Visthapan Ka Sahityik Vimarsh
Author:
Achala PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
आज पूरी पृथ्वी ‘ग्लोबल वार्मिंग' की चपेट में है, जिसका प्रमुख कारण औद्योगीकरण भी है। जितनी मजबूरी आधुनिक जीवन के लिए औद्योगीकरण है उससे अधिक ज़रूरी जीवन के लिए पर्यावरण है। यदि जीवन पर संकट उत्पन्न होगा तो किसी भी तरह के उद्योग की प्रासंगिकता समाप्त हो जाएगी। यह सन्दर्भ-ग्रन्थ इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि औद्योगीकरण से उत्पन्न जो समस्या है, वह जीवन के प्रति कितनी भयावह है। पूँजीवाद एवं औद्योगीकरण के आविर्भाव के साथ विकास के अवसर, प्रकारान्तर से उसकी गति भी बढ़ी। नई अर्थव्यवस्था पुरानी सामन्तवादी अर्थव्यवस्था से गुणात्मक रूप से भिन्न थी, क्योंकि इसमें एक ही जगह पर बहुसंख्यक व्यक्ति एक ही प्रकार का कार्य करते थे। शनैः-शनै: उसके आसपास अन्य कार्य करने हेतु उपक्रम लगते गए और इस प्रकार उद्योगों का एक संकुल एक वृहत् क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से अस्तित्व में आया। स्पष्ट है कि ऐसे संकुल तभी विकसित हुए होंगे, जब उन भूखंडों, जहाँ पर उद्योग लगे होने के स्वामी वहाँ से विस्थापित हुए हाँगे। इन नवीन उद्योगों में कार्य करने हेतु श्रमिक निश्चित ही दूसरी जगहों से विस्थापित होकर ही आए होंगे। इन समस्याओं के कारण विशुद्ध विस्थापन के तथ्य को नहीं माना जा सकता। समस्याओ के लिए निश्चित ही कहीं-न-कहीं पूँजीवाद एवं औद्योगीकरण उत्तरदायी थे। इसलिए विस्थापन की समस्या की सम्यक् विवेचना हेतु आवश्यक विस्थापन अपने आप में अत्यन्त सारगर्भित, बहुअर्थी अवधारणा है।
ISBN: 9789389243253
Pages: 198
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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निराला आज खड़ी बोली के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में मान्य हैं, लेकिन इस मान्यता तक उनके पहुँचने की भी एक कहानी है—संघर्षपूर्ण। उन्होंने एक तरफ़ कविता को मुक्त किया और दूसरी तरफ़ उसमें ऐसे अनुशासन की माँग थी, जिसकी पूर्ति बहुत थोड़े कवि कर सकते हैं। उनकी विशेषता यह है कि प्रचंड भावुक होते हुए भी वे एक विचारवान कवि थे और उनकी विचारशीलता स्थिर न होकर अपनी जटिलता में भी गतिशील थी। वे वस्तुतः भारतीय स्वाधीनता-आन्दोलन की देन थे, लेकिन उनकी स्वाधीनता की धारणा अपने समकालीन कवियों से बहुत आगे ही नहीं थी, बल्कि क्रान्तिकार थी। यही कारण है कि वे नई पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक बने हुए हैं। ‘निराला-काव्य की छवियाँ’ नामक इस पुस्तक का पहला खंड इन तमाम बातों का विश्लेषणपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता
