Chitralekha
Author:
Bhagwaticharan VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction2 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
चित्रलेखा’ न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलानेवाला पहला उपन्यास है, बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है।
‘चित्रलेखा’ की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? —इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमशः सामन्त बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। इनके साथ रहते हुए श्वेतांक और विशालदेव नितान्त भिन्न जीवनानुभवों से गुज़रते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी है, "संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।
ISBN: 9788126715855
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अग्निलीक’ उपन्यास आज़ादी के उत्तरार्द्ध की वह कथा है जिसके रक्त में आज़ादी के पूर्वार्द्ध यानी अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के गर्व की गरमाहट तो है, लेकिन अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कभी जो हिदू-मुसलमान एक साथ लड़े थे, आज उसी ज़मीन पर बदली हुई राजनीति का खेल ऐसा कि उनके मंतव्य भी बदल गए है और मंसूबे भी। यह हिन्दी का सम्भवत: पहला उपन्यास है जिसमें हिन्दू-मुसलमान अपनी जातीय और वर्गीय ताक़त के साथ उपस्थित हैं। और यही कारण कि कथा शमशेर साँई के क़त्ल से शुरू होती है, उसकी गुत्थी मुखिया लीलाधर यादव और सरपंच अकरम अंसारी के बीच अन्तत: रहस्यमय बनी रहती है। क़ानून भी ताक़त के साथ ही खड़ा। असल में टूटते-छूटते सामन्तवाद के युग में अपने वर्चस्व को बनाए रखने की राजनीति क्या हो सकती है, इसे भावी मुखिया लीलाधर यादव की पोती रेवती के ज़रिए जिस रणनीति को लेखक ने गहराई से साधा है, उससे न सिर्फ़ बिहार को बल्कि भारतीय राजनीति में गहरी ज़ड़े जमा चुके वंशवाद को भी देखा-समझा जा सकता है। साथ ही यह भी कि इसको मज़बूत बनाने में रेशमा कलवारिन के रूप में उभरती हुई स्त्री-शक्ति का भी इस्तेमाल कितनी चालाकी से किया जा सकता है।
‘अग्निलीक’ अपने काल के घटना-क्रम में जीवन के कई मोड़ों से गुज़री रेशमा कलवारिन के साथ-साथ कई अन्य स्त्री-चरित्रों की अविस्मरणीय कथा बाँचता उपन्यास है। वह चाहे कभी प्रेम में रँगी यशोदा हो या उनकी पोती रेवती जिसके प्रेमी की उसका भाई ही अछूत होने के कारण हत्या कर देता है। सरपंच अकरम अंसारी के साथ बिन ब्याहे रहनेवाली उसी की फूफेरी बहन मुन्नी बी हो या शमशेर साँई को बेवा गुलबानो; सब अलग होते हुए भी उपन्यास को मुख्य कथा से अभिन्न रूप में जुड़े हुए हैं। यह उपन्यास महात्मा गाँधी के सपनों के गाँवों का उपन्यास नहीं है, इसमें वे गाँव हैं जो ‘हिन्द स्वराज’ की क़ब्र पर खड़े हैं। यहाँ जो हैं कलाली के धंधे में हैं, गंजेड़ी-जुआरी भी हैं। यहाँ राजनीति में प्रतिद्वंद्वी कट्टर दुश्मन हैं। जिन्हें अपने बच्चों की शिक्षा की फिक्र है, गाँव छोड़ चुके हैं। लेकिन हाँ, यहाँ जो स्त्रियाँ हैं, वे सिर्फ भोग की वस्तु नहीं हैं, मुक्ति का साहस भी रचना जानती हैं।
अग्निलीक पुरबियों के जीवन-यथार्थ की दुर्लभ कथा है।
Lajja
- Author Name:
Ilachandra Joshi
- Book Type:

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कमलिनी (सेक्रेटरी का यही नाम था) इस ढंग से मुस्कराने लगी जैसे वह मेरे दिल की सब बातें ताड़ गई हो। बोली, “ऐसे गुणवान पुरुष को स्त्रियों की महफ़िल में लाना क्या ख़तरे की बात नहीं है?” मैंने पूछा, “ख़तरा कैसा?” “अरी पगली, समझती नहीं? तेरे अनुमोदित और इच्छित पुरुष की आँखें जब इतनी अलबेली नारियों पर दौड़ेंगी तो क्या फिर वह तेरी परवाह करेगा?” “दुर। कहके मैंने, गुस्से में आकर उसकी पीठ पर एक धौल जमा दी। पर उसकी इस बात से मेरे हृदय में भय का संचार होने लगा। कमलिनी ने कहा, “अच्छी बात है। मुझे कोई एतराज़ नहीं। पर मैं सावधान किए देती हूँ। पीछे पछताना पड़ेगा।" यूनिवर्सिटी के लड़कों और प्रोफ़ेसरों के साथ कमलिनी की बड़ी घनिष्ठता थी। बहुत सम्भव है, उन लोगों के स्वभाव से परिचित होने पर वह पुरुषों की प्रकृति से अभिज्ञ हो चुकी थी। उसकी बात से कुछ भय होने पर भी मुझे विशेष चिन्ता नहीं हुई। मुझे अपने रूप-गुण का बड़ा घमंड था। किसी व्यक्ति को मुझे छोड़कर अन्यत्र जाने का लोभ हो सकता है, यह आशंका मेरे हृदय में उत्पन्न नहीं हो सकती थी।
—इसी पुस्तक से।
Murdon Ka Tila
- Author Name:
Rangeya Raghav
- Book Type:

