World Within Words
Author:
Santosh Bhadur Singh, Shubhanku KocharPublisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
EnglishCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 125.8
₹
148
Available
This book provides a confluence in which heterogeneous themes create an Azure sky with different fragrances. It combines young, innovative and creative minds with intellectual and hermeneutic maturities—winds blowing from all directions trying to soothe all types of appetite. The creativity enshrined in poems, short stories and plays represent the different aspects of life that prompt a reader to dive into reality and, at the same time, search out gems which give spiritual solace to the terrestrial grossness. The creativity of the writers telescopes the emerging complexities of worldly life, which try to bind them in a circle and mirror the starkest facts- hypocrisy, duality, brutality, lust, greed, love etc. Dr Shubhanku Kochar is teaching as an Assistant Professor at lady Irwin College (University of Delhi). His area of interest is African American literature. He has published several research papers in National and international journals and books. He is the author of well acknowledge novel everything will be all right. Dr Santosh Bahadur Singh teaches at lady Irwin College (University of Delhi). His name is recognised with several research papers published in National and international journals and a book, modalities of self in the poetry of Allen Ginsberg. His field of interest is poetry.
ISBN: 9789385137563
Pages: 1400
Avg Reading Time: 23 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
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- Description: शेखर : एक जीवनी’ अज्ञेय का सबसे अधिक पढ़ा गया उपन्यास; हिन्दी की एक ऐसी कथा-कृति जिसे हर पीढ़ी का पाठक जरूरी समझता आया है और जिससे गुजरने के बाद वह जीवन की एक भरी-पूरी छलछलाती नदी में डूबकर निकल आने जैसा अनुभव करता है। उपन्यास का नायक शेखर स्वयं अज्ञेय हैं अथवा कोई और व्यक्ति, यह हमेशा कौतूहल का विषय रहा है। कुछ लोग इसे पूरी तरह उनकी आत्मकथात्मक कृति मानते हैं, लेकिन स्वयं अज्ञेय का कहना है कि यह 'आत्म-जीवनी’ नहीं है। वे कहते हैं कि 'आत्म-घटित’ ही आत्मानुभूति नहीं होता, पर-घटित भी आत्मानुभूत हो सकता है यदि हममें सामथ्र्य है कि हम उसके प्रति खुले रह सकें।...शेखर में मेरापन कुछ अधिक है।’ लेकिन यह कथा ऐसी नहीं है कि इसे 'एक आदमी की निजू बात’ कहकर उड़ाया जा सके। अज्ञेय इसे अपने युग और समाज का प्रतिबिम्ब मानते हैं। इसमें 'मेरा समाज और मेरा युग बोलता है,...वह मेरे और शेखर के युग का प्रतीक है।’ बहुआयामी और संश्लिष्ट चरित्रों के साथ अपने समय-समाज और उनके बीच अपनी अस्मिता को आकार देते व्यक्ति की वेदना को तीव्र और आवेगमयी भावात्मकता के साथ अंकित करते इस उपन्यास के नायक शेखर के बारे में अज्ञेय की टिप्पणी है : 'शेखर कोई बड़ा आदमी नहीं है, वह अच्छा भी आदमी नहीं है। लेकिन वह मानवता के संचित अनुभव के प्रकाश में ईमानदारी से अपने को पहचानने की कोशिश कर रहा है।...उसके साथ चलकर आप पाएँगे कि आपके भीतर भी कहीं पर एक शेखर है जो...जागरूक, स्वतंत्र और ईमानदार है, घोर ईमानदार।’
Ashoksundari
- Author Name:
Sumit Kumar Sambhav
- Book Type:

- Description: Hindi Book
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