Akbar
Author:
Shazi ZamanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
''हिन्दू गाय खाएँ, मुसलमान सूअर खाएँ...” 3 मई, 1578 की चाँदनी रात को कोई भी हिन्दुस्तान के बादशाह अबुल मुज़फ़्फ़र जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की इस बात को समझ नहीं पाया। इसीलिए उस वक़्त उनकी इस कैफ़ियत को 'हालते अजीब’ कहा गया। सत्ता के शीर्ष पर खड़ा ये बादशाह अपनी ज़िन्दगी में कभी कोई जंग नहीं हारा। लेकिन अब एक बहुत बड़ी और ताक़तवर सत्ता उसके सब्र का इम्तिहान ले रही थी। बादशाह अकबर का संयम टूट रहा था और उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा संघर्ष शुरू होने को था।</p>
<p>कई रोज़ पहले लगभग पचास हज़ार शाही फ़ौजियों ने सल्तनत की सरहद के क़रीब एक बहुत बड़ा शिकारी घेरा बाँधा था। बादशाह अकबर के पूर्वज अमीर तैमूर और चंगेज़ ख़ान के तौर-तरीक़े के मुताबिक़ ये घेरा पल-पल कसता गया और अब वो वक़्त आ पहुँचा जब शिकार बादशाह सलामत के पहले वार के लिए तैयार था। लेकिन उस मुक़ाम पर आकर बादशाह अकबर ने एक हैरतअंगेज़ क़दम उठा लिया...</p>
<p>ये उपन्यास लेखक ने बाज़ार से दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर रचा है। बादशाह अकबर और उनके समकालीन के दिल, दिमाग़ और दीन को समझने के लिए और उस दौर के दुनियावी और वैचारिक संघर्ष की तह तक जाने के लिए शाज़ी ज़माँ ने कोलकाता के इंडियन म्यूजि़यम से लेकर लन्दन के विक्टोरिया एंड ऐल्बर्ट तक बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनवाई गई तस्वीरों पर ग़ौर किया, बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया और 'अकबरनामा’ से लेकर 'मुन्तख़बुत्तवारीख़’, 'बाबरनामा’, 'हुमायूँनामा’ और 'तजि्करातुल वाक़यात’ जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव सन्तों और ईसाई पादरियों की लेखनी का अध्ययन किया। इस खोज में 'दलपत विलास’ नाम का अहम दस्तावेज़ सामने आया जिसके गुमनाम लेखक ने 'हालते अजीब’ की रात बादशाह अकबर की बेचैनी को क़रीब से देखा। इस तरह बनी और बुनी दास्तान में एक विशाल सल्तनत और विराट व्यक्तित्व के मालिक की जद्दोजहद दर्ज है। ये वो शख़्सियत थी जिसमें हर धर्म को अक़्ल की कसौटी पर आँकने के साथ-साथ धर्म से लोहा लेने की हिम्मत भी थी। इसीलिए तो इस शक्तिशाली बादशाह की मौत पर आगरा के दरबार में मौजूद एक ईसाई पादरी ने कहा, ''ना जाने किस दीन में जिए, ना जाने किस दीन में मरे।”
ISBN: 9789388933599
Pages: 342
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र-छात्राओं ने एक समिति बनाई है, जिसका नाम रखा गया है—‘कटीली राह के फूल’। इसका उद्देश्य है—उत्पीड़ित, उपेक्षित तथा आर्थिक रूप से विपन्न लोगों की समस्याओं को जानना और बिना सरकारी सहयोग के जितना भी सम्भव हो सके, उनकी मदद करना। कामिनी इस समिति के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है।
अनूप कुमार गाँव से यूनिवर्सिटी में शिक्षा के लिए आया है। अपने सहपाठी धीरेन्द्र के घर पर उसकी बहन कामिनी से अनूप की भेंट होती है तो मधु से उसकी बुआ के घर पर, जहाँ वह किराए पर रहता है।
और यहीं से त्रिकोणीय प्रेम का सिलसिला शुरू होता है। कामिनी इतनी ख़ूबसूरत नहीं है कि देखते ही उस पर कोई लट्टू हो जाए, जबकि मधु धनवान माँ-बाप की लाडली बेटी है, और बला की ख़ूबसूरत भी।