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भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का इतिहास मुअनजोदड़ो के उत्खनन में मिली सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होता है। इस सभ्यता का विकसित स्वरूप उस समय की ज्ञात किसी सभ्यता की तुलना में अधिक उन्नत है। प्रसिद्ध उपन्यासकार रांगेय राघव ने अपने इस उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ में उस आदि सभ्यता के संसार का सूक्ष्म चित्रण किया है। मोअन-जो-दड़ो सिन्धी शब्द है। उसका अर्थ है—मृतकों का स्थान अर्थात् ‘मुर्दों का टीला’।
‘मुर्दों का टीला’ शीर्षक इस उपन्यास में रांगेय राघव ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन-जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है। इतिहास की पुस्तकों में तो इस सभ्यता के बारे में महज़ तथ्यात्मक विवरण ही मिल पाते हैं। लेकिन रांगेय राघव के इस उपन्यास के सहारे हम सिन्धु घाटी सभ्यता के समाज की जीवित धड़कनें सुनते हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्वरूप क्या था? उस समाज के लोगों की जीवन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? रीति-रिवाज कैसे थे? शासन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? इन प्रश्नों का इतिहाससम्मत उत्तर आप इस उपन्यास में पाएँगे। भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अद्वितीय उपन्यास है। रांगेय राघव का यह उपन्यास प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में प्रवेश का पहला दरवाज़ा है।
Terodaiktil
- Author Name:
Mahashweta Devi
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भारत की आदिवासी जनजाति की चेतना, संस्कृति, उत्पीड़न, संघर्ष और मानवीय गरिमा का एक और ज्वलन्त प्रमाण प्रस्तुत करनेवाली अप्रतिम कथाकार महाश्वेता देवी की नवीनतम कथाकृति है— ‘टेरोडैक्टिल’ जिसमें यथार्थ और फ़ैंटेसी के अद्भुत समन्वय से ऐसे वातावरण का सृजन किया गया है जो न केवल जनजातियों की भौतिक पीड़ाओं को स्वर देता है। अपितु उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी नए आयाम देता है और उनके प्रति मुख्य धारा के विकसित भारतीय जनमानस के दायित्वों के प्रति उसे सतर्क करता है।
टेरोडैक्टिल एक अर्धमानव, अर्धपक्षी जीव है जो नागेसिया आदिवासी जाति के पूर्वपुरुषों की आत्मा के रूप में अवतरित होता है और शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध उस पूरी जाति के संघर्ष को एक नए मिथ से जोड़ता है।
मध्य प्रदेश के एक काल्पनिक पहाड़ी स्थल—पिरथा—की पृष्ठभूमि में रचित यह उपन्यास पाठक को सर्वग्रासी पूँजीवादी प्रगति और आदिम समाजवादी सांस्कृतिक, सामाजिक परम्परा के बीच दो जीवन-पद्धतियों और दो प्रकार के जीवन-मूल्यों के संघात को दर्शाता है। पूरे कथानक में अद्भुत और सामान्य, चिरन्तन और आधुनिक का ऐसा सन्तुलन पैदा किया गया है कि पाठक साँस रोके आधिभौतिक से भौतिक जगत् तक की यात्रा करता हुआ उस मानवीय त्रासदी का साक्षात्कार करता है, जो उसके वर्तमान ही नहीं उसके भविष्य को भी उघाड़कर उसके सामने रख देता है।
Akbar
- Author Name:
Shazi Zaman
- Book Type:

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''हिन्दू गाय खाएँ, मुसलमान सूअर खाएँ...” 3 मई, 1578 की चाँदनी रात को कोई भी हिन्दुस्तान के बादशाह अबुल मुज़फ़्फ़र जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की इस बात को समझ नहीं पाया। इसीलिए उस वक़्त उनकी इस कैफ़ियत को 'हालते अजीब’ कहा गया। सत्ता के शीर्ष पर खड़ा ये बादशाह अपनी ज़िन्दगी में कभी कोई जंग नहीं हारा। लेकिन अब एक बहुत बड़ी और ताक़तवर सत्ता उसके सब्र का इम्तिहान ले रही थी। बादशाह अकबर का संयम टूट रहा था और उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा संघर्ष शुरू होने को था।
कई रोज़ पहले लगभग पचास हज़ार शाही फ़ौजियों ने सल्तनत की सरहद के क़रीब एक बहुत बड़ा शिकारी घेरा बाँधा था। बादशाह अकबर के पूर्वज अमीर तैमूर और चंगेज़ ख़ान के तौर-तरीक़े के मुताबिक़ ये घेरा पल-पल कसता गया और अब वो वक़्त आ पहुँचा जब शिकार बादशाह सलामत के पहले वार के लिए तैयार था। लेकिन उस मुक़ाम पर आकर बादशाह अकबर ने एक हैरतअंगेज़ क़दम उठा लिया...
ये उपन्यास लेखक ने बाज़ार से दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर रचा है। बादशाह अकबर और उनके समकालीन के दिल, दिमाग़ और दीन को समझने के लिए और उस दौर के दुनियावी और वैचारिक संघर्ष की तह तक जाने के लिए शाज़ी ज़माँ ने कोलकाता के इंडियन म्यूजि़यम से लेकर लन्दन के विक्टोरिया एंड ऐल्बर्ट तक बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनवाई गई तस्वीरों पर ग़ौर किया, बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया और 'अकबरनामा’ से लेकर 'मुन्तख़बुत्तवारीख़’, 'बाबरनामा’, 'हुमायूँनामा’ और 'तजि्करातुल वाक़यात’ जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव सन्तों और ईसाई पादरियों की लेखनी का अध्ययन किया। इस खोज में 'दलपत विलास’ नाम का अहम दस्तावेज़ सामने आया जिसके गुमनाम लेखक ने 'हालते अजीब’ की रात बादशाह अकबर की बेचैनी को क़रीब से देखा। इस तरह बनी और बुनी दास्तान में एक विशाल सल्तनत और विराट व्यक्तित्व के मालिक की जद्दोजहद दर्ज है। ये वो शख़्सियत थी जिसमें हर धर्म को अक़्ल की कसौटी पर आँकने के साथ-साथ धर्म से लोहा लेने की हिम्मत भी थी। इसीलिए तो इस शक्तिशाली बादशाह की मौत पर आगरा के दरबार में मौजूद एक ईसाई पादरी ने कहा, ''ना जाने किस दीन में जिए, ना जाने किस दीन में मरे।”
A Soldier's Daughter
- Author Name:
Nupur Luthra
- Book Type:

- Description: This is the life story of a young girl who is an army officer's daughter. Brought up in the private army quarters, she somehow prefers to lead an everyday civilian life. Despite her parents' (army officers) insistence, she opts out of any profession remotely related to "Army, Navy or Air-force". From schooling to college to professional life, she is perennially confused if she belongs to the elite army circle or the mundane civilian world. Having a first-hand experience of living both lives, she narrates the exciting events from her dual life. From the best of both lives to the worst, she gives an unbiased account of what it is to be a part of the army and yet lives a civilian life. An exciting account of a young girl who reveals what it is to live two lives at once!
Revolution Highway
- Author Name:
Dilip Simeon
- Book Type:

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‘रिवोल्यूशन हाइवे’ बेचैन दशक के नाम से विख्यात, पिछली सदी के सातवें दशक की स्मृतियों के गम्भीर, विचारोत्तेजक और संवेदनशील मन्थन का आख्यान है। नक्सलबाड़ी का किसान-विद्रोह, उस विद्रोह में बुद्धिजीवियों, छात्रों की भागीदारी, बांग्लादेश का जन्म, वियतनाम युद्ध और विश्वव्यापी छात्र-असन्तोष इस आख्यान की पृष्ठभूमि में हैं।
नक्सलवादी आन्दोलन के उस दौर में लेखक की व्यक्तिगत संलग्नता जहाँ इस उपन्यास को सर्जनात्मक संस्मरण की विश्वसनीयता देती है, वहीं समूचे घटनाक्रम पर नैतिक पुनर्विचार का साहस 'रिवोल्यूशन हाइवे' को एक वैचारिक चुनौती के धरातल पर भी ले जाता है। यह कथा हिंसा-अहिंसा, इतिहास-राजनीति, सही-ग़लत, वर्तमान-भविष्य के यक्ष-प्रश्नों से जूझती बेचैन आत्माओं की कथा है।
'रिवोल्यूशन हाइवे' भीतर-बाहर के द्वन्द्वों में व्याप्त जीवनानुभव और मोहभंग पर विचार-पुनर्विचार के ज़रिए अर्जित होनेवाले विवेक की कथा है। प्रतिशोध से पगलाया, विवेक-मणि से वंचित अमरता का अभिशाप ढो रहा अश्वत्थामा इस आख्यान की मूल वेदना का रूपक है। उपन्यास एक तरह से अश्वत्थामा की आत्मा की शान्ति का अनुष्ठान भी है।
—पुरुषोत्तम अग्रवाल
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