Chhaila Sandu
Author:
Mangal Singh MundaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
छैला सन्दु आदिवासी समाज का एक अप्रतिम नायक है। इतिहास उसके बारे में मौन है लेकिन सन्दु और बुन्दी की प्रेमकथा मुण्डा समाज की सर्वाधिक लोकप्रिय जनश्रुतियों में से एक है। उसको सुनते-सुनाते हुए मुण्डा जन आज भी रोमांचित हो उठते हैं।<br>प्रकृति का अन्यतम प्रेमी छैला संगीत का असाधारण साधक भी था। उसका बाँसुरीवादन किसी को भी अवश करने में सक्षम था। बाँसुरी से उसका लगाव लोक स्मृति में इतना गहरे रचा-बसा है कि मुण्डाजन साँवले रंग, छरहरे शरीर और मानवीय गुणों से भरपूर व्यक्तित्व वाले छैला को कृष्ण का अवतार मानते हैं।<br>इसी छैला सन्दु की कथा इस उपन्यास में कही गई है। बुन्दी के प्रेम में पड़ना, उसके जीवन में निर्णायक साबित होता है। बुन्दी भी उसे प्रेम करने लगती है। उस पर बुन्दी को भगाने का आरोप लगता ळै। बुन्दी के पिता अपनी पुत्री की तलाश करते हुए छैला की बस्ती को उजाड़ देते हैं। अपने प्रेम के लिए छैला कोई भी कष्ट उठाने से पीछे नहीं हटता। वह बुन्दी के भविष्य के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग करने से भी नहीं हिचकिचाता।
ISBN: 9788126709373
Pages: 315
Avg Reading Time: 11 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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गाँव की पृष्ठभूमि से पढ़े-लिखे युवा वर्ग का एक बड़ा तबका जो नगरों-महानगरों में रहने लगा है, इसमें कुछ उच्चपदस्थ अधिकारी भी हैं। आरक्षण की सुविधा के कारण पिछड़े और दलित भी इसमें शामिल हैं। अपनी पृष्ठभूमि से विच्छिन्न सुविधा सम्पन्न जिन्दगी जीनेवाले अधिसंख्य ऐसे लोग अहंवादी आत्मकेन्द्रित हैं। इनमें समरेश-जैसे नृशंस मनोवृत्ति के कृतघ्न भी हैं जो छल-छद्म से अपने माता-पिता को बेघर-बेजमीन बना देते हैं। इसकी दारुण परिणति होती है भूख और गरीबी से पिता की मृत्यु। गाँव के लोग कफन-काठी का इन्तजाम करते हैं। चार बेटों की बेसहारा माँ पड़ोस में नौकरानी बन जाती है।
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ग्रामीण जीवन के कथाशिल्पी रामधारी सिह दिवाकर ने बड़े मनोयोग से आज के यथार्थ की यह मार्मिक कथा शिल्पित की है।
Murda-Ghar
- Author Name:
Jagdamba Prasad Dixit
- Book Type:

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Description:
मुरदा-घर सामाजिक विसंगतियों और विषमताओं का यथार्थपूर्ण चित्रण है। वर्तमान अर्थव्यवस्था के तहत गाँवों के उजड़ने की प्रक्रिया जैसे-जैसे तेज़ होती गई, महानगरों में गन्दी बस्तियों और झोंपड़पट्टियों या झुग्गी-झोंपड़ियों का उतनी ही तेज़ी से विस्तार होता गया। इन बस्तियों में मानव-जीवन का जो रूप विकसित हुआ, वह काफ़ी विकृत और अमानवीय है। वेश्यावृत्ति और अपराध-कर्म का यहाँ विशेष रूप से विकास हुआ।
‘मुरदा-घर’ में झोंपड़पट्टी की वेश्याओं की दयनीय स्थिति का शक्तिशाली चित्रण है। विद्रूप यथार्थ ‘मुरदा-घर’ के केन्द्र में ज़रूर है, लेकिन उपन्यास की मुख्य धारा करुणा और संवेदना की है। विकृत से
विकृत स्थितियों से गुज़रते हुए भी उपन्यास के पात्र नितान्त मानवीय और संवेदनशील हैं। ‘मुरदा-घर’ में वर्तमान राज्य-तंत्र के अमानवीय रूप को भी उकेरा गया है। पुलिस-स्टेशन, हवालात, कचहरी वग़ैरह का जो रूप यहाँ सामने आया है, काफ़ी अमानवीय और नृशंस है।
‘मुरदा-घर’ आज की हमारी पूरी व्यवस्था पर एक प्रश्नचिह्न है। जैसा कि एक आलोचक ने कहा है, ‘मुरदा-घर’ आधुनिक हिन्दी उपन्यासों की दुनिया में एक चुनौती है। इसका सामना करना आसान नहीं है।’
