Hindi Kahani Ka Itihas : Vol. 2 (1951-1975)
Author:
Gopal RayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
<span style="font-weight: 400;">यह किताब हिन्दी कहानी का इतिहास का दूसरा खंड है। पहले खंड में 1900-1950 अवधि की हिन्दी कहानी का इतिहास प्रस्तुत किया गया था। इस खंड में 1951-75 का इतिहास पेश किया जा रहा है। पहले इरादा था कि दूसरे खंड में 1951-2000 की हिन्दी कहानी का इतिहास लिखा जाए। पर सामग्री की अधिकता के कारण यह इरादा बदलना पड़ा। यह भी महसूस हुआ कि 1975 का वर्ष हिन्दी कहानी में एक पड़ाव की तरह है। मोटामोटी रूप से इस वर्ष के आसपास अनेक पुराने और नए लेखकों का कहानी-लेखन या तो समाप्त हो गया या उसकी चमक समाप्त हो गई। जो हो, दूसरे खंड की अन्तिम सीमा के लिए एक बहाना तो मिल ही गया! कहने की जरूरत नहीं कि तीसरे खंड में 1976-2000 की कहानी का इतिहास प्रस्तुत करना अभिप्रेत है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इस पुस्तक में उर्दू-हिन्दी और मैथिली-भोजपुरी-राजस्थानी के लगभग 300 कहानी लेखकों और 5000 से अधिक कहानियों का कमोबेश विस्तार के साथ विवेचन या उल्लेख किया गया है। कहानीकारों और किसी भी कारण चर्चित, उल्लेखनीय और श्रेष्ठ कहानियों की अक्षरानुक्रम सूची अनुक्रमणिका में दे दी गई है। हमारा यह दावा निराधार नहीं है कि इसके पहले किसी इतिहास-ग्रन्थ में इतनी संख्या में कहानीकारों और कहानियों का उल्लेख उपलब्ध नहीं है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">–भूमिका से</span>
ISBN: 9788126726240
Pages: 596
Avg Reading Time: 20 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मूर्धन्य आलोचक मदन सोनी द्वारा किया गया पुस्तक का हिन्दी अनुवाद मूलतः पोलिश भाषा में लिखी गई पुस्तक के (स्वयं रेनाता चेकाल्स्का द्वारा किए गए) अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।
Aaj Ka Samaj
- Author Name:
Manohar Shyam Joshi
- Book Type:

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Description:
मनोहर श्याम जोशी सृजनात्मक लेखन की तरह ही अपने विशिष्ट वैचारिक लेखन के लिए भी जाने जाते रहे हैं। उनके वैचारिक लेखन का दायरा बहुत ही व्यापक रहा है। उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद, आतंकवाद तथा साम्प्रदायिकता जैसे ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ बच्चों के इम्तिहान, साइबर प्रेम, उत्तर आधुनिक फतवेबाजी, हिन्दी डे जैसे छोटे-छोटे मगर जरूरी मसलों पर भी कलम चलाई है। देश और समाज से जुड़े हर ज्वलंत सवाल से टकराते हुए उसकी विशेषताओं और विसंगतियों पर वे बिना किसी पूर्वाग्रह के बेवाक टिप्पणी करते हैं। जीवन और समय की विडम्बनाओं को उजागर करने के लिए भाषा की अभिव्यंजना शक्ति का सटीक इस्तेमाल उनके लेखन की ख़ास विशेषता रही है।
समय और समाज को देखने का उनका दृष्टिकोण विज्ञान की शिक्षा और पत्राकारिता की पृष्ठभूमि से निर्मित था जिसे हिन्दी के बौद्धिक संसार में दुर्लभ ही कहा जाएगा। अपने देश में ही नहीं पूरी दुनिया की हर छोटी-बड़ी घटना पर उनकी नजर रहती थी। पहले वे संवेदना के स्तर पर उससे जुड़ते थे, फिर एक पेशेवर राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषक की तरह उसकी पड़ताल करते थे। एक संवेदनशील साहित्यकार और चेतनशील राजनीतिक टिप्पणीकार का अद्भुत संयोग उनके व्यक्तित्व में था जिसका उदाहरण हैं इस संकलन में शामिल वैचारिक टिप्पणियाँ।
Aadhunik Sahitya : Mulya Aur Mulyankan
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

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रचना और आलोचना की सतत् विकासमान प्रक्रिया युग-सापेक्ष सही मूल्यों का निर्धारण करती है तथा उन सार्थक प्रतिमानों का निर्माण करती चलती है जो साहित्य के मूल्यांकन को दिशा और गति देते हैं। इस दृष्टि से देखें तो डॉ. निर्मला जैन की यह पुस्तक अपना विशेष महत्त्व रखती है। इसमें 'मूल्य' और 'मूल्यांकन' के ही बिन्दुओं पर आधुनिक साहित्य की रचनात्मकता और आलोचनात्मकता के प्रश्नों को बारीकी और संजीदगी से उठाया गया है।
‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्याकंन’ आलोचनात्मक निबन्धों का एक सुनियोजित उपयोगी संकलन है। समय-समय पर लिखे गए अपने इन निबन्धों में डॉ. जैन ने बहुत ही धारदार शैली में साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों और समस्याओं का वैचारिक विश्लेषण किया है। अनेक ऐसे मुद्दों को उन्होंने यहाँ नए आयाम दिए हैं जो बहसों के दौरान आए दिन बार-बार सामने आते रहे हैं। साथ ही, कविता और कथा के क्षेत्रों में अब तक की विशिष्ट उपलब्धियों को भी उन्होंने नए कोणों से देखा-परखा और रेखांकित किया है। संक्षेप में, यह पुस्तक रचना और आलोचना की सही पहचान कराने में सक्षम है।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Muktibodh
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

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Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
मुक्तिबोध ऐसे प्रगतिशील कवि, विचारक हैं जिनके लिखे हुए की प्रासंगिकता दिन पर दिन बढ़ती ही गई है। उनके निबन्धों ने हिन्दी साहित्य और आलोचना पर गहरा असर छोड़ा है। उन्होंने अपने निबन्धों में मध्यवर्ग के सघन और रचनात्मक आत्मसंघर्षों को स्वर देते हुए कला-चिन्तन सम्बन्धी नया सौन्दर्यशास्त्र विकसित किया जिसका असर ऐसा व्यापक रहा कि उनके बाद आलोचना और साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र की शब्दावली हमेशा के लिए बदल गई। परवर्ती रचनाकारों के लिए वे सतत रोशनी देनेवाली एक मशाल की तरह रहे। हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब हर उस भारतीय को अपनी अनिवार्य जरूरत की तरह लगेगी जो साहित्य, संस्कृति और कला से जुड़े हुए सवालों से टकराते हुए अपनी समृद्ध और सुदीर्घ परम्परा की तरफ देखता है।
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