Tatvamasi
Author:
Dhruv BhattPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
‘तत्त्वमसि’ उपन्यास एक ऐसे नायक की कथा है जो सहसा और सहज ही अपने आपको खोजने की एक प्रक्रिया में ख़ुद को पाता है। लेकिन यह ‘आत्मान्वेषण’ ज़िम्मेदारियों से दूर एकान्त में नहीं, बल्कि संघर्ष करते मनुष्यों के बीच प्रकृति के मध्य घटित होता है। मनुष्य को संसाधन माननेवाला यह नायक मनुष्य से ‘मानव’ के रूप में साक्षात्कार करता है। पश्चिम के प्रभावों एवं संस्कारों में लिपटा यह नायक इसी प्रक्रिया में अपने भीतर वर्षों की सोई संस्कृति की जड़ों को अंकुरित होते हुए देखता, अनुभव करता है। इस ‘आत्मान्वेषण’ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नायक इस बात से अनभिज्ञ है कि वह ‘आत्मान्वेषण’ की प्रक्रिया में है। विरोध से आरम्भ हुई उसकी यात्रा स्वीकृति में निःशेष होती है।</p>
<p>नर्मदा की भौगोलिक, सांस्कृतिक और जीवन्त उपस्थिति इस उपन्यास की विशिष्टता है।</p>
<p>यथार्थ, फंतासी और कल्पना एक-दूसरे में ऐसे घुल-मिल गए हैं कि यह उपन्यास पढ़ना अपने आपमें एक विशिष्ट अनुभव की प्रतीति कराता है।</p>
<p>जंगल की आग, जंगल की बारिश, जंगल की चुप्पी, जंगल का शोर, जंगल के दिन, जंगल की रातें, जंगलों में रहते आदिवासी, उनकी संस्कृति और परम्पराएँ—सभी कुछ बड़े कौशल के साथ इस उपन्यास में बुना गया है। इसी अर्थ में यह एक भारतीय उपन्यास है।
ISBN: 9788126708055
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
सुपरिचित युवा कवि और पत्रकार सुन्दर चन्द ठाकुर का यह पहला उपन्यास ‘पत्थर पर दूब’ ऊपरी तौर पर पहाड़ की सुन्दरता और निश्छलता से निकलकर मैदानी कठोरताओं और संघर्षों की ओर जानेवाला कथानक लग सकता है, लेकिन अपनी गहराई में उसका ताना-बाना तीन स्तरों पर बुना हुआ है। इन स्तरों पर तीन समय, तीन पृष्ठभूमियाँ और तीन घटनाक्रम परस्पर आवाजाही करते हैं। कथा साहित्य में फ़्लैशबैक का उपयोग एक पुरानी और परिचित प्रविधि है, लेकिन ‘पत्थर पर दूब’ में इस तकनीक का इस्तेमाल इतने नए ढंग से हुआ है कि तीनों समय एक ही वर्तमान में सक्रिय होते हैं। कुमाऊँ के एक गाँव से निकलकर फ़ौज में गए नौजवान विक्रम के जीवन का सफ़र अगर एक तरफ़ उसके आन्तरिक द्वन्द्वों और ऊहापोहों को चिह्नित करता है तो दूसरी तरफ़ उसमें फ़ौजी तंत्र में निहित गिरावट की चीरफाड़ भी विश्वसनीय तरीक़े से मिलती है।
सुन्दर चन्द ठाकुर ने इस कथानक को मुम्बई पर हुए आतंकी हमलों से निपटने के लिए की गई कमांडो कार्रवाई से जोड़कर एक समकालीन शक्ल दे दी है। घर-परिवार से विच्छिन्न होता हुआ और पिता और प्रेमिका को खो चुका यह नौजवान कमांडो जिस जाँबाजी का प्रदर्शन करता है, उसके फल से भी वह वंचित रहता है। इसके बावजूद वह किसी त्रासदी का नायक नहीं है, बल्कि हमारे युग का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो एक सफ़र और एक अध्याय के पूरा होने पर किसी ऐसी जगह और ऐसे धुँधलके में खड़ा है जहाँ से उसे आगे जाना है और अगली यात्रा करनी है जिसका गन्तव्य भले ही साफ़ न दिखाई दे रहा हो।
सुन्दर चन्द ठाकुर इससे पहले अपने दो कविता-संग्रहों—‘किसी रंग की छाया’ और ‘एक दुनिया है असंख्य’—से एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। उनकी कई कहानियाँ भी चर्चित हुई हैं और अब उनका पहला उपन्यास उनकी रचनात्मक प्रतिभा और सामर्थ्य के एक उत्कृष्ट नमूने के रूप में सामने है।
किसी रचना का पठनीय होना कोई अनिवार्य गुण नहीं होता, लेकिन अगर अच्छे साहित्य में पाठक को बाँधने और अपने साथ ले चलने की क्षमता भी हो तो उसकी उत्कृष्टता बढ़ जाती है। ‘पत्थर पर दूब’ के शिल्प में पहाड़ी नदियों जैसा प्रवाह है जिसमें पाठक बहने लगता है और भाषा में ऐसी पारदर्शिता है कि कथावृत्त में घटित होनेवाले दृश्य दिखने लगते हैं। उपन्यास जीवन की कथा के साथ-साथ मनुष्य के मन और मस्तिष्क की कथा भी कहता है और इस लिहाज़ से ‘पत्थर पर दूब’ एक उल्लेखनीय कृति बन पड़ी है।
—मंगलेश डबराल
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