Patan
Author:
Bhagwaticharan VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
प्रस्तुत पुस्तक ‘पतन’ वर्मा जी का प्रथम उपन्यास है जिसकी रचना उन्होंने अपने कालेज के दिनों में की थी। भगवतीचरण वर्मा हिन्दी जगत के जाने-माने विख्यात उपन्यासकार <br />हैं।</p>
<p>उनके सभी उपन्यासों में एक विविधता है। हास्य, व्यंग्य, समाज, मनोविज्ञान और दर्शन सभी विषयों पर उपन्यास लिखे हैं। कवि और कथाकार होने के कारण वर्मा जी के उपन्यासों में भावनात्मक और बौद्धिकता का सामंजस्य मिलता है। वर्मा जी के उपन्यासों को पढ़ते समय यह सदा ध्यान रखना चाहिए कि वे मूलत: एक छायावादी और प्रगतिवादी कवि हैं और उनके कथा साहित्य में कविता की भावना की प्रधानता बौद्धिक यथार्थ से कभी अलग नहीं होती। उपन्यासों के अब तक परम्परागत शिथिल और बने-बनाए रूप-विन्यास और कथन-शैली की नई शक्ति और सम्पन्नता ही नहीं, वरन् कथावस्तु का नया विस्तार भी मिला।
ISBN: 9788180315664
Pages: 127
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘आत्मदान’ सुप्रसिद्ध उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली का ऐतिहासिक घटनाक्रम पर आधारित उपन्यास है। कथानायक राज्यवर्द्धन स्थाणीश्वर का राजकुमार है जो अपनी भावप्रवण संवेदनशीलता के कारण न तो युद्ध को सही मानता है और न ही राज्य के विस्तार में उसकी रुचि है। मगर पिता की निरन्तर प्रेरणा और प्रजा की रक्षा के लिए वह हूणों के संहार के लिए युद्धक्षेत्र की तरफ़ प्रयाण करता है और दो वर्षों तक निरन्तर अत्याचारी हूण शासकों का संहार करता है। तभी अचानक उसे पिता के निधन और माता के सती होने का शोक समाचार मिलता है। इस दुखद घटनाक्रम से वह काफ़ी व्यथित हो जाता है और उसे विरक्ति हो जाती है। वह संन्यास लेना चाहता है तथा राज्य व प्रजा का भार अपने अनुज हर्ष पर सौंप देना चाहता है। उसी समय उसे मालवा शासक देवगुप्त द्वारा उसके बहनोई की हत्या और बहन की पीड़ा का दुखद संवाद मिलता है। क्रोध के मारे वह संन्यास का विचार छोड़ देवगुप्त को मज़ा चखाने और अपनी बंदिनी बहन को आततायियों से मुक्त कराने निकल पड़ता है।
उपन्यासकार ने इस पूरे घटनाक्रम को इतनी जीवन्तता से चित्रित किया है कि पढ़ते हुए सब कुछ अपनी आँखों के सामने घटित होते देखने का आभास होता है।
संवेदनशील भाषा और प्रवाहपूर्ण शिल्प के कारण यह उपन्यास बेहद पठनीय है और एक नैतिक आख्यान से पाठकों को रू-ब-रू कराता है।
Pankhwali Naav
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Pankaj Bisht
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- Description: पंकज बिष्ट अपनी पीढ़ी के सम्भवतः अकेले ऐसे लेखक हैं जिनकी रचनाओं में हमारे समकालीन समाज के बदलते नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक मूल्यों की पड़ताल की कोशिश इतने बड़े पैमाने पर नज़र आती है। उनकी रचनाओं का सरोकार मुख्यतः नैतिक पक्षधरता है जो आधुनिकता और परम्परा के टकरावों और परिणामों की पृष्ठभूमि