Sadhu Ojha Sant
Author:
Sudhir KakkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
आधुनिक चिकित्सा-पद्धति के विकास तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद आज भी भारतीय जनमानस में साधुओं-ओझाओं आदि के प्रति विश्वास पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है। इसे आधुनिक विज्ञान और राज्य की अक्षमता कहें या जनसाधारण के मन में बैठा अन्धविश्वास कि आज भी ऐसी-ऐसी ख़बरें सुनाई दे जाती हैं जिन पर सहज ही विश्वास नहीं हो पाता।</p>
<p>प्रतिष्ठित मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ अपनी इस कृति में उसी अविश्वसनीय लेकिन वास्तविक दुनिया की यात्रा करते हैं। साधुओं, ओझाओं, स्थानीय वैद्यों और सन्तों द्वारा सदियों से जारी परम्परागत मनोचिकित्सा पद्धतियों का विश्लेषण करते हुए वे उनके रहस्यों का उद्घाटन करते हैं। मन्दिरों, मठों आदि पर निरन्तर होनेवाली गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए वे इनकी कार्य-शैली और आस्थावान लोगों की मनोरचना को अपने वैज्ञानिक-नज़रिए से भी देखते चलते हैं।</p>
<p>भारतीय ज्ञान में रुचि रखनेवाले लोगों के लिए उपयोगी इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय और पश्चिमी मनोविज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन भी किया है।
ISBN: 9788126710249
Pages: 239
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "नीरज नीर ने कुछ ही समयावधि में एक संभावनाशील कथाकार के रूप में अपनी पुख्ता पहचान बना ली है। उनका यह पहला कथा-संग्रह इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि उनके पास कहने को भी बहुत कुछ है और कहने की भंगिमा भी। दरअसल लेखक की परख इस बात से भी होती है कि वह किन चीजों को कहाँ से देख रहा है। इस मामले में नीरज नीर की पोजिशनिंग बिल्कुल स्पष्ट है। तकरीबन सभी पात्र निम्नवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय हैं, जिनके हर्ष-विषाद, संबंधों के घात-प्रतिघात, सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने से उनके संघर्ष की कल्पना होती है, जैसे हर चरित्र असीम दुःख के पहाड़ को पूरी ताकत के साथ ठेलने की कोशिश कर रहा है और इस कोशिश में लहूलुहान हो रहा है। इन कहानियों में कथ्य की वैविध्यता अपने ऐश्वर्य के साथ मौजूद है। नीरज नीर की कहानियों की डिटेलिंग कभी-कभी चमत्कृत कर देती है कि लेखक अपने पात्रों के जीवन तल में कितने गहरे उतरा है और पाठक को भी हाथ पकड़कर उन गहराइयों में ले जाने को बाध्य भी करता है। नीरज नीर न तो जटिल शिल्प के आग्रही हैं और न ही अलंकृत भाषा की चकाचौंध के। बिल्कुल उनकी कहानियों के चरित्रों की तरह सादगी ही शिल्प है और जीवन की तरह प्रवाहमयी भाषा-निर्द्वंद्व, झलमल, यथानाम नीर की तरह बहती हुई। —पंकज मित्र सुप्रसिद्ध कथाकार "
Rang Raachi
- Author Name:
Sudhakar Adeeb
- Book Type:

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Description:
मीराँ अपना एकतारा और खड़ताल हाथों में लेकर बिना किसी भूमिका के गा उठीं— “सिसोदिया वंश के राणा यदि मुझसे रूठ गए हैं तो मेरा क्या कर लेंगे?... मुझे तो गोविन्द का गुण गाना है।... राणा जी रूठकर अपना देश बाख लेंगे।” दूसरे शब्दों में, देश में व्याप्त कुप्रथाओं एवं रूढ़ियों की रक्षा कर लेंगे।...किन्तु “यदि हरि रूठ जाएँगे तो मैं कुम्हला जाऊँगी। अर्थात् मेरी भक्ति व्यर्थ चली जाएगी।”
“मैं लोक-लज्जा की मर्यादा को नहीं मानती।... मैं निर्भय होकर अपनी समझ का नगाड़ा बजाऊँगी!... श्याम नाम रूपी जहाज़ चलाऊँगी... इस तरह मैं इस भवसागर को पार कर जाऊँगी!... मीराँ अपने साँवले गिरधर जी की शरण में हैं तथा उनके चरणकमलों से लिपटी हुई हैं!...”
