Chaar Kanya
Author:
Taslima NasrinPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘चार कन्या’ में यमुना, शीला, झूमुर और हीरा की कथा है। यमुना एक मामूली लड़की है, उसके भीतर बूँद–बूँद कर जन्म लेती है—अपने अधिकारबोध के प्रति तीव्र जागरूकता। ऐसी सुलझी हुई जागरूक लड़कियों को काफ़ी कुछ भुगतना पड़ता है। समाज के उलटे–सीधे नियम उन्हें बहुत सताते हैं, यमुना को भी ख़ूब सताया। शीला ठगी जाती है अपने प्रेमी द्वारा। ऐसी सैकड़ों शीलाएँ राह में चल–फिर रही हैं पर सभी तो अपनी ज़ुबान पर वे बातें नहीं ला सकतीं, क्योंकि इससे ठगनेवालों पर प्रहार के बजाय शीलाओं पर ही उलटी मार</p>
<p>पड़ती है—समाज उन्हीं पर पत्थर फेंकता है, उनके ही मुँह पर थूकता है।</p>
<p>‘लज्जा’ जैसी चर्चित कृति की लेखिका तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास स्त्री–विमर्श की कई खिड़कियाँ खोलता है, जिससे आती बयार से पाठक अछूता नहीं रह सकता।
ISBN: 9788171198955
Pages: 254
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: प्रतिष्ठित कथाकार द्रोणवीर कोहली का यह उपन्यास एक अछूती समस्या को उठाता है–कतिपय आधुनिक एवं धनाढ्य परिवारों में लड़के-लड़कियों की समस्या जो भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद स्नेह-सौहार्द्र के अभाव में मनोरोगी हो जाते हैं। उनकी चिकित्सा और देख-भाल के लिए उनके पास ढेरों धन तो हैं, लेकिन ‘समय’ नामक अमूल्य धन जो उनके पास मौजूद है, उसे वह अपने बच्चों पर व्यय करना जानते ही नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उन बच्चों का सही उपचार नहीं हो पाता और अन्त में त्रासदी शेष रह जाती है। लेखक ने इस स्थिति का बारीकी से अध्ययन किया है और बड़ी कुशलता से ‘हृदय सुगति’, ‘इक्ष्वाकु’ अर्थात ‘इच्छू बाबा’, ‘काया’ जैसे चरित्रों को परत-दर-परत खोल कर रख दिया है–किसी मनोचिकित्सक के बौद्धिक व्यायाम की तरह नहीं, किसी संवेदनशील कथाकार की भाँति। द्रोणवीर कोहली के इस उपन्यास की बड़ी विशेषता यह भी है कि प्रकाशन से पूर्व उन्होंने अपनी सम्पूर्ण पांडुलिपि प्रसिद्ध क्लिनिकल मनोचिकित्सक डॉ. नीरजा कुमार को दिखाई थी। उन्होंने उपन्यास के अन्तिम अंश के बारे में जो विचार दिए, लेखक ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया है। उन्हें पुस्तक के अन्त में ‘अनुबोध’ शीर्षक से सम्मिलित कर लिया गया है।
Uttarayan
- Author Name:
Rangnath Tiwari
- Book Type:

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Description:
रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारे लिए प्रकाश और समरसता की आस्था के जीवित प्रतीक रहे हैं। वे मुक्त पंछी के समान आँधी और तूफ़ान के बीच शाश्वत-काल के संगीत की रचना करते रहे हैं। उनकी उत्कृष्ट कला कभी भी स्वतंत्रता के हित में मानवीय संकटों और जनता के वीरतापूर्ण संघर्षों के प्रति उदासीन नहीं रही। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है—वे महान प्रहरी हैं। टैगोर ने संकट के क्षणों में अपने देशवासियों और दुनिया की स्पष्ट और निर्भय दृष्टि से पहरेदारी की है। हम आज जो कुछ भी हैं और जो कुछ हमने सीखा है, वह सब उनकी कविता और प्रेम की अजस्र सरिता से अभिसिंचित हैं या जुड़े हुए हैं।
—रोमां रोलां
Adarsh Shikshak Kaise Hon
- Author Name:
Acharya Mayaram 'Patang'
- Book Type:

- Description: शिक्षक कैसे हो? इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग प्रकार से दिया जा सकता है। यहाँ पर हम प्राथमिक शिक्षक एवं माध्यामिक शिक्षक की भूमिका की चर्चा करेंगे। विषय को बहुत विस्तुत रूप में लिया जा सकता है; परंतु पुस्तक को एक संक्षिप्त स्वरूप में ही प्रस्तुत करना अभीष्ट था, अतः बहुत विस्तार नहीं किया गया। इसी कारण अनेक पहलू छूट भी गए।
Smritipath
- Author Name:
Dhirendra Verma
- Book Type:

