Agam Bahai Dariyav
Author:
ShivmurtiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 559.2
₹
699
Available
कृषिप्रधान कहे जाने वाले देश भारत का एक आम किसान जिसके पास सौ-दो सौ बीघा जमीन, लाइसेंसी बन्दूकें-राइफलें और पुलिस-फौज में नौकरी पाए बेटे नहीं हैं, अपने दुख में अकेला और असहाय एक ऐसा जीव है, जो लगता है पूरी व्यवस्था का देनदार है। राजनीति के लिए वोट-बैंक और नौकरशाही के लिए एक दुधारू गाय।</p>
<p>थाने, तहसीलें, अदालतें, अमीन, पटवारी, वकील, गन्ना मिलें, आढ़ती, कर्जे और खर्चे, राजनीति और नौकरशाही, ये सब मिलकर एक ऐसा महाजाल बुनते हैं जिसके निशाने पर किसान ही होता है। यह अगम दरियाव उसी भारतीय किसान के दुखों का है, बेशक उसकी वह ताकत भी यहाँ मौजूद है जो राष्ट्रीय उपेक्षा के आखिरी सिरे पर पड़े रहने के बावजूद उसे बचाए हुए है—उसकी संस्कृति, उसकी मनुष्यता और उसका जीवट। </p>
<p>शिवमूर्ति हमारे समय के ग्रामीण जीवन के समर्थ किस्सागो हैं, और ‘अगम बहै दरियाव’ उनकी अनुभव-सम्पदा और कथा-कौशल का शिखर है। कल्याणी नदी के कंठ पर बसे बनकट गाँव की इस कथा में समूचे उत्तर भारत के किसानों और मजदूरों की व्यथा समोयी हुई है। इस दुनिया में सब शामिल हैं—अगड़े, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक सब। और सब इसमें बराबर के हिस्सेदार हैं। जिन्दगी के विविध रंगों, छवियों और गीत-संगीत से समृद्ध इस उपन्यास में ‘लोक’ की छटा कदम-कदम पर दृश्यमान है, और ग्रामीण जीवन की शान्त सतह के नीचे खदबदाती लोभ-लालच, प्रेम-प्यार, छल-प्रपंच और त्याग-बलिदान की धाराएँ भी जो जमाने से बहती आ रही हैं।</p>
<p>कथा-साहित्य में लम्बे समय से अनुपस्थित किसान को यह उपन्यास वापस एक त्रासदी-नायक के रूप में केन्द्र में लाता है। देश के नीति-नियंता चाहें तो इस आख्यान को एक ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ की तरह भी पढ़ सकते हैं।
ISBN: 9789395737975
Pages: 592
Avg Reading Time: 20 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: सन् 1925; भारत का स्वतंत्रता संग्राम बिखरी हुई हालत में था, नेताओं के बीच मतभेद पैदा हो रहे थे, और पूरे देश में साम्प्रदायिक वैमनस्य की घटनाएँ हो रही थीं। इस दौरान, सक्रिय राजनीति से अलग-थलग बापू गांधी साबरमती आश्रम में अपने जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण गतिविधि में संलग्न थे। वे आत्मानुशासन, सहनशीलता और सादगी के उच्चतर मूल्यों को समर्पित एक समुदाय की रचना में व्यस्त थे। बापू की इसी दुनिया में पदार्पण हुआ एक ब्रितानी एडमिरल की बेटी मेडलिन स्लेड का जो बाद में मीरा के नाम से जानी गईं। गांधी के लिए जहाँ वास्तविक आध्यात्मिकता का अर्थ था आत्मानुशासन और समाज के प्रति पूर्ण समर्पण, वहीं मीरा मानती थीं कि सत्य और सम्पूर्णता का रास्ता मानव रूप में साकार शाश्वत आत्मा के प्रति समर्पण में है, और यह आत्मा उन्हें गांधी में दिखाई दी। इस प्रकार दो भिन्न आवेगों से परिचालित इन दो व्यक्तियों के मध्य एक असाधारण साहचर्य का सूत्रपात