Kaale Kos

Kaale Kos

Authors(s):

Balwant Singh

Language:

Hindi

Pages:

390

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

780 mins

Buy For ₹250

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

बलवन्‍त सिंह का रचनाकार न तो अतिरिक्त सामाजिकता से आक्रान्‍त रहता है और न ही कला और शिल्प के दबावों से आतंकित। अपनी सतत जागरूक और सचेत निगाह से वे अपने कथा-चरित्रों और कथा-भूमि के सबसे विश्वसनीय यथार्थ तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। शिल्प और संवेदना का द्वन्‍द्व उनकी रचनाओं में प्रशंसनीय सन्‍तुलन के साथ प्रकट होता है।</p> <p>उनकी औपन्यासिक कृतियाँ अपने कलेवर में महा-काव्यात्मक गरिमा से परिपूर्ण होती हैं। दूसरी तरफ़ उनके पात्र भी अपने जीवन के चौखटे में अपनी भरपूर ऊर्जा के साथ प्रकट होते हैं। वे नुमाइशी और कृत्रिम नहीं होते, बल्कि जिन्‍दगी की अनिश्चितता और अननुमेयता से जूझते हुए, हाड़-मांस के साधारण, खुरदुरे लोग होते हैं जिनका वैशिष्ट्य एक ख़ास संलग्नता के साथ देखने पर ही दिखाई देता है। बलवन्‍त सिंह की रचनाएँ इस संलग्नता से बख़ूबी पगी हुई होती हैं।</p> <p>‘काले कोस’ की पृष्ठभूमि में भी ऐसे ही लोगों की छवियाँ दिखाई देती हैं। पंजाब की धरती की ख़ूशबू में रसे-बसे और अपनी कमज़ोरियों-ख़ूबियों से जूझते ये लोग देर तक पाठक की स्मृति में अपनी जगह बनाए रखते हैं। यह कहानी पंजाब के बँटवारे से शुरू होकर फ़सादों में ख़त्म हो जाती है। लेकिन इस ख़त्म हो जाने के साथ ही पाठक के मन में जो कुछ छोड़ जाती है, वह एक ऐसी टीस है जो आज तक ख़त्म नहीं हो पाई है।

More Books from Rajkamal Prakashan Samuh