Chanakya
Author:
Bhagwaticharan VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
<span style="font-weight: 400;">चाणक्य सुविख्यात उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा की अन्तिम कथाकृति है। मगध-सम्राट् महापद्म नन्द और उसके पुत्रों द्वारा प्रजा पर जो अत्याचार किए जा रहे थे, राज्यसभा में आचार्य विष्णुगुप्त ने उनकी कड़ी आलोचना की; फलस्वरूप नन्द के हाथों उन्हें अपमानित होना पड़ा। विष्णुगुप्त का यही अपमान अन्ततः उस महाभियान का आरम्भ सिद्ध हुआ, जिससे एक ओर तो आचार्य विष्णुगुप्त ‘चाणक्य’ के नाम से विख्यात हुए और दूसरी ओर मगध-साम्राज्य को चन्द्रगुप्त-जैसा वास्तविक उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भगवती बाबू ने इस उपन्यास में इसी ऐतिहासिक कथा की परतें उघाड़ी हैं। लेकिन इस क्रम में उनकी दृष्टि एक पतनोन्मुख राज्य-व्यवस्था के वैभव-विलास और उसकी उन विकृतियों का भी उद्घाटन करती है जो उसे मूल्य-स्तर पर खोखला बनाती हैं और काल-व्यवधान से परे आज भी उसी तरह प्रासंगिक हैं।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इस उपन्यास की प्रमुख विशेषता यह भी है कि चाणक्य यहाँ पहली बार अपनी समग्रता में चित्रित हुए हैं। उनके कठोर और अभेद्य व्यक्तित्व के भीतर भगवती बाबू ने नवनीत-खंड की भी तलाश की है। अपने महान जीवन-संघर्ष में स्वाभिमानी, संकल्पशील, दूरद्रष्टा और अप्रतिम कूटनीतिज्ञ के साथ-साथ वे एक सुहृद् प्रेमी और सद्गृहस्थ के रूप में भी हमारे सामने आते हैं। निश्चय ही, ‘चित्रलेखा’ और ‘युवराज चूण्डा’ जैसे ऐतिहासिक उपन्यासों के क्रम में लेखक की यह कृति भी स्मरणीय है।</span>
ISBN: 9788126716760
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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आम इनसानों से लेकर ऋषि-मुनियों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और घुमक्कड़ों के लिए हिमालय का आकर्षण हर काल में रहा है। इनमें से कुछ लोग तो यहाँ आए और यहीं के होकर रह गए। सैन्य जीवन की जटिलताओं से निकल कर आए ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक फिरंगी सैन्य अधिकारी फ्रेडरिक विल्सन की कहानी कुछ ऐसी ही थी। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अदम्य उद्यमशीलता के बलबूते उसने अपनी शरण स्थली गढ़वाल, हिमालय के हर्षिल क्षेत्र को आजीवन कर्मस्थली में परिणित कर दिया था। लगभग चार दशक तक उसके नाम का डंका ऐसे बजा कि तत्कालीन जनसाधारण से लेकर विशिष्ट जनों के मध्य वह ‘हर्षिल का राजा’ के रूप में चर्चित हो गया था। फ्रेडरिक विल्सन की उद्यमी सफलता की कहानियाँ आज भी गढ़वाली समाज में खूब कही और सुनी जाती हैं। गढ़वाल, हिमालय में उन्नीसवीं शताब्दी में एक तरफ वह प्रकृति का क्रूर विदोहक माना गया तो दूसरी ओर सर्वांगीण विकास का नव-प्रवर्तक भी साबित हुआ।
‘फिरंगी राजा’ में राजगोपाल सिंह वर्मा ने गढ़वाल में बीती विल्सन की जीवन-यात्रा को तत्कालीन स्थानीय वन्यता, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, शासन-प्रशासन की कार्यशैली और विकास के विभिन्न पड़ावों के साथ बेहद खूबसूरत अन्दाज में रेखांकित किया है। यह उपन्यास उन्नीसवीं सदी के गढ़वाल का इतिहास नहीं है, पर उस कालखंड के मर्म को बखूबी उद्घाटित करता है। मानवीय साहस-दुस्साहस और उसकी प्रकृति के प्रति व्यवहार की परिणिति को विल्सन के उत्थान और अवसान के जरिये उपन्यासकार ने प्रभावी तथ्यों के साथ सामने रखा है। विल्सन की वेदना के माध्यम से यह उपन्यास हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहने का संदेश ही नहीं देता वरन उससे बढ़कर एक उपयोगी और कारगर नीति की रूपरेखा भी पेश करता है। इन अर्थों में यह उपन्यास नीति नियन्ताओं के लिए एक प्रामाणिक दस्तावेज की तरह है। उपन्यास में लेखक ने गढ़वाल के इतिहास में अकारण ही भुला दिये गए नायक/प्रतिनायक फ्रेडरिक विल्सन के समूचे जीवन और परिवेश को पठनीय रोचकता के साथ रचा है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
—डॉ. अरुण कुकसाल
Pehla Aadmi
- Author Name:
Albert Camus
- Book Type:

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Description:
पहला आदमी कामू का अन्तिम उपन्यास है। एक प्रकार से यह उनकी आत्मकथात्मक कृति है।
1960 में हुई एक कार दुर्घटना में जब कामू की मृत्यु हुई तो उनके हाथ में थमे ब्रीफकेस में इस उपन्यास की पांडुलिपि थी; काफी कुछ अधूरी और असंशोधित।
कामू की पत्नी ने इसे प्रकाशित नहीं होने दिया था। कई वर्ष बाद 1993 में अपनी माँ के निधन के बाद कामू की पुत्री कैथरीन ने ‘पहला आदमी’ बिना किसी संशोधन के प्रकाशित करने का निर्णय लिया। चूँकि लिखने के दौरान कामू द्वारा पांडुलिपि पर अंकित टिप्पणियाँ और परिवर्तन के लिए स्वयं को दी गई हिदायतें भी प्रकाशित की गईं इसलिए यह उपन्यास कामू के शोधार्थियों के लिए अमूल्य दस्तावेज़ और विश्व साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण घटना साबित हुआ। ‘पहला आदमी’ ने कामू के उन आलोचकों को भी शान्त कर दिया जो कहते थे कि ‘प्लेग’ के बाद कामू की सर्जनात्मक क्षमता चुक गई थी। ‘पहला आदमी’ में अपने पिता की खोज करता हुआ चालीस वर्षीय नायक जाक कारमॅरी अपने अतीत पर एक गहरी निगाह डालता है और अपनी अभाव से भरी ज़िन्दगी में भी जीवित रहने की गहरी इच्छा का परिचय देता है। कामू इस कृति में आत्मकथ्य के ज़रिए ग़रीबी का सामाजिक इतिहास रचते चले जाते हैं।
उपन्यास दो भागों में विभक्त है : ‘पिता की खोज’, और ‘पुत्र’। वह पिता जिसकी खोज नायक कर रहा है, कामू के पिता की तरह ही पहले विश्वयुद्ध में मारा जा चुका है। कारमॅरी की माँ का अनपढ़, बहरा, मितभाषी होना और चुपचाप यातनाएँ झेलते रहना पिता की खोज में उसी तरह बाधा डालता है जैसे कामू की माँ के स्वभाव ने उनके वास्तविक जीवन में बाधा डाली थी।
इस उपन्यास का शीर्षक ‘पहला आदमी’—चर्चा का विषय रहा है। कौन है यह पहला आदमी—पिता, पुत्र या वह अल्जीरिया निवासी, फ्रांसीसी या अरब या कोई भी वह निर्धन आदमी जिसकी मृत्यु के साथ उसका नाम-निशान तक मिट जाता है, कुछ शेष नहीं रहता? यह उपन्यास आपको भी यह उत्तर ढूँढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।
दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में अनूदित इस उपन्यास को सीधे फ्रेंच से हिन्दी में भाषान्तरित किया है डॉ. शरद चन्द्रा ने।
Aligarh Muslim University
- Author Name:
Rajkumar Fulwariya +1
- Book Type:

- Description: Aligarh Muslim University is among the prestigious Central University of our nation but unfortunately there has been a never ending controversy over its minority characteristic right from its establishment till date. In fact, right from its very establishment it has always been considered as a Central University by the Constituent Assembly, Parliament as well as the Judiciary; Apart from this, even its founders too always accepted the fact that the University is open to the people of all the section and religion of the nation. One of the object of this booklet is also that because Aligarh Muslim University is the national heritage of our nation i.e. India, therefore because of the fact that it is a Central University SC/ST/OBCs should get reservation under the National Reservation Policy in the University. This University must have a vital role in nation building and social justice. Reservation to SC/ST/OBCs is provided in all the Central Universities and it should also be given in the Aligarh Muslim University. This is the ultimate object of this book.
Ek Thag Ki Dastan
- Author Name:
Filip Midoz Teilar
- Book Type:

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Description:
700 से अधिक हत्याएँ करके अपराध के महासिन्धु में डूबा हुआ अमीर अली जेल में सामान्य बन्दियों से पृथक् बड़े ठाट-बाट से रहता था। वह साफ़ कपड़े पहनता, अपनी दाढ़ी सँवारता और पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करता था। उसकी दैनिक क्रियाएँ नियमपूर्वक चलती थीं। अपराधबोध अथवा पश्चात्ताप का कोई चिह्न उसके मुख पर कभी नहीं देखा गया। उसे भवानी की अनुकम्पा और शकुनों पर अटूट विश्वास था। एक प्रश्न के उत्तर में उसने कहा था कि भवानी स्वयं उसका शिकार उसके हाथों में दे देती हैं, इसमें उसका क्या कसूर? और अल्लाह की मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। उसका यह भी कहना था कि यदि वह जेल में न होता तो उसके द्वारा शिकार हुए यात्रियों की संख्या हज़ार से अधिक हो सकती थी।
प्रस्तुत पुस्तक ‘एक ठग की दास्तान’ 19वीं शताब्दी के आरम्भ काल में मध्य भारत, महाराष्ट्र तथा निजाम के समस्त इलाक़ों में सड़क-मार्ग से यात्रा करनेवाले यात्रियों के लिए आतंक का पर्याय बने ठगों में सर्वाधिक प्रसिद्ध अमीर अली के विभिन्न रोमांचकारी अभियानों की तथ्यपरक आत्मकथा है। इसे लेखक ने स्वयं जेल में अमीर अली के मुख से सुनकर लिपिबद्ध किया है।
औपन्यासिक शैली में प्रस्तुत अत्यधिक मनोरंजक आत्मकथात्मक पुस्तक।
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