कामिनी गम्भीर और साहसी है। उसमें शिष्टता और स्पष्टता है, आगे बढ़ने की इच्छा है। उसमें परिस्थिति की समझ तथा उद्देश्य की व्यापकता है; जबकि मधु में स्वार्थ, संकीर्णता और दुर्बलता है, दोनों में तीन और छह का सम्बन्ध है।
हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार अमरकान्त का रोचक उपन्यास है—‘कटीली राह के फूल’। अपने इस पठनीय उपन्यास में लेखक ने जहाँ शिक्षा-जगत की आपसी खींचतान को उजागर किया है, वहीं ग्रामीण और शहरी परिवेश के बीच की दूरी के उद्घाटन के साथ-साथ त्रिकोणीय प्रेम की अनेक बार कही गई कथा को एक नए ढंग से एक वैचारिक पृष्ठभूमि के साथ कहा है।
Zameen Apni To Thi
- Author Name:
Jagdish Chandra
- Book Type:

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Description:
जगदीश चन्द्र के पूर्व प्रकाशित ‘नरककुंड में बास’ और ‘धरती धन न अपना’—इन दोनों उपन्यासों के विस्तार के पीछे भारतीय दलित समाज की अवस्था–दुरावस्था को उसके विविध चरणों में विकासात्मक रूप से पकड़ने का भाव छिपा था। आज़ादी के पहले का घोड़ेवाहा का दलित काली ‘धरती धन न अपना’ से जब ‘नरककुंड में बास’ के तहत सामने आता है तो युग स्थितियों का परिवर्तन ही साफ़ लक्षित नहीं होता, इस परिवर्तन के सम्बन्धगत और भावगत रूपाकार भी पकड़ में आने लगते हैं।
काली अब निरे सामन्तीय सम्बन्धों से बाहर आकर जालन्धर के अर्ध–सामन्तीय, अर्ध–पूँजीवादी हालातों
का शिकार है, यहाँ उसका शोषण करनेवाले टेनरीज़ के उसी के वर्ग से सम्बन्ध रखनेवाले मालिक ही नहीं, दलितों का नेतृत्व करने का दावा करनेवाले उनके अपने राजनेता भी हैं।
आज़ाद भारत में अब दलित वर्ग के उभार के अनेक सकारात्मक पहलुओं के साथ–साथ कुछ ऐसे पहलू भी उभरने शुरू हो गए थे, जिनमें प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियों के बीज छिपे थे। जगदीश जी अक्सर यह बात दोहराते थे कि ‘नरककुंड में बास’ के आख़िरी खंडों में काली अपने साथी मज़दूरों का छोटा–मोटा लीडर ज़रूर बनता है पर मज़दूरों से एलिएनेट हो रहा है क्योंकि वे उसे मालिकों का पिट्ठू समझते हैं। जगदीश जी इस गहरी सामाजिक प्रक्रिया को और ब्योरे व तफसील के साथ समझना चाह रहे थे जिसकी परिणति अन्तत: ‘ज़मीन अपनी तो थी’ के रूप में हुई।
इस उपन्यास का काली साहसी है, निडर है, क्रोध करने में सक्षम है, अपने काम और अपनी परम्परा पर गर्व करता है, और आख़िर में अपने बेटे के रूप में अपनी परम्परा को बदलते और एक नितान्त भिन्न राह पकड़ते देखता है।
Khalistan Shadyantra Ki Inside Story
- Author Name:
G.B.S. Sidhu
- Book Type:

- Description: आखिर 1 अकबर रोड ग्रुप पंजाब/खालिस्तान समस्या का क्या अंतिम समाधान चाहता था? अकाली दल के उदार नेताओं से बातचीत कर समझौते तक पहुँचने की संभावना को मई 1984 के आखिर तक क्यों अधर में रखा गया, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुछ ही दिन रह गए थे? आखिर कैसे, जिस रॉ के लिए सिख उग्रवाद और खालिस्तान 1979 के आखिर तक कोई मुद्दा नहीं था, वही 1980 के अंत में अचानक उससे निपटने में शामिल हो गया? आखिर क्यों स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरावाले को पकड़ने के लिए सुझाए गए कम नुकसानदेह उपायों को ठुकरा दिया गया? लेखक भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी हैं, जो आपस में जुड़ी कई घटनाओं की समीक्षा करते हैं—खालिस्तान आंदोलन, ऑपरेशन ब्लू स्टार, 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद हुई सिख-विरोधी हिंसा। 1984 से सात साल पहले से लेकर उसके एक दशक बाद के घटनाक्रम का जिक्र करती यह पुस्तक उन महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब देने का प्रयास करती है जो आज भी बरकरार हैं। कहानी पंजाब से कनाडा, अमेरिका, यूरोप और दिल्ली तक घूमती है तथा राजनीतिक भ्रमजालों एवं अवसरवाद के बीच से सच को बाहर लाने की कोशिश करती है। हजारों बेकसूर लोगों की जिंदगी को निगल जानेवाली हृदय-विदारक हिंसा और सत्ताधारी दल की ओर से कथित तौर पर निभाई गई भूमिका की छानबीन करती है।