इस प्रकार मीराँ का यह सात्त्विक विद्रोह ही तो था। अपनी मान्यताओं के प्रति उनकी दृढ़ता का प्रतीक। तत्कालीन झूठी लोक-मर्यादाओं की बेड़ियाँ जो शताब्दियों से स्त्री के पैरों में स्वार्थी पुरुष ने विभिन्न नियम संहिताएँ रचकर अपने हितलाभ के लिए पहना रखी थीं। मीराँ चुनौती दे रही थीं, उस सामन्ती युग में स्त्रियों के सम्मुख कड़ी कुप्रथाओं, कुपरम्पराओं का। वह अपूर्व धैर्य के साथ सामना कर रही थीं लौह कपाटों के पीछे स्त्री को धकेलने और उसे पत्थर की दीवारों की बन्दिनी बनाकर रखने, पति के अवसान के बाद जीते जी जलाकर सती कर देने, न मानने पर स्त्री का मानसिक और दैहिक शोषण करने की पाशविक प्रवृत्तियों का। मीराँ का सत्याग्रह अपने युग का अनूठा एकाकी आन्दोलन था जिसकी वही अवधारक थीं, वही जनक थीं और वही संचालक। मीराँ ने स्त्रियों के संघर्ष के लिए जो सिद्धान्त निर्मित किए उन पर सबसे पहले वे ही चलीं।
Kabuliwale Ki Bangali Biwi
- Author Name:
Sushmita Bandyopadhyay
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Description:
“चाहत! चाहत का मतलब समझते हैं आप लोग? एक इनसान को दो वक़्त का खाना देने से ही क्या चाहत होती है? सिर छुपाने के लिए थोड़ी-सी जगह दे देने से ही क्या कर्तव्य ख़त्म हो जाता है? ब्याह कर भाइयों के पास बीवी को छोड़ जाने से ही क्या शौहर के सब दायित्वों का निर्वाह हो जाता है?...दिन-पर-दिन उसके भाई मुझ पर हाथ उठाते हैं...अशोभनीय भाषा में गाली-गलौच करते हैं...माता-पिता तक को गालियाँ देते हैं...”
सुष्मिता बंद्योपाध्याय का दिल दहला देनेवाला आत्मकथात्मक उपन्यास है—‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’।
बंगाली ब्राह्मण परिवार की लड़की का एक अफ़ग़ानी लड़के से प्रेम, फिर विवाह और फिर आठ साल तक अफ़ग़ानिस्तान में यातनाओं का कुचक्र—यही कथाभूमि है इसकी।
इस आत्मकथ्य में जहाँ तालिबानी पृष्ठभूमि की, निरंकुश धार्मिक कट्टरताओं को बेनक़ाब किया गया है, वहीं निरपेक्ष रूप से एक स्त्री की, छोटे बच्चे की तरह अपने घर वापस आने की छटपटाहट को भी मार्मिक अभिव्यक्ति मिली है।
भीतर तक हौला देनेवाला उपन्यास है—‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’।
Kuchh Din Aur
- Author Name:
Manzoor Ehtesham
- Book Type:

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Description:
‘कुछ दिन और’ निराशा के नहीं, आशा के भँवर में डूबते चले जाने की कहानी हैं—एक अन्धी आशा, जिसके पास न कोई तर्क है, न कोई तंत्र; बस, वह है अपने-आप में स्वायत्त।
कहानी का नायक अपनी निष्क्रियता में जड़ हुआ, उसी की उँगली थामे चलता रहता है। धीरे-धीरे ज़िन्दगी के ऊपर से उसकी पकड़ छीजती चली जाती है। और, इस पूरी प्रक्रिया को झेलती है उसकी पत्नी—कभी अपने मन पर और कभी अपने शरीर पर। वह एक स्थगित जीवन जीनेवाले व्यक्ति की पत्नी है। इस तथ्य को धीरे-धीरे एक ठोस आकार देती हुई वह एक दिन पाती है कि इस लगातार विलम्बित आशा से कहीं ज़्यादा श्रेयस्कर एक ठोस निराशा है जहाँ से कम-से-कम कोई नई शुरुआत तो की जा सकती है। और, वह यही निर्णय करती है।
‘कुछ दिन और’ अत्यन्त सामान्य परिवेश में तलाश की गई एक विशिष्ट कहानी है, जिसे पढ़कर हम एकबारगी चौंक उठते हैं और देखते हैं कि हमारे आसपास बसे इन इतने शान्त और सामान्य घरों में भी तो कोई कहानी नहीं पल रही।
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