Anaro
Author:
Manjul BhagatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Unavailable
''कहाँ गया गंजी का बाप?...दिल डूब रहा है...अनारो, तू डूब चली...उड़ चली तू...अनारो, उड़ मत...धरती? धरती कहाँ गई?...पाँव टेक ले...हिम्मत कर...थाम ले रे...नन्दलाल! हमें बेटी ब्याहनी है!...यहाँ तो दलदल बन गया!...मैं सन गई पूरी की पूरी...हाय! नन्दलाल...गंजी...छोटू!'' महानगरीय झुग्गी कॉलोनी में रहकर कोठियों में खटनेवाली अनारो की इस चीख़ में किसी एक अनारो की नहीं, बल्कि प्रत्येक उस स्त्री की त्रासदी छुपी है जो आर्थिक अभावों, सामाजिक रूढ़ियों और पुरुष अत्याचार के पहाड़ ढोते हुए भी सम्मान सहित जीने का संघर्ष करती है। सौत, ग़रीबी और बच्चे; नन्दलाल ने उसे क्या नहीं दिया? फिर भी वह उसकी ब्याहता है, उस पर गुमान करती है और चाहती है कि कारज-त्यौहार में वह उसके बराबर तो खड़ा रहे। दरअसल अनारो दु:ख और जीवट से एक साथ रची गई ऐसी मूरत है, जिसमें उसके वर्ग की सारी भयावह सच्चाइयाँ पूँजीभूत हो उठी हैं।
ISBN: 9788171785315
Pages: 102
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
यह छोटा-सा उपन्यास प्रेम की एक बड़ी कहानी है—प्रेम की, और प्रेम की खोज की और प्रेम के विस्तार की। कहानी खोए हुए प्रेम को ढूँढ़ने की, और मिल गए प्यार को बचाए रखने की।
प्यार की कोई एक परिभाषा नहीं होती, प्यार की परिभाषा से कभी कोई रिश्ता तय भी नहीं किया जा सकता; इस तथ्य को जानते हुए भी समाज, संसार प्यार को किसी न किसी रिश्ते में बाँध देना चाहता है, जहाँ वह धीरे-धीरे अपने सत्त्व को, अपनी ऊष्मा को खो देता है। यह कथा एक अनन्त और अकुंठ प्यार को सँजोए रखने की भीतरी जद्दोजहद की कहानी है। इसकी अपनी रवानी है, जैसे प्यार की होती है...और है अपने ढंग की पढ़त भी।
—इसी पुस्तक से
Mahasamrat : Pehla Khand—Jhanjhawaat
- Author Name:
Vishwash Patil
- Book Type:

-
Description:
छत्रपति शिवाजी के बारे में कौन नहीं जानता! महाराष्ट्र में स्वाधीनता का अलख जगाने वाले और आगे चलकर सम्पूर्ण भारत के लिए आत्मसम्मान, संघर्ष और साहस का प्रतीक बन जाने वाले शिवाजी पर अनेक लेखकों ने कलम चलाई है। कई विदेशी इतिहासकारों और लेखकों ने भी उनकी जीवनियाँ और ऐतिहासिक वृत्तान्त लिखे हैं।
‘महासम्राट’ उन सबसे अलग है। मराठी के विख्यात उपन्यासकार विश्वास पाटील द्वारा लिखित यह महाआख्यान उनके सुदीर्घ शोध और अपने नायक के प्रति गहन प्रेम और श्रद्धा का परिणाम है। लेखक ने इस वृहत उपन्यास में उन तथ्यों पर भी प्रकाश डाला है जो अभी तक लेखकों की निगाह से छूट जा रहे थे। मसलन, शिवाजी के व्यक्तित्व और चरित्र के शिल्पकार, उनके पिता शाहजी राजे भोसले की उनके जीवन में भूमिका। इस उपन्यास में न सिर्फ उनके, बल्कि तत्कालीन इतिहास से प्राप्त अनेक पात्रों और घटनाओं को भी पर्याप्त जगह दी गई है ताकि आज का पाठक शिवाजी की सम्पूर्ण छवि को अपनी कल्पना में साकार कर सके।
विस्तृत शोध और शिवाजी से जुड़े अनेक स्थलों की यात्राओं के कारण ही यह सम्भव हो पाया है कि उपन्यासकार के रूप में लेखक ने जहाँ कल्पना का हाथ पकड़ा है, तो उसे भी वे इतिहास-सम्मत तथ्यों के रास्ते पर ही लेकर बढ़े हैं। लगातार शोध के चलते लेखक को शिवाजी से सम्बन्धित इतनी सामग्री मिली कि एक उपन्यास की बजाय उन्होंने एक उपन्यास-शृंखला की योजना बनाई है, जिसकी यह पहली कड़ी है—‘झंझावात’। शिवाजी के सम्पूर्ण जीवन को एक उपन्यास में समेटना यूँ भी सम्भव नहीं है।
मूल मराठी में इस उपन्यास को एक मील का पत्थर माना गया है। इसका एक कारण इसकी तथ्यात्मकता है, और दूसरा आख्यान के रूप में इसकी परिपक्वता, भाषा-सामर्थ्य और शैली-सौष्ठव जिसको मूल पाठ की तारतम्यता के साथ इस हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत किया गया है।
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