में आकार लेती है। वह मानव सम्बन्धों को किस संवेदनशीलता, समझ और सहृदयता से अभिव्यक्त करते हैं, उनकी रचनाएँ इसका प्रमाण हैं। ये रचनाएँ व्यक्ति और समाज के आपसी सम्बन्धों की टकराहट और उससे उपजी जटिलताओं की कई अन्तरधाराओं को अनजाने ही पूरी संश्लिष्टता में अभिव्यक्त करती चलती हैं। यह छोटा-सा उपन्यास ‘पंखवाली नाव’ उसी परम्परा की अगली कड़ी है। इसमें यौनिकता से सम्बन्धित नैतिकता-अनैतिकता के कई सवालों से पाठक रूबरू होते हैं। यौन सम्बन्धों के दबावों और उनके भटकावों जैसे नाजुक और संवेदनशील विषय को लेकर लिखी गई यह रचना मूलतः मानवीय प्रकृति की पड़ताल करने के साथ ही साथ विषय की नवीनता, लेखकीय अन्तर्दृष्टि, वस्तुनिष्ठता और मार्मिकता के लिए विशिष्ट कही जा सकती है।
Darulshafa
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Rajkrishna Mishra
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Description:
दारुलशफ़ा, लखनऊ। यह पता है हमारी वर्तमान राजनीति का, जिसके ‘चरित्र’ का लेखा-जोखा इस किताब में दर्ज है। यानी एक स्थान विशेष, जहाँ कुछ विशेष लोग विशेष स्थितियों में विशेष समस्याओं के समाधान में जुटे हुए हैं। ये समस्याएँ निजी होकर राष्ट्रीय हैं, तो प्रादेशिक होकर अन्तरराष्ट्रीय। भारतीय राजनीति पिछले डेढ़-दो दशक से कुछ ऐसी ही समस्याओं का उत्पादन कर रही है।
वातानुकूलित कक्ष। लम्बे-लम्बे गलियारे। लॉन। और इस सबमें लगातार कानाफूसी करती हुई साज़िश। अपनी-अपनी रियासतों की हिफ़ाज़त के लिए चिन्तित कुर्सियाँ और उनके इर्द-गिर्द लट्टुओं की तरह चक्कर काटते चमचे।...इसी माहौल में सुपरिचित वर्तमान राजनीति के विभिन्न अँधेरे कोनों की विस्मयकारी पड़ताल की गई और वस्तुतः एक रोचक घटनाक्रम के सहारे यह उपन्यास राजनीति की जिन घिनौनी सच्चाइयों को उद्घाटित करता है, वे हमारी आँखें खोल देनेवाली है और हमें इस सारे तंत्र पर नए सिरे से सोचने को बाध्य करती है।
Apne Apne Konark
- Author Name:
Chandrakanta
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Description:
अपने-अपने कोणार्क यानी कश्मीर से ओडिशा का सफ़र। कश्मीर की सरसब्ज़ वादी में जन्मी और पली-बढ़ी चन्द्रकान्ता को भारत के अनेक प्रान्तों में रहने-बसने का मौक़ा मिला। लेकिन ओडिशा में बिताए गए छह वर्ष उनकी सर्जनात्मकता के लिए अमूल्य बन गए। उन्होंने वहाँ की जीवन-शैली, लोक-रंगों और परम्पराओं की महक महसूस की है, जिसका जीवन्त प्रमाण है ‘अपने-अपने कोणार्क’।
ओडिशा की संस्कृति धरोहर—पुरी और कोणार्क, जीवन के दो पहलू; सम्पूर्ण जीवन का फ़लसफ़ा यहाँ मौजूद है, जिसे लेखिका ने ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिदृश्य के साथ वर्तमान की सच्चाइयों से जोड़कर देखा है। उपन्यास की नायिका कुनी के माध्यम से उन्होंने आम ओड़िया जन को उसके विगत और वर्तमान के साथ प्रस्तुत किया है। 'मोर गौरव जगन्नाथ' में विश्वास करता आम ओड़िया जन अपने परम्परागत आलोक से मुग्ध, रक्षणशील तथा संस्कारवान भी है और हम सबकी तरह अन्धविश्वासी और रूढ़ मानसिकता से ग्रस्त भी। कुनी इसी रक्षणशील परिवार की बड़ी बेटी है, हज़ारहा दायित्वों की साँकलों में क़ैद, गोकि वह उन्हें साँकलें समझती नहीं। वह अपनी लीक आप बनाती, वक्त की सच्चाइयों के रू-ब-रू होते अपने भीतर को जानने और पाने की कोशिश करती है। ओडिशा की पृष्ठभूमि में वहाँ के इन्द्रधनुषी रंगों को समेटे कुनी की यह कहानी सच की तलाश है।
