Khwab Sa Kuchh
Author:
Sanjay Manharan SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
उपन्यास पढ़ना शुरू करते ही, यह महसूस होने लगता है कि यह एक कवि की गद्यकथा है। बेशक इसकी लय गति थोड़ी तीव्र है, और आँखों के सामने उपस्थित होने वाले दृश्य, तुरन्त कथा प्रवाह में बिला जाते हुए लगते हैं। लेकिन इसकी गति में मौजूद सहज घुलनशीलता स्मृति में बहुत कुछ बचाए रखती है, कि हम उसे अपने अनुभवों के आईने में अपने अंतरंग और आत्मीय की तरह सजीवता में देख सकें और तब 'ख्वाब सा कुछ' में 'सच सा कुछ' देखते हुए हम जान पाते हैं, कि शायद सच से बढ़कर दूसरा कोई सपना है भी नहीं।</p>
<p>गाँव और कस्बे के यथार्थ जीवन को उपन्यासकार, कुछ इस तरह से लिखता है कि, वह ब्यौरों के चित्रण में सिमटने और सीमित हो जाने के बदले, विडम्बना और आत्म-व्यंग्य से समृद्ध रूपकीय विन्यास जैसा लगने लगता है। चरित्र, कथानक या सामाजिक परिवेश, इस व्यापक व्यंजकता में एकदम घुले मिले लगते हैं। ऐंठबहार, घुमनाहा और बुतरू के परिवार का अतीत और वर्तमान, लेखक की लिखत में कुछ इस तरह विन्यस्त हो सका है कि हम उन्हें उनसे भिन्न किसी भी परिवार और परिवेश में देख और पा सकते हैं।</p>
<p>उपन्यास में यौन वर्जना ग्रस्त भारतीय समाज के जो रूप उभरते हैं, वे भी केवल यथार्थ निर्देश नहीं करते, बल्कि पूरे समाज की आत्मरुद्धता की ओर सार्थक संकेत करते प्रतीत होते हैं। लेकिन उपन्यास के पाठ में सबसे महत्त्वपूर्ण उसकी पठनीयता है जो विविध मानसिकता के पाठकों को भी बाँधे रखने की अजब किस्सागोई से सम्पन्न है। </p>
<p>—प्रभात त्रिपाठी
ISBN: 9788119996773
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘हद-बेहद’ बहुत ख़ूबसूरत प्रौढ़ प्रेम-उपन्यास है बल्कि इसे प्रेम का दर्शन भी कह सकते हैं। संस्कार और इन्दिरा की यह कहानी प्रेम में कुछ पाने या खोने की कथा नहीं है। यहाँ प्रेम में न देह का नकार है न उसका विकृत अट्टहास। प्रेम यहाँ धीरे-धीरे आकार लेता है और मन को मन से मिलाकर एक सामाजिक दायित्व बन जाता है।
संस्कार दलित समाज से आता है और इन्दिरा सवर्ण समाज से लेकिन दोनों का अनुराग ऐसा है कि जाति आड़े नहीं आती। दोनों साथ पढ़ते हैं। स्कूल में एक लड़का संस्कार को उसकी जाति के बहाने अपमानित करता है पर इन्दिरा संस्कार के साथ खड़ी रहती है। अपने संस्कारों के कारण संस्कार प्रेम में देह को महत्त्व नहीं देता लेकिन इन्दिरा की ऐसी कोई वर्जना नहीं है, उसके लिए निष्ठा और समर्पण ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। संस्कार शर्मीला है। इन्दिरा दबंग। वह उसके लिए पहेली की तरह है। ऐसा नहीं कि इससे पहले संस्कार के जीवन में लड़कियाँ नहीं आईं। दो लड़कियों ने उसके सहारे अपने बन्धनों को तोड़ने का प्रयास किया और संस्कार को भी प्रेरित किया लेकिन पिता के ट्रांसफर के बाद संस्कार के रिश्ते टूट गए। तीसरा रिश्ता एक ज़मींदार की बेटी का था जो प्रेम को सिर्फ़ देह की भूख समझती थी। संस्कार ने उससे अपमान पाया। यह गाँठ उसे इन्दिरा के साथ भी सहज नहीं होने देती। एक रात कमरे में साथ पढ़ते हुए इन्दिरा संस्कार की देह से जुड़ने का प्रयास करती है। संस्कार असहज हो जाता है। उसके पिता इस क्षण को देख लेते हैं क्या होता है उसके बाद? लेखक ने बहुत रोचक ढंग से यह सरस कथा बुनी है। इसे पढ़ना एक सुखद और नवीन अनुभूति है।
दरअसल, पूरा उपन्यास प्रेम में स्त्री-पुरुष मुक्ति का दर्शन है।
—शशिभूषण द्विवेदी
Kala Pahar
- Author Name:
Bhagwandas Morwal
- Book Type:

