God
Author:
Siyaramsharan GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Available
किसी निकटस्थ की गोद ऐसी भावनात्मक, मन को रोमांचित और अन्तस के तारों को छू लेने और कुरेर देनेवाली गोद होती है, जिसकी तुलना नहीं हो सकती। गोद ममतामयी माँ की हो, स्नेहसिक्त पिता की हो, हर संकट के समय प्रश्रय देनेवाले बड़े भाई की हो या स्नेहमयी भाभी की गोद में ममता और सान्त्वना की अद्वितीय क्षमता होती है।</p>
<p>गोद का यह महत्त्व अद्वितीय है, अतुलनीय है। व्यक्ति कितना भी भटकाव में हो, अपराध कर बैठा हो, किन्तु पश्चात्ताप की भावना से जब अपने वरिष्ठ निकटस्थ की गोद में सर रख देता है और उसके सर पर स्नेहपूर्ण हाथ की सहलावत की अनुभूति होती है तो दोनों की आँखों के भावना-मिश्रित आँसुओं की धाराएँ पवित्र संगम की धारा की तरह प्रवाहित हो जाती हैं। सियारामशरण गुप्त जी के इस उपन्यास का कथानक अनेक उतार-चढ़ाव तथा पात्रों के तरह-तरह के कृत्यों के साथ आगे बढ़ता हुआ अन्त में कुछ ऐसे मुक़ाम पर पहुँच जाता है कि वातावरण मन को अन्दर तक छू लेनेवाला बन जाता है। यह अत्यन्त रोचक उपन्यास जीवन की उच्च भावनात्मक मनःस्थिति को ऐसे प्रभावी रूप में उद्वेलित कर देता है कि पाठक का मन भी अन्दर तक उद्वेलित हो उठे।
ISBN: 9788180312069
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Yogendra Pratap Singh
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- Description: भारतीय शिक्षण संस्थाओं से हम भारतीयों की त्यागनिष्ठा तथा स्वात्म समर्पण के भावों का सम्बन्ध हज़ारों-हज़ारों वर्षों से चला आ रहा है। शिक्षक, गुरु, गुरुकुल में ऋषिजीवन और छात्र तपस्वी का जीवन व्यतीत करते रहे हैं। भारत के सामन्त, सम्राट, नरेश, सम्पन्न सेठ तथा वणिक दान का सर्वांश इन संस्थाओं को अर्पित करके समाज रचना की सत्त्वमयी परम्परा के निर्माण के प्रति संकल्पबद्ध थे। समाज तथा गुरुकुल ऋण से आजीवन मुक्त नहीं होता था। किन्तु आज, अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित शिक्षानीति पर विदेशी तंत्रों के प्रभावों का गहरा असर भारतीय स्वतंत्रता के छह दशकों बाद और भी गहरा होता जा रहा है। शिक्षा ज्ञानार्जन, ज्ञानवृद्धि, अन्वेषण के लिए है; शिक्षा आत्मबोध, विवेकबोध, समझ तथा संकल्पशक्ति की प्रेरणा के लिए है। सुदामा जैसा शिक्षक लोक संकटों को झेलता हुआ, उनसे मुक्ति के लिए अपने सहपाठी त्रैलोक्यस्वामी श्रीकृष्ण के पास जाने को तैयार नहीं था—यदि उसकी पत्नी उसे प्रतिदिन सुबह-शाम दुत्कारती नहीं—किन्तु आज शिक्षक संस्थाएँ कैसी हैं? शिक्षक क्यों हैं? शिक्षा कैसी है? शिक्षण का प्रबन्ध-तंत्र क्या है? सब कुछ यह उपन्यास ही बताएगा।
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