है।दूसरा खंड निराला की कुछ पूर्ववर्ती और परवर्ती चुनी हुई कविताओं की पाठ-केन्द्रित आलोचना से सम्बन्धित है। ‘प्रेयसी’, ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘वन-बेला’ और ‘हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की ऐसी कविताएँ हैं, जो उनके पूर्ववर्ती काव्य के विषय-वैविध्य को दर्शाती हैं। यहाँ उनकी व्याख्या के प्रसंग में उनकी अखंडता को ध्यान में रखते हुए उन्हें परत-दर-परत उधेड़कर देखने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के दूसरे खंड की अप्रतिम विशेषता यह है कि इसमें कदाचित् पहली बार निराला के परवर्ती काव्य का मार्क्सवाद और हिन्दी प्रदेश के कृषक-समाज से सम्बन्ध पूर्वग्रहमुक्त होकर निरूपित किया गया है। जैसे ‘सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की पूर्ववर्ती आत्मपरक सृष्टि है, वैसे ही ‘पत्रोकंठित जीवन’ उनकी परवर्ती आत्मपरक सृष्टि। निराला-काव्य के अध्येता डॉ. नंदकिशोर नवल ने, जो निराला रचनावली के सम्पादक भी हैं; प्रस्तुत पुस्तक में निस्सन्देह निराला के काव्य-लोक की बहुत ही भव्य फलक दिखलाई है।
Acharya Hazari Prasad Dwivedi Ki Jai Yatra
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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हिन्दी आलोचना के शिखर-पुरुष नामवर सिंह और उनके प्रेरणा-पुंज गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी मिलकर एक ऐसा प्रकाश-युग्म निर्मित करते हैं जिसकी रोशनी में बीसवीं सदी की न सिर्फ़ आलोचना-दृष्टि, बल्कि सम्पूर्ण रचना-दृष्टि अपना पथ प्रशस्त करती है।
यह पुस्तक इस युग्म की मनीषा का संयुक्त प्रक्षेपण है; इसमें नामवर सिंह की दृष्टि में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आलोकित होते हैं और आचार्य द्विवेदी के आलोक में नामवर जी की इतिहास-प्रवर्तक आलोचक मेधा प्रकाशित। ये निबन्ध सिर्फ़ आलोचना से सम्बन्ध नहीं रखते, इनमें उपन्यास-सुलभ पठनीयता भी है और संस्मरण, रेखाचित्र और जीवनी जैसी जिज्ञासा-प्रेरक विवरणात्मकता भी। विचार, जैसाकि स्वाभाविक है, निरन्तर इन आलेखों की रीढ़ भी है, मांस भी और
त्वचा भी।
नामवर सिंह के व्यक्तित्व, दृष्टि और प्रतिभा का सबसे सघन और उज्ज्वल प्रतिफलन आचार्य द्विवेदी से सम्बन्धित लेखन में हुआ है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि वास्तव में आचार्य द्विवेदी ने जिस तरह बाणभट्ट के माध्यम से अपना अन्वेषण किया था, उसी तरह नामवर सिंह ने आचार्य द्विवेदी के माध्यम से अपनी दूसरी परम्परा की खोज की।
Hindi Sahitya : Ek Saral Parichay
- Author Name:
Suraiyya Sheikh
- Rating:
- Book Type:

- Description: इतिहास ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य के विभिन्न कालखंडों, काल-रूपों और धाराओं पर अनेक शोध-प्रबन्ध एवं समीक्षात्मक ग्रन्थ प्रकाश में आए हैं। इनमें साहित्य के अनेक अज्ञात तथ्यों और अनिर्णीत प्रश्नों को नवीन दृष्टिकोण से नवालोक में प्रस्तुत किया गया है, किन्तु हिन्दी अनुसन्धान-जगत के इन नवीन निष्कर्षों और परिणामों का अतीव सतर्कतापूर्वक समन्वय एवं समाहितीकरण इतिहास-लेखन की दिशा में अभी शेष है। अतः नवीन शोध-परिणामों और विकसित साहित्य-चेतना के आलोक में हिन्दी साहित्य के इतिहास का पुनर्गठन और लेखन आवश्यक है। निस्सन्देह आज हिन्दी साहित्य के इतिहास में सम्बन्धित शताब्दिक पुस्तकें उपलब्ध हैं, किन्तु अभी तक इस दिशा में उचित व सन्तोषजनक प्रगति नहीं हुई है। हमने उस अभाव को दृष्टि में रखकर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है।
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