Agnileek
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Hrishikesh Sulabh
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Description:
अग्निलीक’ उपन्यास आज़ादी के उत्तरार्द्ध की वह कथा है जिसके रक्त में आज़ादी के पूर्वार्द्ध यानी अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के गर्व की गरमाहट तो है, लेकिन अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कभी जो हिदू-मुसलमान एक साथ लड़े थे, आज उसी ज़मीन पर बदली हुई राजनीति का खेल ऐसा कि उनके मंतव्य भी बदल गए है और मंसूबे भी। यह हिन्दी का सम्भवत: पहला उपन्यास है जिसमें हिन्दू-मुसलमान अपनी जातीय और वर्गीय ताक़त के साथ उपस्थित हैं। और यही कारण कि कथा शमशेर साँई के क़त्ल से शुरू होती है, उसकी गुत्थी मुखिया लीलाधर यादव और सरपंच अकरम अंसारी के बीच अन्तत: रहस्यमय बनी रहती है। क़ानून भी ताक़त के साथ ही खड़ा। असल में टूटते-छूटते सामन्तवाद के युग में अपने वर्चस्व को बनाए रखने की राजनीति क्या हो सकती है, इसे भावी मुखिया लीलाधर यादव की पोती रेवती के ज़रिए जिस रणनीति को लेखक ने गहराई से साधा है, उससे न सिर्फ़ बिहार को बल्कि भारतीय राजनीति में गहरी ज़ड़े जमा चुके वंशवाद को भी देखा-समझा जा सकता है। साथ ही यह भी कि इसको मज़बूत बनाने में रेशमा कलवारिन के रूप में उभरती हुई स्त्री-शक्ति का भी इस्तेमाल कितनी चालाकी से किया जा सकता है।
‘अग्निलीक’ अपने काल के घटना-क्रम में जीवन के कई मोड़ों से गुज़री रेशमा कलवारिन के साथ-साथ कई अन्य स्त्री-चरित्रों की अविस्मरणीय कथा बाँचता उपन्यास है। वह चाहे कभी प्रेम में रँगी यशोदा हो या उनकी पोती रेवती जिसके प्रेमी की उसका भाई ही अछूत होने के कारण हत्या कर देता है। सरपंच अकरम अंसारी के साथ बिन ब्याहे रहनेवाली उसी की फूफेरी बहन मुन्नी बी हो या शमशेर साँई को बेवा गुलबानो; सब अलग होते हुए भी उपन्यास को मुख्य कथा से अभिन्न रूप में जुड़े हुए हैं। यह उपन्यास महात्मा गाँधी के सपनों के गाँवों का उपन्यास नहीं है, इसमें वे गाँव हैं जो ‘हिन्द स्वराज’ की क़ब्र पर खड़े हैं। यहाँ जो हैं कलाली के धंधे में हैं, गंजेड़ी-जुआरी भी हैं। यहाँ राजनीति में प्रतिद्वंद्वी कट्टर दुश्मन हैं। जिन्हें अपने बच्चों की शिक्षा की फिक्र है, गाँव छोड़ चुके हैं। लेकिन हाँ, यहाँ जो स्त्रियाँ हैं, वे सिर्फ भोग की वस्तु नहीं हैं, मुक्ति का साहस भी रचना जानती हैं।
अग्निलीक पुरबियों के जीवन-यथार्थ की दुर्लभ कथा है।
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