Gram Bangla
- Author Name:
Mahashweta Devi
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Description:
‘ग्राम बांग्ला’ में सात उपन्यासिकाएँ हैं—‘ग्राम बांग्ला’, ‘सीमान्त’, ‘अँधेरे की सन्तान’, ‘राजा’, ‘स्वदेश की धूलि’, ‘लाइफर’ और ‘तेपान्तरी’। कहने को ये अलग-अलग उपन्यासिकाएँ हैं लेकिन समग्रता में ये ग्रामीण बंगाल की ताजा तस्वीर बनाती हैं। वैसे ग्रामीण बंगाल भारत के किसी ग्रामीण समाज से अलग नहीं दिखता। थोड़े-बहुत भौगोलिक-सांस्कृतिक अन्तर के बावजूद वह भारतीय ग्रामीण समाज जैसा ही लगता है। हिन्दीभाषी समाज की तो विशेष निकटता बंगाल से रही है।
समाज क्या सिर्फ़ मुख्यधारा—यानी खाते-पीते-अघाए लोगों का होता है? क्या लेखक सिर्फ़ इन्हीं के जीवन के इर्द-गिर्द ध्यान रखता रहेगा? प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के सामने स्पष्ट रहा है कि मुख्यधारा समृद्ध है, मगर संख्या में छोटी है। समाज में बृहत्तर हिस्सा हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों का है। और, ऐसे लोग साहित्य की उपेक्षा के भी शिकार रहे हैं। इसीलिए वे समाज के सीमान्त पर बसे लोगों को अपनी संवेदना-सहानुभूति का केन्द्र बनाती हैं।
इसीलिए वे स्टेशन के फेरीवालों, आदिवासियों, छोटी जगहों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सपेरों, डायन करार दी गई स्त्रियों जैसे चरित्रों एवं छोटी-छोटी संख्या वाले समुदायों पर लिखती हैं। ख़ूब लिखती हैं और कलात्मक उत्कर्ष की परवाह किए बग़ैर लिखती हैं। “अब मुझमें साहित्य के शिल्पगत उत्कर्ष का कोई आग्रह नहीं रहा।” लेकिन नई विषय-वस्तु के सन्धान का उत्साह और साहस उनमें हमेशा बरक़रार रहा।
पूरे संकलन में यह साहस दीखता है। पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय वामपन्थी सरकार द्वारा बटाईदारों के पक्ष में चलाए गए ऑपरेशन वर्गा की असलियत वह बेहिचक सामने लाती हैं। वर्ग-संघर्ष के बारे में वे सवाल करती हैं—यह कैसा वर्ग-संघर्ष है जिसमें एक ही वर्ग के लोग एक-दूसरे के शत्रु बन रहे हैं? 'सीमान्त’ में वे कहती हैं—‘सती-साध्वी होना एक प्रकार का रोग है। एक बार पकड़ लेता है तो कभी छोड़ता नहीं।’ यह संकलन विरल लेखकीय साहस का प्रतिमान है।
Chhattisgarh Ke Vivekanand
- Author Name:
Kanak Tiwari
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Description:
आधुनिक भारतीय मनीषा के अग्रणी उन्नायकों में से एक स्वामी विवेकानन्द विषयक इस पुस्तक का आधार उनके जीवन का वह समय है जो उन्होंने छत्तीसगढ़ की भूमि पर रायपुर में बिताया। उनकी ओजस्वी चेतना के जो स्फुलिंग 11 सितम्बर, 1893 को शिकागो में विस्फोटक ढंग से दुनिया के सामने आए, उनके कुछ बीज निश्चय ही किशोरावस्था के उन ढाई वर्षों में भी पड़े होंगे जब उन्नीसवीं सदी के छत्तीसगढ़ के अभावों का साक्षात्कार उनके आकार लेते मानस से हुआ होगा।
यह आश्चर्यजनक है और दुर्भाग्यपूर्ण भी कि विवेकानन्द के अधिकतर जीवनीकारों ने उनके इस छत्तीसगढ़ प्रवास को अनदेखा किया है। इसलिए ऐसे तथ्य भी सामने नहीं आ सके जिनसे उनके जीवन में 1875 से 1877 के इस कालखंड के महत्त्व को रेखांकित किया जा सके। लेकिन क्या ये सच नहीं है कि व्यक्ति के जीवन में किशोरावस्था के अनुभवों की भूमिका निर्णायक होती है। ज्ञात हो कि विवेकानन्द उस समय 12 वर्ष के थे, जब उनके पिता उन्हें रायपुर लेकर आए और दो वर्ष से ज़्यादा वे यहाँ पर रहे। लोक विश्वास है कि जबलपुर से रायपुर बैलगाड़ी से आते हुए ही उन्हें माँ की गोद में लेटे हुए दिव्य ज्योति के दर्शन हुए थे। यह भी माना जा सकता है कि इसी दौरान उनका परिचय हिन्दी और छत्तीसगढ़ी से हुआ और यहाँ पर उन्हें भारत की ग़ुरबत की वह झलक भी मिली जो उनके व्याकुल चिन्तन का आधार बनी।