Maai
- Author Name:
Geetanjali Shree
- Book Type:

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Description:
उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर की बड़ी-सी ड्योढ़ी में बसे परिवार की कहानी। बाहर हुक्म चलाते रोबीले दादा, अन्दर राज करतीं दादी। दादी के दुलारे और दादा से कतरानेवाले बाबू। साया-सी फिरती, सबकी सुख-सुविधाओं की संचालक माई। कभी-कभी बुआ का अपने पति के साथ पीहर आ जाना। इस परिवार में बड़ी हो रही एक नई पीढ़ी—बड़ी बहन और छोटा भाई। भाई जो अपनी पढ़ाई के दौरान बड़े शहर और वहाँ से विलायत पहुँच जाता है और बहन को ड्योढ़ी के बाहर की दुनिया में निकाल लाता है। बहन और भाई दोनों ही न्यूरोसिस की हद तक माई को चाहते हैं, उसे भी ड्योढ़ी की पकड़ से छुड़ा लेना चाहते हैं।
बेहद सादगी से लिखी गई इस कहानी में उभरता है आज़ादी के बाद भी औपनिवेशिक मूल्यों के तहत पनपता मध्यवर्गीय जीवन, उसके दु:ख-सुख, और सबसे अधिक औरत की ज़िन्दगी। बग़ैर किसी भी प्रकार की आत्म-दया के। पर शिल्प की यह सादगी भ्रामक सादगी है। इसमें छिपे हैं कचोटते सवाल और पैनी सोच।
कहानी तो एक बहाना है बड़ी-बड़ी कहानियों तक ले जाने का। ‘माई’ में हर बात किसी संकेत से होती है, और हर संकेत के आगे-पीछे भरी-पूरी कहानी का आभास होता है। पर कहानी कही नहीं जाती। मानो बात को पकड़ पाना उसको झुठला देना है, उस पर अपनी नज़र थोप देना है।
असल में अपने देखे और समझे के प्रति शक को लेकर ‘माई’ की शुरुआत होती है। माई को मुक्त कराने की धुन में बहन और भाई उसको उसके रूप और सन्दर्भ में देख ही नहीं पाते। उनके लिए—उनकी नई पीढ़ी के सोच के मुताबिक—माई एक बेचारी भर है। वे उसके अन्दर की रज्जो को, उसकी शक्ति को, उसके आदर्शों को—उसकी आग को देख ही नहीं पाते। अब जबकि बहन कुछ-कुछ यह बात समझने लगी है, उसके लिए ज़रूरी हो जाता है कि वह माई की नैरेटर बने।
Dudiya : Tere Jalte Hue Mulk Mein
- Author Name:
Vishwash Patil
- Book Type:

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Description:
शाश्वत सत्य यह था कि आदिवासी जंगल की सन्तान हैं। मगर वस्तुस्थिति यह थी कि उनमें से किसी के पास भी जंगल की जमीन का कोई पट्टा नहीं लिखा था। न ही उनमें इतनी समझ थी कि उस जमीन को अपने नाम लिखाकर रखें। अपने पूर्वजों की तरह वह उस जमीन पर खेती करते थे। जंगल से जीवन यापन करते थे। लेकिन साठ के दशक में अचानक वन अधिकारी नए नियम-कायदों की लाठी से लैस होकर वहाँ घुस गए। आदिवासियों को चूल्हे में जलाने के लिए, जंगलों की सूखी लकड़ियाँ बीनने तक से रोका जाने लगा। उनके भेड़-बकरियों को जंगल में चराने पर रोक लगा दी गई। आदिवासी स्तब्ध रह गए कि यह क्या! जहाँ वे अपना हक समझते थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन जंगलों में रहते थे, वहाँ किसका राज आ गया।
–इसी पुस्तक से
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