Do Upanyas
Author:
Krishna SobtiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘वह समय’—कृष्णा जी ने इस टुकड़े को यही नाम दिया था, जिसे ‘ज़िन्दगीनामा’ के दूसरे भाग का हिस्सा होना था। सम्बन्धों के सामाजिक तर्कों और नैतिक आग्रहों के ऊपर चलती दिलों की यह कहानी शाह जी और राबयाँ की है। शाह जी अपने आधे को पार कर चुके हैं और राबयाँ जवानी की सीढ़ियाँ चढ़ रही है—तुकें मिलाती है, कवित्त लिखती है, शाह जी उसके लिखे को दुरुस्त करते हैं, उसे पढ़ाते-सिखाते हैं। इसी में उम्र, मज़हब और परिवारों की हदों से ऊपर उठ दोनों कहीं जुड़ जाते हैं...और उस दिन जब कचहरी से लौटते हुए शाह जी बाढ़ में घिर जाते हैं, राबयाँ अपनी छत से उन्हें देखती है और उन्हें बचाने पानी में कूद जाती है...दोनों को ढूँढ़ लिया जाता है, लेकिन शाह जी फिर लौट नहीं पाते, चले ही जाते हैं, और राबयाँ उनके पीछे...यह कहानी इश्क़ की है, इश्क़ की रूहानियत की,...कृष्णा सोबती की क़लम ही इसकी पवित्रता को इतने सुच्चेपन से आँक सकती थी!</p>
<p>इस जिल्द में मौजूद दूसरी कृति का सम्बन्ध इस समय से है—आज की दिल्ली से। रियल एस्टेट के मगरमच्छों के हत्थे चढ़े एक युवक की यह कहानी पैसे के उथले दलदल में छपछपाते उस तबके के बारे में बताती है, जिसके लिए सबसे पहला और सबसे आख़िरी मूल्य पैसा ही है। यह भी कि गाँवो-क़स्बों से रोटी-रोजगार की तलाश में आए लोगों को यह दलदल कैसी सफ़ाई से अपनी गिरफ़्त में ले लेता है!
ISBN: 9789360865009
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘झूला नट’ की शीलो हिन्दी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकनेवाले चरित्रों में एक है। बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री–शक्ति’ को फ़ोकस किया है–––
पता नहीं ‘झूला नट’ शीलो की कहानी है या बालकिशन की! हाँ, अन्त तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में ज़रूर उद्भासित होने लगती है।
निश्चय ही ‘झूला नट’ हिन्दी का एक विशिष्ट लघु उपन्यास है…।
Srijan Ka Rasayan
- Author Name:
Shivmurti
- Book Type:

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Description:
रचना किसी विस्मय से कम नहीं है। शब्दों में जैसे एक समूचा संसार साकार हो उठता है। रचनाकार स्वयं इस रहस्य से अभिभूत रहता है कि कैसे अतीत का कोई क्षण भाषा में कौंध उठता है। स्मृति के अपार विस्तार में शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध के असंख्य अनुभवों में से कब कौन सृजन का सहयात्री बन जाए, कहना कठिन है।
वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति के गद्य का अनूठा आयाम उद्घाटित करती पुस्तक ‘सृजन का रसायन’ संस्मरण के शिल्प में उनकी रचना-प्रक्रिया को रेखांकित करती है। शिवमूर्ति का जीवन अनुभवों का भंडार है। गाँव और गाँव-जवार के जाने कितने चरित्र उनके लेखन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। जिस कथारस व दृश्यधर्मिता के साथ ठेठ देसी अन्दाज़ में वे वृत्तान्त साधते हैं, वह अद्भुत है। गाँव के छोटे-छोटे विवरणों के अलावा जियावन दरजी, डाकू नरेश, धन्नू बाबा, संतोषी काका और जुल्म का विरोध करनेवाला जंगू—सब पुस्तक के पृष्ठों पर जाग उठते हैं।
शिवमूर्ति ने माता-पिता, परिवार, रिश्तेदारों और गाढ़े समय के साथियों को कृतज्ञ आत्मीयता के साथ याद किया है। बकरी चराते, अन्य श्रम साध्य काम करते, मेले में मजमा लगाते हुए वे किस तरह सफलता की राह पर आगे बढ़े, किस तरह सर्जना के संसार में विकसित हुए, प्रतिष्ठा प्राप्त की, इसका वर्णन अत्यन्त पठनीय है।
स्त्रियाँ ‘सृजन का रसायन’ की आत्मा हैं। माँ, नानी, पत्नी, परदेसिन मइया, जग्गू बहू, मनी बहू आदि अनेक चरित्र। और हाँ, ‘पितु मातु सहायक स्वामि सखा’ सरीखी शिवकुमारी। शिवमूर्ति और शिवकुमारी के विचित्र सम्बन्धों पर हिन्दी साहित्य में कौतूहल मिश्रित बहुत कुछ कहा-लिखा गया है। शिवमूर्ति इस पुस्तक में इस रिश्ते की दास्तान बयान करते हैं। जीवनानुभवों के साथ साहित्य के अनेक प्रश्नों के संवाद करती यह पुस्तक सचमुच अनूठी है।
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