यह पुस्तक विवेकानन्द के छत्तीसगढ़ से सम्बन्ध के साथ-साथ उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और वैचारिक सम्पदा को एक जिल्द में समेटने का प्रयास है। विशेषज्ञ विद्वानों द्वारा लिखे आलेखों के अलावा पुस्तक में विवेकानन्द का चर्चित शिकागो व्याख्यान भी प्रस्तुत किया गया है और कुछ अन्य सामग्री भी जो उन्हें समग्रता में समझने में सहायक होगी।
Circus
- Author Name:
Sanjeev
- Book Type:

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Description:
सर्कस आज एक ख़त्म होती हुई कला है। सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन के अभाव, आधुनिक टेक्नोलॉजी-आधारित मनोरंजन के प्रभुत्व और उसकी अपनी आन्तरिक समस्याओं के चलते वह अपनी पारम्परिक जगह को खोता जा रहा है। लेकिन आज भी वह न सिर्फ़ एक बड़े दर्शक वर्ग को आकर्षित करता है, बल्कि एक कौतूहल की रचना भी करता है।
उस विशाल तम्बू के भीतर जहाँ शो शुरू होते ही जैसे ज़िन्दगी और ख़ुशी नाचने लगती है, सुख-दु:ख, आशा-निराशा, यातना और उत्पीड़न का एक भरा-पूरा संसार भी रहता है। ख़ास तौर से भारतीय सर्कस अपने अभावों और भविष्यहीनता के चलते एक बहुस्तरीय यंत्रणा का परकोटा है।
हमारे समय के वरिष्ठ कथाकार संजीव का यह उपन्यास उस दुनिया के भीतर उतरता है; और सर्कस के उन पहलुओं को हमें दिखाता है, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। वह चाहे वहाँ काम करनेवाले लोगों की पीड़ा हो, या जानवरों की, हमें ऐसे अनुभव से रूबरू कराती है जो दर्शक के रूप में हमारे लिए अलभ्य रहे आए हैं।
सर्कस सिर्फ़ शामियाने के भीतर चलनेवाला तमाशा ही नहीं, देश का विराट रूपक भी है जहाँ अभिनेता अपनी-अपनी आकांक्षाओं, द्वन्द्वों और छद्म में साँस लेते हुए दर्शक का मनोरंजन करते हैं।
Shaane Tareekh
- Author Name:
Sudhakar Adeeb
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शेरशाह सूरी महज़ एक बादशाह नहीं ‘शाने तारीख़’ था। वह अपने समय का एक ऐसा व्यक्ति था जो किसी राजवंश में नहीं जन्मा था। एकदम धूल से उठा एक ऐसा व्यक्तित्व था जो संघर्ष की आँधियों में तपकर मध्यकालीन भारत के राजनैतिक आकाश पर एक तूफ़ान की तरह छा गया। एक ऐसा अभूतपूर्व तूफ़ान जो सिर्फ़ पाँच बरस चला, मगर जो अपना असर सदियों तक के लिए इस धरती पर छोड़ गया...
हुमायूँ के सुयोग्य बेटे अकबर ने भी अपने पूर्ववर्ती शेरशाह के सुशासन और उसकी धार्मिक सहिष्णुता का अनुगमन किया और उसके दिखाए मार्ग पर सुदीर्घ काल तक चलकर ही वह महान बना। शेरशाह ने सूत्र रूप में जो राजकाज के सिद्धान्त दिए उन्हें और भी विकसित कर जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर इतिहास में अपना नाम अमर कर गया। लेकिन जो लोग अपनी राह ख़ुद बनाते हैं, इतिहास में उनका नाम चाहे जितना श्वेत और श्याम हो, समय उनसे प्रेरित होकर उसमें नित नए रंग भरता है। शेरशाह सूरी इस लिहाज़ से अकबर महान से भी अधिक एक रचनात्मक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति और उससे बड़ा राष्ट्र-निर्माता था। यदि उसे अपने जीवन में दस-पन्द्रह बरस और मिले होते तो शायद लोग अकबर को भी उस तरह याद न करते जैसा आज करते हैं। शेरशाह वास्तव में इतिहास का गौरव था और अपनी इसी अद्वितीयता के कारण सदैव रहेगा !...
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