Anoopkaur
Author:
Harman Dass SahraiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 76
₹
95
Unavailable
इतिहास बताता है कि सिख गुरुओं ने स्त्रियों को पुरुषों के समान हैसियत के उपदेश ही नहीं दिए, बल्कि उनके सामाजिक जीवन को भी सम्मानजनक स्थितियाँ दीं। बीबी अनूप कौर का नाम भी ऐसी ही वीरांगना महिलाओं में आता है जिन्होंने समय आने पर जंग के मैदानों में अपनी बहादुरी और हिम्मत का परिचय दिया।</p>
<p>अनूप कौर का जन्म 1690 में अमृतसर के पास एक गाँव में हुआ था। उनके पिता सोढ़ी ख़ानदान की उस शाखा से जुड़े थे जो गुरु तेग बहादुर के साथ थी। अनूप कौर की उम्र तब सिर्फ़ पाँच साल थी जब वे अपने परिवार के साथ आनन्दपुर चली गई थीं। वहाँ वे गुरु गोविन्द सिंह के बेटों के साथ खेलते हुए बड़ी हुईं। वहीं उन्होंने धार्मिक और सैनिक शिक्षा भी पाई।</p>
<p>1699 में जब गुरु गोविन्द सिंह ने सन्त-योद्धाओं को दीक्षा दी तब उन्होंने भी अपने पिता के साथ दीक्षा पाई जिसने हमेशा के लिए उनके जीवन और रहन-सहन को बदल दिया। उन्होंने सिपाहियों के परिवारों की देख-रेख के साथ युद्ध में उन्हें रसद पहुँचाने से लेकर शत्रुओं से लड़ने तक अत्यन्त वीरता का परिचय दिया।</p>
<p>उनके जीवन का अन्त मुग़लों की क़ैद में हुआ जहाँ उन्हें धर्म-परिवर्तन करके मलेर कोटला के शाह से शादी करने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन इससे पहले कि उनकी यह मंशा पूरी होती, अनूप कौर ने ख़ंजर से अपनी जान दे दी। यह उपन्यास इसी वीरांगना की कथा है।
ISBN: 9788180312502
Pages: 177
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कृषिप्रधान कहे जाने वाले देश भारत का एक आम किसान जिसके पास सौ-दो सौ बीघा जमीन, लाइसेंसी बन्दूकें-राइफलें और पुलिस-फौज में नौकरी पाए बेटे नहीं हैं, अपने दुख में अकेला और असहाय एक ऐसा जीव है, जो लगता है पूरी व्यवस्था का देनदार है। राजनीति के लिए वोट-बैंक और नौकरशाही के लिए एक दुधारू गाय।
थाने, तहसीलें, अदालतें, अमीन, पटवारी, वकील, गन्ना मिलें, आढ़ती, कर्जे और खर्चे, राजनीति और नौकरशाही, ये सब मिलकर एक ऐसा महाजाल बुनते हैं जिसके निशाने पर किसान ही होता है। यह अगम दरियाव उसी भारतीय किसान के दुखों का है, बेशक उसकी वह ताकत भी यहाँ मौजूद है जो राष्ट्रीय उपेक्षा के आखिरी सिरे पर पड़े रहने के बावजूद उसे बचाए हुए है—उसकी संस्कृति, उसकी मनुष्यता और उसका जीवट।
शिवमूर्ति हमारे समय के ग्रामीण जीवन के समर्थ किस्सागो हैं, और ‘अगम बहै दरियाव’ उनकी अनुभव-सम्पदा और कथा-कौशल का शिखर है। कल्याणी नदी के कंठ पर बसे बनकट गाँव की इस कथा में समूचे उत्तर भारत के किसानों और मजदूरों की व्यथा समोयी हुई है। इस दुनिया में सब शामिल हैं—अगड़े, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक सब। और सब इसमें बराबर के हिस्सेदार हैं। जिन्दगी के विविध रंगों, छवियों और गीत-संगीत से समृद्ध इस उपन्यास में ‘लोक’ की छटा कदम-कदम पर दृश्यमान है, और ग्रामीण जीवन की शान्त सतह के नीचे खदबदाती लोभ-लालच, प्रेम-प्यार, छल-प्रपंच और त्याग-बलिदान की धाराएँ भी जो जमाने से बहती आ रही हैं।
कथा-साहित्य में लम्बे समय से अनुपस्थित किसान को यह उपन्यास वापस एक त्रासदी-नायक के रूप में केन्द्र में लाता है। देश के नीति-नियंता चाहें तो इस आख्यान को एक ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ की तरह भी पढ़ सकते हैं।
Shekhar Ek Jeevani : Vol. 2
- Author Name:
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
- Book Type:

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Description:
‘शेखर : एक जीवनी’ को कुछ वैचारिक हलक़ों में आत्म-तत्त्व के बाहुल्य के कारण आलोचना का शिकार होना पड़ा था। साथ ही अपने समय के नैतिक मूल्यों के लिए भी इसे चुनौती की तरह देखा गया था। लेकिन आत्म के प्रति अपने आग्रह के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि ‘शेखर’ समाज से विलग, या उसके विरोध में खड़ा हुआ कोई व्यक्ति है। अगर ऐसा होता तो शेखर अपने समय-समाज के ऐसे-ऐसे प्रश्नों से नहीं जूझता जो उस समय स्वाधीनता आन्दोलन के नेतृत्वकारी विचारकों-चिन्तकों के लिए भी चिन्ता का मुख्य बिन्दु नहीं थे, मसलन—जाति और स्त्री से सम्बन्धित प्रश्न।
जैसा कि स्वयं अज्ञेय ने संकेत किया है, शेखर अपने समय से बनता हुआ पात्र है। वह परिस्थितियों से विकसित होता हुआ और परिस्थितियों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखता हुआ पात्र है।
उपन्यास के प्रथम भाग में जिस तरह से शेखर का मनोविज्ञान, उसके अन्तस्तल के निर्माण की प्रक्रिया उद्घाटित हुई है, उसी आवेग और सघनता के साथ इस दूसरे भाग में शेखर के वास्तविक जीवनानुभवों का वर्णन किया गया है। कहना न होगा कि 'शेखर एक जीवनी’ की बुनावट में ‘पैशन’ की वैसी ही उच्छल धारा प्रवाहित है जैसी, हमारे जीवन में होती है। अपने औपन्यासिक वितान में ‘शेखर : एक जीवनी’ इसीलिए एक कालजयी कृति के रूप में मान्य है।
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