हुआ। विख्यात मनोविश्लेषक-लेखक सुधीर कक्कड़ ने बापू और मीरा के 1925 से लेकर 1930 तथा फिर 1940-42 तक के समय को इस उपन्यास का आधार बनाया है, जिस दौरान, लेखक के अनुसार वे दोनों ज़्यादा क़रीब थे। ऐतिहासिक तथ्यों की ईंटों और कल्पना के गारे से चिनी गई इस कथा की इमारत में लेखक ने बापू और मीरा के आत्मकथात्मक लेखों, पत्रों, डायरियों और अन्य समकालीनों के संस्मरणों का सहारा लिया है। राष्ट्रपिता को ज़्यादा पारदर्शी और सहज रूप में प्रस्तुत करती एक अनूठी कथाकृति।
Varun Ke Bete
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

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Description:
नागार्जुन का यह बहुचर्चित उपन्यास बड़े-बड़े गढ़ों-पोखरों पर निर्भर मछुआरों की कठिन जीवन-स्थितियों का चित्रण करता है। उनके अन्तरंग विवरणों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लेखक बरसों उन्हीं के बीच रहा है—वह उनकी तमाम अच्छाइयों-बुराइयों से गहरे परिचित है और उनके स्वभाव-अभाव को भी भली-भाँति पहचानता है। तभी तो वह खुरखुन और उसके परिवार को केन्द्र में रखते हुए भी मछुआरा बस्ती मलाही-गोंढ़ियारी के कितने ही स्त्री-पुरुषों को हमारे अनुभव का स्थायी हिस्सा बना देता है। फिर चाहे वह पोखरों पर काबिज शोषक शक्तियों के विरुद्ध खुरखुन की अगुवाई में चलनेवाला संघर्ष हो अथवा मधुरी-मंगल के बीच मछलियों-सा तैरता और महकता प्यार। इस उपन्यास से गुजरते हुए कहीं हम स्वयं को खुरखुन की स्थिति में पाते हैं तो कहीं मधुरी-मंगल की दशा में।
वस्तुत: नागार्जुन अपने कथा-परिवेश को कहकर नहीं, रचकर उजागर करते हैं। एक पूरी धरती, एक पूरा परिवेश और फिर शब्दांकुरों की शक्ल में विकसित होती हुई कथा। इस सन्दर्भ में उनका यह उपन्यास एक अप्रतिम स्थान रखता है।
Jheeni-Jheeni Beeni Chadariya
- Author Name:
Abdul Bismillah
- Book Type:

- Description: बनारस के साड़ी-बुनकरों पर केन्द्रित अब्दुल बिस्मिल्लाह का यह उपन्यास हिन्दी कथा-साहित्य में एक नये अनुभव-संसार को मूर्त करता है और इस अनुभव-संसार में साड़ी-बुनकरों की जिस अभावग्रस्त और रोग-जर्जर दुनिया में हम मतीन, अलीमुन और नन्हें इक़बाल के सहारे प्रवेश करते हैं, वहाँ मौजूद हैं रऊफ चचा, नजबुनिया, नसीबुन बुआ, रेहाना, कमरुन, लतीफ, बशीर और अल्ताफ़ जैसे अनेक लोग, जो टूटते हुए भी साबुत हैं–हालात से समझौता नहीं करते, बल्कि उनसे लड़ना और उन्हें बदलना चाहते हैं और अन्ततः अपनी इस चाहत को जनाधिकारों के प्रति जागरूक अगली पीढ़ी के प्रतिनिधि इक़बाल को सौंप देते हैं। इस प्रक्रिया में लेखक ने शोषण के उस पूरे तंत्र को भी बारीकी से बेनकाब किया है जिसमें एक छोर पर है गिरस्ता और कोठीवाल, तो दूसरे छोर पर भ्रष्ट राजनीतिक हथकंडे और सरकार की तथाकथित कल्याणकारी योजनाएँ। साथ ही उसने बुनकर-बिरादरी के आर्थिक शोषण में सहायक उसी की अस्वस्थ परम्पराओं, सामाजिक कुरीतियों, मजहबी जड़वाद और साम्प्रदायिक नज़रिये को भी अनदेखा नहीं किया है।
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