Beech Ki Deewar
Author:
AmarkantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
आज़ादी के बाद कथाकार के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित करनेवाले लेखकों में अमरकान्त का नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अमरकान्त की शक्ति-सम्पन्न कहानियाँ, जहाँ भारतीय समाज की आशा-आकांक्षाओं को गहरी संवेदना से रूपायित करती हैं, वहीं सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव के उसके संकल्पों को भी अभिव्यक्त करती हैं। अमरकान्त की रचनाओं में छद्म आधुनिकता नहीं है और उनकी भाषा साफ़-सुथरी तथा लेखन-शैली सर्वथा</p>
<p>नई और मौलिक है। उनकी कृतियाँ आज के जीवन की वास्तविकता को कई स्तरों पर उद्घाटित करती हैं और जब वे उनकी व्यंग्य की धार देते हैं तो वे एक ओर मानव-मन का आन्तरिक संस्कार करती हैं, वहीं दूसरी ओर आस्था, विश्वास व संघर्ष की प्रेरणा भी देती <br>हैं।</p>
<p>कहानियों की तरह ही अमरकान्त के कई उपन्यास भी महत्त्वपूर्ण हैं, जिनमें ‘सूखा पत्ता’ हिन्दी साहित्य की स्थायी निधि है। प्रस्तुत उपन्यास ‘बीच की दीवार’ मध्यम वर्ग की बदलती हुई परिस्थितियों एवं मनःस्थितियों का विश्लेषण करनेवाली एक विशेष कृति है। इसमें अमरकान्त ने आज के जीवन के अन्तर्द्वन्द्वों एवं अन्तर्विरोधों की प्रामाणिक तस्वीर प्रस्तुत की है। इस उपन्यास के केन्द्र में एक ऐसी नारी है, जो आज की अवसरवादी ज़िन्दगी के भँवर-जाल में फँसकर संघर्ष करती है, आगे बढ़ती है और विकास की वांछित मंज़िल प्राप्त करने में सफल होती है। पूरा उपन्यास जहाँ हमें आनन्दित करता है, वहीं सामाजिक बदलाव के लिए आस्था व विश्वास भी प्रदान करता है।
ISBN: 9788126716302
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: नरक की रचना जिन जीवन-स्थितियों से हुई होगी, नागार्जुन का यह उपन्यास उन्हीं के शब्दांकन का परिणाम है। एक ही मकान में रहनेवाले छह किराएदारों की जीवनचर्या पर केन्द्रित यह उपन्यास हमारे ‘विकासमान' नागर-जीवन के जिस सामाजिक यथार्थ की परतें खोलता है, प्रकारान्तर से वह समूचे भारतीय जीवन का यथार्थ है, क्योंकि स्त्री के प्रति पदार्थवादी नज़रिए की कहीं कोई कमी नहीं। आर्थिक अभावों में पिसती अनेकानेक निर्दोष जीवनेच्छाएँ किस प्रकार भोगवाद की भट्टी में झोंक दी जाती हैं, उनकी पीड़ा और मुक्तिकामी छटपटाहट को नागार्जुन ने गहरी आत्मीयता से उकेरा है। साथ ही, नागार्जुन यहाँ उस दृष्टि को प्रस्थापित करते हैं जो स्त्री की सामाजिक भूमिका और मानवीय गरिमा के प्रति सचेत है।
Match Box 81
- Author Name:
Dr. Lata Kadambari Goel
- Book Type:

- Description: "फास्ट फूड तथा पाउच के जमाने में वक्त की कमी को देखते हुए कहानियाँ भी छोटी-छोटी होनी चाहिए न! बिल्कुल ऐसी कि माचिस की एक डिब्बी में समा जाएँ। इस पुस्तक में लेखिका ने अपने समाजोपयोगी विचारों और भावों को ‘मैच बॉक्स 81’ में डाला है। जरा जलाइए न उसको। कैसी नीली, पीली, लाल, गुलाबी ‘लौ’ छोड़कर अचानक बुझ जाती है वो नन्हीं सी तीली। ऐसी ही नन्हीं-नन्हीं कहानियों की शक्ल लिये ये ‘तीलियाँ’ मतलब कि ये छोटी-छोटी कहानियाँ हैं, जो अपने ज्ञान की रोशनी से पाठकों के जीवन को प्रकाशमान करेंगी। लेखिका ने इन कहानियों के माध्यम से जीवन की छोटी-छोटी, लेकिन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए एक व्यावहारिक ताना-बाना बुनने का कुछ इस प्रकार से प्रयास किया है कि कहानी भीतर तक झकझोर देनेवाला एक सवाल उठाकर खत्म हो जाती है। जीवन के अंधकार से निकलने का एक छोटा सा प्रयास है ये पठनीय कहानियाँ। "
Shreeman Yogi
- Author Name:
Ranjeet Desai
- Book Type:

- Description: श्रीमान योगी रणजीत देसाई की यह कालजयी रचना अपने मूल मराठी प्रकाशन के कुछ ही समय बाद मराठी भाषियों के बीच जातीय स्मृति ग्रन्थ जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सफल हुई है। जितनी कसावट से इस सुदीर्घ उपन्यास में मुगलकालीन दक्खिन का समय बुना गया है, जिस तरह इसमें सह्यादि क्षेत्र के मनुष्य तो क्या, पत्थर तक बोलते सुनाई देते हैं, उसे देखते हुए महाराष्ट्र में इसका इतना लोकप्रिय हो जाना स्वाभाविक है। लिहाजा इस उपन्यास का हिन्दी में प्रकाशन भी वैसी ही बड़ी घटना है, जैसी मराठी में इसके प्रथम प्रकाशन की घटना। जहाँ-तहाँ भटकने पर मजबूर एक विद्रोही मराठा सामंत की लगभग परित्यक्ता पत्नी अपने बेटे के व्यक्तित्व में अपनी और अपनी समूची जाति की पीड़ाएँ छाप देती है। हीरे-सा कड़ा और पानी सा तरल किशोर शिवाजी हिंदवी स्वराज्य का स्वप्न देखने का दुस्साहस करता है और यही दुस्साहस न सिर्फ उसका बल्कि उसके समूचे समय का भाग्य तय करने लगता है। तलवारों की खनखनाहटों के बीच धीरे-धीरे एक ऐसा चेहरा उभरता है, जिसके लिए जय-पराजय, जीवन-मृत्यु, लाभ-हानि का फर्क मिट चुका है, जो राजा भी है और योगी भी, जिसे समर्थ गुरु रामदास श्रीमान योगी कहते हैं। किसी महानायक को केन्द्र में रखकर उपन्यास-लेखन एक प्रचलित विधा रही है लेकिन कल्पना के हाथ हमेशा बँधे होने के चलते इसे सर्वाधिक कठिन विधाओं में से एक माननेवाले भी कम नहीं रहे हैं। महानायकों के इर्द-गिर्द जैसे मिथकीय घटाटोप बन जाते हैं, उन्हें भेद कर व्यक्ति की दैन्यताओं, दुर्बलताओं और द्वन्द्वों तक पहुँचना, उन्हें चित्रित करना बहुत कठिन हो जाता है। रणजीत देसाई की रचनात्मक शक्ति इसी बात में है कि वे शिवाजी की स्थापित मूर्ति के भीतर, उसकी अनन्त तहों में घुसते हुए सचमुच के शिवाजी और उनके धड़कते हुए समय तक पहुँच जाते हैं। वे महानायक को जैसे का तैसा स्वीकार नहीं करते, बल्कि उसके जीवन-तत्त्वों से उसकी पुनर्रचना करते हैं।
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