Nirmohi Bhanvara

Nirmohi Bhanvara

Language:

Hindi

Pages:

198

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

396 mins

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Book Description

सुबह के पक्षी का प्रभात-वन्दना सुनकर तो हम उसकी प्रशंसा करते हैं<strong>, </strong>किन्तु पक्षी का धर्म स्वीकार करने में क्यों हिचकिचाते हैं? पक्षी का धर्म यानी स्वतंत्रता का उछाह-भरा आवेग और अपने जमाए-जुटाए से निर्मोह!</p> <p>बांग्ला के प्रख्यात कथाकार प्रबोध कुमार सान्याल के चर्चित उपन्यास ‘बिबागी भ्रमर’ का यह अनुवाद बांग्ला के माधुर्य को बरकरार रखते हुए संलग्नता और विराग की इस कथा को हम तक पहुँचाता है।</p> <p>पार्थ<strong>, </strong>नवेन्दु और हिना की यह कहानी रिश्तों के त्रिकोण की उतनी नहीं है जितनी पक्षी-धर्म  यानी स्वातंत्र्य की चाहना की है। हिना अपनी व्यक्ति-चेतना को पत्नी की उस सीमित परिभाषा में नहीं ढल पाती जिसकी उम्मीद अन्तत: हर पुरुष करने लगता है<strong>, </strong>वह चाहे अपनी मान्यताओं में कितना भी प्रगतिशील क्यों न हो। पार्थ एक ठिकाना है जहाँ वे दोनों न सिर्फ़ अपना मन खोल पाते हैं<strong>, </strong>बल्कि स्वयं को भी नए सिरे से देखने की कोशिश करते हैं।</p> <p>बांग्ला उपन्यासों-कहानियों की पठनीयता का प्रवाह और पात्रों का अपने जीवन-जगत में गहरे तक पैठे होना उन्हें लेखक से मुक्त करके हर पाठक की अपनी रचना बना देता है। यह कौशल इस उपन्यास में भी है। साथ ही है मानव-प्रकृति की अज्ञात तहों में उतरने का साहस जो समाजशास्त्रीय-वैचारिक आग्रहों से नहीं<strong>, </strong>जीवन को जस का तस देखने<strong>, </strong>उसे समझने की कोशिश करने और वास्तविकता को यथारूप ग्रहण करने की तैयारी से आता है।</p> <p> 

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