Siyasat
Author:
Shivani SibbalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
निजी महत्त्वाकांक्षाओं, पारिवारिक सीमाओं और सामाजिक बदलावों की दिलचस्प कहानी!</p>
<p>एक ही घर में एक ही स्त्री के पाले अहान सिकन्द और राजेश कुमार बचपन के मित्र हैं लेकिन दोनों की दुनिया बहुत अलग है। अहान अमीर परिवार का इकलौता वारिस है जबकि राजेश उसी परिवार के ड्राइवर का लड़का। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, बचपन की उनकी दोस्ती बदलने लगती है। आहान से यह आशा की जाती है कि वह उत्तराधिकार में मिले विरासत को आगामी पीढ़ी के लिए बचाकर रखे जबकि वहीं राजेश से दुनिया की यही आशा है कि वह अधिक से अधिक अपने पिता की तरह घरेलू नौकर बनकर न जिये। लेकिन उसकी योजनाएँ बड़ी हैं।</p>
<p>सियासत एक नई प्रतिभाशाली कलम के आगमन का एलान है जो नई दिल्ली के व्यावसायिक एवं राजनीतिक परिवारों की गोपन दुनिया का परीक्षण करती है।
ISBN: 9789360864446
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: प्रत्येक क्षेत्र के लोक-साहित्य में वहाँ की स्थानीय परंपराएँ, संस्कृति, लोकोक्तियाँ और तत्संबंधी अन्य विशिष्टताएँ समाहित होती हैं। लोक-साहित्य अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का बेहतरीन माध्यम है। कॉकबरक समेत आज तक त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं में मौजूद लोककथाओं का ठीक से संग्रह नहीं हुआ है; हिंदी में इन्हें लाना तो दूर की बात है। इस क्रम में ‘त्रिपुरा की लोककथाएँ’ शीर्षक पुस्तक का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। इस संग्रह में 37 लोककथाएँ संकलित हैं। इन लोककथाओं में पाठक त्रिपुरा का स्थानीय जीवन-दर्शन, इतिहास और परंपराओं का दिग्दर्शन करेंगे। इनमें सदियों से चली आ रही एक ऐसी लोकधारा है, जिसे यहाँ का जनजातीय समुदाय एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में त्रिपुरा में रहनेवाली लगभग सभी प्रमुख जनजातियों की लोककथाओं को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया है। ये कथाएँ यहाँ की जनजातियों की संस्कृति का भावानुवाद कही जाएँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस क्रम में राइमा-साइमा नदियों का बहता प्रवाह इसका अप्रतिम उदाहरण है, जिन्हें समेटने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
Os Ki Boond
- Author Name:
Rahi Masoom Raza
- Book Type:

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Description:
राही मासूम रज़ा ने ‘आधा गाँव’ लिखकर हिन्दी-उपन्यास में अपना एक सुनिश्चित स्थान बनाया था। ‘टोपी शुक्ला’ उनका दूसरा सफल उपन्यास था और यह उनका तीसरा उपन्यास है।
यह उपन्यास हिन्दू-मुस्लिम समस्या को लेकर शुरू होता है लेकिन आख़िर तक आते-आते पाठकों को पता चलता है कि हिन्दू-मुस्लिम समस्या वास्तव में कुछ नहीं है, यह सिर्फ़ राजनीति का एक मोहरा है, और जो असली चीज़ है वह है इंसान के पहलू में धड़कनेवाला दिल और उस दिल में रहनेवाले जज़्बात; और इन दोनों का मजहब और जात से कोई ताल्लुक नहीं। इसीलिए साम्प्रदायिक दंगों के बीच सच्ची इंसानियत की तलाश करनेवाला यह उपन्यास एक शहर और एक मजहब का होते हुए भी हर शहर और हर मजहब का है ! एक छोटी-सी ज़िंदगी की दर्द भरी दास्तान जो ओस की बूँद की तरह चमकीली और कम-उम्र है।
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