपने उन्माद में अपनी प्रेमिका का बलात्कार करता है। पत्रकार बाँके बिहारी के लिए यह ‘गुजरात’ का रूपक बन जाता है। इन्हीं कथा-सूत्रों के इर्द-गिर्द लेखकीय चिन्ताएँ बिखरी हैं, जो समकालीनता का अतिक्रमण करती हुई मनुष्य की नियति की पड़ताल करती हैं। यह प्रकृतिवाद से परहेज़ करती हुई क़िस्सागोई है, जो नए यथार्थ के मुहावरे को रचने का प्रयास करती है। उपन्यास में समय और शिल्प का लचीलापन इसी मुहावरे की तलाश है।
Kusum Kumari
- Author Name:
Devakinandan Khatri
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Description:
‘चन्द्रकान्ता’ और ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’—जैसी महान उपन्यासमाला के सुविख्यात रचनाकार देवकीनन्दन खत्री का एक और महत्त्वपूर्ण उपन्यास, जिसमें उन्होंने रहस्य-रोमांच से भरपूर अपनी सुपरिचित शैली में कुसुमकुमारी और रनबीरसिंह के प्रेम, विरह और मिलन की मुग्धकारी कथा को जीवन्त किया है। कुसुम और रनबीर दो राज्यों के वारिस हैं, जिनके पिता भी परस्पर मित्रता के सूत्र में बँधे थे और जिन्होंने कुसुम-रनबीर को बचपन में ही विवाह-सूत्र में बाँध दिया था। लेकिन बाद में एक प्रबल शत्रु द्वारा धोखे से उन दोनों के पिताओं को बन्दी बना लिया गया और उसी के द्वारा कुसुम और रनबीरसिंह को भी न मिलने देने के अनेक धूर्ततापूर्ण षड्यंत्र किए गए, जिन्हें अन्तत: कुसुमकुमारी ने ही अपनी बुद्धिमत्ता से विफल कर दिया। खत्री जी ने इस कथा को जिस विस्तार और रहस्यात्मक तरीक़े से बुना है, वह पाठक को आख़िर तक बाँधे रहता है।
निश्चय ही खत्री जी के उपन्यासों का आज ऐतिहासिक महत्त्व है, और यह कृति उनकी उपन्यास कला के विभिन्न स्तरों को रेखांकित करती है।
Shahanshah Akbar : Ek Anmol Virasat
- Author Name:
Pradeep Garg
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यह उस शख़्स की कहानी है जिसके बारे में छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने पत्र में मुग़ल बादशाह औरंगजेब को लिखा था : साम्राज्य का वह शिल्पकार जिसने सभी धर्मों के लिए सद्भाव की सुलह-कुल नीति अपनाई; उसके उदारचेता हृदय की चाहत थी सभी लोगों का पोषण करना व उन्हें सुरक्षा देना। लिहाजा वह जगत गुरु के नाम से मशहूर हुआ।
जिस शख़्स के बारे में मुंशी प्रेमचन्द ने लिखा : यह उसके प्रयासों का ही का सुफल था कि हिन्दू-मुसलमान कई शताब्दियों तक बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहे।
जिस शख़्स का ज़िक्र करते हुए महापंडित राहुल सांकृत्यायन यह दावा करते हैं : अशोक और गांधी के बीच में उनकी जोड़ी का एक ही पुरुष हमारे देश में पैदा हुआ—वह अकबर था।
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