Tulsi-Kavya Mein Sahityik Abhipray

Tulsi-Kavya Mein Sahityik Abhipray

Language:

Hindi

Pages:

375

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

750 mins

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Book Description

भक्ति कविता स्वयं में साहित्यिक परम्परा से जुड़ी प्रतिबद्ध भारतीय आध्यात्मिक कविता ही है और अब उन आलोचकों की मान्यताएँ ख़ारिज हो चुकी हैं जो कबीर तथा तुलसीदास जैसे श्रेष्ठतम काव्य सर्जकों को साहित्येतर श्रेणी में रखते रहे हैं।</p> <p>तुलसी की आध्यात्मिक कविता की व्याख्या केवल उनके द्वारा अभिव्यक्त भावात्मक संवेदनाओं से ही न की जाकर उन सन्दर्भों से भी किया जाना अपेक्षित है—जो साहित्य एवं सर्जन के संरचनात्मक मानदंड के रूप में परम्परा में जाने जाते रहे हैं—और जिनको कलात्मक परम्परा के कवियों यथा—कालिदास, भारवि, श्रीहर्ष आदि ने अपनाया है। ये मानदंड हैं, साहित्यिक अभिप्राय अर्थात् कवि के कल्पना प्रसूत कलात्मक मानक जैसे—विविध प्रकार के कवि समय, काव्य रूढ़ियाँ, काल्पनिक कथाएँ, अलंकार विधान की प्रचलित उपमान तथा उपमेय परम्पराएँ आदि।</p> <p>गोस्वामी तुलसीदास अपनी व्यक्ति काव्य-प्रतिमा के प्रति विनयोक्ति जैसा भाव प्रगट करते हुए भी भारतीय कविता की शास्त्रीय परम्पराओं की वे उपेक्षा नहीं करते। इन सबके लिए मानस में वे 'काव्य प्रौढ़ि' एवं ‘काव्य छाया’ शब्दों का प्रयोग करके इंगित करते हैं कि भारतीय कविता की वैभवमयी परम्परा को त्याग कर कविता का सर्जन किसी भारतीय कवि के लिए सम्भव नहीं है। प्रस्तुत अध्ययन का गन्तव्य इसी सन्दर्भ को स्पष्ट करना रहा है कि तुलसी जैसे श्रेष्ठ आध्यात्मिक कवि की कविता भी भारतीय कविता की कलात्मक परम्परा से पूरी तरह जुड़ी है और उसे किसी भी तरह से धार्मिक साहित्य की श्रेणी में रखकर एकांगी एवं संकीर्ण नहीं बनाया जाना चाहिए। आध्यात्मिक कविता के श्रेष्ठतम मानक भारतीय कविता तथा कला के मानक हैं—और उन्हीं से हम भारतीयों की पहचान भी सम्भव है।</p> <p>—डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह

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