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Description:
स्मृतिपथ
स्मृतिपथ धीरेन्द्र वर्मा का सातवाँ उपन्यास है। स्मृतिपथ इस अर्थ में एक उपन्यास है कि इसमें एक कहानी है, जो कल्पना पर आधारित है परन्तु यह एक कथा इस अर्थ में नहीं है कि यह कथाक्रम के पारम्परिक परिभाषा से पृथक् और भिन्न है। इसमें जीवन के आधारभूत मूल्यों का विश्लेषण किया गया है। स्मृतिपथ की कथा का किसी देश, काल या परिस्थिति से सीधा सम्बन्ध नहीं है और इसका परिदृश्य सार्वभौमिक है।
स्मृतिपथ एक कहानी न होकर एक धारणा है जो मनुष्य के जीवन से अपरिहार्य रूप से जुड़ी हुई है। इस सम्पूर्ण सृष्टि में जहाँ भी जीवन है, सभ्यता है, वहाँ के प्राणियों को एक सशक्त ‘स्मृति’ मिली है और एक ‘पथ’ मिला है जिस पर उन्हें चलना है, और बढ़ना है। अपनी जीवनयात्रा में हमें अपने स्वविवेक से अपना मार्ग चुनकर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ना होता है और इस जीवन यात्रा को हम अपनी स्मृति के कोश में संचित करते हुए अपने स्मृतिपथ पर अपने कर्मों को छायांकित करते जाते हैं जिससे हम अपने इस जीवन के भाग्य का और अपने पुनर्जन्म का निर्धारण करते हैं।
Gram Bangla
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

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Description:
‘ग्राम बांग्ला’ में सात उपन्यासिकाएँ हैं—‘ग्राम बांग्ला’, ‘सीमान्त’, ‘अँधेरे की सन्तान’, ‘राजा’, ‘स्वदेश की धूलि’, ‘लाइफर’ और ‘तेपान्तरी’। कहने को ये अलग-अलग उपन्यासिकाएँ हैं लेकिन समग्रता में ये ग्रामीण बंगाल की ताजा तस्वीर बनाती हैं। वैसे ग्रामीण बंगाल भारत के किसी ग्रामीण समाज से अलग नहीं दिखता। थोड़े-बहुत भौगोलिक-सांस्कृतिक अन्तर के बावजूद वह भारतीय ग्रामीण समाज जैसा ही लगता है। हिन्दीभाषी समाज की तो विशेष निकटता बंगाल से रही है।
समाज क्या सिर्फ़ मुख्यधारा—यानी खाते-पीते-अघाए लोगों का होता है? क्या लेखक सिर्फ़ इन्हीं के जीवन के इर्द-गिर्द ध्यान रखता रहेगा? प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के सामने स्पष्ट रहा है कि मुख्यधारा समृद्ध है, मगर संख्या में छोटी है। समाज में बृहत्तर हिस्सा हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों का है। और, ऐसे लोग साहित्य की उपेक्षा के भी शिकार रहे हैं। इसीलिए वे समाज के सीमान्त पर बसे लोगों को अपनी संवेदना-सहानुभूति का केन्द्र बनाती हैं।
इसीलिए वे स्टेशन के फेरीवालों, आदिवासियों, छोटी जगहों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सपेरों, डायन करार दी गई स्त्रियों जैसे चरित्रों एवं छोटी-छोटी संख्या वाले समुदायों पर लिखती हैं। ख़ूब लिखती हैं और कलात्मक उत्कर्ष की परवाह किए बग़ैर लिखती हैं। “अब मुझमें साहित्य के शिल्पगत उत्कर्ष का कोई आग्रह नहीं रहा।” लेकिन नई विषय-वस्तु के सन्धान का उत्साह और साहस उनमें हमेशा बरक़रार रहा।
पूरे संकलन में यह साहस दीखता है। पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय वामपन्थी सरकार द्वारा बटाईदारों के पक्ष में चलाए गए ऑपरेशन वर्गा की असलियत वह बेहिचक सामने लाती हैं। वर्ग-संघर्ष के बारे में वे सवाल करती हैं—यह कैसा वर्ग-संघर्ष है जिसमें एक ही वर्ग के लोग एक-दूसरे के शत्रु बन रहे हैं? 'सीमान्त’ में वे कहती हैं—‘सती-साध्वी होना एक प्रकार का रोग है। एक बार पकड़ लेता है तो कभी छोड़ता नहीं।’ यह संकलन विरल लेखकीय साहस का प्रतिमान है।
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