- Description: उपन्यास का काम समकालीन यथार्थ के प्रतिनिधित्व के माध्यम से अतीत को पुनर्जीवित और भविष्य के मिज़ाज को रेखांकित करना है। भगवान मोरवाल के ‘काला पहाड़’ में ये विशिष्टताएँ हैं। ‘काला पहाड़’ के पात्रों की कर्मभूमि ‘मेवात क्षेत्र’ है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश की सीमाओं में विस्तृत यह वह क्षेत्र है, जिसने मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर से टक्कर ली थी और जिसने भारत की ‘मिलीजुली तहज़ीब’ को आज तक सुरक्षित रखा है। ‘काला पहाड़’ एक उपन्यास का शीर्षक नहीं है, वरन् मेवात की भौगोलिक-सांस्कृतिक अस्मिता और समूचे देश में व्याप्त बहुआयामी विसंगतिपूर्ण प्रक्रिया का प्रतीक है। इसके पात्र—सलेमी, मनीराम, रोबड़ा, हरसाय, सुलेमान, छोटेलाल, बाबू ख़ाँ, सुभान ख़ाँ, रुमाली, अंगूरी, रोमदेई, तरकीला, मेमन, चौधरी करीम हुसैन व चौधरी मुर्शीद अहमद आदि ठेठ देहाती हिन्दुस्तान की कहानी कहते हैं। मेवात के ये अकिंचन पात्र अपने में वे सभी अनुभव, त्रासदी, ख़ुशियाँ समेटे हुए हैं, जो किसी दूरदराज़ अनजाने हिन्दुस्तानी की भी जीवन-पूँजी हो सकते हैं। लेखक जहाँ ऐतिहासिक पात्र व मेवात-नायक ‘हसन ख़ाँ मेवाती’ की ओर आकृष्ट है, वहीं वह अयोध्या-त्रासदी की परछाइयों को भी समेटता है, इस त्रासदी में झुलसनेवाली बहुलतावादी संस्कृति को रचनात्मक अभिव्यक्ति देता है। उपन्यास की विशेषता यह है कि इसने समाज के हाशिए के लोगों को अपने कथा-फ़लक पर उन्मुक्त भूमिका निभाने की छूट दी है। मोरवाल की पृष्ठभूमि दलित ज़रूर है लेकिन किरदारों के ‘ट्रीटमेंट’ में वह दलित ग्रन्थि से अछूते हैं।
Lopamudra
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

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Description:
गुजराती के सुविख्यात उपन्यासकार के.एम. मुंशी के इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास में गाधिपुत्र विश्वरथ (जो बाद में ऋषि विश्वामित्र के रूप में विख्यात हुए) के जन्म और बाल्यकाल की मुग्धकारी कथा वर्णित है। उनका अगस्त्य ऋषि के पास विद्याध्ययन, दस्युराज शंबर द्वारा अपहरण, शंबर-कन्या उग्रा से प्रेम-सम्बन्ध, फलस्वरूप एक लम्बा विचार-संघर्ष और इस समूचे घटनाक्रम में अत्यन्त तेजस्वी, अनिंद्य सुन्दरी तथा ऋषि-पद प्राप्त लोपामुद्रा की रचनात्मक भूमिका का इसमें प्रभावी अंकन हुआ है। साथ ही महर्षि अगस्त्य से लोपा का प्रेम, जो समूची कथा में अन्तःस्रोत की तरह प्रवाहित है, पाठक को कुछ नए मूल्य भी सौंपता है।
वस्तुतः आर्यावर्त्त की महागाथा का यह एक ऐसा कीर्तिमान अध्याय है जिसमें हमारी सभ्यता और संस्कृति के कितने ही दुर्लभ रत्न बिखरे पड़े हैं। इसमें जो एक ताप विद्यमान है, उसमें हमें निरन्तर एक नया युग ढलता दिखाई देता है। दूसरे शब्दों में, यह कथा आर्यजाति के महोत्कर्ष के उन प्रतीकों की है, जो आज भी परिवर्तनशील दौर से गुज़रते इस महादेश के सन्दर्भ में एकदम प्रासंगिक हैं। वीरता और शौर्य, साधना और संघर्ष, प्रेम और बलिदान के वे सारे प्रसंग और जीवन-मूल्य, जो लोपामुद्रा और विश्वामित्र का प्रभामंडल बनाते हैं, आज की भी सर्वोच्च प्राथमिकता बनकर उभरते हैं। निश्चय ही, मुंशी जी की यह कथाकृति इतिहास को तीव्र राग की तरह और जिजीविषा को गंध-समान प्रस्तुत करती है।
Aag Ki Pyaas
- Author Name:
Rangeya Raghav
- Book Type:

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Description:
रांगेय राघव हिन्दी के उन विशिष्ट कथाकारों में हैं जिनकी रचनाएँ अपने समय को लाँघकर भी जीवित रहती हैं।
'आग की प्यास' रांगेय राघव का एक बहुचर्चित उपन्यास है, जिसकी कथावस्तु के केन्द्र में ग्रामीण जीवन है—वहाँ की राजनीति, अर्थव्यवस्था और बदलता हुआ सामाजिक-धार्मिक परिवेश। लेकिन मुख्य कथावस्तु अर्थकेन्द्रित है। समाज के कुछ इने-गिने लोगों की धन की प्यास कैसे वृहत्तर समुदाय का जीवन नारकीय बनाती जा रही है, यह इस उपन्यास में प्रभावशाली ढंग से चित्रित हुआ है। अगर शासन आम आदमी के जीवन को दूभर बना देनेवाली, दिनोंदिन बढ़ती महँगाई को नहीं रोक पा रहा है, तो इसके पीछे भी उन्हीं अर्थपिशाचों का हाथ है। वे अपनी आर्थिक शक्ति से राजनीति को नियंत्रित करते हैं।
राजनीति और अर्थव्यवस्था के इस चोली-दामन सम्बन्ध को उजागर करने के साथ-साथ लेखक ने शहरी चेतना से आक्रान्त ग्रामीण जीवन का भी विश्वसनीय चित्र इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर यह उपन्यास आज के गाँवों की जिन्दगी का एक जीवन्त दस्तावेज़ है।
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